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Corona patient report: बीमारी का इलाज अपनी जगह, उससे डर का इलाज तो हो रहा है

    • नवेद शिकोह
    • Updated: 23 जून, 2020 04:20 PM
  • 23 जून, 2020 04:18 PM
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एक ऐसे वक़्त में जब पूरे देश में कोरोना वायरस (Coronavirus) को लेकर हो हल्ला हो उत्तर प्रदेश (UP) की राजधानी लखनऊ (Lucknow) में कोरोना संक्रमित एक पत्रकार केजीएमसी में एडमिट हैं और बता रहे हैं कि कोरोना से डरने की कोई बात नहीं है भले ही ये भयानक दिख रहा हो मगर ये भी एक आम बीमारी ही है.

नवल का अर्थ है- नया और बढ़िया. कोविड की वैश्विक महामारी से हमारी जंग जारी है. अब हम नवल और नवीन हथियारों से इसके खात्में की कोशिशों में हैं. लड़ाई के इस वाले सेगमेंट में हमें इसके डर को अपने दिलो-दिमाग से निकाल फेंकना है. इस कोशिश को आगे बढ़ाने का समय आ गया है. दुनिया में पहली बार कोरोना के डर को निकालने के लिए एक पत्रकार ने कोरोना वार्ड में डेरा डाल दिया है. लखनऊ के पत्रकार नवल कांत सिन्हा लखनऊ के केजीएमयू के कोरोना वार्ड में एडमिट हैं. कोरोना संक्रिमित नवल वहां से कोरोना के इलाज की ग्राउंड जीरो रिपोर्टिंग कर रहे हैं. नवल दुनिया को बताने की कोशिश कर रहे हैं कि इस बीमारी से डरने-घबराने की कोई ज़रुरत नहीं. ऑल इज़ वेल. रोजमर्रा के खासी-बुखार जैसी तमाम छोटी या बड़ी बीमारियों में बआसानी ठीक होने के जितने चांसेस होते हैं उससे कहीं ज्यादा ठीक होने के चांसेज कोरोना के होते हैं.

बच्चा-बूढ़ा या दूसरी जटिल बीमारियों से ग्रसित कोरोना संक्रमित लोगों के अलावा सामान्य उम्र के तंदुरुस्त लोग कोरोना संक्रमित हो जायें तो इनमें से 98 फीसद लोग आसानी से ठीक हो जाते है. इसलिए इससे डरने-घबराने की ज़रूरत नहीं है. लक्षणों या बीमारी को छिपाने या टेस्ट कराने में कतराना बेहद ग़लत है. करीब पिछले तीन महीनों में कोविड की मुसीबतों ने सब को परखा, पत्रकारिता की भी अग्निपरीक्षा हुई.

खबरें और सूचनाएं कोरोना के खिलाफ जंग का अहम हथियार बनी हैं. जागरुकता, एहतियात और बचाव के लिए सरकारी गाइड लाइन को जनता तक मीडिया ने ही पहुंचाया. कमियों-चूकों और बदहाली से भी मीडिया ने अवगत कराया, ताकि सुधार की तरफ क़दम बढ़ें. कुर्बानियां भी खूब दीं. कोविड से जंग लड़ने वाले दुनियाभर के हजारों पत्रकार कोराना संक्रमित हुए. कई पत्रकारों की जानें भी गयीं.

इतनी बड़ी वैश्विक जंग लड़ने वाले कोरोना योद्धाओं को दुनियां ने सलाम किया. डॉक्टर, पैरामेडिकल स्टाफ, पुलिसकर्मी, सफाई कर्मचारी, आवश्यक सामानों को आपूर्ति करने वालों के साथ पत्रकारों के जोखिम भरे पेशे के बड़े योगदान की सराहना हुई. वैश्विक...

नवल का अर्थ है- नया और बढ़िया. कोविड की वैश्विक महामारी से हमारी जंग जारी है. अब हम नवल और नवीन हथियारों से इसके खात्में की कोशिशों में हैं. लड़ाई के इस वाले सेगमेंट में हमें इसके डर को अपने दिलो-दिमाग से निकाल फेंकना है. इस कोशिश को आगे बढ़ाने का समय आ गया है. दुनिया में पहली बार कोरोना के डर को निकालने के लिए एक पत्रकार ने कोरोना वार्ड में डेरा डाल दिया है. लखनऊ के पत्रकार नवल कांत सिन्हा लखनऊ के केजीएमयू के कोरोना वार्ड में एडमिट हैं. कोरोना संक्रिमित नवल वहां से कोरोना के इलाज की ग्राउंड जीरो रिपोर्टिंग कर रहे हैं. नवल दुनिया को बताने की कोशिश कर रहे हैं कि इस बीमारी से डरने-घबराने की कोई ज़रुरत नहीं. ऑल इज़ वेल. रोजमर्रा के खासी-बुखार जैसी तमाम छोटी या बड़ी बीमारियों में बआसानी ठीक होने के जितने चांसेस होते हैं उससे कहीं ज्यादा ठीक होने के चांसेज कोरोना के होते हैं.

बच्चा-बूढ़ा या दूसरी जटिल बीमारियों से ग्रसित कोरोना संक्रमित लोगों के अलावा सामान्य उम्र के तंदुरुस्त लोग कोरोना संक्रमित हो जायें तो इनमें से 98 फीसद लोग आसानी से ठीक हो जाते है. इसलिए इससे डरने-घबराने की ज़रूरत नहीं है. लक्षणों या बीमारी को छिपाने या टेस्ट कराने में कतराना बेहद ग़लत है. करीब पिछले तीन महीनों में कोविड की मुसीबतों ने सब को परखा, पत्रकारिता की भी अग्निपरीक्षा हुई.

खबरें और सूचनाएं कोरोना के खिलाफ जंग का अहम हथियार बनी हैं. जागरुकता, एहतियात और बचाव के लिए सरकारी गाइड लाइन को जनता तक मीडिया ने ही पहुंचाया. कमियों-चूकों और बदहाली से भी मीडिया ने अवगत कराया, ताकि सुधार की तरफ क़दम बढ़ें. कुर्बानियां भी खूब दीं. कोविड से जंग लड़ने वाले दुनियाभर के हजारों पत्रकार कोराना संक्रमित हुए. कई पत्रकारों की जानें भी गयीं.

इतनी बड़ी वैश्विक जंग लड़ने वाले कोरोना योद्धाओं को दुनियां ने सलाम किया. डॉक्टर, पैरामेडिकल स्टाफ, पुलिसकर्मी, सफाई कर्मचारी, आवश्यक सामानों को आपूर्ति करने वालों के साथ पत्रकारों के जोखिम भरे पेशे के बड़े योगदान की सराहना हुई. वैश्विक महामारी के तमाम पहलुओं पर रिपोर्टिंग के तमाम रंग दिखे. बात ही कुछ ऐसी थी कि इस महामारी की खबरें डराने वाली रहीं. ऐसा डर भी मरहम बन रहा था. ये डर हमें इस वायरस से बचने के लिए जागरूक करता रहा.

घरों में रहनें, लॉकडाउन का पालन करने, भीड़ ना लगाने, हाथ धोनें, मास्क लगाने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने. जैसी एहतियातों के लिए खबरें समाज को जागरूक करती रहीं. ये सारे सबक सीखने और इसका पालन करते रहने के बाद हमें अपनी जिन्दगी को फिर से रफ्तार देने की जरुरत महसूस हुई. लेकिन ऐसे में हमारे दिलो-दिमाग़ में एक डर बसा हुआ है. तमाम एहतियातों के साथ अब इस खौफ को कम करने की ज़रुरत पड़ी.

कोरोना हो भी जाये तो हम इससे बिना घबरायें लड़ सकते हैं. इसे हराने के पर्याप्त संसाधन हैं. बिना घबरायें पूरे अनुशासन से इसका टेस्ट करवायें, इलाज करें और ठीक हो जायें. दुनिया के पहले पत्रकार नवलकांत ने संक्रमित होने के बाद भी इस बीमारी के प्रति लोगों का डर कम करने की जो रिपोर्टिंग की है वो बेमिसाल है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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