• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

कासगंज में हिंसा क्या इसलिए भड़क गयी क्योंकि पुलिसवाले एनकाउंटर में व्यस्त थे!

    • आईचौक
    • Updated: 28 जनवरी, 2018 03:57 PM
  • 28 जनवरी, 2018 03:57 PM
offline
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उस काम के लिए यूपी पुलिस की पीठ ठोक रहे हैं जो उसके लिए सबसे आसान काम है - एनकाउंटर. उससे कहीं बड़ी चुनौती है दंगे रोकना, जो सिर्फ पुलिस के वश की बात नहीं है. स्थानीय प्रशासन के साथ इसके लिए राजनीतिक नेतृत्व की दूरदर्शिता भी जरूरी होती है.

कासगंज हिंसा की तह में जाने पर वजह बिलकुल वैसी ही लगती है जो ऐसे मामलों में पहले भी देखी जाती रही है. कासगंज में भी विवाद रास्ते को लेकर हुआ. त्योहारों के वक्त प्रशासन के लिए ऐसे पेंच बड़ी चुनौती साबित होते हैं. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक बद्दू नगर में लोग तिरंगा फहराने की तैयारी किये हुए थे और लोगों के बैठने के लिए वहां कुर्सियां भी रखी हुई थीं. तभी बाइक सवार युवाओं की एक टोली तिरंगा रैली के साथ आ धमकी. वे उसी रास्ते से आगे जाना चाहते थे जहां कुर्सियां रखी हुई थीं.

देखा जाये तो फसाद की जड़ यहां भी रास्ता ही रहा, फर्क बस ये था कि दोनों पक्षों के पास तिरंगा था - फिर भी दंगा हुआ और देखते ही देखते अमन चैन हिंसा की भेंट चढ़ गया.

हाथों में तिरंगा और रास्ते पर फसाद!

बाकी मामलों की तरह इसमें भी पुलिस असामाजिक तत्वों का हाथ मान रही है. साथ ही, पुलिस को किसी साजिश का भी शक हो रहा है. ताज्जुब की बात ये है कि बवाल तब हुआ जब आम दिनों के मुकाबले ज्यादा सतर्कता बरती जाती है - 26 जनवरी को, जब पूरा देश गणतंत्र दिवस मना रहा था. अगर साजिश की बात है तो स्थानीय खुफिया विभाग क्या कर रहा था? कहीं ऐसा तो नहीं कि स्थानीय खुफिया विभाग वेरीफिकेशन के नाम पर वसूली पर निकला था - और पुलिस एनकाउंटर करने!

योगी के दावों की तो हवा निकल गयी

पिछले साल बलात्कार के जुर्म में राम रहीम को सजा सुनाये जाने के बाद पंचकूला में जो हिंसा हुई उसे लेकर भी साजिश का शक जताया गया था - और जांच के बाद भी पूरी तस्वीर सामने नहीं आ पायी है. अगर पंचकूला हिंसा खट्टर सरकार की नाकामी रही तो क्या योगी सरकार भी वैसे ही सवालों के घेरे में नहीं आती?

पंचकूला हिंसा ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की प्रशासनिक क्षमता की कलई खोल कर रख दी थी -...

कासगंज हिंसा की तह में जाने पर वजह बिलकुल वैसी ही लगती है जो ऐसे मामलों में पहले भी देखी जाती रही है. कासगंज में भी विवाद रास्ते को लेकर हुआ. त्योहारों के वक्त प्रशासन के लिए ऐसे पेंच बड़ी चुनौती साबित होते हैं. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक बद्दू नगर में लोग तिरंगा फहराने की तैयारी किये हुए थे और लोगों के बैठने के लिए वहां कुर्सियां भी रखी हुई थीं. तभी बाइक सवार युवाओं की एक टोली तिरंगा रैली के साथ आ धमकी. वे उसी रास्ते से आगे जाना चाहते थे जहां कुर्सियां रखी हुई थीं.

देखा जाये तो फसाद की जड़ यहां भी रास्ता ही रहा, फर्क बस ये था कि दोनों पक्षों के पास तिरंगा था - फिर भी दंगा हुआ और देखते ही देखते अमन चैन हिंसा की भेंट चढ़ गया.

हाथों में तिरंगा और रास्ते पर फसाद!

बाकी मामलों की तरह इसमें भी पुलिस असामाजिक तत्वों का हाथ मान रही है. साथ ही, पुलिस को किसी साजिश का भी शक हो रहा है. ताज्जुब की बात ये है कि बवाल तब हुआ जब आम दिनों के मुकाबले ज्यादा सतर्कता बरती जाती है - 26 जनवरी को, जब पूरा देश गणतंत्र दिवस मना रहा था. अगर साजिश की बात है तो स्थानीय खुफिया विभाग क्या कर रहा था? कहीं ऐसा तो नहीं कि स्थानीय खुफिया विभाग वेरीफिकेशन के नाम पर वसूली पर निकला था - और पुलिस एनकाउंटर करने!

योगी के दावों की तो हवा निकल गयी

पिछले साल बलात्कार के जुर्म में राम रहीम को सजा सुनाये जाने के बाद पंचकूला में जो हिंसा हुई उसे लेकर भी साजिश का शक जताया गया था - और जांच के बाद भी पूरी तस्वीर सामने नहीं आ पायी है. अगर पंचकूला हिंसा खट्टर सरकार की नाकामी रही तो क्या योगी सरकार भी वैसे ही सवालों के घेरे में नहीं आती?

पंचकूला हिंसा ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की प्रशासनिक क्षमता की कलई खोल कर रख दी थी - और वैसे ही कासगंज हिंसा ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दावों की हवा निकाल दी है.

योगी की प्रशासनिक क्षमता पर 10 महीने पहले जो जो आशंका जतायी जा रही थी, स्वीकारोक्ति भी उन्हीं की तरफ से आ गयी. जिस योगी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कैबिनेट में कभी जगह नहीं दी उन्हें जिन हालात में भी यूपी की कुर्सी सौंपी हो - प्रशासनिक अनुभवहीनता को लेकर सवाल तो उठ ही रहे थे. योगी ने मदद के लिए खुद ही दो-दो डिप्टी सीएम मांग कर लोगों का संदेह भी दूर कर दिया.

एनकाउंटर आसान है, मगर दंगैे रोकना?

ये सब तो ठीक था, लेकिन बीजेपी सरकार के छह महीने पूरे होने पर योगी आदित्यनाथ ने दावा किया था कि मार्च 2017 के बाद यूपी में कोई दंगा नहीं हुआ. ये लीजिए मार्च 2018 आने से दो महीने पहले ही कासगंज में न सिर्फ हिंसा हुई - बल्कि हालात अब भी सामान्य नहीं हो पा रहे.

एनकाउंटर नहीं दंगे रोकना बड़ी चुनौती है

बात सिर्फ इतनी नहीं है कि विरोधी योगी को टारगेट कर रहे हैं, बल्कि योगी तो बड़े बड़े दावे करके खुद ही कठघरे में खड़े हो गये हैं. ये योगी का ही कहना था कि उनसे पहले की सरकारों के कार्यकाल में हर सप्ताह दंगा होता था और सरकार काबू पाने में नाकाम रही. एक चुनावी सभा में योगी ने कहा कि दंगाइयों और अपराधियों की जगह सलाखों के पीछे है. योगी ने कहा कि बीजेपी सरकार के आते ही अपराधी सलाखों के पीछे पहुंच गये या फिर मुठभेड़ में मार गिराये गये. ताजा खबर ये है कि पिछले 10 महीने में अपराधियों के साथ यूपी पुलिस के 921 एनकाउंटर हुए जिनमें 31 कथित अपराधी मारे गये जबकि 196 जख्मी हुए.

निकाय चुनावों के दौरान योगी ये भी कहा करते रहे कि बीजेपी के सत्ता में आने से पहले पांच साल में यूपी में 400 दंगे हुए, लेकिन गोरखपुर में एक भी नहीं हुआ. वो यूपी को गोरखपुर बनाने का दावा कर रहे थे, जबकि खुद उन पर हिंसा भड़काने का आरोप है. योगी के सत्ता में आने के बाद उनकी सरकार वो केस वापस लेना चाहती है. मालूम नहीं किस आधार पर वो दंगे रोकने का दावा किया करते हैं - हिंसा भड़काने के आरोप में पुलिस ने योगी को पकड़कर जेल भेज दिया था - और छूटने के बाद जब संसद पहुंचे फूट फूट कर रोने लगे थे.

मुख्यमंत्री योगी उस काम के लिए पुलिस की पीठ ठोक रहे हैं जो उसके लिए सबसे आसान काम है - एनकाउंटर. एनकाउंटर से कहीं बड़ी चुनौती है दंगे रोकना. वैसे भी दंगा रोकना सिर्फ पुलिस के वश की बात नहीं है. इसमें बड़ी जिम्मेदारी स्थानीय प्रशासन की होती है - और राजनीतिक नेतृत्व की दूरदर्शिता भी बहुत मायने रखती है.

ऐसे विरले एनकाउंटर होते हैं जिसमें पुलिस के बहादुरी के किस्से होते हैं, वरना ज्यादातर सवालों के घेरे में ही रहते हैं. बताने की जरूरत नहीं कि पुलिस एनकाउंटर की हकीकत क्या होती है. अब तक जितने भी एनकाउंटर पर सवाल उठे हैं - और जांच हुई तो ज्यादातर फर्जी ही निकले हैं - चाहे वे यूपी में हुए हों, उत्तराखंड में हुए हों या फिर गुजरात में ही क्यों नहीं हुए हों. फर्जी एनकाउंटर की जिन घटनाओं ने सियासी शक्ल अख्तियार कर लिए उनका रहस्य तो शायद ही कभी सामने आ पाये.

बेहतर तो ये होता कि योगी सरकार एनकाउंटर से इतर कानून व्यवस्था के बाकी पहलुओं पर भी ध्यान देती. अभी तो योगी के पूर्ववर्ती अखिलेश यादव वही सवाल पूछ रहे हैं जो बीजेपी नेताओं ने उनसे विधानसभा चुनावों में पूछे थे - हालत नहीं सुधरी तो आगे और भी सवाल उठेंगे और पूछने वाले अकेले अखिलेश यादव ही नहीं होंगे.

इन्हें भी पढ़ें :

यूपी चुनावों में जो सवाल बीजेपी ने उठाये थे वही अखिलेश अब योगी से पूछ रहे हैं

कासगंज की घटना से जुड़े इन सवालों के जवाब क्या सरकार दे पाएगी?

कानून और व्यवस्था के मामले में खट्टर सरकार बार-बार विफल क्यों हो जाती है ?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲