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ये अंधविश्वास ही है जो बुराड़ी से लेकर 15 लाख की मांग तक कायम है

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 03 जुलाई, 2018 04:20 PM
  • 02 जुलाई, 2018 10:07 PM
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दिल्ली के बुराड़ी में अंधविश्वास के चलते 11 लोगों की मौत से भले ही हम भावुक हों मगर हमें याद रखना चाहिए कि अंधविश्वास हमारे समाज में कोई आज की चीज नहीं है. इसका पालन कर हम बरसों से अपना जीवन बर्बाद कर रहे हैं.

राजधानी दिल्ली एक व्यस्त शहर है. Sunday, Monday, Tuesday, Wednesday कोई भी हो प्रायः यहां लोग व्यस्त रहते हैं. ये कितने व्यस्त और तनाव में है इसकी जो तस्दीख करनी हो तो मेट्रो में यात्रा करके इनके चेहरे देखिये. कान में हेडफोन है, संगीत चल रहा है मगर इनके चेहरे पर कोई भाव नहीं है. संगीत के बावजूद जिनके चेहरे पर भाव नहीं होता और जो तनाव में होते हैं ऐसे लोगों के बीच ट्रेंड बन गया है कि जब कुछ न समझ आए तो आत्महत्या कर लो. बात आत्महत्या, ट्रेंड और दिल्ली पर है तो हम बुराड़ी को नहीं भूल सकते. बुराड़ी में एक ही घर के 11 लोगों की आत्महत्या का मामला सामने आया है.

दिल्ली के बुराड़ी में जो हुआ वो एक दिल दहला देने वाली घटना है

बुराड़ी कभी गांव था. फिर जैसे जैसे रोज़गार की तलाश में लोगों ने पलायन करना शुरू किया बुराड़ी का भी विकास हो गया. यहां के बड़े बड़े घर, ऊंची बहुमंजिला इमारतों में बदल गए. कल तक जहां गाय भैंसों के तबेले थे अब वहां कार पार्किंग हैं. हम बात कर रहे थे बुराड़ी में हुई आत्महत्या पर. वाकई ये मामला दिल दहला देने वाला है. एक साथ एक ही घर में 11 लोगों कि मौत हुई हो तो कठोर से कठोर व्यक्ति भी खौफज़दा हो जाएगा. मौत की खबर आने से लेकर इस वक्त तक ऐसी तमाम बातें हैं जो लोगों के बीच चर्चा का विषय बनी हुई हैं.

शुरुआती जांच में इसे आत्महत्या कहा गया तो वहीं पुलिस ने इस बात को भी नहीं नाकारा कि ये हत्या है. जैसे जैसे जांच आगे बढ़ी कई चीजें सामने आ चुकी हैं. ताजा मामला रजिस्टर और कुछ पन्नों का है. मौका-ए-वारदात पर दो रजिस्टर मिले  जिसके कुछ पन्ने भरे हुए हैं तो वहीं कुछ खाली हैं. जो पन्ने खाली हैं वो भविष्य में भी खाली रहेंगे मगर जो भरे हुए हुए हैं उन्होंने पुलिस को गहरी मशक्कत में डाल दिया है. ये भरे पन्ने बता रहे हैं कि बुराड़ी का ये बेहद...

राजधानी दिल्ली एक व्यस्त शहर है. Sunday, Monday, Tuesday, Wednesday कोई भी हो प्रायः यहां लोग व्यस्त रहते हैं. ये कितने व्यस्त और तनाव में है इसकी जो तस्दीख करनी हो तो मेट्रो में यात्रा करके इनके चेहरे देखिये. कान में हेडफोन है, संगीत चल रहा है मगर इनके चेहरे पर कोई भाव नहीं है. संगीत के बावजूद जिनके चेहरे पर भाव नहीं होता और जो तनाव में होते हैं ऐसे लोगों के बीच ट्रेंड बन गया है कि जब कुछ न समझ आए तो आत्महत्या कर लो. बात आत्महत्या, ट्रेंड और दिल्ली पर है तो हम बुराड़ी को नहीं भूल सकते. बुराड़ी में एक ही घर के 11 लोगों की आत्महत्या का मामला सामने आया है.

दिल्ली के बुराड़ी में जो हुआ वो एक दिल दहला देने वाली घटना है

बुराड़ी कभी गांव था. फिर जैसे जैसे रोज़गार की तलाश में लोगों ने पलायन करना शुरू किया बुराड़ी का भी विकास हो गया. यहां के बड़े बड़े घर, ऊंची बहुमंजिला इमारतों में बदल गए. कल तक जहां गाय भैंसों के तबेले थे अब वहां कार पार्किंग हैं. हम बात कर रहे थे बुराड़ी में हुई आत्महत्या पर. वाकई ये मामला दिल दहला देने वाला है. एक साथ एक ही घर में 11 लोगों कि मौत हुई हो तो कठोर से कठोर व्यक्ति भी खौफज़दा हो जाएगा. मौत की खबर आने से लेकर इस वक्त तक ऐसी तमाम बातें हैं जो लोगों के बीच चर्चा का विषय बनी हुई हैं.

शुरुआती जांच में इसे आत्महत्या कहा गया तो वहीं पुलिस ने इस बात को भी नहीं नाकारा कि ये हत्या है. जैसे जैसे जांच आगे बढ़ी कई चीजें सामने आ चुकी हैं. ताजा मामला रजिस्टर और कुछ पन्नों का है. मौका-ए-वारदात पर दो रजिस्टर मिले  जिसके कुछ पन्ने भरे हुए हैं तो वहीं कुछ खाली हैं. जो पन्ने खाली हैं वो भविष्य में भी खाली रहेंगे मगर जो भरे हुए हुए हैं उन्होंने पुलिस को गहरी मशक्कत में डाल दिया है. ये भरे पन्ने बता रहे हैं कि बुराड़ी का ये बेहद शरीफ और धार्मिक परिवार किसी बाबा के चक्कर में फंसने के कारण, बुरी तरह से अंधविश्वास में उलझा था. जिसने मौत का रास्ता चुना और इस निर्मोही दुनिया को अलविदा कहना बेहतर समझा.

बात विचलित करने वाली तो है मगर कड़वा सच भी यही है. पुलिस ने जो उन पन्नों में पाया वो हैरत में डालने वाला था. साफ पता चल रहा है कि परिवार किसी बाबा के संपर्क में था और जिसके द्वारा दिए गए दिव्य ज्ञान के कारण ही आज एक हंसता खेलता घर शमशान बन गया है. पन्ने में लिखा था कि 'कोई मरेगा नहीं' बल्कि, कुछ 'महान' हासिल कर लेगा. पन्ने में ये भी था कि रात में एक बजे के बाद जाप शुरू करो, मौत के पहले अपनी आंखें बंद करो कपड़े और रुई रखकर, मरते समय छटपटाहट होगी इसलिए अपने हाथ काबू करने के लिए उन्हें बांध लो, ये काम शनिवार और गुरुवार को अच्छा रहेगा.'

प्रारंभिक जांच में पुलिस को जो भी मिला है उसमें यही निकल कर आया है कि परिवार अंधविश्वास की चपेट में था

यानी बात साफ है. बुराड़ी का भाटिया परिवार अंधविश्वास की चपेट में था. रजिस्टर पर जो लिखा है उसके बाद सवाल उठता है कि आखिर ये परिवार इतना धार्मिक कैसे हुआ? आखिर क्यों इसने अंधविश्वास की रह पकड़ी तो इसका जवाब बस इतना है कि दस साल पहले भाटिया परिवार के ललित भाटिया एक हादसे का शिकार हो गए थे. ललित के ऊपर लकड़ियों का गट्ठर गिर गया था. इस हादसे में ललित की आवाज चली गई थी. परिवार ने हर तरीके से उनका इलाज करवाया, लेकिन किसी भी तरह का इलाज काम नहीं आया तो उन्होंने ज्यादा पूजा-पाठ करना शुरु कर दिया. जब ललित की आवाज वापस आ गई तो परिवार पूरा आध्यात्मिक हो गया.

खैर ये इकलौती कहानी केवल भाटिया परिवार की नहीं है. वर्तमान परिदृश्य में अंधविश्वास के पक्षधर तो हम सभी हैं. कभी हम कालेधन के नाम पर अपने प्रधानमंत्री मोदी को घेरते हैं तो कभी हम अकाउंट में "15 लाख" न आने परउनकी कड़े शब्दों में आलोचना करते हैं. ये हमारा अंधविश्वास नहीं तो और क्या है ? हो सकता है इसे पढ़कर आप थोड़ा असहज हों और इस सोच में पड़ जाएं कि आखिर ये बात यहां कहां से आ गई.

तो यहां ये बताना बेहद जरूरी है कि किसी के कुछ कह देने से ये जरूरी है कि वो कही बात संभव ही हो जाए या ऐसा भी नहीं है कि व्यक्ति को कह रहा है वो पत्थर की लकीर है. एक ऐसी लकीर जिससे पहले न कुछ था न जिसके बाद कुछ होगा. कही बात अटल सत्य नहीं है. कई बार बल्कि हर बार ही हमें किसी व्यक्ति द्वारा कही बात पर यकीन करने से पहले अपने विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए.

ये बुराड़ी मामले की जटिलता ही है जिसने पुलिस तक को हैरत में डाल दिया है

बुराड़ी में अंधविश्वास के चलते भाटिया परिवार के 11 लोगों की मौत के बाद ये कहना गलत नहीं है कि हमारे बीच का ये अंधविश्वास कोई आज का नहीं है. शुरुआत तो इसकी तब ही हुई थी जब मानव सभ्य हुआ और उसने अपने इर्द गिर्द समाज की रचना की.

एक ऐसे वक़्त में जब हम हर चीज का अल्टरनेट तलाशते हैं. हमारी मांगें ही वो कारण हैं जो इस अंधविश्वास की जनक हैं. बात जब अंधविश्वास की आती है तो लोग इसे धर्म से जोड़कर देखते हैं मगर ऐसे लोगों को याद रखना चाहिए कि धार्मिक होने और अंधविश्वास का समर्थक होने, उसे मानने और समझने में एक बड़ा अंतर है. व्यक्ति का धार्मिक होना एक अलग चीज है और अंधविश्वास का समर्थक होना दूसरी चीज है. दोनों ही सिक्के के दो अलग पहलू हैं जो एक दूसरे से जुदा हैं और जिनकी तुलना कभी संभव ही नहीं है.

भाटिया परिवार की इस मौत पर हमें दुःख तो है मगर यहां हम ये जरूर बताना चाहेंगे कि परिवार जिस भी बाबा की क्षरण में था और जिसके द्वारा मिले दिव्य ज्ञान से वो जीवन जी रहा था, एक बार ठंडे दिमाग और अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए उसे बाबा के बताए मार्ग के बारे में सोचना था. कहना गलत नहीं है कि यदि इन लोगों ने भावना के मुकाबले बुद्धि को महत्त्व दिया होता और बाबा द्वारा बताई गई गलत बातों का विरिध किया होता  तो शायद आज दृश्य वैसा न होता जैसा है.  बल्कि सब खुश होते.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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