• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

अध्यात्म, गृहस्थी और फिर आत्महत्या - भय्यू महाराज ने जिंदगी का ये कौन सा सबक दिया है ?

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 14 जून, 2018 03:06 PM
  • 14 जून, 2018 03:06 PM
offline
तीन महीने पहले ही मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह सरकार ने पांच संतों को राज्य मंत्री का दर्जा दिया था. एक नाम उनमें भय्यूजी महाराज का भी रहा. भय्यूजी महाराज ने संत होने के नाते मंत्री पद को गैरजरूरी बता ठुकरा दिया - और फिर खुदकुशी कर ली!

हाल के दिनों में दो बड़े पुलिस अफसरों की खुदकुशी की घटनाएं देखने को मिलीं. अभी भय्यूजी महाराज की आत्महत्या की खबर आयी है - और एक ताजातरीन घटना है सफदरजंग अस्पताल की जिसमें हॉस्पिटल का ही एक स्टाफ का फांसी लगा लेता है. हर घटना की जांच जारी है, लेकिन पहली बार में पुलिस ने सभी को खुदकुशी माना है, हालांकि, सारी घटनाओं में सुईसाइड नोट नहीं मिले हैं.

सबसे ज्यादा सकते में डालने वाली है भय्यूजी महाराज की कथित खुदकुशी. उनके फॉलोअर, परिवार और सियासी सर्कल में उन्हें पसंद करने वालों पर क्या बीत रही होगी उसे सहज तौर पर समझा जा सकता है. सवाल यही है कि भय्यूजी जैसी शख्सियत ने ऐसा कदम क्यों उठाया?

अजीब बात है - जिसे मंत्री पद का मोह नहीं उस संत ने खुदकुशी कर ली!

तीन महीने पहले ही मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह सरकार ने जिन पांच संतों को राज्य मंत्री का दर्जा दिया था - उनमें एक नाम भय्यूजी महाराज का भी रहा. बाकी संतों ने तो शिवराज सिंह की सौगात को हाथोंहाथ लिया और चट मंगनी पट ब्याह वाले अंदाज में उनके खिलाफ अपनी मुहिम रोक दी, लेकिन भय्यूजी महाराज ने मंत्री पद ठुकरा दिया.

किसी को ख्याल तो रखना होगा...

मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकार के मंत्री पद को ठुकराते हुए भय्यू महाराज का कहना रहा, "किसी संत के लिए पद की कोई अहमियत नहीं है... जब कोई पद या स्टेटस आपके मन, विवेक और अंतरात्मा को नहीं छू पाता - उसके बारे में क्या सोचना?" वैसे उनके बयान के साथ साथ उनकी नाराजगी की भी खबर आयी थी.

भय्यूजी महाराज की सामाजिक सेवाओं और सलाहियत को शिरोधार्य करने वालों की फेहरिस्त में एक से एक बड़े नाम आते हैं. भारतीय राजनीति में वो कितने महत्वपूर्ण थे ऐसे समझिये कि वो यूपीए सरकार में अन्ना हजारे का भी अनशन तुड़वाते थे - और...

हाल के दिनों में दो बड़े पुलिस अफसरों की खुदकुशी की घटनाएं देखने को मिलीं. अभी भय्यूजी महाराज की आत्महत्या की खबर आयी है - और एक ताजातरीन घटना है सफदरजंग अस्पताल की जिसमें हॉस्पिटल का ही एक स्टाफ का फांसी लगा लेता है. हर घटना की जांच जारी है, लेकिन पहली बार में पुलिस ने सभी को खुदकुशी माना है, हालांकि, सारी घटनाओं में सुईसाइड नोट नहीं मिले हैं.

सबसे ज्यादा सकते में डालने वाली है भय्यूजी महाराज की कथित खुदकुशी. उनके फॉलोअर, परिवार और सियासी सर्कल में उन्हें पसंद करने वालों पर क्या बीत रही होगी उसे सहज तौर पर समझा जा सकता है. सवाल यही है कि भय्यूजी जैसी शख्सियत ने ऐसा कदम क्यों उठाया?

अजीब बात है - जिसे मंत्री पद का मोह नहीं उस संत ने खुदकुशी कर ली!

तीन महीने पहले ही मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह सरकार ने जिन पांच संतों को राज्य मंत्री का दर्जा दिया था - उनमें एक नाम भय्यूजी महाराज का भी रहा. बाकी संतों ने तो शिवराज सिंह की सौगात को हाथोंहाथ लिया और चट मंगनी पट ब्याह वाले अंदाज में उनके खिलाफ अपनी मुहिम रोक दी, लेकिन भय्यूजी महाराज ने मंत्री पद ठुकरा दिया.

किसी को ख्याल तो रखना होगा...

मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकार के मंत्री पद को ठुकराते हुए भय्यू महाराज का कहना रहा, "किसी संत के लिए पद की कोई अहमियत नहीं है... जब कोई पद या स्टेटस आपके मन, विवेक और अंतरात्मा को नहीं छू पाता - उसके बारे में क्या सोचना?" वैसे उनके बयान के साथ साथ उनकी नाराजगी की भी खबर आयी थी.

भय्यूजी महाराज की सामाजिक सेवाओं और सलाहियत को शिरोधार्य करने वालों की फेहरिस्त में एक से एक बड़े नाम आते हैं. भारतीय राजनीति में वो कितने महत्वपूर्ण थे ऐसे समझिये कि वो यूपीए सरकार में अन्ना हजारे का भी अनशन तुड़वाते थे - और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गुजरात के सीएम रहते सद्भावना व्रत को भी पूरा कराया. बावजूद उनके इतने मजबूत पॉलिटिकल नेटवर्क के किसी पार्टी विशेष से उनका नाम नहीं जोड़ा गया. बैर किसी से भी नहीं और दोस्ती सभी से.

सभी के संपर्क में रहे भय्यूजी...

खुद के संत होने के चलते मंत्री पद ठुकरा देने वाले भय्यूजी महाराज की कलाई रौलेक्स के बगैर कभी सुनी नहीं रही. इंदौर के आलीशान बंगले में रहने वाले भय्यूजी मर्सिडीज से चलते थे.

अस्पताल में आत्महत्या

एक तरफ भय्यू जी महाराज की आत्महत्या और दूसरी तरफ दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल से एक नर्सिंग अटेंडेंट की आत्महत्या की खबर आई है. अस्पताल के त्वचा रोग विभाग के ओपीडी में नर्सिंग अटेंडेंट संजय के बारे में पुलिस ने बताया है कि उसने फांसी लगा ली.

ताज्जुब की बात ये है कि फांसी लगाने से पहले संजय ने अपनी बेटी को फोन किया था. फोन पर संजय ने बेटी को बताया कि ओपीडी में किस जगह उसने अपना क्रेडिट कार्ड रखा है और कहां रुपया? ये भी बताया कि जो रुपया रखा है उसे किसे देना है.

ये तो खुद का एनकाउंटर है

अभी पिछले ही महीने देश के दो जाबांज पुलिस अफसरों ने अपनी ही पिस्टल से गोली मार कर खुदकुशी कर ली. एक - मुंबई के आईपीएस अधिकारी हिमांशु रॉय और दूसरे यूपी एटीएस के अधिकारी राजेश साहनी. दोनों ही अफसर अपने महकमे में और मीडिया में भी अपने पेशेवराना अंदाज के लिए मशहूर रहे.

अपनी ही जान कैसे लेते हैं जांबाज?

दोनों ही अफसरों ने न जाने कितने ही हाई प्रोफाइल केस सुलझाये थे और कई दुर्दांत अपराधियों को मुठभेड़ में मार गिराया होगा, लेकिन विडम्बना देखिये एक दिन खुद का ही एनकाउंटर कर डाला. सुनने में ही कितना आश्चर्यजनक लगता है. बताने की नहीं, समझने और महसूस करने की जरूरत है. हिमांशु रॉय के बारे में तो पता चला वो कैंसर से जूझ रहे थे, लेकिन राजेश साहनी की आत्महत्या का असली कारण सामने नहीं आया है. योगी सरकार ने पुलिस अफसर की मौत के मामले में सीबीआई जांच की सिफारिश की है.

कुछ सवाल जिनके जवाब भय्यू जी के अलावा कोई और नहीं दे सकता

जिन चार मामलों का जिक्र यहां किया गया है वे भारतीय समाज की तीन पृष्ठभूमि का प्रतिनिधित्व करते हैं. वैसे तो इस देश ने एक पूर्व मुख्यमंत्री के खुदकुशी की खबर बर्दाश्त की है. ये बात अलग है कि अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कलिखो पुल की खुदकुशी के राज आज भी रहस्य बने हुए हैं.

एक छोर पर भय्यूजी महाराज की हाई-फाई जिंदगी है, तो एक छोर पर नर्सिंग अटेंडेंट संजय. संजय की कहानी उस इंसान की है जो मरने का फैसला कर लेने के बाद भी किसी के रुपयों का इंतजाम करता है और बेटी को फोन कर बताता है कि वो कहां रखा है और किसे देना है. भय्यूजी महाराज और संजय के बीच के सामाजिक टापू पर हिमांशु रॉय और राजेश साहनी है. दोनों अफसरों पढ़ लिखकर अपनी योग्यता के बूते अपनी जगह बनायी - और अपनी प्रोफेशनलिज्म के लिए जाने जाते रहे. फिर भी कोई न कोई वजह बनी रही या कुछ ऐसा हुआ कि उन्हें मौत का रास्ता अख्तियार करना पड़ा.

हर अस्वाभाविक मौत के कुछ अलग कारण होते हैं. ऐसी हर मौत के लिए कोई न कोई जिम्मेदार भी होता है, खुदकुशी के खत में भले ही किसी को जिम्मेदार न ठहराया गया हो. सिस्टम के हिसाब से कानूनी प्रक्रिया भी होती रहेगी और सामाजिक रस्मोरिवाज भी.

मरने के बाद कानूनी प्रक्रियाएं खत्म हो जाती हैं. नैतिक तौर पर भी किसी पर मौत के बाद कोई टिप्पणी नहीं करने की परंपरा है. मगर, भय्यूजी ने जिंदगी के जितने आयाम प्रस्तुत किये उसके चलते वो अपवाद की श्रेणी में रखे जाएंगे.

कभी स्न्यासी, कभी गृहस्थ!

संत बनने से बहुत पहले भय्यूजी ने मॉडलिंग भी की. दो-दो शादियां की - ये उनकी निजी जिंदगी की बातें हैं. भय्यूजी महाराज ने आध्यात्मिक स्वरूप भी धारण किया - ये भी उनका निजी फैसला रहा. कई करीबियों को हैरान करते हुए भय्यूजी ने दोबारा शादी की, ये भी हर नागरिक की तरह उन्हें अधिकार रहा. संविधान से निजता के अधिकार के तहत भय्यूजी को भी तमाम हक मिले रहे - और उन्होंने सभी का बारी बारी उपयोग किया. सब चलेगा. कोई सवाल नहीं. फिर खुदकुशी कर ली. कागज का एक टुकड़ा छोड़ चुपचाप चल दिये.

भय्यूजी महाराज ने भौतिक सुख सुविधाओं का भरपूर इस्तेमाल किया. जब जिस चीज से जी ऊब गया उसे छोड़ दिया. जब उससे अच्छा कुछ लगा उसे आजमा भी लिया. उससे भी मन भर गया तो जो भी नया नजर आया उपभोग किया - और आखिर में उसमें भी दिलचस्पी खत्म हो गयी तो आखिरी रास्ता अपना कर जिंदगी को ही अलविदा कह दिया.

आखिरी खत में लिखा - 'किसी को परिवार की जिम्मेदारी लेनी होगी...' और सारी जिम्मेदारियां एक कागज के टुकड़े के हवाले कर खुद को आजाद कर लिया. ऐसा कैसे चलेगा?

भय्यूजी महाराज आपसे सबसे बड़ी शिकायत तो ये है कि अच्छी खासी खुशहाल मानी जाने वाली जिंदगी का ही मजाक बना दिया. आप ही बता दीजिए आपको किस बात के लिए याद किया जाये? फिर भी ये आखिरी सवाल नहीं है.

भय्यूजी की जिंदगी पर नजर डालें तो वो ईएल जेम्स के गढ़े किरदार 'क्रिश्चियन ग्रे' के 'फिफ्टी शेड्स...' को भी पीछे छोड़ते नजर आते हैं. पूरी कहानी का पीड़ादायक पहलू ये है कि दुनिया छोड़ने के लिए भय्यूजी ने अस्वाभाविक मौत को गले लगाया - और ये बात शायद ही कभी भूल पाये.

इन्हें भी पढ़ें :

सेलेब्रिटी स्टेटस वाले आध्यात्मिक गुरु भय्यूजी महाराज ने आत्महत्या की तरफ क्यों बढ़ाए कदम?

आखिर एक जांबाज़ पुलिस ऑफिसर आत्महत्या की तरफ क्‍यों बढ़ता है...

आत्महत्या की कगार पर थे वो, काश कोई बचा लेता...


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲