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जेठमलानी के रिश्ते वाजपेयी से मोदी तक - बेहद करीब, बहुत दूर

    • आईचौक
    • Updated: 08 सितम्बर, 2019 05:29 PM
  • 08 सितम्बर, 2019 05:21 PM
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राम जेठमलानी जितने करीबी वाजपेयी के रहे, उतने ही मोदी के भी. मोदी की जेठमलानी ने कानूनी पैरवी की तो शाह की कानूनी - लेकिन रिश्तों को ढोना कभी पसंद नहीं किया - खुल कर तारीफ की तो जीभर कोसा भी.

राम जेठमलानी अपनी मर्जी के मालिक रहे. एक ऐसी शख्सियत जिसने कभी भी, कहीं भी, किसी बात की परवाह नहीं की. ताउम्र, तमाम मामलों में अपने मन की ही बात की - और कभी किसी को एक हद से ज्यादा तवज्जो नहीं दिया. जेठमलानी की यही वो जिद रही जिसने दोस्तों को भी दुश्मन बना लेने में परहेज नहीं की. 95 साल की भरपूर जिंदगी जीने के बाद राम जेठमलानी नहीं रहे.

कहा तो यहां तक जाता रहा कि जब जेठमलानी अदालतों में बहस के लिए पहुंचते तो कई जज ऐसे भी रहे जो जैसे तैसे उनके आगे खुद को संभालते रहे. बगैर किसी संकोच के जेठमलानी जजों को यहां तक बोल देते - 'आपकी उम्र से ज्यादा तो मेरा वकालत का अनुभव है.' जेठमलानी की इस दलील की भी किसी को काट नहीं मिल पाती. सुप्रीम कोर्ट के किसी न्यायाधीश की अधिकतम उम्र 65 साल हो सकती है - और जेठमलानी आठ दशक तक बेहद सक्रिय वकील बने रहे.

एक पेशेवर वकील और शौकिया राजनेता!

पेशे से वकील होते हुए राम जेठमलानी ने राजनीति भी अपनी ही स्टाइल में की. राजनीतिक दलों और बड़े नेताओं को भी जेठमलानी ने कभी एक क्लाइंट से ज्यादा नहीं समझा. जब केस लिया तो पेशवराने अंदाज में और छोड़ा तो, पूरी तरह छोड़ ही दिया.

राम जेठमलानी जन्मजात वकील थे. बेहतरीन पेशेवर वकील भी इसीलिए बन पाये - लेकिन राजनीति का आकर्षण उनके लिए हमेशा बना रहा. ऐसा लगता है जेठमलानी एक पेशवर वकील और शौकिया राजनीतिक्ष थे. अभी तो हाल ये है कि तमाम राजनीतिक दल वकालत की पृष्ठभूमि से आने वाले नेताओं से भरे पड़े हैं. केंद्र औ ज्यादातर राज्यों में सत्ताधारी पार्टी बीजेपी भी और विपक्षी दल कांग्रेस भी. क्षेत्रीय दलों में भी वकीलों का पूरा वर्चस्व है - लेकिन जेठमलानी जैसा कोई नहीं जो वकालत को छोड़ कर राजनीति में कभी समझौता नहीं किया.

राम जेठमलानी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ साथ बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह दोनों के पैरोकार रहे. जेठमलानी ने मोदी की राजनीतिक पैरवी की जबकि शाह की कानूनी पैरवी. मोदी को प्रधानमंत्री बनाने की वकालत और शाह को सोहराबुद्दीन केस में बेकसूर...

राम जेठमलानी अपनी मर्जी के मालिक रहे. एक ऐसी शख्सियत जिसने कभी भी, कहीं भी, किसी बात की परवाह नहीं की. ताउम्र, तमाम मामलों में अपने मन की ही बात की - और कभी किसी को एक हद से ज्यादा तवज्जो नहीं दिया. जेठमलानी की यही वो जिद रही जिसने दोस्तों को भी दुश्मन बना लेने में परहेज नहीं की. 95 साल की भरपूर जिंदगी जीने के बाद राम जेठमलानी नहीं रहे.

कहा तो यहां तक जाता रहा कि जब जेठमलानी अदालतों में बहस के लिए पहुंचते तो कई जज ऐसे भी रहे जो जैसे तैसे उनके आगे खुद को संभालते रहे. बगैर किसी संकोच के जेठमलानी जजों को यहां तक बोल देते - 'आपकी उम्र से ज्यादा तो मेरा वकालत का अनुभव है.' जेठमलानी की इस दलील की भी किसी को काट नहीं मिल पाती. सुप्रीम कोर्ट के किसी न्यायाधीश की अधिकतम उम्र 65 साल हो सकती है - और जेठमलानी आठ दशक तक बेहद सक्रिय वकील बने रहे.

एक पेशेवर वकील और शौकिया राजनेता!

पेशे से वकील होते हुए राम जेठमलानी ने राजनीति भी अपनी ही स्टाइल में की. राजनीतिक दलों और बड़े नेताओं को भी जेठमलानी ने कभी एक क्लाइंट से ज्यादा नहीं समझा. जब केस लिया तो पेशवराने अंदाज में और छोड़ा तो, पूरी तरह छोड़ ही दिया.

राम जेठमलानी जन्मजात वकील थे. बेहतरीन पेशेवर वकील भी इसीलिए बन पाये - लेकिन राजनीति का आकर्षण उनके लिए हमेशा बना रहा. ऐसा लगता है जेठमलानी एक पेशवर वकील और शौकिया राजनीतिक्ष थे. अभी तो हाल ये है कि तमाम राजनीतिक दल वकालत की पृष्ठभूमि से आने वाले नेताओं से भरे पड़े हैं. केंद्र औ ज्यादातर राज्यों में सत्ताधारी पार्टी बीजेपी भी और विपक्षी दल कांग्रेस भी. क्षेत्रीय दलों में भी वकीलों का पूरा वर्चस्व है - लेकिन जेठमलानी जैसा कोई नहीं जो वकालत को छोड़ कर राजनीति में कभी समझौता नहीं किया.

राम जेठमलानी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ साथ बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह दोनों के पैरोकार रहे. जेठमलानी ने मोदी की राजनीतिक पैरवी की जबकि शाह की कानूनी पैरवी. मोदी को प्रधानमंत्री बनाने की वकालत और शाह को सोहराबुद्दीन केस में बेकसूर साबित करने की पैरवी.

जेठमलानी पेशे से वकील और 'मन की बात' करने वाले ऐसे नेता रहे जिन्होंने प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी की वकालत भी की और विरोध के मामले में भी सारी हदें पार कर की. वाजपेयी और मोदी, बीजेपी के दोनों ही बड़े नेताओं के साथ जेठमलानी एक जैसे ही पेश आये.

वाजपेयी के खिलाफ चुनाव लड़े : वाजपेयी को जेठमलानी पर ये भरोसा ही रहा जो उन्हें कैबिनेट में दो दो बार शामिल किया गया. पहले 1996 और फिर 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रिमंडल में जेठमलानी कानून मंत्री बने - लेकिन तत्कालीन सॉलिसिटर जनरल सोली सोराबजी से उनका झगड़ा शुरू हो गया तो वाजपेयी ने जेठमलानी से इस्तीफा ले लिया.

जेठमलानी की एक अलग ही खासियत रही. वो रिश्ते के दोनों छोर पर एक ही व्यक्ति के साथ हो सकते थे. वाजपेयी और मोदी दोनों ही मामलों में ऐसा देखने को मिला. वाजपेयी के साथ भी जेठमलानी का रिश्ता आर पार का ही रहा - अगर ऐसा नहीं होता तो क्या वो लखनऊ से वाजपेयी के खिलाफ चुनाव लड़ते?

मोदी की वकालत भी, मुखालफत भी : ये जेठमलानी ही रहे जो बीजेपी में लालकृष्ण आडवाणी के वर्चस्व होने के बावजूद मोदी को प्रधानमंत्री बनाने की वकालत शुरू किये. जब अमेरिकी राष्ट्रपति को कुछ सांसदों ने मोदी को वीजा न देने को लेकर पत्र लिखा तो जेठमलानी का बयान आया, ‘इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है. वे जो चाहे करें, लेकिन वो अब लोगों दिलों में हैं.’

जब अमर्त्य सेन ने कहा था कि वो नहीं चाहते कि मोदी PM बनें तो भी जेठमलानी ने सख्त टिप्पणी की - और बीजेपी में मोदी के खिलाफ नेताओं की लामबंदी को भी नकार दिया.

जेठमलानी मोदी पैरोकार भी रहे और कट्टर विरोधी भी बन गये!

वो मोदी की तारीफ से खुद को रोक नहीं पा रहे थे, 'मोदी विष्णु का अवतार हैं. भ्रष्टाचार और विदेश नीति पर मोदी का कामकाज बेहतरीन है. वह ईमानदार हैं और खूब मेहनत करते हैं.'

फिर भी ये सब बहुत लंबा नहीं चला. काले धन को लेकर जेठमलानी मोदी से इस कदर नाराज हुए कि बिहार चुनाव के दौरान पटना के एक कार्यक्रम में कह डाला, 'अगर मैं वोट दे सकता तो नीतीश कुमार को वोट देता - क्योंकि मैं चाहता हूं कि मोदी हार का स्वाद चखें.'

मोदी को लेकर जेठमलानी की आखिरी टिप्पणी रही - 'मैं अपने आपको ठगा हुए महसूस करता हूं और खुद को गुनहगार मानता हूं कि मैंने मोदी की मदद की. मैं आपके बीच यह भी कहने आया हूं कि आप लोग प्रधानमंत्री की बातों का भरोसा ना करें.'

9 जून 2015 को राम जेठमलानी ने प्रधानमंत्री मोदी के साथ अपने रिश्ते को औपचारिक तौर पर खत्म करने की घोषणा कर दी और कहा कि मोदी के प्रति उनका 'घटता सम्मान' भी अब खत्म हो गया है. ये बात जेठमलानी ट्विटर पर ठीक वैसे ही शेयर किया था.

येदियुरप्पा कभी क्लाइंट रहे, फिर भी विरोध में कोर्ट पहुंच गये : कर्नाटक में अवैध खनन मामले में जेठमलानी ने मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा का बचाव किया था - लेकिन 2018 में जब येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली और कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सुप्रीम कोर्ट में गुहार लेकर पहुंचा तो जेठमलानी से रहा नहीं गया. जेठमलानी को करीब 10 महीने हो चुके थे वकालत से संन्यास की औपचारिक घोषणा किये हुए - लेकिन वो खुद को रोक नहीं पाये और येदियुरप्पा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गये थे.

हरदम हाजिर जवाब रहे जेठमलानी

वकालत के आखिरी दौर में जेठमलानी कोर्ट में वैसे ही आक्रामक हुआ करते थे जैसे शुरुआत में - अरविंद केजरीवाल केस में अरुण जेटली के खिलाफ उनकी दलीलें काफी दिनों तो सुर्खियों में छायी रहीं. आखिर में जेठमलानी ने केजरीवाल का केस छोड़ भी दिया और जेटली को पूरे मामले पर हलफनामे जैसा एक पत्र भी लिखा. ये संयोग ही है कि कानून की दुनिया के दोनों कद्दावर शख्सियतों के दुनिया छोड़ने में छोटा सा अंतराल रहा.

वकालत जेठमलानी का खानदानी पेशा रहा है. जेठमलानी के पिता और दादा दोनों वकील थे. फिर भी पिता चाहते थे कि जेठमलानी इंजीनियर बनें. एक इंटरव्यू में जेठमलानी ने कहा भी, ‘मेरे पिता चाहते थे कि मैं इंजीनियर बनूं... मेरा दाखिला भी विज्ञान में करवा दिया था, लेकिन वकालत मेरे खून में थी.' महज 17 साल की उम्र में राम जेठमलानी अपनी वकालत की पढ़ाई पूरी कर चुके थे. आजादी से पहले कराची शहर के एससी शाहनी लॉ कालेज जेठमलानी मास्टर्स की डिग्री ली और फिर अपनी 'लॉ फर्म' भी बनायी. फर्म में जेठमलानी ने वकालत के अपने सहपाठी एके बरोही को भी साथ लिया - आगे चल कर दोनों ही दोस्त अपने अपने मुल्कों में कानून मंत्री भी बने.

विवाद कितना भी बड़ा क्यों न हो, जेठमलानी ने अछूत समझना तो दूर हमेशा उसे गले लगाया. जेठमलानी अपराधियों के लिए मसीहा हुआ करते रहे और कानूनी शिकंजे में फंसा हर शख्स उनकी ओर आखिरी उम्मीद से देखा करता था. बड़े से बड़े अपराधों में भी वो बचाव पक्ष की ओर ही खड़े रहे, भले ही वो देश के प्रधानमंत्री का हत्यारा क्यों न हो या देश की संसद का हमलावर आतंकवादी. देश के कम ही ऐसे बड़े विवादित मामले रहे होंगे जिनसे राम जेठमलानी का नाम न जुड़ा हो - चाहे वकील के रूप में या फिर नेता के रूप में.

अपने सेंस ऑफ ह्यूमर के साथ हमेशा जिंदादिल इंसान बने रहने वाले जेठमलानी से तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने एक बार पूछ लिया, 'आप रिटायर कब हो रहे हैं?

बगैर एक भी पल गंवाये जेठमलानी तपाक से बोले, 'मी लॉर्ड, क्‍यों जानना चाहते हैं कि मैं कब मरूंगा? जबाव ऐसा रहा कि आगे कोई बहस नहीं हुई - और अब तो होने से रही. वकालत की दुनिया के जेठमलानी भी वैसे ही दीदावर हैं, जो हजारों साल नरगिस के अपनी बेनूरी पर रोने के बाद पैदा होते हैं - और मरने के बाद भी जिंदा रहते हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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