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समाज

बिल्किस बानो ही नहीं, बल्कि अन्य के लिए भी न्याय मुश्किल क्यों है?

    • प्रिया सिंह
    • Updated: 23 अगस्त, 2022 08:30 PM
  • 23 अगस्त, 2022 08:30 PM
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बलात्कार (Rape) ने देश में महामारी का रुप ले लिया है. 2012 में निर्भया कांड के बाद हुए कठोर कानूनी बदलाव को लोगों ने इस महामारी का एंटीडोज समझा था. लेकिन कोरोना संक्रमण की तरह ही इस महामारी से भी लोगों को छुटकारा नहीं मिल सका. बिलकिस बानो (Bilkis Bano) तो बस एक उदाहरण भर हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के 76वें स्वतंत्रता दिवस पर अपने संबोधन में 'नारी शक्ति' की सराहना की थी. उन्होंने कहा, 'हमारे आचरण में विकृति आ गई है और हम कभी- कभी महिलाओं का अपमान करते हैं. क्या हम अपने व्यवहार और मूल्यों में इससे छुटकारा पाने का संकल्प ले सकते हैं.' ठीक इसी दिन बिलकिस बानो से सामूहिक दुष्कर्म और उनके परिवार के 7 सदस्यों की हत्या मामले के सभी 11 दोषी को रिहा कर दिया गया. जबकि, सीबीआई की विशेष अदालत ने साल 2004 में इन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई थी.

गुजरात सरकार की जिस रेमिशन पॉलिसी (माफी योजना) के तहत सभी दोषी को रिहा किया गया, केंद्र सरकार इस साल जून में उस पर रोक लगा चुकी है. मामले पर सफाई देते हुए गुजरात सरकार ने कहा कि 'जब आरोपियों को दोषी ठहराया गया था, तब ये रोक लागू नहीं थी.' अपने साथ हुई बर्बरता के खिलाफ आवाज उठाते वक्त बिलकिस अक्सर कहा करती थी कि 'उसे बदला नहीं न्याय चाहिए.' लेकिन, दुर्भाग्यवश देश में दुष्कर्म के दोषियों को सजा देने की दर केवल 27.2% है.

बिलकिस बानो के बलात्कारियों को जिस माफी योजना के तहत छोड़ा गया. उस पर केंद्र सरकार रोक लगा चुकी थी.

भारत में रेप मामलों की क्या स्थिति है?

बलात्कार ने देश में महामारी का रुप ले लिया है. 2012 में निर्भया कांड के बाद हुए कठोर कानूनी बदलाव को लोगों ने इस महामारी का एंटीडोज समझा था. लेकिन, कोरोना संक्रमण की तरह ही इस महामारी से भी लोगों को छुटकारा नहीं मिल सका. नतीजतन महिलाओं के खिलाफ हिंसा अब भी बेरोकटोक जारी है. NCRB के मुताबिक साल 2020 में देश भर में बलात्कार के कुल 28,046 मामले दर्ज किए गए. 2019 में 32,032 मामले रिपोर्ट की गई थी. 2018 में महिलाओं ने करीब 33,356 बलात्कार के मामलों की रिपोर्ट की.

एक साल पहले 2017 में...

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के 76वें स्वतंत्रता दिवस पर अपने संबोधन में 'नारी शक्ति' की सराहना की थी. उन्होंने कहा, 'हमारे आचरण में विकृति आ गई है और हम कभी- कभी महिलाओं का अपमान करते हैं. क्या हम अपने व्यवहार और मूल्यों में इससे छुटकारा पाने का संकल्प ले सकते हैं.' ठीक इसी दिन बिलकिस बानो से सामूहिक दुष्कर्म और उनके परिवार के 7 सदस्यों की हत्या मामले के सभी 11 दोषी को रिहा कर दिया गया. जबकि, सीबीआई की विशेष अदालत ने साल 2004 में इन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई थी.

गुजरात सरकार की जिस रेमिशन पॉलिसी (माफी योजना) के तहत सभी दोषी को रिहा किया गया, केंद्र सरकार इस साल जून में उस पर रोक लगा चुकी है. मामले पर सफाई देते हुए गुजरात सरकार ने कहा कि 'जब आरोपियों को दोषी ठहराया गया था, तब ये रोक लागू नहीं थी.' अपने साथ हुई बर्बरता के खिलाफ आवाज उठाते वक्त बिलकिस अक्सर कहा करती थी कि 'उसे बदला नहीं न्याय चाहिए.' लेकिन, दुर्भाग्यवश देश में दुष्कर्म के दोषियों को सजा देने की दर केवल 27.2% है.

बिलकिस बानो के बलात्कारियों को जिस माफी योजना के तहत छोड़ा गया. उस पर केंद्र सरकार रोक लगा चुकी थी.

भारत में रेप मामलों की क्या स्थिति है?

बलात्कार ने देश में महामारी का रुप ले लिया है. 2012 में निर्भया कांड के बाद हुए कठोर कानूनी बदलाव को लोगों ने इस महामारी का एंटीडोज समझा था. लेकिन, कोरोना संक्रमण की तरह ही इस महामारी से भी लोगों को छुटकारा नहीं मिल सका. नतीजतन महिलाओं के खिलाफ हिंसा अब भी बेरोकटोक जारी है. NCRB के मुताबिक साल 2020 में देश भर में बलात्कार के कुल 28,046 मामले दर्ज किए गए. 2019 में 32,032 मामले रिपोर्ट की गई थी. 2018 में महिलाओं ने करीब 33,356 बलात्कार के मामलों की रिपोर्ट की.

एक साल पहले 2017 में बलात्कार के कुल 32,559 मामले दर्ज किए गए थे. जबकि, 2016 में यह संख्या 38,947 थी. इन मामलों को पुलिस थाने में दर्ज करवाने के दौरान महिलाओं को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. अमूमन पुलिस इन मामलों की अनदेखी करती है. बीते वर्षों में कई ऐसे मामले भी सामने आए जिसमें राजनीतिक नेताओं की संलिप्तता दिखाई पड़ी. कठुआ रेप केस और उन्नाव बलात्कार मामला इसका उदाहरण है.

कठुआ रेप केस में 8 साल की बच्ची के साथ बलात्कार होता है. बच्ची के मरने के बाद भी एक पुलिस वाला उस मृत शरीर के साथ दुष्कर्म करता है. मामला जब चार्जशीट दाखिल करने तक पहुंचा तो इसे सांप्रदायिक रंग दे दिया गया. वकीलों के एक झुंड ने चार्जशीट दाखिल करने में अड़चने पैदा की. उन्नाव रेप केस में भाजपा विधायक कुलदीप सेंगर पर एक नाबालिक बच्ची के साथ बलात्कार का आरोप लगता है. और, पूरा पुलिस प्रशासन उनके बचाव में खड़ा हो जाता है. इसके अलावा रेप पीड़िताओं को मानसिक उत्पीड़न के साथ-साथ सामाजिक चुनौतियों जैसे कि रहने के लिए घर न मिलना, सुरक्षा की कमी, समाज में अछूतों जैसा बर्ताव सहन करना, समाज द्वारा तिरस्कार और बहिष्कृत कर दिए जाने का सामना करना पड़ता है.

रेप मामलों में कानून की क्या स्थिति है?

न्याय प्रणाली की सबसे बड़ी कमी या चुनौती पुलिस में शिकायत दर्ज कराना है. जिस पल महिलाएं पुलिस स्टेशन में कदम रखती हैं, उसके बाद से उन्हें न्याय प्रणाली से एक अलग लड़ाई लड़नी पड़ती है. वहां उन्हें यह महसूस कराया जाता है कि गलती उनकी है और अपराध की वजह वह खुद है. इसलिए आपराधिक न्याय प्रणाली को अपना ध्यान सजा सुनाने से हटाकर मामलों की रिपोर्टिंग, जांच और पीड़ित की सहायता करने की ओर केंद्रित करनी चाहिए.

न्याय प्रणाली की दूसरी सबसे बड़ी कमी न्याय मिलने में देरी है. दुष्कर्म व हत्याकांड मामले में मृत्युदंड या उम्रकैद की सजा की प्रक्रिया अपील के कई चरणों और क्षमादान के विकल्प दिए जाने के बाद शुरु होती है. इस दौरान आरोपी को अपना बचाव करने के लिए पूरा समय दिया जाता है. जिसकी वजह से न्यायिक प्रक्रिया के पूरे होने और फैसला आने में काफी समय लग जाता है.

इस बीच यह संभावना बनती है कि आरोपी खुद को बचाने के लिए पीड़िता या उसके परिवार पर जानलेवा हमला करे. समय पर गुमशुदगी की शिकायतें दर्ज करने में चूक, फोरेंसिक रिपोर्ट को पेश करने में देरी, फोरेंसिक साक्ष्य को मिटाने की कोशिश करना, अदालतों में पीड़ित और पीड़ितों के परिवारों को डराना- धमकाना न्यायिक प्रक्रिया का वो हिस्सा है जो एहसास दिलाता है कि आपराधिक न्याय प्रणाली, पीड़ितों पर मुकदमे चला रही है.

हाथरस में 20 साल की महिला के कथित सामूहिक दुष्कर्म और हत्या का मामला इसका सटीक उदाहरण है. एफएसएल रिपोर्ट में पीड़िता के जिन नमूनों का इस्तेमाल किया गया था, वो घटना के आठ दिन बाद लिए गए थे. अपराध के 11 दिन बाद फोरेंसिक के लिए इसे भेजा गया था. स्वाभाविक तौर पर, जांच में बलात्कार से इनकार किया गया और उत्तर प्रदेश पुलिस ने इस आधार पर पीड़िता के साथ हुए दुष्कर्म के दावे को गलत बताया.

इसमें कोई संदेह नहीं कि पहले की तुलना में बलात्कार संबंधी कानून में काफी सराहनीय बदलाव किए गए हैं. लेकिन समस्या का निवारण तब होगा जब पीड़िता को कम से कम समय में न्याय मिले. महिलाओं और बच्चियों के खिलाफ दुष्कर्म के मामले से निपटने के लिए मात्र सजा बढ़ाए जाने की बजाय, व्यापक सामाजिक सुधार, शासन के निरंतर प्रयासों और जांच और रिपोर्टिंग तंत्र को मजबूत करने की आवश्यकता है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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