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2019 में योगी आदित्यनाथ का भविष्यफल बता रही हैं 2018 की ये 3 बातें

    • आईचौक
    • Updated: 28 दिसम्बर, 2018 06:54 PM
  • 28 दिसम्बर, 2018 06:54 PM
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योगी आदित्यनाथ के लिए 2017 तो बेहतरीन रहा, लेकिन 2018 में यूपी की बीजेपी सरकार का प्रदर्शन साफ बता रहा है कि 2019 में अच्छे दिन कायम रहेंगे या नहीं.

पुलिस एनकाउंटर को योगी आदित्यनाथ अपनी उपलब्धियों में गिनाते रहे हैं. योगी के इस कानून-व्यवस्था मॉडल की चर्चा हाल ही में पश्चिम बंगाल में भी रही. पश्चिम बंगाल बीजेपी की उपाध्यक्ष राजकुमारी केशरी ने लोगों से वादा किया कि अगर राज्य में बीजेपी सत्ता में आती है तो यूपी जैसा ही एनकाउंटर कराएगी. बाद में राज्य बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष ने भी राजकुमारी केशरी का सपोर्ट करते हुए कहा कि राज्य में गुंडा राज को खत्म करने का यही एक रास्ता है.

पश्चिम बंगाल की बात दीगर है, फिलहाल तो बीजेपी के सामने यूपी में 2014 दोहराने की ही चुनौती है - और 2018 में योगी सरकार का ट्रैक रिकॉर्ड देखते हुए लगता नहीं कि 2019 में अच्छे दिन बने रहेंगे.

1. कानून-व्यवस्था का हाल

पूरे साल योगी आदित्यनाथ पुलिस एनकाउंटर के नाम पर चाहे जितना भी ढिंढोरा पीटते आये हों, ऐसी तमाम घटनाएं हुई हैं जो उनके दावों की पोल खोलने के लिए काफी हैं.

आगरा में छात्रा को जलाया - 18 दिसंबर को आगरा में 10वीं की एक छात्रा स्कूल से रोजाना की तरह साइकिल से घर लौट रही थी. जैसे ही वो घर के करीब पहुंची, पहले से घात लगाये बैठे दो युवकों ने उसे आग के हवाले कर दिया. 60 फीसदी जली हुई हालत में छात्रा को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल पहुंचाया गया जहां उसकी मौत हो गयी. जिस जगह छात्रा को जलाया गया उससे 100 मीटर की दूरी पर महीने भर पहले ही छात्रा के पिता पर भी हमला हुआ था.

बुलंदशहर हिंसा - बुलंदशहर में हिंसक भीड़ में शामिल युवकों ने स्थानीय एसएचओ की गोली मार कर हत्या कर दी. यूपी पुलिस ने इंसपेक्टर की हत्या से पहले वहां गोकशी की जांच की और खुद मुख्यमंत्री योगी ने बुलंदशहर मामला सुलझा लेने के दावा किया. इंस्पेक्टर की हत्या का मुख्य आरोपी अब तक फरार है. वैसे अब खबर आ रही है कि पुलिस बजरंग दल संयोजक योगेश राज की जगह किसी और को मुख्य संदिग्ध मान कर जांच कर रही है.

कासगंज दंगा - बीजेपी सरकार के छह महीने पूरे होने पर योगी...

पुलिस एनकाउंटर को योगी आदित्यनाथ अपनी उपलब्धियों में गिनाते रहे हैं. योगी के इस कानून-व्यवस्था मॉडल की चर्चा हाल ही में पश्चिम बंगाल में भी रही. पश्चिम बंगाल बीजेपी की उपाध्यक्ष राजकुमारी केशरी ने लोगों से वादा किया कि अगर राज्य में बीजेपी सत्ता में आती है तो यूपी जैसा ही एनकाउंटर कराएगी. बाद में राज्य बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष ने भी राजकुमारी केशरी का सपोर्ट करते हुए कहा कि राज्य में गुंडा राज को खत्म करने का यही एक रास्ता है.

पश्चिम बंगाल की बात दीगर है, फिलहाल तो बीजेपी के सामने यूपी में 2014 दोहराने की ही चुनौती है - और 2018 में योगी सरकार का ट्रैक रिकॉर्ड देखते हुए लगता नहीं कि 2019 में अच्छे दिन बने रहेंगे.

1. कानून-व्यवस्था का हाल

पूरे साल योगी आदित्यनाथ पुलिस एनकाउंटर के नाम पर चाहे जितना भी ढिंढोरा पीटते आये हों, ऐसी तमाम घटनाएं हुई हैं जो उनके दावों की पोल खोलने के लिए काफी हैं.

आगरा में छात्रा को जलाया - 18 दिसंबर को आगरा में 10वीं की एक छात्रा स्कूल से रोजाना की तरह साइकिल से घर लौट रही थी. जैसे ही वो घर के करीब पहुंची, पहले से घात लगाये बैठे दो युवकों ने उसे आग के हवाले कर दिया. 60 फीसदी जली हुई हालत में छात्रा को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल पहुंचाया गया जहां उसकी मौत हो गयी. जिस जगह छात्रा को जलाया गया उससे 100 मीटर की दूरी पर महीने भर पहले ही छात्रा के पिता पर भी हमला हुआ था.

बुलंदशहर हिंसा - बुलंदशहर में हिंसक भीड़ में शामिल युवकों ने स्थानीय एसएचओ की गोली मार कर हत्या कर दी. यूपी पुलिस ने इंसपेक्टर की हत्या से पहले वहां गोकशी की जांच की और खुद मुख्यमंत्री योगी ने बुलंदशहर मामला सुलझा लेने के दावा किया. इंस्पेक्टर की हत्या का मुख्य आरोपी अब तक फरार है. वैसे अब खबर आ रही है कि पुलिस बजरंग दल संयोजक योगेश राज की जगह किसी और को मुख्य संदिग्ध मान कर जांच कर रही है.

कासगंज दंगा - बीजेपी सरकार के छह महीने पूरे होने पर योगी आदित्यनाथ ने दावा किया था कि मार्च 2017 के बाद यूपी में कोई दंगा नहीं हुआ. 2018 की शुरुआत में ही कासगंज हिंसा ने ये भ्रम भी तोड़ दिया. 26 जनवरी को तिरंगा यात्रा के दौरान नारेबाजी के बाद सांप्रदायिक हिंसा भड़की थी जिस पर काबू पाने में काफी वक्त लगा.

लखनऊ में निजी कंपनी के अधिकारी विवेक तिवारी की हत्या, हापुड़ में मॉब लिंचिंग की घटना और उन्नाव रेप केस में आरोपी विधायक की गिरफ्तारी में हीलाहवाली योगी सरकार के ऐसे नमूने हैं जो सूबे में कानून-व्यवस्था की हालत को समझने के लिए काफी हैं.

2. तीन अहम उपचुनावों में हार

2018 में उत्तर प्रदेश में हुए उपचुनाव में बीजेपी को लोक सभा की तीन सीटें गंवानी पड़ी. योगी आदित्यनाथ के सीएम की कुर्सी संभालने के एक साल बाद मार्च में गोरखपुर और फूलपुर लोक सभा सीटों के लिए उपचुनाव हुए. बीजेपी के लिए अब इससे बड़ी त्रासदी क्या होगी कि योगी न तो अपनी सीट पर पार्टी उम्मीदवार को जिता सके, न फूलपुर सीट पर.

गोरखपुर और फूलपुर की ही तरह कैराना उपचुनाव का भी नतीजा रहा. तीनों ही चुनावों का पैटर्न हर हिसाब से एक जैसा ही रहा, लेकिन योगी आदित्यनाथ विपक्ष की एकजुटता को नहीं तोड़ पाये. गोरखपुर और फूलपुर की हार पर योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि वो समाजवादी पार्टी और बीएसपी के गठबंधन की गंभीरता को नहीं समझ सके थे. अगर ऐसा रहा तो कैराना सीट भी बीजेपी के हाथ से क्यों फिसल गयी?

3. लोकप्रियता में गिरावट

सर्वे से मालूम हुआ है कि पिछले तीन महीने में योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता में काफी गिरावट दर्ज की गयी है. एक्सिस माय इंडिया द्वारा इंडिया टुडे के द पॉलिटिकल स्टॉग एक्सचेंज के लिए जुटाये गये डाटा के अनुसार योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता में 6 फीसदी की कमी आई है.

योगी आदित्यनाथ बीजेपी के स्टार प्रचारकों में से एक हैं, 2018 में हुए त्रिपुरा चुनावों में तो वोट दिलाने को लेकर उनकी तारीफ हुई, लेकिन हाल के विधानसभा चुनाव तक उनका प्रभाव कम लगने लगा. कर्नाटक चुनाव के दौरान तो वो विरोधियों के निशाने पर रहे. यूपी में तूफान से तबाही के चलते कैंपेन के बीच में ही योगी को यूपी लौटना पड़ा था.

योगी की लोकप्रियता पर असर क्यों?

2019 को लेकर अगर बीजेपी ने यूपी से 2014 जैसे नतीजों की उम्मीद पाल रखी है तो उसे निराश होना पड़ सकता है. बीजेपी को जमीनी हालत समझने के लिए हाल के विधानसभा चुनावों के नतीजों को समझना होगा. तीन राज्यों में हुए चुनाव में भी राजस्थान के मुकाबले मध्य प्रदेश में बीजेपी आखिर तक संघर्ष करती नजर आयी. माना गया कि शिवराज सिंह की लोकप्रियता के बावजूद मध्य प्रदेश में बीजेपी को केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी फैक्टर बहुत भारी पड़ा.

2019 में यूपी में ये सत्ता विरोधी फैक्टर डबल होंगे - एक मोदी सरकार के खिलाफ तो दूसरा योगी सरकार के खिलाफ. बीजेपी को ऐसी दो-दो चुनौतियों से झेलना होगा. यूपी के कानून-व्यवस्था का हाल और उपचुनावों में बीजेपी की दुर्गति को देख लें तो योगी को 2019 के भविष्यफल के लिए किसी ज्योतिषी की जरूरत शायद ही पड़े.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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