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सोशल मीडिया

हर बार क्यों उपद्रव की आग में खर डाल देते हैं ये नीले टिक लगे लोग !

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 29 जनवरी, 2018 02:50 PM
  • 29 जनवरी, 2018 02:50 PM
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आज जो हालात हैं उनको देखकर यही कहा जा सकता है कि किसी भी उपद्रव की स्थिति में सरकार को सबसे पहले सोशल मीडिया को नियंत्रित करने का प्रयास करना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि आधी मुसीबत की जड़ सोशल मीडिया है.

उत्तर प्रदेश का कासगंज चर्चा में है. चर्चा का कारण गणतंत्र दिमाग पर तिरंगे को लेकर दो समुदायों में हुई भिड़ंत और उस भिड़ंत में गोली चलने से हुई एक युवक की मौत है. पुलिस का दावा है कि घटना के बाद इलाके में स्थिति को नियंत्रित कर लिया गया है और दोषियों तथा अराजक तत्वों पर कार्यवाही हो रही है. पुलिस, पीएसी, आरएएफ, एलआईयू सभी इस घटना के बाद मचे उत्पात पर खासे गंभीर नजर आ रहे हैं और प्रयासरत हैं कि कैसे जल्द से जल्द, माहौल सुरक्षा के लिहाज से अनुकूल हो जाए.

इलाके में पुलिस द्वारा तलाशी अभियान चलाया गया है. लोगों की धरपकड़ जारी है. हिंसा अलग-अलग रूपों में बदस्तूर जारी है. घटना पर नफरत और लाश की राजनीति जारी है. ऐसे में जिला प्रशासन और पुलिस लगातार दावे कर रही है कि "सबकुछ ठीक है". "सबकुछ ठीक है" से "स्थिति नियंत्रण में है" के दावों को पहली नजर में देखें तो सब "नार्मल" प्रतीत हो रहा है. मगर हकीकत और फसाने में फर्क है. सच्चाई इन दावों के ठीक विपरीत है.

जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. सोशल मीडिया पर वो वेरिफाइड अकाउंट सक्रिय हो गए हैं जो नफरत की आग में खर डाल माहौल को लगातार अशांत कर रहे हैं. कासगंज मामले पर सोशल मीडिया पर जो वेरिफाइड एकाउंट्स का रुख है उसको देखकर एक बात तो साफ है कि अभी इस मामले को और तूल दिया जाएगा. कहा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश के कासगंज में हुई घटना के बाद सोशल मीडिया हमेशा की तरह दो वर्गों में विभाजित हो चुका है जिसमें एक वर्ग इस घटना को सही ठहरा रहा है दूसरा गलत.

सोशल मीडिया पर वेरिफाइड एकाउंट्स लिए लोगों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि ऐसी घटनाएं लोगों के घरों में चिराग बुझा देती हैं. उन्हें बस इस बात से मतलब है कि कैसे वो घटना का पक्ष या विपक्ष लेकर ज्यादा से ज्यादा में अपने अन्दर भरा हुआ जहर उगलकर ज्यादा फॉलोवर जुटा सकें. इस मुद्दे पर दी गयी अपनी प्रतिक्रिया पर ज्यादा से ज्यादा लाइक और रिट्वीट पा सकें.

ये अपने आप में बेहद अजीब है कि, लोग सोशल मीडिया पर एक ऐसे वक़्त में भी नफरत और...

उत्तर प्रदेश का कासगंज चर्चा में है. चर्चा का कारण गणतंत्र दिमाग पर तिरंगे को लेकर दो समुदायों में हुई भिड़ंत और उस भिड़ंत में गोली चलने से हुई एक युवक की मौत है. पुलिस का दावा है कि घटना के बाद इलाके में स्थिति को नियंत्रित कर लिया गया है और दोषियों तथा अराजक तत्वों पर कार्यवाही हो रही है. पुलिस, पीएसी, आरएएफ, एलआईयू सभी इस घटना के बाद मचे उत्पात पर खासे गंभीर नजर आ रहे हैं और प्रयासरत हैं कि कैसे जल्द से जल्द, माहौल सुरक्षा के लिहाज से अनुकूल हो जाए.

इलाके में पुलिस द्वारा तलाशी अभियान चलाया गया है. लोगों की धरपकड़ जारी है. हिंसा अलग-अलग रूपों में बदस्तूर जारी है. घटना पर नफरत और लाश की राजनीति जारी है. ऐसे में जिला प्रशासन और पुलिस लगातार दावे कर रही है कि "सबकुछ ठीक है". "सबकुछ ठीक है" से "स्थिति नियंत्रण में है" के दावों को पहली नजर में देखें तो सब "नार्मल" प्रतीत हो रहा है. मगर हकीकत और फसाने में फर्क है. सच्चाई इन दावों के ठीक विपरीत है.

जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. सोशल मीडिया पर वो वेरिफाइड अकाउंट सक्रिय हो गए हैं जो नफरत की आग में खर डाल माहौल को लगातार अशांत कर रहे हैं. कासगंज मामले पर सोशल मीडिया पर जो वेरिफाइड एकाउंट्स का रुख है उसको देखकर एक बात तो साफ है कि अभी इस मामले को और तूल दिया जाएगा. कहा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश के कासगंज में हुई घटना के बाद सोशल मीडिया हमेशा की तरह दो वर्गों में विभाजित हो चुका है जिसमें एक वर्ग इस घटना को सही ठहरा रहा है दूसरा गलत.

सोशल मीडिया पर वेरिफाइड एकाउंट्स लिए लोगों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि ऐसी घटनाएं लोगों के घरों में चिराग बुझा देती हैं. उन्हें बस इस बात से मतलब है कि कैसे वो घटना का पक्ष या विपक्ष लेकर ज्यादा से ज्यादा में अपने अन्दर भरा हुआ जहर उगलकर ज्यादा फॉलोवर जुटा सकें. इस मुद्दे पर दी गयी अपनी प्रतिक्रिया पर ज्यादा से ज्यादा लाइक और रिट्वीट पा सकें.

ये अपने आप में बेहद अजीब है कि, लोग सोशल मीडिया पर एक ऐसे वक़्त में भी नफरत और लाश की राजनीति करने से बाज़ नहीं आ रहे जिस वक़्त में लोग यूं ही एक दूसरे के खून के प्यासे बने हैं. सोशल मीडिया पर सक्रिय ये वेरिफाइड एकाउंट्स लगातार मॉर्फ तस्वीरों, भड़काऊ संदेशों, एक दूसरे की भावना को आहत बहुत आहत कर ललकारने वाले ट्वीट्स और फेसबुक पोस्ट से तिल से ताड़ बनाकर मामले को घिनौना रूप देने की कोशिश कर रहे हैं. कहा जा सकता है कि ये एक ऐसी कोशिश है जिसके भविष्य में परिणाम बेहद घातक और जानलेवा होंगे.

सोशल नेटवर्किंग साइट ट्विटर पर कासगंज मामले के मद्देनजर "कासगंज" टाइप करिए. वहां जिन चीजों और जिन बातों पर आपकी नजर पड़ेगी वो कई मायनों में दिल देहला देने वाली हैं और हमें इस बात का एहसास कराने के लिए काफी हैं कि भले ही हमारे आस पड़ोस में "सब ठीक है" या "कुशल मंगल" है की स्थिति बनी हो मगर सोशल मीडिया पर स्थिति वैसी नहीं है. यहां लगातार ऐसे प्रयास हो रहे हैं जो न सिर्फ देश की अखंडता के लिए बड़ा खतरा है बल्कि जिनको देखकर महसूस होता है कि जब तक ये बातें नहीं हटती हम विकास से कोसों दूर हैं. कासगंज मामले पर जिन वेरिफाइड एकाउंट्स को सबसे ज्यादा लाइक और रिट्वीट मिल रहे हैं वो इस प्रकार हैं.  

बहरहाल इन ट्वीट्स को देखकर खुद-ब-खुद यकीन हो जाता है कि आखिर समस्या की जड़ क्या है? क्यों चीजें बिगडती हैं? कैसे तिल को ताड़ बनाकर लोगों को प्रभावित करने का काम किया जाता है. कह सकते हैं कि दंगे या किसी भी बवाल की स्थिति में सरकार को सोशल मीडिया पर भी वैसी ही कार्यवाही करनी चाहिए जैसी कार्यवाही वो उन स्थानों पर करती है जहां उपद्रव हुआ हो. अंत में बात खत्म करते हुए कहा जा सकता है कि देश का आधा माहौल उन वेरिफाइड ट्विटर एकाउंट्स ने खराब कर रखा है जिनका सिर्फ एक लक्ष्य है नफरत की राजनीति करना.

अगर सरकार इनको नियंत्रित कर ले तो चीजें उतनी खराब नहीं होंगी जितनी खराब आज वो हमारे सामने हैं. साथ ही हमें इस बात को भी समझना होगा कि हर बार  दंगों की आग में खर डाल देते हैं ये नीले टिक वाले लोग. वो लोग जिनका असल मकसद सोशल मीडिया पर फॉलोवर  जुटाना और सिर्फ और सिर्फ माहौल खराब करना है. अगर वक़्त रहते हमनें इनके एजेंडे को नहीं समझा तो आने वाले वक़्त में स्थिति बद से बदतर हो जाएगी. 

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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