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योगी सरकार 'बुलंदशहर' को भी गोरखपुर अस्पताल केस जैसे डील कर रही है

    • आईचौक
    • Updated: 24 दिसम्बर, 2018 02:14 PM
  • 24 दिसम्बर, 2018 02:14 PM
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बुलंदशहर की घटना को लेकर पूर्व नौकरशाहों का एक बड़ा समूह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का इस्तीफा मांग रहा है. सरकार का रवैया इस बार भी वैसा ही जैसा गोरखपुर अस्पताल में बच्चों की मौत को लेकर रहा.

बुलंदशहर की घटना को लेकर यूपी की योगी सरकार का रवैया गोरखपुर अस्पताल केस जैसा ही लग रहा है. गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में बच्चों की मौत के मामले योगी सरकार ने जो संवेदनहीनता दिखायी थी, बुलंदशहर में इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की सरेआम हत्या के मामले को भी बिलकुल उसी तरीके से हैंडल किया जा रहा है.

और यही वजह है कि पूर्व नौकरशाहों के ग्रुप ने एक खुला पत्र लिख कर योगी आदित्यनाथ के सियासी एनकाउंटर की मांग की है. ऐसा ही पत्र नौकरशाहों के समूह ने कठुआ और उन्नाव रेप कांड को लेकर भी लिखा था - और अधिकारियों के कामकाज के तरीके पर भी सवाल उठाया था. इस बार भी उनका सवाल वही है.

बुलंदशहर और गोरखपुर अस्पताल केस

3 दिसंबर, 2018 को बुलंदशहर में हिंसा भड़क गई थी. गोकशी के शक में उपद्रवी भीड़ ने बुलंदशहर की स्याना पुलिस चौकी पर हमला बोल दिया और इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह को मार डाला. हिंसा में गोली लगने से इंस्पेक्टर सुबोध सिंह के अलावा एक युवक की भी मौत हुई थी.

अगस्त 2017 में गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से 60 बच्चों की मौत की खबर आयी तो हड़कंप मच गया. पहले तो सरकारी प्रवक्ता बयानों के जरिये ही घटना को डाउनप्ले करने की कोशिश में लगे रहे, लेकिन स्थिति बेकाबू होने पर गोरखपुर पहुंचे. यूपी सरकार के ट्विटर हैंडल से बताया गया - 'गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी से किसी रोगी की मृत्यु नहीं हुई है.' साथ ही टीवी चैनलों पर चली खबर को भी भ्रामक बताया गया. योगी सरकार के संकटमोचक नेताओं और अफसरों ने मोर्चा संभाला और मामले को रफा दफा करने में पूरी ताकत झोंक दी.

सवालों के सटीक जवाब तो नहीं मिले, जो सरकारी जवाब मिले वे भी बड़े ही अजीब तरीके के - 'अगस्त में बच्चों की मौत होती ही है.'

ऑक्सीजन की कमी पर सवाल उठे...

बुलंदशहर की घटना को लेकर यूपी की योगी सरकार का रवैया गोरखपुर अस्पताल केस जैसा ही लग रहा है. गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में बच्चों की मौत के मामले योगी सरकार ने जो संवेदनहीनता दिखायी थी, बुलंदशहर में इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की सरेआम हत्या के मामले को भी बिलकुल उसी तरीके से हैंडल किया जा रहा है.

और यही वजह है कि पूर्व नौकरशाहों के ग्रुप ने एक खुला पत्र लिख कर योगी आदित्यनाथ के सियासी एनकाउंटर की मांग की है. ऐसा ही पत्र नौकरशाहों के समूह ने कठुआ और उन्नाव रेप कांड को लेकर भी लिखा था - और अधिकारियों के कामकाज के तरीके पर भी सवाल उठाया था. इस बार भी उनका सवाल वही है.

बुलंदशहर और गोरखपुर अस्पताल केस

3 दिसंबर, 2018 को बुलंदशहर में हिंसा भड़क गई थी. गोकशी के शक में उपद्रवी भीड़ ने बुलंदशहर की स्याना पुलिस चौकी पर हमला बोल दिया और इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह को मार डाला. हिंसा में गोली लगने से इंस्पेक्टर सुबोध सिंह के अलावा एक युवक की भी मौत हुई थी.

अगस्त 2017 में गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से 60 बच्चों की मौत की खबर आयी तो हड़कंप मच गया. पहले तो सरकारी प्रवक्ता बयानों के जरिये ही घटना को डाउनप्ले करने की कोशिश में लगे रहे, लेकिन स्थिति बेकाबू होने पर गोरखपुर पहुंचे. यूपी सरकार के ट्विटर हैंडल से बताया गया - 'गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी से किसी रोगी की मृत्यु नहीं हुई है.' साथ ही टीवी चैनलों पर चली खबर को भी भ्रामक बताया गया. योगी सरकार के संकटमोचक नेताओं और अफसरों ने मोर्चा संभाला और मामले को रफा दफा करने में पूरी ताकत झोंक दी.

सवालों के सटीक जवाब तो नहीं मिले, जो सरकारी जवाब मिले वे भी बड़े ही अजीब तरीके के - 'अगस्त में बच्चों की मौत होती ही है.'

ऑक्सीजन की कमी पर सवाल उठे तो सरकारी जवाब मिला - 'अगस्त में बच्चे मरते ही हैं...'

बुलंदशहर की घटना को भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनकी टीम बिलकुल वैसी ही संवेदनहीनता के साथ हैंडल कर रही है. सबसे पहले योगी आदित्यनाथ ने बुलंदशहर की सारी घटनाओं को बड़ी साजिश बताया था, दंगे फैलाने की. फिर इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की हत्या सहित पूरी घटना को लेकर सवाल पूछा गया तो योगी आदित्यनाथ ने बताया - ये हादसा था. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ओर से अब नया बयान भी आ गया है - ये राजनीतिक षड्यंत्र था. किसी एक मुद्दे पर कोई मुख्यमंत्री तीन तरह की बातें करे तो शक न करने का कोई कारण नहीं बनता. शक ये होता है कि या तो कुछ छुपाया जा रहा है या किसी उद्देश्य विशेष के चलते जनता को गुमराह किया जा रहा है. वैसे ये भी हो सकता है कि राजनीतिक नेतृत्व को अफसरों की ओर से ही गुमराह किया जा रहा हो. ओम प्रकाश राजभर सहित योगी सरकार के कुछ सहयोगी नेतृत्व पर ऐसे इल्जाम पहले भी लगाते रहे हैं.

सवाल ये है कि जांच कर बगैर सच का पता लगाये योगी आदित्यनाथ ने ऐसी बातें क्यों की जिनमें बार बार संशोधन की जरूरत पड़े. मुख्यमंत्री की एक मामूली टिप्पणी को भी गंभीरता से लिया जाता है, लेकिन ऐसे नाजुक मामले में योगी आदित्यनाथ ने खुद ही सवाल उठाने का मौका दे दिया है. ताजा सरकारी अपडेट ये है कि योगी की पुलिस ने केस सॉल्व कर लिया है - और मुख्यमंत्री को तकलीफ इस बात की भी है कि कहां लोग सरकार की तारीफ करते, तो उल्टे सवाल खड़े किये जा रहे हैं.

हैरानी जताते हुए योगी आदित्यनाथ कहते हैं, 'कानून के दायरे में रहकर प्रदेश सरकार ने एक बड़ी साजिश को बेनकाब किया है... एक बड़ी साजिश को बेनकाब करने के लिए प्रदेश सरकार की सराहना करनी चाहिए.' वैसे यूपी की बहादुर और एनकाउंटर स्पेशलिस्ट पुलिस ने जो केस सॉल्व किया है वो केस गोकशी का है, इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की हत्या का नहीं.

पुलिस की जांच सवालों के घेरे में

बुलंदशहर केस में पुलिस ने तीन लोगों को गिरफ्तार किया है जिनके नाम हैं - नदीम, रईस और काला. पुलिस के मुताबिक तीनों पर गाय काटने और मरी हुई गाय को एक खेत में रखने का आरोप है. पुलिस का दावा है कि इनके खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं. पुलिस के अनुसार इनके पास से एक डबल बैरल बंदूक, रस्सी, चाकू और दूसरे हथियार मिले हैं. बंदूक का लाइसेंस नदीम के नाम से है. पुलिस के मुताबिक ये घटना 2 दिसंबर की रात की है जिसके अगले दिन हिंसा भड़की थी.

पुलिस ने इससे पहले चार लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. गिरफ्तारी के दो हफ्ते बाद पुलिस कह रही है कि वे बेकसूर हैं और उनकी रिहाई के लिए वो खुद कोर्ट जाएगी.

इंस्पेक्टर की हत्या की जांच भी नहीं हुई और केस सॉल्व हो गया!

बुलंदशहर की घटना को लेकर यूपी विधानसभा में काफी हंगामा हुआ और फिर सदन की कार्यवाही पूरे दिन के लिए स्थगित करनी पड़ी. विपक्ष के हंगामे से खफा योगी आदित्यनाथ ने घटना को लेकर टिप्पणी की, 'यह एक राजनीतिक षड्यंत्र था.'

योगी बोले, 'जो कायर हैं... जो सामने किसी चुनौती का सामना करने कि स्थिति में नहीं हैं, वे पैरौं के नीचे जमीन खिसकते देख एक दूसरे के गले मिल रहे हैं.'

इंस्पेक्टर की हत्या का मुख्य आरोपी तक तो यूपी पुलिस अब भी नहीं पहुंच पायी है जबकि वो वीडियो बयान जारी कर खुद को बेकसूर बता कर समर्थकों से सहानुभूति बटोरता फिर रहा है. मालूम नहीं कि यूपी पुलिस कहीं बजरंग दल के योगेश राज में भी उन्नाव के 'माननीय' विधायक वाली छवि तो नहीं देख रही है.

योगी का सियासी एनकाउंटर क्यों चाहते हैं पूर्व नौकरशाह?

लखनऊ के विवेक तिवारी मर्डर केस में जब एक कांस्टेबल प्रशांत चौधरी को गिरफ्तार किया गया तो यूपी भर के पुलिसवाले बगावत पर उतर आये. यूपी के थानों में पुलिसवाले विरोध मार्च निकालने लगे. जो पुलिसवाले एक साथी की गिरफ्तारी पर बागी हो चले थे, वे एक ड्यूटी पर एक एसएचओ की हत्या को लेकर चूं तक नहीं किये. अपनेआप में बड़ा अजीब लगता है.

आखिर यूपी के पुलिसवालों को ये बात अजीब क्यों नहीं लगी जब हत्या की जांच से पहले गोकशी की जांच होने लगी. जब ये दावा किया जा रहा है कि बुलंदशहर केस सुलझा लिया गया तो किसी थाने में कोई सामने आकर सवाल क्यों नहीं कर रहा है कि इंस्पेक्टर मर्डर केस का क्या हुआ? मान लेते हैं कि गोकशी के मामले और एक पुलिसवाले की ड्यूटी पर हत्या के बीच राजनीति आड़े आ रही है, लेकिन उसके बाद क्या? गोकशी में गिरफ्तारी का ढिंढोरा पीटा जा रहा है तो इंस्पेक्टर मर्डर केस पर चुप्पी क्यों?

इंस्पेक्टर सुबोध सिंह के परिवार का आरोप है हत्या से जुड़े सबूत मिटाने की कोशिश हो रही है. आखिर परिवार के इस आरोप की ओर किसी का ध्यान जा भी रहा है या नहीं? ऊपर से तुर्रा ये कि इतनी जल्दी केस सुलझा लेने के लिए सरकार की तारीफ भी नहीं हो रही है. कितनी विचित्र बात है.

योगी सरकार पर पूर्व नौकरशाहों के सवाल

इस बीच देश के पूर्व नौकरशाहों ने बुलंदशहर की घटना को लेकर एक खुला खत लिखा है. दिल्ली के पूर्व उप राज्यपाल नजीब जंग सहित 83 पूर्व अफसरों की ओर से लिखे गये इस खत में पाया गया है कि बुलंदशहर की घटना की जांच ठीक से नहीं हो रही है - और हिंसा में इंस्पेक्टर की हत्या की जांच की जगह सारा फोकस गोकशी और उसके आरोपियों की ओर घूम गया है.

खुले खत के जरिये हिंसा को राजनीतिक रंग देने का आरोप और योगी सरकार के आला अफसरों पर संविधान के प्रति ली गयी शपथ के हिसाब से काम करने की ओर ध्यान दिलाया गया है.

खत के जरिये पूर्व नौकरशाहों द्वारा इलाहाबाद हाई कोर्ट से इस मामले पर स्वतःसंज्ञान लेने और कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी निभाने में नाकाम होने के चलते योगी आदित्यनाथ के इस्तीफे की मांग की गयी है.

इन्हें भी पढ़ें :

यूपी पुलिस का मन मुख्यमंत्री ही ने तो बढ़ाया है…

हैरानी की बात है कि अस्पताल जाकर भी योगी आदित्यनाथ को ऑक्सीजन की स्थिति मालूम न हुई

कासगंज में हिंसा क्या इसलिए भड़क गयी क्योंकि पुलिसवाले एनकाउंटर में व्यस्त थे!



इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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