• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

प्रणब मुखर्जी ने मंदिर वहीं बनाया

    • विजय मनोहर तिवारी
    • Updated: 02 जून, 2018 12:18 PM
  • 02 जून, 2018 12:18 PM
offline
1400 साल पुराना मूल मंदिर बेरहम वक्त के हाथों नष्ट हो चुका था. प्रणब दा ने इसे मिशन की तरह लिया. यह काम चार साल चला था और प्रणब दा ने कभी अपनी इस पहल का कोई प्रचार-प्रसार नहीं किया.

क्या आपको पता है कि प्रणब मुखर्जी ने एक ऐसे प्राचीन जीर्णशीर्ण मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था, जिसकी तुलना बीरभूम और बोलपुर के इलाके के लोग सरदार वल्लभ भाई पटेल के सोमनाथ मंदिर निर्माण से करते हैं. प्रणब मुखर्जी सात जून को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के न्यौते पर नागपुर जा रहे हैं. सत्तर साल की सेकुलर सियासत संघ को देखने का वह नजरिया ठोस कर चुकी है, जैसे पुरानी जड़ सोच के मुताबिक अछूतों की बस्ती में कोई कथित ऊंची जात का आदमी जाए. कांग्रेसियों के कान जरा जोर से ही खड़े हैं. चिदंबरम् जैसे नेता उन्हें नसीहत दे रहे हैं कि वे जा ही रहे हैं तो संघ को उनकी खामियां गिनाएं.

फिलहाल चलिए मेरे साथ पश्चिम बंगाल के एक छोटे से गांव मिराती के पास, जहां प्रणब दा ने भव्य मंदिर निर्माण कराया-

जब जून 2012 में प्रणब दा ने वित्त मंत्री के पद से इस्तीफा दिया और राष्ट्रपति बनने की तरफ कदम बढ़ाए तब मुझे उनके गांव जाने का मौका मिला था. मैं कुछ दिन बीरभूम और बोलपुर के उस इलाके में घूमा. प्रणब दा के घर गया, बचपन के दोस्तों, परिवारजनों और कांग्रेसियों से मिला. करीब 1400 साल पुराना जपेश्वर महादेव मंदिर यहीं है. बोलपुर के पास किरनाहर नाम का कस्बा है. इससे तीन किलोमीटर दूर एक छोटा सा गांव है- मिराती. प्रणब दा के पुराने सहयोगी रवि चटर्जी मुझे इन सब जगहों पर ले गए और फिर कहा कि एक ऐसी जगह आपको दिखाता हूं, जिसके बारे में बहुत लोगों को नहीं मालूम. कांग्रेस में भी किसी को नहीं, दिल्ली में भी शायद ही कोई जानता हो.

1400 साल पुराने मंदिर का पुनर्निर्माण प्रणव मुखर्जी ने करवाया था

यह एक ऐसा परिसर था, जहां प्राचीन बंगाल के प्रसिद्ध शासक शशांक (590-625) ने एक शानदार मंदिर बनवाया था. शशांक का कालखंड इस्लाम के पैगंबर हजरत मोहम्मद (570-632) के ही...

क्या आपको पता है कि प्रणब मुखर्जी ने एक ऐसे प्राचीन जीर्णशीर्ण मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था, जिसकी तुलना बीरभूम और बोलपुर के इलाके के लोग सरदार वल्लभ भाई पटेल के सोमनाथ मंदिर निर्माण से करते हैं. प्रणब मुखर्जी सात जून को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के न्यौते पर नागपुर जा रहे हैं. सत्तर साल की सेकुलर सियासत संघ को देखने का वह नजरिया ठोस कर चुकी है, जैसे पुरानी जड़ सोच के मुताबिक अछूतों की बस्ती में कोई कथित ऊंची जात का आदमी जाए. कांग्रेसियों के कान जरा जोर से ही खड़े हैं. चिदंबरम् जैसे नेता उन्हें नसीहत दे रहे हैं कि वे जा ही रहे हैं तो संघ को उनकी खामियां गिनाएं.

फिलहाल चलिए मेरे साथ पश्चिम बंगाल के एक छोटे से गांव मिराती के पास, जहां प्रणब दा ने भव्य मंदिर निर्माण कराया-

जब जून 2012 में प्रणब दा ने वित्त मंत्री के पद से इस्तीफा दिया और राष्ट्रपति बनने की तरफ कदम बढ़ाए तब मुझे उनके गांव जाने का मौका मिला था. मैं कुछ दिन बीरभूम और बोलपुर के उस इलाके में घूमा. प्रणब दा के घर गया, बचपन के दोस्तों, परिवारजनों और कांग्रेसियों से मिला. करीब 1400 साल पुराना जपेश्वर महादेव मंदिर यहीं है. बोलपुर के पास किरनाहर नाम का कस्बा है. इससे तीन किलोमीटर दूर एक छोटा सा गांव है- मिराती. प्रणब दा के पुराने सहयोगी रवि चटर्जी मुझे इन सब जगहों पर ले गए और फिर कहा कि एक ऐसी जगह आपको दिखाता हूं, जिसके बारे में बहुत लोगों को नहीं मालूम. कांग्रेस में भी किसी को नहीं, दिल्ली में भी शायद ही कोई जानता हो.

1400 साल पुराने मंदिर का पुनर्निर्माण प्रणव मुखर्जी ने करवाया था

यह एक ऐसा परिसर था, जहां प्राचीन बंगाल के प्रसिद्ध शासक शशांक (590-625) ने एक शानदार मंदिर बनवाया था. शशांक का कालखंड इस्लाम के पैगंबर हजरत मोहम्मद (570-632) के ही आसपास है. मूल मंदिर बेरहम वक्त के हाथों नष्ट हो चुका था. प्रणब दा ने इसे मिशन की तरह लिया. यह काम चार साल चला था और प्रणब दा ने कभी अपनी इस पहल का कोई प्रचार-प्रसार नहीं किया.

शशांक ने ठीक वैसे ही कई मंदिर अपने इलाके में बनवाए जैसे राजा भोज ने मध्यप्रदेश, हर्ष ने कन्नौज और राजा राजा ने तमिलनाडू में चोल साम्राज्य की सीमाओं में कराए. शशांक ने यहां जपेश्वर महादेव का मंदिर बनवाया था. इनमें से कई प्राचीन मंदिर और महल 11वीं सदी के बाद सुलतानों के कब्जे के बाद ढहा दिए गए थे. यह भी खंडहर की शक्ल में यहां मौजूद रहा. शशांक की राजधानी मौजूदा मुर्शिदाबाद जिले में कर्णसुवर्ण के नाम से थी, जिसे बाद में मौजूदा मालदा के गौड़ नामक स्थान पर स्थानांतरित किया गया था. प्रणब दा ज्यादातर चुनाव इन्हीं दोनों क्षेत्रों से लड़े हैं. बख्तियार खिलजी का नाम सबने नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालयों के संदर्भ में पढ़ा-सुना होगा. बख्तियार ने ये दोनों महान विश्वविद्यालय जलाकर राख किए थे. बाद में उसने बंगाल में कब्जा किया और सुलतानों का एक दौर शुरू हुआ जो आखिरकार प्लासी की 1757 की लड़ाई में नवाब सिराजुद्दौला और मीर जाफर के मशहूर किस्सों के साथ खत्म हुआ.

मंदिरसोमनाथ कुछ अलग कारणों से हमारी याददाश्त में अंकित है. एक तो यह भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है. दूसरा महमूद गजनवी के हमले और लूट के नृशंस विवरण इतिहास में हैं. तीसरा, इसे बार-बार बनाया गया और कई बार तोड़ा भी गया. अंतत: रियासतों में बिखरे हुए भारत में नवाबों-निजामों की अकल ठिकाने लगाते हुए एकजुट करने वाले सरदार पटेल ने लगे हाथों जो सबसे बड़ा काम हाथ में लिया वह सोमनाथ मंदिर का ही था. इसकी चर्चा इसलिए भी हुई कि पटेल ने यह काम भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के विरोध के बावजूद किया. पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्रप्रसाद नेहरू की मर्जी के खिलाफ पूरी शान से नवनिर्मित सोमनाथ के लोकार्पण समारोह में गए. दुर्गादास ने अपनी प्रसिद्ध किताब कर्जन टू नेहरू में सोमनाथ को लेकर चले विवादों के किस्से लिखे हैं.

प्रणब दा कई भाषाओं और कई विषयों के विद्वान हैं. इतिहास के उनके ज्ञान और पैनी याददाश्त के किस्से कई हैं. खासकर अविभाजित बंगाल के इतिहास के उतार-चढ़ाव को उन्होंने खूब पढ़ा है. बंगाल के टुकड़े उनके आहत अतीत का हिस्सा हैं. इतिहास की वही पैनी समझ थी कि अपनी मां राजलक्ष्मी देवी के नाम से स्थापित ट्रस्ट के जरिए उन्होंने शशांक के इस जीर्णशीर्ण मंदिर का पुनरोद्धार कराया. करीब एक करोड़ रुपए इस काम पर खर्च हुए थे. रवि चटर्जी ने मुझे बताया था कि यह गंगा के पश्चिम का इलाका है. ऐसी किंवदंती है कि शशांक को जपेश्वर का सपना आया था. इसी कारण उन्होंने इस जगह पकी हुई ईंटों की बंगाल की खास स्थापत्य शैली में यह मंदिर बनवाया था.

अन्नपूर्णा बनर्जी

प्रणब दा से उम्र में छह साल बड़ी अन्नपूर्णा बनर्जी मुझे किरनाहर के पुराने घर में मिलीं. वे स्थानीय बंगाली जानती थीं. न हिंदी, न अंग्रेजी. ऐसे में प्रणब दा की नातिन ओली ने दुभाषिए का काम संभाला. उन्होंने बताया कि बंगाली परिवारों में किताबें पढ़ने की अपनी परंपरा रही है. शरतचंद्र और बंकिमचंद्र के उपन्यास. नजरुल इस्लाम के गीत और रबींद्र संगीत सुनना-सुनाना और इनकी चर्चा करना. आप कल्पना कीजिए की प्रणब दा ने दस साल की उम्र में बंगाल के सबसे लोकप्रिय लेखक बंकिमचंद्र का राष्ट्रप्रेम से भरपूर उपन्यास आनंदमठ पढ़ डाला था. यह वही रचना है जिसमें वंदेमातरम् लिखा गया है. प्रणब दा पढ़ने में इतने तेज थे कि उनकी तीसरी और चौथी की पढ़ाई नहीं हुई. वे दूसरी से सीधे पांचवी में छलांग लगाए.

उनके पिता कामदकिंकर मुखर्जी बंगाल में महात्मा गांधी के करीबी सहयोगियों में से थे, जिन्होंने जिंदगी के 12 साल जेल में गुजारे थे. मिराती में उनके मुखर्जी भवन की इमारत आज भी बुलंद है, जहां प्रणब दा का जन्म हुआ. जून के महीने में जब मैं यहां पहुंचा था तब अगली दुर्गा पूजा के लिए प्रतिमा निर्माण जारी था. कई कारीगर दुर्गा प्रतिमा को बनाने में लगे थे. मुखर्जी परिवार की गहरी जड़ें भारतीय संस्कृति में हैं. आम बंगालियों की तरह देवी दुर्गा के प्रति गजब की आस्था उनमें है. प्रणब दा 34 साल की उम्र में 1969 में पहली बार राज्यसभा के लिए चुने गए थे. राजनीति में आने के बाद कहीं भी किसी भी पद पर रहे हों दुर्गा पूजा के लिए मिराती लौटते हैं. अपनी पूजा में वे स्वयं पुरोहित होते हैं. चंडी पाठ कंठस्थ है. उन्हें धाराप्रवाह पाठ करते हुए देखकर आज भी बाहर से आए मेहमान चकित हो जाते हैं.

प्रणब दा कांग्रेस के सबसे काबिल नेताओं में से एक रहे हैं. इंदिरा गांधी उन्हें राजनीति में लेकर आईं थीं. तीन पीढ़ियों के साथ उन्होंने काम किया. वे महात्वाकांक्षी थे मगर अर्जुनसिंह की तरह उनकी महात्वाकांक्षा मुखर नहीं थी. कांग्रेस में टॉप पोस्ट पर हमेशा नेहरू परिवार का पट्टा रहा. इसलिए न प्रणब दा और न ही अर्जुनसिंह कभी वह हासिल कर सके, जिसके लिए वे खानदान में किसी से भी कम नहीं थे. यह कांग्रेस की त्रासदी है. खुले दिल और दिमाग वाले प्रणब दा आखिरकार राष्ट्रपति बने. हालांकि बोलपुर-बीरभूम के लोग मानते हैं कि इसमें भी सोनिया गांधी की मर्जी नहीं थी.

ये भी पढ़ें-

भारत के एक बाबरी मस्जिद की कीमत पाकिस्तान में 100 मंदिर हैं !

मिलिए भगवान के ‘ड्रेस डिजाइनर’ 65 वर्षीय इस शख्स से!

लगता है अब योगी जी राम मंदिर बनवा कर ही रहेंगे..


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲