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कासगंज एसपी सुनील सिंह से क्यों डरती है सरकार ?

    • गिरिजेश वशिष्ठ
    • Updated: 30 जनवरी, 2018 02:25 PM
  • 30 जनवरी, 2018 02:25 PM
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दंगा मुक्त प्रदेश देने वाली भगवा युक्त सरकार के समर्थक दीवारों को भगवा रंगते रंगते, तिरंगे पर वही रंग चढ़ाने लगे, तो एसपी सुनील सिंह ने अपनी शपथ को निभाया. अब इसे बलि का बकरा बनाकर सरकार क्या हासिल करना चाहती है सब समझ सकते हैं.

कासगंज के एसपी को हटा दिया गया है. ये शीर्षक पढ़ कर आपको शायद लगेगा कि दंगे रोक पाने में नाकाम रहने के कारण एसपी सुनील सिंह की छुट्टी हुई. लेकिन ये सच का एक पहलू है. एक हिस्सा. पूरा सच ये है कि सुनील सिंह को दंगा रोकने और निष्पक्ष तरीके से प्रशासन चलाने के कारण चलता किया गया. जिस दिन से मामला सामने आया उसी दिन से सरकार में बैठे कई नेताओं की उन पर कोप भरी दृष्टि थी.

सुनील सिंह वो अफसर थे जिन्होंने जमकर दंगा रोकने की कोशिश की और सीधे सीधे उन्हें भी दंगों में बुक कर दिया जिनके हाथ में तिरंगे की जगह उत्तर प्रदेश के सबसे विवादित रंग का झंडा था. इतने पर भी सुनील सिंह बर्दाश्त कर लिए जाते, लेकिन उन्होंने मीडिया में साफ साफ बयान दिया कि इस दंगे के पीछे राजनीतिक साजिश से इनकार नहीं किया जा सकता.

ईमानदारी से काम करने का पुरस्कार है तबादला

सुनील सिंह ईमानदार और निष्पक्ष अफसर थे. दंगे में जो भी शामिल दिखाई दिया उसे बुक किया. उन्होंने 60 दंगाईयों को सलाखों के पीछे डाल दिया. नेताओं की एक न सुनी और दंगाइयों पर गोलियां चलाने में भी संकोच नहीं किया. वो सुनील सिंह ही थे जिन्होंने साफ कहा कि एक खास जगह पहुंच कर तिरंगा यात्रा में शामिल लोगों ने भड़काई, कार्रवाई की और नारे लगाए. सुनील सिंह ने ये सब सरकारी रिकॉर्ड में रिपोर्ट किया है. जाहिर सी बात है कि अब इस रिकॉर्ड को बदला नहीं जा सकता इसलिए...

कासगंज के एसपी को हटा दिया गया है. ये शीर्षक पढ़ कर आपको शायद लगेगा कि दंगे रोक पाने में नाकाम रहने के कारण एसपी सुनील सिंह की छुट्टी हुई. लेकिन ये सच का एक पहलू है. एक हिस्सा. पूरा सच ये है कि सुनील सिंह को दंगा रोकने और निष्पक्ष तरीके से प्रशासन चलाने के कारण चलता किया गया. जिस दिन से मामला सामने आया उसी दिन से सरकार में बैठे कई नेताओं की उन पर कोप भरी दृष्टि थी.

सुनील सिंह वो अफसर थे जिन्होंने जमकर दंगा रोकने की कोशिश की और सीधे सीधे उन्हें भी दंगों में बुक कर दिया जिनके हाथ में तिरंगे की जगह उत्तर प्रदेश के सबसे विवादित रंग का झंडा था. इतने पर भी सुनील सिंह बर्दाश्त कर लिए जाते, लेकिन उन्होंने मीडिया में साफ साफ बयान दिया कि इस दंगे के पीछे राजनीतिक साजिश से इनकार नहीं किया जा सकता.

ईमानदारी से काम करने का पुरस्कार है तबादला

सुनील सिंह ईमानदार और निष्पक्ष अफसर थे. दंगे में जो भी शामिल दिखाई दिया उसे बुक किया. उन्होंने 60 दंगाईयों को सलाखों के पीछे डाल दिया. नेताओं की एक न सुनी और दंगाइयों पर गोलियां चलाने में भी संकोच नहीं किया. वो सुनील सिंह ही थे जिन्होंने साफ कहा कि एक खास जगह पहुंच कर तिरंगा यात्रा में शामिल लोगों ने भड़काई, कार्रवाई की और नारे लगाए. सुनील सिंह ने ये सब सरकारी रिकॉर्ड में रिपोर्ट किया है. जाहिर सी बात है कि अब इस रिकॉर्ड को बदला नहीं जा सकता इसलिए रिकॉर्ड लिखने वाले को ही बदल दिया.

सुनील सिंह को सिर्फ कासगंज से हटाया ही नहीं गया बल्कि सरकार इतनी डरी हुई थी कि उन्हें तत्काल प्रभाव से स्टेशन छोड़ने को कह दिया गया. आप कल्पना कर सकते हैं कि वो कौन सी वजह रही होगी जिसके कारण ऐसा फैसला लिया गया. सुनील सिंह ने अपनी तरफ से जान लगा दी, लेकिन न तो आग भड़कने दी और न ही एक भी और शख्स की जान जाने दी. यहां तक कि कुछ शरारती तत्वों ने राहुल उपाध्याय नाम के शख्स के गायब होने की अफवाह फैलाई. बार बार ये बताने की कोशिश की कि राहुल उपाध्याय दंगे में मारा गया है, ताकि राहुल उपाध्याय के धर्म के लोगों को भड़काया जा सके. सोशल मीडिया पर ये खबरें खूब उछाली गईं. सुनील सिंह ने अफवाहों पर रोक तो लगाई ही राहुल उपाध्याय को ढूंढकर पेश कर दिया. ये सब हरकतें सुनील सिंह को कुछ ताकतवर लोगों की आंख की किरकिरी बना गईं.

तिरंगे के साथ भगवा झंडा लेकर क्या साबित करना चाहती थी वो भीड़?

सूत्रों के मुताबिक सुनील सिंह ने रिपोर्ट किया कि सांसद और तीन विधायक भी पहुंचे. इन लोगों ने बड़े बड़े भाषण भी दिए. लेकिन भगवा झंडा लेकर छब्बीस जनवरी का समारोह मना रहे लोगों की बस्ती में जाकर उत्पात मचाने वाले कैसे चले गए और इन विधायकों ने उन्हें काबू क्यों नहीं किया? सुनील सिंह की रिपोर्ट का ही कमाल है कि विधायक सफाई देते घूम रहे हैं. कोई कह रहा है कि मैं थोड़ी देर को गया था तो कोई कह रहा है बाद में पहुंचा.

दंगा मुक्त प्रदेश देने वाली भगवा युक्त सरकार के समर्थक दीवारों को भगवा रंगते रंगते, तिरंगे पर वही रंग चढ़ाने लगे, तो इस दबंग अफसर ने अपनी शपथ को निभाया. अब इसे बलि का बकरा बनाकर सरकार क्या हासिल करना चाहती है सब समझ सकते हैं. मुझे अमित शाह का वो वायरल ऑडियो याद आता है जिसमें वो मुजफ्फरनगर दंगों के आरोपी युवकों को बचाने की बातें करके एक जाति विशेष के वोट बीजेपी के लिए मांग रहे थे. आज तक बीजेपी ने इस ऑडियो को गलत नहीं बताया है. अखलाक की हत्या के आरोपियों को एनटीपीसी में नौकरियां दिलाने वाली सरकार भी यही है. लेकिन सुनील सिंह ने जो रिपोर्ट बनाई है उसके बाद सरकार में बैठे उग्र लोगों का बचना मुश्किल ही नही नामुमकिन लगता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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