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दक्षिण की राजनीति में रजनी की एंट्री ने भाजपा के मंसूबों पर पानी फेर दिया

    • रमेश ठाकुर
    • Updated: 03 जनवरी, 2018 01:37 PM
  • 03 जनवरी, 2018 01:37 PM
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रजनीकांत का राजनीति से लगाव हमेशा से रहा है. और देश की राजनीति पर कड़ी नजर रही है. समय समय पर वो राजनीतिक बयान भी देते रहे हैं. जब भी चुनाव आते, तो उनके लाखों फैन इंतजार करते हैं कि वह किसको समर्थन देंगे.

कयास तो सालों से लगाए जा रहे थे कि दक्षिण का थलाइवर यानी राजा कब सियासत में आकर लुंगी डांस करेगा. इन अटकलों पर विराम लगाते हुए रजनीकांत ने साल के अंतिम दिन सियासत में आने का ऐलान कर दिया. उनके ऐलान के साथ ही स्थानीय राजनीति में भूंकप आ गया. क्योंकि दक्षिण भारत की राजनीति से ताल्लुक रखने वाले सभी मददाताओं का लगाव फिल्मी सितारों से भावनात्मक रहा है.

हालांकि तमिलनाडु की सियासत में सिनेमा से जुड़े लोगों का आना कोई नई बात नहीं है. इसलिए दक्षिण भारत में रूपहले पर्दे के भगवान कहे जाने वाले सुपरस्टार शिवाजी राव गायकवाड़ उर्फ रजनीकांत का राजनीति में आने का ऐलान इस सिलसिले को आगे बढ़ाना मात्र है. लेकिन एक बात सच है कि उनके आने से तमिलनाडु की राजनीति नई दिशा में खुद को करवट लेती महसूस करेगी.

मराठा समुदाय से ताल्लुक रखने वाले सुपरस्टार रजनीकांत को लोग भगवान की तरह मानते हैं. उनके प्रशंसकों ने उन्हें थलाइवा की उपाधि दी है. ये छवि अगर उनकी सियासी पारी में भी चमक बिखेरती है तो दूसरे राजनीतिक दलों को अपनी इज्जत बचानी भी मुश्किल हो जाएगी. ठीक उसी तरह जैसे कुछ समय से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हवा ने कई राज्यों में विपक्ष का हाल बना रखा है. पार्टियों की सियासी जमीन खिसक गई है.

आला रे आला.. थलाइवा आला रे

राज्य की प्रमुख पार्टियां डीएमके और एआईएडीएमके अभी से भयभीत हो गई हैं. डीएमके के नेता ए राजा और कनिमोझी टूजी मामले में कोर्ट से बरी होने की खुशी मना रहे थे. लेकिन रजनीकांत के ऐलान ने उनमें फिर से दहशत का...

कयास तो सालों से लगाए जा रहे थे कि दक्षिण का थलाइवर यानी राजा कब सियासत में आकर लुंगी डांस करेगा. इन अटकलों पर विराम लगाते हुए रजनीकांत ने साल के अंतिम दिन सियासत में आने का ऐलान कर दिया. उनके ऐलान के साथ ही स्थानीय राजनीति में भूंकप आ गया. क्योंकि दक्षिण भारत की राजनीति से ताल्लुक रखने वाले सभी मददाताओं का लगाव फिल्मी सितारों से भावनात्मक रहा है.

हालांकि तमिलनाडु की सियासत में सिनेमा से जुड़े लोगों का आना कोई नई बात नहीं है. इसलिए दक्षिण भारत में रूपहले पर्दे के भगवान कहे जाने वाले सुपरस्टार शिवाजी राव गायकवाड़ उर्फ रजनीकांत का राजनीति में आने का ऐलान इस सिलसिले को आगे बढ़ाना मात्र है. लेकिन एक बात सच है कि उनके आने से तमिलनाडु की राजनीति नई दिशा में खुद को करवट लेती महसूस करेगी.

मराठा समुदाय से ताल्लुक रखने वाले सुपरस्टार रजनीकांत को लोग भगवान की तरह मानते हैं. उनके प्रशंसकों ने उन्हें थलाइवा की उपाधि दी है. ये छवि अगर उनकी सियासी पारी में भी चमक बिखेरती है तो दूसरे राजनीतिक दलों को अपनी इज्जत बचानी भी मुश्किल हो जाएगी. ठीक उसी तरह जैसे कुछ समय से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हवा ने कई राज्यों में विपक्ष का हाल बना रखा है. पार्टियों की सियासी जमीन खिसक गई है.

आला रे आला.. थलाइवा आला रे

राज्य की प्रमुख पार्टियां डीएमके और एआईएडीएमके अभी से भयभीत हो गई हैं. डीएमके के नेता ए राजा और कनिमोझी टूजी मामले में कोर्ट से बरी होने की खुशी मना रहे थे. लेकिन रजनीकांत के ऐलान ने उनमें फिर से दहशत का माहौल पैदा कर दिया. रजनीकांत पूरी तैयारी के साथ मैदान में उतरेंगे. संगठन को मजबूत करेंगे और पार्टी में शामिल होने वाले नेताओं का भी चुनाव करेंगे. तमिलनाडु में करीब ढाई वर्ष बाद विधानसभा चुनाव होने हैं. आगामी चुनाव में रजनीकांत ने सभी 234 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की घोषणा कर दी है. हालांकि अगले साल आम चुनाव भी होने हैं. उसमें पार्टी भाग लेगी या नहीं इसका खुलासा फिलहाल नहीं किया गया है.

दक्षिण भारत की राजनीति पर सिनेमा के लोगों का प्रभाव सदियों से रहा है. सीएन अन्नादुराई से शुरूआत होके रजनीकांत तक आ पहुंची. अन्नादुराई तमिनलाडु के पहले ऐसे मुख्यमंत्री थे जो पहले एक मशहूर तमिल फिल्म लेखक व कलाकार थे फिर राजनीतिज्ञ बने. उनके बाद एमजी रामचंद्रन, जानकी रामाचंद्रन, एनटी रामाराव, जयराम जयललिता, चिरंजीवी और एम करूणानिधि आदि का संबंध सिनेमा से रहा.

एम करूणानिधि बतौर पटकथा लेखक फिल्मों से जुड़े रहे और तमिल फिल्मी इतिहास पर उन्होंने कई किताबें भी लिखी. वह राज्य के पांच बार मुख्यमंत्री रहे. ये बड़े नाम इस बात के उदाहरण हैं कि तमिलनाडु की राजनीति का फिल्मी लोगों से जुड़ाव चोली-दामन जैसा रहा है. प्रदेश में कुछ समय से राजनीतिक अस्थिरता का माहौल बना हुआ है. उम्मीद है रजनीकांत के आने से माहौल ठीक होगा. लोग इस उम्मीद में बैठे हैं कि मुख्यमंत्री जयललिता के निधन से प्रदेश की राजनीति में मेगास्टार छवि की चमक की रौशनी जो धुंधली हुई है उसकी भरपाई सुपरस्टार रजनीकांत के उदय से पूरी होगी.

रजनीकांत का राजनीति से लगाव हमेशा से रहा है. और देश की राजनीति पर कड़ी नजर रही है. समय समय पर वो राजनीतिक बयान भी देते रहे हैं. जब भी चुनाव आते, तो उनके लाखों फैन इंतजार करते हैं कि वह किसको समर्थन देंगे. अप्रत्यक्ष रूप से उनका कहीं न कहीं कनेक्शन रहा है. सन् 2002 में रजनीकांत ने कावेरी जल मुद्दे पर एक राजनीतिक बयान दिया था. उस मुद्दे पर उन्होंने विरोध प्रदर्शन भी किया था. कर्नाटक सरकार से सुप्रीम कोर्ट का आदेश मानने की मांग करते हुए उन्होंने करीब दस घंटे का अनशन भी किया था. अनशन में उनके साथ सभी विपक्षी दलों के कई नेता और तमिल फिल्म इंडस्ट्री की पूरी जमात खड़ी थी.

अब विपक्षी पार्टियों का सिरदर्द शुरु

एक सवाल ये है कि रजनीकांत अकेले चुनाव लड़ेंगे या किसी अन्य पार्टी के साथ गठबंधन करेंगे? भाजपा के साथ वह शायद ही जाएं. क्योंकि राजनीति में आने के ऐलान के वक्त उन्होंने भाजपा को खूब लताड़ा. 68 वर्षीय रजनीकांत ने भाजपा का नाम न लेते हुए उनपर देश में गलत राजनीति करने का आरोप लगाया है. उनका मानना है कि लोकतंत्र की आड़ में एक राजनीतिक दल अपने ही लोगों को लूट रहा है. वह खुद को वर्तमान राजनीतिक प्रणाली में बदलाव के पक्षधर मानते हैं.

रजनीकांत ने अपने प्रशंसकों से उनकी राजनीतिक पार्टी के गठन तक राजनीति या दूसरी पार्टियों के बारे में बात नहीं करने का आग्रह किया. समर्थकों से उन्होंने एक बात और कही है कि उनका पहला कार्य अपने बहुत से अपंजीकृत प्रशंसक क्लबों को मूल संस्था के साथ पंजीकृत करना है. ऐलान के दूसरे दिन ही उन्होंने अपने आवास पर ताबड़तोड़ कई बैठकें की. कानून के जानकारों के साथ कानूनी मंत्रणाएं की. लोगों के आने-जाने का तांता लगा हुआ. उनके घर का माहौल इस बात की गवाही देने के लिए काफी है कि भारतीय राजनीति में एक और सितारे का जन्म हो गया है.

रजनीकांत के राजनीति में आने से स्थानीय पार्टियों के अलावा केंद्र की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी को सबसे ज्यादा नुकसान होगा. तमिलनाडु में खुद को स्थापित करने के लिए भाजपा ने टूजी घोटालों में आरोपियों को मुक्त करके जो पासा फेंका था, वह उल्टा होता दिख रहा है. भाजपा किसी भी सूरत में तमिल वोटरों की सहानुभूति बटोरना चाहती थी. प्रदेश में हाल ही में आए विनाशकारी भूंकप से आहत हुए पीड़ितों के जख्मों पर मरहम लगाना भी काम नहीं आया.

रजनीकांत की राजनीति में दखल ने भाजपा के मंसूबों पर पानी फेर दिया है. हालांकि भाजपा चाहेगी कि रजनीकांत उनके साथ चुनाव लड़े. रजनीकांत की घोषणा के बाद से ही इस बात की चर्चा होने लगी है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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