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राजनीति में सुपरहिट होने के लिए रजनीकांत धर्म का सहारा तो नहीं ले रहे?

    • पूजा शाली
    • Updated: 20 मार्च, 2018 10:08 PM
  • 20 मार्च, 2018 10:08 PM
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भले ही एक अभिनेता के तौर पर रजनीकांत को पब्लिसिटी की जरुरत नहीं. लेकिन एक नेता के तौर पर शायद उन्हें इसकी अभी जरुरत है. एक ओर जहां कमल हसन और टीटीवी दिनाकरन ने अपनी पार्टी लॉन्च कर ली है, वहीं रजनी पहले अपनी छवि बनाने में लगे हैं.

13 मार्च को दोपहर 2.10 मिनट पर मैं रजनीकांत से मिली. वो रजनीकांत जिन्हें दक्षिण भारत में थलाइवा यानि नेता कहकर पुकारा जाता है. इस मीटिंग में रजनीकांत ने अपने निजी जीवन के कुछ क्षण हमारे साथ बांटे. वो लगातार मुस्कुरा रहे थे. उनकी मुस्कुराहट में सुकुन था, शांति थी.

राजनीति में नई भूमिका निभाने के पहले उनकी आध्यामिक यात्रा के बारे में रिपोर्टिंग करने का काम मुझे दिया गया था. उनकी इस रहस्यमयी यात्रा को मैं पिछले एक साल से कवर कर रही हूं. नवंबर 2017 में मैं राजनीकांत के पसंदीदा जगह गई. अल्मोड़ा में एक गुफा के नजदीक उन्होंने भक्तों के ठहरने के लिए घर बनवाया है. यहां वो खुद भी अक्सर आते रहते हैं.

6 घंटे की यात्रा के बाद मैं ऋषिकेश पहुंची और वहां के स्थानीय निवासियों से दयानंद सरस्वती आश्रम के बारे में पूछा. आश्रम के गेट पर खड़े होकर हम थलाइवा का इंतजार करने लगे. रजनीकांत के आने के बारे में आश्रम में भी कुछ ही लोगों को पता. सबकुछ सामान्य था. कुछ देर के इंतजार के बाद बैगों से भरी एक इनोवा कार अंदर आती है. हाथ में माइक लिए अपने कैमरामैन के साथ मैं भागी और गाड़ी के पास जाकर खड़ी हो गई.

गाड़ी का दरवाजा खुला और भारतीय सिनेमा के सुपरस्टार बाहर आए. सफेद कुर्ता पायजामा पहने रजनी, हमारे जेहन में बैठे सुपरस्टार की छवि से बिल्कुल अलग थे. भगवान की तरह पूजे जाने वाले रजनीकांत दरअसल साधारण से दिखने वाले, हमारे आपके जैसे व्यक्ति थे. मैंने उनसे सवाल पूछने शुरु किए और थलाइवा ने शांति से मेरे सभी सवालों का जवाब दिया.

अगले तीन दिन...

13 मार्च को दोपहर 2.10 मिनट पर मैं रजनीकांत से मिली. वो रजनीकांत जिन्हें दक्षिण भारत में थलाइवा यानि नेता कहकर पुकारा जाता है. इस मीटिंग में रजनीकांत ने अपने निजी जीवन के कुछ क्षण हमारे साथ बांटे. वो लगातार मुस्कुरा रहे थे. उनकी मुस्कुराहट में सुकुन था, शांति थी.

राजनीति में नई भूमिका निभाने के पहले उनकी आध्यामिक यात्रा के बारे में रिपोर्टिंग करने का काम मुझे दिया गया था. उनकी इस रहस्यमयी यात्रा को मैं पिछले एक साल से कवर कर रही हूं. नवंबर 2017 में मैं राजनीकांत के पसंदीदा जगह गई. अल्मोड़ा में एक गुफा के नजदीक उन्होंने भक्तों के ठहरने के लिए घर बनवाया है. यहां वो खुद भी अक्सर आते रहते हैं.

6 घंटे की यात्रा के बाद मैं ऋषिकेश पहुंची और वहां के स्थानीय निवासियों से दयानंद सरस्वती आश्रम के बारे में पूछा. आश्रम के गेट पर खड़े होकर हम थलाइवा का इंतजार करने लगे. रजनीकांत के आने के बारे में आश्रम में भी कुछ ही लोगों को पता. सबकुछ सामान्य था. कुछ देर के इंतजार के बाद बैगों से भरी एक इनोवा कार अंदर आती है. हाथ में माइक लिए अपने कैमरामैन के साथ मैं भागी और गाड़ी के पास जाकर खड़ी हो गई.

गाड़ी का दरवाजा खुला और भारतीय सिनेमा के सुपरस्टार बाहर आए. सफेद कुर्ता पायजामा पहने रजनी, हमारे जेहन में बैठे सुपरस्टार की छवि से बिल्कुल अलग थे. भगवान की तरह पूजे जाने वाले रजनीकांत दरअसल साधारण से दिखने वाले, हमारे आपके जैसे व्यक्ति थे. मैंने उनसे सवाल पूछने शुरु किए और थलाइवा ने शांति से मेरे सभी सवालों का जवाब दिया.

अगले तीन दिन आश्रम की चारदीवारी में ही थलाइवा से थोड़ी बनाए रखते हुए मैंने उनकी दिनचर्या को देखा, जाना, समझा. इससे रजनी के बारे में मुझे दो बातें समझ में आई- पहली, रजनीकांत को अपनी प्रसिद्धि का बखुबी एहसास है लेकिन वो उसमें डूब नहीं गए हैं. दूसरी- अपनी महान छवि से इतर वो और भी कुछ पाना चाहते हैं.

पहली बार उन्होंने कैमरा पर कहा- "मैं अभी तक फुलटाइम नेता नहीं बना हूं. मेरा उद्देश्य भगवान को महसूस करना है. मानवता को जानना है. मेरे जीवन का ध्येय ही यही है." राजनीति के सभी सवालों को उन्होंने बड़ी ही शालीनता के साथ नजरअंदाज कर दिया. लेकिन आध्यत्म से जुड़े प्रश्नों का मुस्कुराहट के साथ और विस्तारपूर्वक जवाब दिया. हिमालय यात्रा के समय बात करते हुए तो उनकी आंखों की चमक देखने लायक थी.

पब्लिसिटी की जरुरत स्टार रजनीकांत को नहीं बल्कि नेता रजनी को है

उनसे मिलने, हाथ मिलाने और फोटो खिंचवाने के लिए उनके कमरे के आगे लोगों की भीड़ लग गई. तमिलनाडु जो लोग उनसे मिलने आए थे वो रजनीकांत के पैर छू रहे थे और अपने फोन से उनकी फोटो क्लिक कर रहे थे. सभी हतप्रभ थे कि उनके सामने से जो इंसान गुजरा वो भारत का मेगास्टार रजनीकांत खुद है. सुरक्षा के नाम पर सिर्फ दो स्थानीय पुलिसवालों के साथ रजनीकांत पूरे आश्रम में घूम रहे थे. अगर उनके प्रशंसकों की भीड़ न जमा होती तो यकीन मानिए ये पहचानना मुश्किल हो जाता कि वो सुपरस्टार रजनीकांत हैं. रजनी ने फोटोग्राफरों को अपनी फोटो क्लिक करने और रिपोर्टरों को शानदार विजुअल पाने का खुब मौका दिया.

तड़के सुबह उन्होंने ध्यान किया और प्रार्थना की. एक निजी कार्यक्रम में धार्मिक गुरुओं द्वारा रजनी को धर्म और आध्यात्म का पाठ पढ़ाया गया. गुरुओं ने भगवा कपड़े पहन रखे थे जबकि रजनी सफेद कपड़ों में थे. अपने दान कर्म को रिकॉर्ड करने से भी रजनी ने नहीं रोका. साधुओं और गरीबों को दान देने, स्कूल के छात्रों को किताबें बांटते वक्त भी उन्हें पता था कि कैमरा हर चीज को रिकॉर्ड कर रहा है.

भले ही एक अभिनेता के तौर पर रजनीकांत को पब्लिसिटी की जरुरत नहीं. लेकिन एक नेता के तौर पर शायद उन्हें इसकी अभी जरुरत है. एक ओर जहां कमल हसन और टीटीवी दिनाकरन ने अपनी पार्टी लॉन्च कर ली है, वहीं रजनी पहले अपनी छवि बनाने में लगे हैं. इसी क्रम में जनता के बीच ये मैसेज देने की ओर पहला कदम है कि एक एक्टर से अलग रजनी एक ऐसे नेता हैं जिसे जनता की चिंता है.

उन्होंने मुझसे कहा- "मैं मानव जाति के कल्याण के लिए प्रार्थना कर रहा हूं. प्रार्थना कर रहा हूं कि हर किसी को मन की शांति मिले. यहां जब मैं हिमालय की दिव्यता का आनंद ले रहा हूं तो मैं रजनीकांत (स्टार) को भूल गया हूं." इससे उनकी छवि एक ऐसे आध्यात्मिक व्यक्ति की बन रही है जो "लोगों के कल्याण" की चिंता करता है.

रजनी के इस सफर को किसी भी तरीके से कमतर आंकना एक बड़ी भूल होगी. खासकर उन लोगों के लिए जो जल्दी ही उनके राजनीतिक विरोधी बनने वाले हैं. स्वावलोकन के पर्दे तले राजनीति की जोरशोर से तैयारी चल रही है. थलाइवा की एक झलक को पाने के लिए इंतजार में खड़े फैन कहते हैं कि "कुछ बड़ा होने वाला है और हम उन्हें एक चांस देना चाहते हैं."

आखिर एक लिजेंड जिसके पास सबकुछ है उसे फिर से शुरुआत करने की क्या जरुरत है? क्या भगवा रंग सिर्फ आध्यात्मिक ही रहेगा या फिर कोई राजनीतिक रंग लेगा? उनके तमिलनाडु लौटने के बाद इन सभी सवालों का जवाब मिल जाएगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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