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नक्सल हमले में मारे गए शहीदों पर तीन दिन शोक के बाद क्या होगा?

    • अभिषेक सिंह
    • Updated: 05 अप्रिल, 2021 08:37 PM
  • 05 अप्रिल, 2021 08:30 PM
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छत्तीसगढ़ में जो जवानों के साथ हुआ है अगर उसके बावजूद किसी भी व्यक्ति को ये लगता कि जवान बीस हजार की सैलरी के लिए नक्सलियों से लड़ते हैं तो लानत है उनके ऊपर. बाकी रहा है छत्तीसगढ़ में जो लोग शहीद हुए हैं वो बस केवल एक संख्या बनकर रह जाएंगे.

बहुत से प्रियजनों ने मेरा कुशलक्षेम पूछा, उसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद, मैं ठीक हूं... बस समझ नहीं आ रहा कि गुस्सा अधिक है या दुख. चुपचाप घुटता रहूं, सिसकता रहूं या चिल्लाऊं. इनमें से कई ऐसे भाई हैं जिनके साथ हमने ऑपरेशन्स किये हैं और साथ में खाना खाया है जंगलों में. साथ में गोलियां चलाई हैं, पहाड़ों पर ग्राउंड शीट बिछा कर रात में सोए हैं. पानी खत्म होने पर नालों का पानी छान कर पिया है हमने. जब फायरिंग हुई है नक्सलियों के साथ तो हमें बचा रहे थे. 'सर आप बीच में रहो हम लोग कुछ नहीं होने देंगे आपको' कह कर गोलियां चलाते हुए बाहर निकाला है इन्होंने. 2 दिनों से इनके क्षत विक्षत शव देख कर कुछ बोला नहीं जा रहा. तिरंगे में लिपटे हुए ताबूत में देख कर इनके घरवालों की चीखें सुनेंगे तो आप भी बिलख पड़ेंगे. हम तो वर्दी वाले हैं, हमें तो खुद को मजबूत दिखाना पड़ता है फिर भी आंखों पर कैसे कोई रोक लगाए, चेहरा एकदम शून्य और आंखों से आंसू निकल रहे थे, अजीब ही लग रहा था खुद को देख कर.

नक्सलियों के हाथों शहीद हुए जवान आने वाले वक़्त में बस एक संख्या हैं

सब-इंस्पेक्टर स्वर्गीय दीपक भारद्वाज, एक हैंडसम लड़का और एक बेहतरीन पुलिस ऑफिसर भी शहीद हो गया. अभी 3-4 दिनों पहले एक रैली की ड्यूटी में उससे मुलाकात हुई थी. हम दोनों ने सुबह से कुछ नहीं खाया था, मेरे पास केले थे, दोनों ने साथ में खाये. मुठभेड़ में वो भी शहीद हुआ और साथ वाले बता रहे थे कि बहुत ही बहादुरी से लड़ा शेर. गोली लगने के बावज़ूद नक्सलियों की नाक में दम कर के रखा था उसने.

सहायक उपनिरीक्षक आनंद कुरसम घायल है. उसके पैर में गोली लगी है लेकिन उसके जज़्बे को लंगड़ा नहीं कर पाई नक्सलियों की गोली. कल बोल रहा था 'जल्दी ठीक होकर फिर से जाऊंगा सर लड़ने.' यही जज़्बा सहायक उपनिरीक्षक चेट्टी का भी है...

बहुत से प्रियजनों ने मेरा कुशलक्षेम पूछा, उसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद, मैं ठीक हूं... बस समझ नहीं आ रहा कि गुस्सा अधिक है या दुख. चुपचाप घुटता रहूं, सिसकता रहूं या चिल्लाऊं. इनमें से कई ऐसे भाई हैं जिनके साथ हमने ऑपरेशन्स किये हैं और साथ में खाना खाया है जंगलों में. साथ में गोलियां चलाई हैं, पहाड़ों पर ग्राउंड शीट बिछा कर रात में सोए हैं. पानी खत्म होने पर नालों का पानी छान कर पिया है हमने. जब फायरिंग हुई है नक्सलियों के साथ तो हमें बचा रहे थे. 'सर आप बीच में रहो हम लोग कुछ नहीं होने देंगे आपको' कह कर गोलियां चलाते हुए बाहर निकाला है इन्होंने. 2 दिनों से इनके क्षत विक्षत शव देख कर कुछ बोला नहीं जा रहा. तिरंगे में लिपटे हुए ताबूत में देख कर इनके घरवालों की चीखें सुनेंगे तो आप भी बिलख पड़ेंगे. हम तो वर्दी वाले हैं, हमें तो खुद को मजबूत दिखाना पड़ता है फिर भी आंखों पर कैसे कोई रोक लगाए, चेहरा एकदम शून्य और आंखों से आंसू निकल रहे थे, अजीब ही लग रहा था खुद को देख कर.

नक्सलियों के हाथों शहीद हुए जवान आने वाले वक़्त में बस एक संख्या हैं

सब-इंस्पेक्टर स्वर्गीय दीपक भारद्वाज, एक हैंडसम लड़का और एक बेहतरीन पुलिस ऑफिसर भी शहीद हो गया. अभी 3-4 दिनों पहले एक रैली की ड्यूटी में उससे मुलाकात हुई थी. हम दोनों ने सुबह से कुछ नहीं खाया था, मेरे पास केले थे, दोनों ने साथ में खाये. मुठभेड़ में वो भी शहीद हुआ और साथ वाले बता रहे थे कि बहुत ही बहादुरी से लड़ा शेर. गोली लगने के बावज़ूद नक्सलियों की नाक में दम कर के रखा था उसने.

सहायक उपनिरीक्षक आनंद कुरसम घायल है. उसके पैर में गोली लगी है लेकिन उसके जज़्बे को लंगड़ा नहीं कर पाई नक्सलियों की गोली. कल बोल रहा था 'जल्दी ठीक होकर फिर से जाऊंगा सर लड़ने.' यही जज़्बा सहायक उपनिरीक्षक चेट्टी का भी है उसके बाएं बाजू पर गोली लगी तो दाहिने हाथ से AK-47 चलाते हुए ना सिर्फ अपनी बल्कि अपने साथियों की भी जान बचाई और अभी आगे भी लड़ने को बेकरार है.

अगर किसी को लगता है कि ये लड़के बीस हजार की सैलरी के लिए नक्सलियों से लड़ते हैं तो लानत है उनके ऊपर. मेरे खुद के परिवार से कोई नहीं शहीद हुआ है लेकिन ये लड़के भी परिवार से कम नहीं हैं मेरे लिए. नक्सलियों की मांद में घुस कर लड़े थे ये लड़ाके. दो दिनों बाद सब भूल जाएंगे. ये लड़के कोई हीरो तो हैं नहीं जिनके समर्थन में ट्विटर पर 'हैशटैग जस्टिस फ़ॉर फलाना' चलाया जाए, है ना.

ये लड़के सिर्फ संख्या बन कर रह जाएंगे. ताड़मेटला-76, मिनपा-17, तररेम-23 ऐसे ही गिनतियों में शायद... मगर हमारे लिए नहीं. दिया बुझने से पहले बहुत फड़फड़ाता है. सब याद रखा जाएगा... सब याद रखा जाएगा. मेरे शूरवीर योद्धाओं को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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