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Covaxin vs Covishield: आखिर फर्क क्या है, और कौन सी कोरोना वैक्सीन ज्यादा कारगर है

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 03 अप्रिल, 2021 04:24 PM
  • 03 अप्रिल, 2021 04:22 PM
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भारत में टीकाकरण के लिए कोवैक्सीन और कोविशील्ड नाम के दो कोरोनारोधी टीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है. कोवैक्सीन पूरी तरह से स्वदेशी टीका है और इसे भारत बायोटेक कंपनी ने बनाया है. कोविशील्ड को सीरम इंस्टीट्यूट ने ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका के साथ मिलकर बनाया है.

देश में कोरोना की दूसरी लहर ने कई राज्यों में गंभीर हालात बना दिए है. टीकाकरण अभियान के चौथे चरण में बीती एक अप्रैल से 45 साल की उम्र पार कर चुके हर व्यक्ति को वैक्सीन दी जा रही है. भारत में टीकाकरण के लिए कोवैक्सीन और कोविशील्ड नाम के दो कोरोनारोधी टीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है. कोवैक्सीन पूरी तरह से स्वदेशी टीका है और इसे भारत बायोटेक कंपनी ने बनाया है. कोविशील्ड को सीरम इंस्टीट्यूट ने ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका के साथ मिलकर बनाया है. देश के कई शहरों में यह दोनों ही टीके उपलब्ध हैं, तो कई जगहों पर कोविशील्ड के अलावा कोई विकल्प नहीं है. इस स्थिति में लोगों के मन में सवाल आना वाजिब है कि इन दोनों ही वैक्सीन में कौन सी बेहतर और असरदार है? इन दोनों वैक्सीन में क्या अंतर है? आइए जानतें है वैक्सीन से जुड़े सभी सवालों के जवाब.....

कोवैक्सीन

इस वैक्सीन को इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) और भारत बायोटेक कंपनी ने मिलकर बनाया है. इसी वजह से वैक्सीन को स्वदेशी का टैग मिला है. इस वैक्सीन को कोविड-19 के वायरस को निष्क्रिय कर बनाया गया है. वैक्सीन में निष्क्रिय कोविड-19 वायरस हैं, जो लोगों को बिना नुकसान पहुंचाए कोरोना संक्रमण के खिलाफ शरीर में प्रतिरोधक तंत्र बनाने में मदद करता है. संक्रमण के वक्त शरीर में एंटीबॉडीज बनाकर वायरस से लड़ता है. कोवैक्सीन को मौसमी बुखार, रेबीज, जापानी इंसेफेलाइटिस (दिमागी बुखार) जैसी बीमारियों में दिए जाने वाले पारंपरिक टीके की तरह ही बनाया गया है.

कोविशील्ड

ऑक्सफोर्ड और एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन को भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया कोविशील्ड नाम से बना रही है. कोविशील्ड को वायरल वेक्टर प्लेटफॉर्म का उपयोग करके तैयार किया गया है, जो एक बिल्कुल अलग तकनीक है. कोविशील्ड को चिम्पांजी में पाए जाने वाले आम सर्दी के संक्रमण के एडेनोवायरस का इस्तेमाल कर बनाया गया है. एडेनोवायरस की आनुवंशिक सामग्री SARS-CoV-2 कोरोनावायरस के स्पाइक प्रोटीन की तरह ही है. स्पाइक प्रोटीन के जरिये ही वायरस...

देश में कोरोना की दूसरी लहर ने कई राज्यों में गंभीर हालात बना दिए है. टीकाकरण अभियान के चौथे चरण में बीती एक अप्रैल से 45 साल की उम्र पार कर चुके हर व्यक्ति को वैक्सीन दी जा रही है. भारत में टीकाकरण के लिए कोवैक्सीन और कोविशील्ड नाम के दो कोरोनारोधी टीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है. कोवैक्सीन पूरी तरह से स्वदेशी टीका है और इसे भारत बायोटेक कंपनी ने बनाया है. कोविशील्ड को सीरम इंस्टीट्यूट ने ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका के साथ मिलकर बनाया है. देश के कई शहरों में यह दोनों ही टीके उपलब्ध हैं, तो कई जगहों पर कोविशील्ड के अलावा कोई विकल्प नहीं है. इस स्थिति में लोगों के मन में सवाल आना वाजिब है कि इन दोनों ही वैक्सीन में कौन सी बेहतर और असरदार है? इन दोनों वैक्सीन में क्या अंतर है? आइए जानतें है वैक्सीन से जुड़े सभी सवालों के जवाब.....

कोवैक्सीन

इस वैक्सीन को इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) और भारत बायोटेक कंपनी ने मिलकर बनाया है. इसी वजह से वैक्सीन को स्वदेशी का टैग मिला है. इस वैक्सीन को कोविड-19 के वायरस को निष्क्रिय कर बनाया गया है. वैक्सीन में निष्क्रिय कोविड-19 वायरस हैं, जो लोगों को बिना नुकसान पहुंचाए कोरोना संक्रमण के खिलाफ शरीर में प्रतिरोधक तंत्र बनाने में मदद करता है. संक्रमण के वक्त शरीर में एंटीबॉडीज बनाकर वायरस से लड़ता है. कोवैक्सीन को मौसमी बुखार, रेबीज, जापानी इंसेफेलाइटिस (दिमागी बुखार) जैसी बीमारियों में दिए जाने वाले पारंपरिक टीके की तरह ही बनाया गया है.

कोविशील्ड

ऑक्सफोर्ड और एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन को भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया कोविशील्ड नाम से बना रही है. कोविशील्ड को वायरल वेक्टर प्लेटफॉर्म का उपयोग करके तैयार किया गया है, जो एक बिल्कुल अलग तकनीक है. कोविशील्ड को चिम्पांजी में पाए जाने वाले आम सर्दी के संक्रमण के एडेनोवायरस का इस्तेमाल कर बनाया गया है. एडेनोवायरस की आनुवंशिक सामग्री SARS-CoV-2 कोरोनावायरस के स्पाइक प्रोटीन की तरह ही है. स्पाइक प्रोटीन के जरिये ही वायरस शरीर की कोशिका में प्रवेश करता है. कोविशिल्ड वैक्सीन शरीर में प्रतिरक्षा प्रणाली को कोरोना संक्रमण से बचने के लिए प्रतिरोधक तंत्र बनाने में मदद करता है. कोविशील्ड को इबोला वायरस से लड़ने वाली वैक्सीन की तरह ही बनाया गया है.

कोवैक्सीन और कोविशील्ड इन दोनों ही टीकों की दो डोज दी जाती हैं.

कितनी डोज लेनी होगी?

कोवैक्सीन और कोविशील्ड इन दोनों ही टीकों की दो डोज दी जाती हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार, कोविशील्ड वैक्सीन के दोनों टीकों के बीच चार से आठ हफ्ते का अंतराल होने पर टीका बेहतर असर करता है. पहले ये समय सीमा चार से छह हफ्ते की थी. कोवैक्सीन के दोनों टीकों के बीच में चार से छह हफ्तों का ही अंतर है.

दोनों वैक्सीन में कौन कितनी प्रभावी और सुरक्षित है?

वैज्ञानिकों का मानना है कि दोनों ही वैक्सीन कोरोना वायरस से लड़ने में प्रभावी और सुरक्षित हैं. ट्रायल के नतीजों के आधार पर कोविशील्ड वैक्सीन 70 से 90 फीसदी तक प्रभावी है. कोवैक्सीन की बात करें, तो वैक्सीन के तीसरे फेज के ट्रायल के नतीजों में इसे 81 फीसदी प्रभावी पाया गया है. इन दोनों ही वैक्सीन को पूरी तरह से सुरक्षित माना गया है. कोवैक्सीन और कोविशील्ड को रखने के लिए 2 से 8 डिग्री के सामान्य तापमान की जरूरत पड़ती है. इन वैक्सीन को घर में इस्तेमाल होने वाली फ्रिज में भी रखा जा सकता है. इसी वजह से इनका स्टोरेज बहुत आसान है.

क्या दोनों वैक्सीन के इस्तेमाल को मंजूरी मिली है?

कोविशील्ड और कोवैक्सीन, दोनों के ही टीकों को आपातकालीन स्थितियों में प्रतिबंधित इस्तेमाल के लिए मंजूरी मिली है. ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DGCI) ने इन दोनों ही वैक्सीन को बाजार में उतारने की अनुमति नही दी है. जिसकी वजह से अभी दोनों ही वैक्सीन केवल सरकारी और केंद्र सरकार द्वारा चुने गए सेंटर्स पर ही उपलब्ध हैं. कोवैक्सीन और कोविशील्ड, दोनों के ही टीके 'इंट्रामस्क्युलर' इंजेक्शन हैं. ये इंजेक्शन 'डेल्टॉयड मसल्स' यानी कंधे के पास की मसल्स पर लगाए जाते हैं.

किन्हें दिया जा सकता है टीका?

कोविशील्ड वैक्सीन का टीका 18 साल से ऊपर के किसी भी व्यक्ति को दिया जा सकता है. वहीं, कोवैक्सीन का टीका 12 साल से ऊपर लोगों को दिया जा सकता है. इन दोनों ही टीकों को बच्चों और गर्भवती महिलाओं को नहीं दिया जा रहा है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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