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दुमका की अंकिता को मौत के घाट उतारने वाला नर पिशाच शाहरुख़, एक साथ कई चीजों पर हंसा है...

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 29 अगस्त, 2022 07:36 PM
  • 29 अगस्त, 2022 07:36 PM
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झारखंड के दुमका में अंकिता नाम की लड़की को आग लगाने वाले आरोपी शाहरुख़ का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है. वीडियो में उन्हें पुलिस हिरासत में मुस्कुराते हुए देखा जा सकता है. जैसी शाहरुख़ की हंसी है, वो बेशर्मी के साथ साथ घिनौनेपन की पराकाष्ठा है.

मैं दुमका की अंकिता को नहीं जानता. मैं शाहरुख़ को भी नहीं जानता. मगर जिस तरह मुहब्बत जैसे 'कुछ' के नाम पर अंकिता को पेट्रोल से जिंदा जला देने के बाद, शाहरुख़  हंसा है, उसे जानता हूं. ये एक वहशी की हंसी है. ये सिस्टम पर हंसी है. झूठे मान और बेशर्मी की हंसी है. ये पितृसत्तात्मक समाज की हंसी है. ये सम्पूर्ण मानवता और न्याय/ कानून को चुनौती देने वाली हंसी है. ये वही हंसी है जिसका परिचय दुशासन ने द्रौपदी के सामने, यज़ीद ने इमाम हुसैन के सामने दिया था.

दुमका की अंकिता के गुनहगार शाहरुख़ की हंसी एक साथ तमाम सवालों को खड़ा करती है

शायद आपको शाहरुख़ की इस हंसी को देखकर गुस्सा आए, आपका खून खौले, आप एक से एक भद्दी गालियां दें लेकिन मुझे इस हंसी को देखकर कोई हैरत नहीं है. इस हंसी ने फिर साबित किया कि अबू सुफियान, माविया, यज़ीद को अपना रहनुमा मानने वाला शाहरुख़ जैसा मुसलमान किसी पागल कुत्ते से कम नहीं है.

ऐसे पागल कुत्तों को सुधारा जा सकता है. लेकिन तरीका मानवीय नहीं है. जी हां. हो सकता है ये बात हर दूसरे मुद्दे पर मानवधिकार की दुहाई देने वाले लोगों को अखर जाए. वो आग बबूला हो जाएं. शाहरुख़ जैसे निर्लज्ज के समर्थन में पोस्टर, बैनर, तख्ती उठा लें लेकिन सच्चाई यही है कि शाहरुख़ जैसे वहशी दरिंदे को सुधरने का तरीका गोली मार देना  ही है. गोली से न केवल ये दरिंदे सुधरेंगे। बल्कि हर वो व्यक्ति जो भविष्य में ऐसी हंसी हंसने के लिए लालायित है, शांत होगा. कंट्रोल में होगा.

दुमका की अंकिता अस्पताल की उस बेड पर ज़िंदगी की जंग हार चुकी है. हिंदू-मुस्लिम, जाती धर्म से परे हटकर सिर्फ एक बार अस्पताल की उस...

मैं दुमका की अंकिता को नहीं जानता. मैं शाहरुख़ को भी नहीं जानता. मगर जिस तरह मुहब्बत जैसे 'कुछ' के नाम पर अंकिता को पेट्रोल से जिंदा जला देने के बाद, शाहरुख़  हंसा है, उसे जानता हूं. ये एक वहशी की हंसी है. ये सिस्टम पर हंसी है. झूठे मान और बेशर्मी की हंसी है. ये पितृसत्तात्मक समाज की हंसी है. ये सम्पूर्ण मानवता और न्याय/ कानून को चुनौती देने वाली हंसी है. ये वही हंसी है जिसका परिचय दुशासन ने द्रौपदी के सामने, यज़ीद ने इमाम हुसैन के सामने दिया था.

दुमका की अंकिता के गुनहगार शाहरुख़ की हंसी एक साथ तमाम सवालों को खड़ा करती है

शायद आपको शाहरुख़ की इस हंसी को देखकर गुस्सा आए, आपका खून खौले, आप एक से एक भद्दी गालियां दें लेकिन मुझे इस हंसी को देखकर कोई हैरत नहीं है. इस हंसी ने फिर साबित किया कि अबू सुफियान, माविया, यज़ीद को अपना रहनुमा मानने वाला शाहरुख़ जैसा मुसलमान किसी पागल कुत्ते से कम नहीं है.

ऐसे पागल कुत्तों को सुधारा जा सकता है. लेकिन तरीका मानवीय नहीं है. जी हां. हो सकता है ये बात हर दूसरे मुद्दे पर मानवधिकार की दुहाई देने वाले लोगों को अखर जाए. वो आग बबूला हो जाएं. शाहरुख़ जैसे निर्लज्ज के समर्थन में पोस्टर, बैनर, तख्ती उठा लें लेकिन सच्चाई यही है कि शाहरुख़ जैसे वहशी दरिंदे को सुधरने का तरीका गोली मार देना  ही है. गोली से न केवल ये दरिंदे सुधरेंगे। बल्कि हर वो व्यक्ति जो भविष्य में ऐसी हंसी हंसने के लिए लालायित है, शांत होगा. कंट्रोल में होगा.

दुमका की अंकिता अस्पताल की उस बेड पर ज़िंदगी की जंग हार चुकी है. हिंदू-मुस्लिम, जाती धर्म से परे हटकर सिर्फ एक बार अस्पताल की उस बेड पर जीवन और मौत के बीच जूझती अंकिता की कल्पना कीजिये. कल्पना कीजिये उस दर्द की, उस यातना की जिसे अंकिता ने भोगा होगा. याद तो होगा आपको वो पल, जब कभी चौराहे पर चाय पीते हुए किसी का धक्का आपको लगा होगा और वो चाय आपके ऊपर गिरी होगी. गर्म चाय से जो पीड़ा आपको हुई होगी आप फ़ौरन ही अपने को ठंडक देने के लिए पानी की तरफ भागे होंगे. लेकिन दुमका की अंकिता के साथ ऐसा नहीं था.

जिस वक़्त घटना घटी, अंकिता बेखबर, बेख़ौफ़ सो रही थी. शायद उस पल अंकिता अपने उज्जवल भविष्य के सपने या फिर अपने को कुछ बनते हुए देख रही हो. कितना मुश्किल रहा होगा उसके लिए उस पल खुद को आग की लपटों से बचा पाना. कितना चीखी होगी वो. जरूर अंकिता ने उस वक़्त मदद के लिए अपनों को पुकारा होगा. हो सकता है वो लोग आए भी हों लेकिन आग की लपटों ने उन्हें रोक दिया हो और वो चाहकर भी कुछ न कर पाएं हों.

शाहरुख़ को पुलिस ने पकड़ लिया है. और जैसा वायरल तस्वीर में दिख रहा, वो राक्षसी हंसी हंस रहा है. इस हंसी को देखकर हम बस ये कहकर अपनी बातों को विराम देंगे कि काश इस निर्लज्ज शाहरुख़ को कानून एक ऐसी सजा दे कि ये भी ठीक वैसे ही तड़पे. ठीक वैसे ही गिड़गिड़ाए जैसे अस्पताल की उस बेड पर वो लड़की तड़पी थी. इंसाफ होना चाहिए. इंसाफ होकर रहना चाहिए. यदि ऐसा हो गया. तभी उम्मीद जागेगी कि हिंदुस्तान जैसे देश में कानून अभी ज़िंदा है. जो दोषी को सजा देनी की हिम्मत रखता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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