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मिलिए भगवान के ‘ड्रेस डिजाइनर’ 65 वर्षीय इस शख्स से!

    • आईचौक
    • Updated: 24 जुलाई, 2016 06:40 PM
  • 24 जुलाई, 2016 06:40 PM
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अहमदाबाद के 65 वर्षीय रमेश दर्जी पिछले 35 वर्षों से भगवान के वस्त्र सिलने का काम करते आ रहे हैं. एम.कॉम पास रमेश ने आखिर क्यों नौकरी की जगह किया इस काम का चुनाव, जानिए.

रमेश ने एम.कॉम की डिग्री हासिल की थी और एक अच्छी नौकरी की तलाश में जुटे थे. उन्हें अच्छी नौकरी मिलने का पूरा भरोसा था और इसके लिए उन्होंने टैक्सेशन में डिप्लोमा भी कर रखा था. लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था.

अब 65 साल के होने जा रहे रमेश दर्जी पिछले 35 वर्षों से भगवान के वस्त्र सिलने का काम कर रहे हैं. अहमदाबाद के रमेश दर्जी की कहानी सुनकर आपको यकीन हो जाएगा कि शायद इस दुनिया में ईश्वर की मर्जी के बिना कुछ नहीं होता है.

35 वर्षों से ईश्वर का कपड़ा सिल रहे हैं रमेश दर्जी:

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 35 वर्षों से रमेश दर्जी भगवान के वस्त्रों को सिलने का काम कर रहे हैं. उनके सिले कपड़ों पूरे अहमदाबाद जिले के मंदिरों में भगवान की मूर्तियों को पहनाए जाते हैं. इस काम से जुड़ने की भी एक रोचक कहानी है. रमेश बताते हैं कि उनके पिता टेलर थे और उन्हें इस काम की प्रारंभिक ट्रेनिंग अपने पिता से मिली थी.

रमेश एम.कॉम करके नौकरी की तलाश में जुटे थे. वह अपनी पूरी जिंदगी एक टेलर के रूप में कपड़े सिलते हुए नहीं गुजारना चाहते थे. लेकिन उन्हें भगवान के वस्त्रों सिलने का जो पहला ऑर्डर मिला उससे लगा कि ये दैवीय संदेश है कि भगवान चाहते हैं कि वह उनके वस्त्र सिलें.

पहला ऑर्डर उनके पिता की दुकान के दाहिने तरफ उल्टे हाथ में स्थित नटवरलाल मंदिर से आया था और यह मंदिर भगवान के वस्त्रों के लिए उनके पिता की दुकान के पारंपरिक ग्राहकों में से एक था. रमेश कहते हैं, ‘मैंने नाप के अनुसार कपड़े सिल दिए और इस बात से हैरान था कि वे कितने अच्छे लग रहे थे. इन वस्त्रों को मंदिर में आने वाले भक्तों से काफी प्रशंसा मिली. मैंने इसे दैवीय इच्छा के तौर पर लिया और उसके बाद तो ऑर्डर्स की लाइन लग...

रमेश ने एम.कॉम की डिग्री हासिल की थी और एक अच्छी नौकरी की तलाश में जुटे थे. उन्हें अच्छी नौकरी मिलने का पूरा भरोसा था और इसके लिए उन्होंने टैक्सेशन में डिप्लोमा भी कर रखा था. लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था.

अब 65 साल के होने जा रहे रमेश दर्जी पिछले 35 वर्षों से भगवान के वस्त्र सिलने का काम कर रहे हैं. अहमदाबाद के रमेश दर्जी की कहानी सुनकर आपको यकीन हो जाएगा कि शायद इस दुनिया में ईश्वर की मर्जी के बिना कुछ नहीं होता है.

35 वर्षों से ईश्वर का कपड़ा सिल रहे हैं रमेश दर्जी:

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 35 वर्षों से रमेश दर्जी भगवान के वस्त्रों को सिलने का काम कर रहे हैं. उनके सिले कपड़ों पूरे अहमदाबाद जिले के मंदिरों में भगवान की मूर्तियों को पहनाए जाते हैं. इस काम से जुड़ने की भी एक रोचक कहानी है. रमेश बताते हैं कि उनके पिता टेलर थे और उन्हें इस काम की प्रारंभिक ट्रेनिंग अपने पिता से मिली थी.

रमेश एम.कॉम करके नौकरी की तलाश में जुटे थे. वह अपनी पूरी जिंदगी एक टेलर के रूप में कपड़े सिलते हुए नहीं गुजारना चाहते थे. लेकिन उन्हें भगवान के वस्त्रों सिलने का जो पहला ऑर्डर मिला उससे लगा कि ये दैवीय संदेश है कि भगवान चाहते हैं कि वह उनके वस्त्र सिलें.

पहला ऑर्डर उनके पिता की दुकान के दाहिने तरफ उल्टे हाथ में स्थित नटवरलाल मंदिर से आया था और यह मंदिर भगवान के वस्त्रों के लिए उनके पिता की दुकान के पारंपरिक ग्राहकों में से एक था. रमेश कहते हैं, ‘मैंने नाप के अनुसार कपड़े सिल दिए और इस बात से हैरान था कि वे कितने अच्छे लग रहे थे. इन वस्त्रों को मंदिर में आने वाले भक्तों से काफी प्रशंसा मिली. मैंने इसे दैवीय इच्छा के तौर पर लिया और उसके बाद तो ऑर्डर्स की लाइन लग गई.’

अहमदाबाद के रमेश दर्जी पिछले 35 वर्षों से भगवान के वस्त्र सिलने का काम करते आ रहे हैं

उनके द्वारा सिले गए वस्त्रों को सोला भागवत विद्यापीठ, वल्लभ सदन हवेली, जग्गनाथजी मंदिर और पुरुषोत्तमरायजी हवेली जैसे मंदिरों के देवताओँ को पहनाए जाते हैं. साथ ही कई देवी मां के मंदिरों में मूर्तियां रमेश दर्जी के सिले वस्त्रों से सजाई जाती हैं.

देवताओं के वस्त्र सिलते समय इस बात का ध्यान रखते हैं दर्जीः

रमेश दर्जी देवताओं के लिए वस्त्र सिलने का काम बेहद तन्मयता से करते हैं. इसीलिए वह किस देवता के लिए वस्त्र सिल रहे हैं इसे ध्यान में रखकर ही वस्त्र डिजाइन करते हैं. वह कहते हैं, ‘हर भगवान का एक अलग व्यक्तित्व होता है. जैसे कृष्ण भगवान उत्साही हैं और भगवान राम शांत व्यक्ति हैं. मैं वस्त्र बनाते समय इन बातों का ध्यान रखता हूं.’

साथ ही वह कहते हैं कि मैं इस बात का ध्यान रखता हूं कि रंगबिरंगे होने के बावजूद वस्त्र संयत दिखें और अंतत: ईश्वर भक्ति के समग्र प्रभाव को जोड़ने का काम करें. वह बताते हैं, ‘हर मंदिर का एक विशेष ड्रेस कोड होता है. जैसे हवेली मंदिर के ड्रेस की बनावट और स्टाइल देवी मां के मंदिरों से अलग हैं, यही बात रंगों के चुनाव पर भी लागू होती है.’

वह एक किस्सा सुनाते हुए कहते है कि एक बार उन्हें बार-बार एक मंदिर से देवातओं के कपड़ों को लेकर शिकायत मिल रही थी. इस पर उन्होंने मंदिर के पुजारियों से उन्हें देवताओं का माप लेने के लिए जाने देने का निवेदन किया. लेकिन पुजारियों ने किसी गैर-ब्राह्मण को मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश करने की इजाजत नहीं दी. फिर उन्होंने मंदिर के दरवाजे बंद किए और अपनी ख्याति बचाने के लिए माप ले लिया. इसके बाद उन्होंने जो कपड़ा सिला वह ठीक बन गया और फिर कभी कोई शिकायत नहीं आई.

अब तक उनके पास 60 मंदिरों के देवताओं के वस्त्रों को सिलने का ऑर्डर था लेकिन अब बढ़ती हुई उम्र के कारण उन्होंने कई ऑर्डर छोड़ दिए हैं. आखिर वह कौन सी चीज है जो पिछले 35 वर्षों से रमेश का इस काम से जुड़े रहने के लिए प्रेरित करती आई है, तो इसका जवाब उनकी इस बात से मिल जाता है, ‘जब मैं सिलाई करता हूं तो लगता है जैसे भगवान मेरी मदद कर रहे हैं.’  

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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