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क्‍या वाकई जेठमलानी ने केजरीवाल के कहने पर जेटली को 'क्रुक' कहा !

    • आईचौक
    • Updated: 18 मई, 2017 10:17 PM
  • 18 मई, 2017 10:17 PM
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क्या जेटली के खिलाफ जेठमलानी को खड़ा कर केजरीवाल दोनों की निजी दुश्मनी का पूरा फायदा उठाना चाहते थे? या जेटली से अपनी दुश्मनी के चलते जेठमलानी को केस लड़ने का केजरीवाल से भी ज्यादा इंतजार रहा?

अरुण जेटली और अरविंद केजरीवाल के बीच चल रहा मानहानि का केस क्या किसी और ट्रैक पर निकल गया है. दिल्ली हाई कोर्ट में जाने माने वकील रामजेठमलानी द्वारा जेटली के लिए 'क्रुक' शब्द के इस्तेमाल से जितना विवाद नहीं हुआ उससे ज्यादा सवाल खड़े हो गये हैं.

क्या जेटली के खिलाफ जेठमलानी को खड़ा कर केजरीवाल दोनों की निजी दुश्मनी का पूरा फायदा उठाना चाहते थे? या जेटली से अपनी दुश्मनी के चलते जेठमलानी को केस लड़ने का केजरीवाल से भी ज्यादा इंतजार रहा?

केजरीवाल के कहने पर या?

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ 10 करोड़ रुपये के मानहानि के केस में क्रॉस-एग्जामिनेशन के लिए जेटली चौथी बार पहुंचे थे. इसी दौरान जेठमलानी ने उनके लिए क्रुक शब्द का इस्तेमाल किया. अपने खिलाफ ऐसे शब्द के इस्तेमाल पर जेटली का भी धैर्य जवाब दे गया.

जेटली ने जेठमलानी से पूछा कि क्रुक शब्द का इस्तेमाल वो खुद अपनी तरफ से कर रहे हैं, या फिर इसके लिए भी उनके क्लाइंट ने कोई खास हिदायत दे रखी है?

तो इसीलिए जेठमलानी को हायर किया...

जेठमलानी ने स्वीकार किया कि जेटली के खिलाफ क्रुक शब्द का इस्तेमाल उन्होंने अपने क्लाइंट यानी केजरीवाल के कहने पर किया. हालांकि, केजरीवाल की ओर से पैरवी करने वाले दूसरे वकील ने जेठमलानी के दावे के खारिज कर दिया. फिर जेठमलानी बोले कि केजरीवाल ने ऐसा तब कहा जब वो उनसे अकेले मिले थे.

क्रुक बोले तो...

CROOK किसी कुटिल इंसान के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जिसके लिए हिंदी में एक खास शब्द और भी है - धूर्त. धूर्त यानी धोखेबाज जिससे हर किसी को को बच कर रहना चाहिये - और उस पर किसी को यकीन नहीं करना चाहिये. धूर्त यानी एक ऐसा इंसान जिसकी समाज में कोई इज्जत नहीं करता. एक ऐसा...

अरुण जेटली और अरविंद केजरीवाल के बीच चल रहा मानहानि का केस क्या किसी और ट्रैक पर निकल गया है. दिल्ली हाई कोर्ट में जाने माने वकील रामजेठमलानी द्वारा जेटली के लिए 'क्रुक' शब्द के इस्तेमाल से जितना विवाद नहीं हुआ उससे ज्यादा सवाल खड़े हो गये हैं.

क्या जेटली के खिलाफ जेठमलानी को खड़ा कर केजरीवाल दोनों की निजी दुश्मनी का पूरा फायदा उठाना चाहते थे? या जेटली से अपनी दुश्मनी के चलते जेठमलानी को केस लड़ने का केजरीवाल से भी ज्यादा इंतजार रहा?

केजरीवाल के कहने पर या?

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ 10 करोड़ रुपये के मानहानि के केस में क्रॉस-एग्जामिनेशन के लिए जेटली चौथी बार पहुंचे थे. इसी दौरान जेठमलानी ने उनके लिए क्रुक शब्द का इस्तेमाल किया. अपने खिलाफ ऐसे शब्द के इस्तेमाल पर जेटली का भी धैर्य जवाब दे गया.

जेटली ने जेठमलानी से पूछा कि क्रुक शब्द का इस्तेमाल वो खुद अपनी तरफ से कर रहे हैं, या फिर इसके लिए भी उनके क्लाइंट ने कोई खास हिदायत दे रखी है?

तो इसीलिए जेठमलानी को हायर किया...

जेठमलानी ने स्वीकार किया कि जेटली के खिलाफ क्रुक शब्द का इस्तेमाल उन्होंने अपने क्लाइंट यानी केजरीवाल के कहने पर किया. हालांकि, केजरीवाल की ओर से पैरवी करने वाले दूसरे वकील ने जेठमलानी के दावे के खारिज कर दिया. फिर जेठमलानी बोले कि केजरीवाल ने ऐसा तब कहा जब वो उनसे अकेले मिले थे.

क्रुक बोले तो...

CROOK किसी कुटिल इंसान के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जिसके लिए हिंदी में एक खास शब्द और भी है - धूर्त. धूर्त यानी धोखेबाज जिससे हर किसी को को बच कर रहना चाहिये - और उस पर किसी को यकीन नहीं करना चाहिये. धूर्त यानी एक ऐसा इंसान जिसकी समाज में कोई इज्जत नहीं करता. एक ऐसा इंसान जिसका कोई REPTATION नहीं होता. रेप्युटेशन यानी साख, इज्जत या मान-सम्मान.

क्लाइंट के लिए कुछ भी करेगा...

बड़ा सवाल ये है कि आखिर जेटली के लिए जेठमलानी 'क्रुक' शब्द का ही इस्तेमाल क्यों किया? इसका जवाब भी जेठमलानी ने खुद ही दे दिया. दिल्ली हाई कोर्ट में जेठमलानी ने खुद कहा, “मैं दिखाना चाहता था कि ये आदमी धूर्त है.”

धूर्त बोलने से क्या मिलेगा?

क्या किसी को बार बार धूर्त बोल कर उसे धूर्त साबित किया जा सकता है? कहते हैं किसी बात को सौ बार बोला जाये तो वो सच लगने लगती है. तो क्या अदालत में भी ये नुस्खा आजमाया जा सकता है?

राजनीति के मैदान में तो केजरीवाल का ये आजमाया हुआ हथियार है. ऐसा हथियार जो फायर करने पर शोर भी बहुत करना है और विवाद भी खासा होता है. इस हथियार की असली खासियत तो ये है कि कहीं भी चलाने के बावजूद कोई केस नहीं बनता.

केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं और जब उनके दफ्तर में सीबीआई का छापा पड़ा तो उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए जिन दो शब्दों का इस्तेमाल किया वे थे - 'कायर' और 'मनोरोगी'. एक शख्स ने इस पर अदालत का भी दरवाजा खटखटाया लेकिन केजरीवाल के खिलाफ कोई केस नहीं बना. जब केजरीवाल आंदोलन से राजनीति की ओर बढ़ रहे थे तभी संसद में बैठे नेताओं के लिए तीन शब्दों का इस्तेमाल किया था - हत्यारे, बलात्कारी और डकैत.

केजरीवाल के ऐसा बोलने पर संसद में भी खूब शोर मचा. सभी एक स्वर से निंदा तो की लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई, बस चेतावनी तक मामला निपट गया.

लेकिन ये सब सड़कों पर हुआ. संसद में भी गूंजा. क्या अदालतों में भी ऐसी हरकतों की एंट्री होने लगी है? ताज्जुब इस बात को लेकर है कि जेठमलानी जैसा सबसे अनुभवी कानूनविद को भी इसमें कोई आपत्तिजनक बात नजर नहीं आती.

इस मामले में सबसे दिलचस्प पक्ष तो जेठमलानी का ये कबूल करना है कि वो अपने क्लाइंट के कहने पर जेटली को अदालत में धूर्त कहने को राजी ही नहीं हुए, बल्कि डंके की चोट पर कहा भी.

सवाल और भी हैं...

1. क्या कोई वकील अपने क्लाइंट के कहने पर दूसरे पक्ष के लिए अपशब्द और असंवैधानिक शब्दों का भी इस्तेमाल कर सकता है, फिर भी उसे पेशेवराना उसूलों के खिलाफ नहीं समझा जाएगा?

2. क्या क्लाइंट के कहने पर प्रतिवादी को नीचा दिखाने के लिए कोई भी तरीका अख्तियार किया जा सकता है जिसे सभ्य समाज में सही नहीं माना जा सकता?

हर बात की हद होती है...

3. क्या कोई क्लाइंट पैसे के बल पर या किन्हीं खास परिस्थितियों का फायदा उठाते हुए वकील के जरिये अपने विरोधी को किसी भी तरीके से बेइज्जत करने के लिए राजी कर सकता है?

केजरीवाल से इतर जेठमलानी की इस केस में अगर कोई खास दिलचस्पी हो तो वही जानें. वैसे जब सरकारी खजाने से 3.5 करोड़ रुपये की फीस चुकाने को लेकर विवाद हुआ था तो जेठमलानी ने कहा था कि केजरीवाल को गरीब मान कर वो फ्री में भी उनका केस लड़ सकते हैं.

माना जाता है कि जेठमलानी की जितनी लंबी प्रैक्टिस रही है उतने साल में कितने जज रिटायर हो चुके हैं. ऐसे भी मौके आये हैं जब जेठमलानी से उनके रिटायर होने के लेकर पूछ लिया गया है जो उन्हें बेहद नागवार गुजरा है. कहीं ऐसा तो नहीं अब उन पर भी उम्र हावी होने लगी है?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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