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इस DCP को सैल्यूट: मां के हाथ की बनी रोटी को ढूंढकर बेटे तक पहुंचाया

    • ज्योति गुप्ता
    • Updated: 05 अप्रिल, 2021 04:31 PM
  • 05 अप्रिल, 2021 04:31 PM
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सर उस बैग में मां के हाथों की बनी रोटियां हैं और कोई कीमती सामान नहीं है लेकिन मुझे वह 7-8 महीने बाद खाने को मिली हैं जो गुम हो गई है. मैं इससे दिल से जुड़ा हूं, कृपया मदद कीजिए.

पता नहीं मां के हाथ से बने खाने में इतना स्वाद आता कहां से है...वह जो भी बना दे स्वादिष्ट ही लगता है. समय कितना भी क्यों ना बदल जाए लेकिन मां के हाथ के बनाए हुए भोजन को खाने के लिए बच्चे हमेशा तड़पते हैं. मां जिस खाने को हाथ लगा दे वह अमृत समान लगने लगता है. इस जमाने में जब ज्यादातर लोग, बूढ़े मां-बाप को भूलने लगे हैं और खुद में व्यस्त रहने लगे हैं. वहीं एक बेटे ने यह एहसास करवा दिया है कि मां की ममता की कोई कीमत नहीं होती, यह दुनिया में सबसे बढ़कर है. ऐसे बेटे का साथ दिया है दिल्ली पुलिस के डीसीपी जितेंद्र मणि त्रिपाठी ने. इन्होंने खुद इसकी जानकारी अपने फेसबुक वॉल पर दी है, जो सोशल मीडिया पर छाई हुई है.

मां के हाथ की बनी रोटियों की कीमत क्या है इस डीसीपी और बेटे ने बता दिया है

दरअसल, एक मां ने दिल्ली में रहने वाले अपने बेटे ऋषभ के लिए बिहार के छपरा से सत्तू भरी रोटी, गुजिया और कुछ पकवान बनाकर उसके दोस्त के साथ भेजा था लेकिन वह थैला मेट्रो में छूट गया. इससे ऋषभ परेशान हो गया क्योंकि मां के हाथ का खाना खाए हुए उसे 7-8 महीने हो गए थे. इसके बाद उसने दिल्ली पुलिस डीसीपी से मदद मांगी. मदद मांगते समय उसकी बात का जिंदादिल कहे जाने वाले डीसीपी पर गहरा असर हुआ.

ऋषभ ने डीसीपी को मैसेज में लिखा कि, सर उस बैग में मां के हाथों की बनी रोटियां हैं और कोई कीमती सामान नहीं है लेकिन मुझे वह 7-8 महीने बाद खाने को मिली हैं जो गुम हो गई है. मैं इससे दिल से जुड़ा हूं, कृपया मदद कीजिए. इसके बाद जब दिल्ली पुलिस ने गुम हुए बैग को खोज कर दो घंटे में उसे सौंप दिया. मां के हाथ की बनी रोटियों को देखकर ऋषभ की आंखों में आंसू आ गए. वहीं ऋषभ को देखकर पुलिस अधिकारी भी इमोशनल हो गए.

डीसीपी जितेंद्र मणि त्रिपाठी इसका जिक्र करते हुए अपने वॉल पर...

पता नहीं मां के हाथ से बने खाने में इतना स्वाद आता कहां से है...वह जो भी बना दे स्वादिष्ट ही लगता है. समय कितना भी क्यों ना बदल जाए लेकिन मां के हाथ के बनाए हुए भोजन को खाने के लिए बच्चे हमेशा तड़पते हैं. मां जिस खाने को हाथ लगा दे वह अमृत समान लगने लगता है. इस जमाने में जब ज्यादातर लोग, बूढ़े मां-बाप को भूलने लगे हैं और खुद में व्यस्त रहने लगे हैं. वहीं एक बेटे ने यह एहसास करवा दिया है कि मां की ममता की कोई कीमत नहीं होती, यह दुनिया में सबसे बढ़कर है. ऐसे बेटे का साथ दिया है दिल्ली पुलिस के डीसीपी जितेंद्र मणि त्रिपाठी ने. इन्होंने खुद इसकी जानकारी अपने फेसबुक वॉल पर दी है, जो सोशल मीडिया पर छाई हुई है.

मां के हाथ की बनी रोटियों की कीमत क्या है इस डीसीपी और बेटे ने बता दिया है

दरअसल, एक मां ने दिल्ली में रहने वाले अपने बेटे ऋषभ के लिए बिहार के छपरा से सत्तू भरी रोटी, गुजिया और कुछ पकवान बनाकर उसके दोस्त के साथ भेजा था लेकिन वह थैला मेट्रो में छूट गया. इससे ऋषभ परेशान हो गया क्योंकि मां के हाथ का खाना खाए हुए उसे 7-8 महीने हो गए थे. इसके बाद उसने दिल्ली पुलिस डीसीपी से मदद मांगी. मदद मांगते समय उसकी बात का जिंदादिल कहे जाने वाले डीसीपी पर गहरा असर हुआ.

ऋषभ ने डीसीपी को मैसेज में लिखा कि, सर उस बैग में मां के हाथों की बनी रोटियां हैं और कोई कीमती सामान नहीं है लेकिन मुझे वह 7-8 महीने बाद खाने को मिली हैं जो गुम हो गई है. मैं इससे दिल से जुड़ा हूं, कृपया मदद कीजिए. इसके बाद जब दिल्ली पुलिस ने गुम हुए बैग को खोज कर दो घंटे में उसे सौंप दिया. मां के हाथ की बनी रोटियों को देखकर ऋषभ की आंखों में आंसू आ गए. वहीं ऋषभ को देखकर पुलिस अधिकारी भी इमोशनल हो गए.

डीसीपी जितेंद्र मणि त्रिपाठी इसका जिक्र करते हुए अपने वॉल पर लिखते हैं कि, ‘मैं आप सबको कल की एक घटना बता रहा हूं. जब मैं सोने जा रहा था मुझे रात में एक व्हाट्सऐप मैसेज आया कि मेरा बैग मेट्रो में रह गया है. इसमें कुछ मेरा सामान है. नंबर अपरिचित का था, करीब 9:54 बजे रात के आस-पास मैसेज आया था. मैंने तत्काल अपने स्पेशल स्टाफ, कंट्रोल रूम और तमाम एसएचओ सदस्य वाले हमारे मेट्रो यूनिट ग्रुप में इस मैसेज को फॉरवर्ड किया. साथ ही इसकी तलाश के लिए निर्देश दिया. तभी कंट्रोल रूम से फोन आया कि सर शिकायतकर्ता से बात हो गई है उसके बैग में सिर्फ उसकी रात का खाना कुछ घर की बनी हुई रोटियां हैं. मैंने फिर भी यह निर्देश दिया कि उस व्यक्ति के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है. कोशिश करें, यदि बैग मिल जाए तो तलाश कर उसके हवाले करें, यह पुण्य कर्म होगा.

इसके बाद गायब बैग को तलाश कर उसके हवाले किया और मुझे इस कार्य में अत्यंत संतुष्ट की प्राप्त हुई. मां के हाथों बनी रोटियां उसके बच्चे तक पहुंचा दिया. इससे जो सुख मिला उसका वर्णन मैं नहीं कर सकता. रोटी मिलने के बाद ऋषभ ने कहा कि, सर यह थैला देखने के बाद मैं रो दिया, क्योंकि इसमें मेरी मां के हाथ के बनाई हुई रोटी और कुछ पकवान हैं. जिसे मैं 7-8 महीने बाद खाऊंगा. मैं इससे बहुत इमोशनली जुड़ा हूं. मैं आपको और दिल्ली मेट्रो पुलिस को धन्यवाद कहता हूं.

डीसीपी आगे लिखते हैं कि, किसी व्यक्ति ने अगर रोटी के लिए ही सही अगर डीसीपी स्तर के अधिकारी से मदद मांगी है तो पक्का वह उसे वापस पाना चाहता है और उसे उसका जुड़ाव होगा. जब उस बच्चे ने अपनी मां के हाथ की बनी रोटियां पाई तो उसकी आंखों में आंसू होते हैं, सच बताऊं इसकी कीमत किसी बड़े से बड़े अवार्ड से भी अधिक है. बड़े से बड़े पुरस्कार से भी बड़ी है. बहुत अच्छा महसूस हुआ यह कार्य करके’.

सच बात है, मां के बनाए खाने में जो स्वाद है वह किसी भी 5 स्टार होटल के खाने में नहीं. सोचिए जब खाना का थैला गुम हो जाने की खबर जब ऋषभ की मां को पता चलती तो उन्हें कितना दुख होता. शायद वह कई हफ्तों तक इसी बात का अफसोस मनाती कि मेरे बच्चे को मेरी बनाई रोटी नहीं मिल पाई, लेकिन शुक्र है ऐसा नहीं हुआ. मां तो आखिर मां ही होती है ना…

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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