• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

राजनीति के भक्तिकाल के नए दौर में तमिलनाडु

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 16 मार्च, 2018 07:06 PM
  • 16 मार्च, 2018 07:06 PM
offline
पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के करीबियों में शुमार टीटीवी दिनाकरण ने नई पार्टी बनाई है. माना जा रहा है कि इस पार्टी के निर्माण और जयललिता के चेहरे की मदद से वो एआईएडीएमके के परंपरागत वोटबैंक में सेंधमारी करके उन वोटों को अपने पाले में लाना चाहते हैं.

इन दिनों देश की राजनीति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के नाम के अलावा अगर कोई नाम लोगों की जुबान पर है तो वो है तमिलनाडु. शायद ही कोई ऐसा दिन गुजरता होगा. जब हम मेन स्ट्रीम मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक तमिलनाडु का नाम न सुनते हों. भारत के सबसे जटिल राज्यों में शुमार तमिलनाडु, मुख्यमंत्री जय ललिता की मौत के बाद से लगातार सुर्ख़ियों में है. चाहे शशिकला द्वारा मचाई सियासी घमासान हो या फिर प्रधानमंत्री का करूणानिधि की तबियत के मद्देनजर उनका हाल चल लेने उनके घर जाना हो, बीते कई दिनों से तमिलनाडु में जो हो रहा है वो दिलचस्प है.

तमिलनाडु के सन्दर्भ में ये कहना कहीं से भी गलत नहीं है कि आज राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर हर एक की नजर है. ये शायद तमिलनाडु के सीएम की कुर्सी का हड़पने के लिए पार्टियों  का गुणा गणित ही है जिसके चलते कमल हसन और रजनीकांत जैसे सिने नायक चमाचम सफ़ेद कुर्ते में माइक पकड़े हमारे सामने हैं. बहरहाल एक बार फिर तमिलनाडु चर्चा में है.

टीटीवी दिनाकरण ने तमिलनाडु में एक नई बहस को जन्म दे दिया है

तमिलनाडु चर्चा में क्यों है इसका कारण बड़ा सीधा है. किसी जमाने में पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के करीबियों में शुमार टीटीवी दिनाकरण ने नई पार्टी बनाई है. दिनाकरण पार्टी बना लेते तो ठीक था मगर जिस तरह उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री "जयललिता" के प्रति अपनी वफादारी दिखाई सुगबुगाहट शुरू हो गयी कि वो अपनी इस हरकत से एआईएडीएमके के परंपरागत वोटबैंक में सेंधमारी करके उन वोटों को अपने पाले में लाना चाहते हैं. जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप.

आपको बताते चलें कि...

इन दिनों देश की राजनीति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के नाम के अलावा अगर कोई नाम लोगों की जुबान पर है तो वो है तमिलनाडु. शायद ही कोई ऐसा दिन गुजरता होगा. जब हम मेन स्ट्रीम मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक तमिलनाडु का नाम न सुनते हों. भारत के सबसे जटिल राज्यों में शुमार तमिलनाडु, मुख्यमंत्री जय ललिता की मौत के बाद से लगातार सुर्ख़ियों में है. चाहे शशिकला द्वारा मचाई सियासी घमासान हो या फिर प्रधानमंत्री का करूणानिधि की तबियत के मद्देनजर उनका हाल चल लेने उनके घर जाना हो, बीते कई दिनों से तमिलनाडु में जो हो रहा है वो दिलचस्प है.

तमिलनाडु के सन्दर्भ में ये कहना कहीं से भी गलत नहीं है कि आज राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर हर एक की नजर है. ये शायद तमिलनाडु के सीएम की कुर्सी का हड़पने के लिए पार्टियों  का गुणा गणित ही है जिसके चलते कमल हसन और रजनीकांत जैसे सिने नायक चमाचम सफ़ेद कुर्ते में माइक पकड़े हमारे सामने हैं. बहरहाल एक बार फिर तमिलनाडु चर्चा में है.

टीटीवी दिनाकरण ने तमिलनाडु में एक नई बहस को जन्म दे दिया है

तमिलनाडु चर्चा में क्यों है इसका कारण बड़ा सीधा है. किसी जमाने में पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के करीबियों में शुमार टीटीवी दिनाकरण ने नई पार्टी बनाई है. दिनाकरण पार्टी बना लेते तो ठीक था मगर जिस तरह उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री "जयललिता" के प्रति अपनी वफादारी दिखाई सुगबुगाहट शुरू हो गयी कि वो अपनी इस हरकत से एआईएडीएमके के परंपरागत वोटबैंक में सेंधमारी करके उन वोटों को अपने पाले में लाना चाहते हैं. जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप.

आपको बताते चलें कि एआईएडीएमके से नाराज चल रहे नेता टीटीवी दिनाकरण ने नई पार्टी बना ली है. दिनाकरण ने अपनी नई पार्टी का नाम दिवंगत नेता जे जयललिता के नाम पर अम्मा मक्कल मुन्नेत्र कड़गम रखा है. साथ ही दिनाकरण ने जयललिता की बड़ी तस्वीर वाले पार्टी के झंडे को भी लॉन्च किया है.

हो सकता है कि इस बात को पढ़कर उत्तर भारत के किसी कोने में बैठा व्यक्ति विचलित हो और ये सोचे कि आखिर दिनाकरण द्वारा नई पार्टी के निर्माण से एआईएडीएमके का वोटबैंक कैसे प्रभावित होगा? तो यहां हमारे लिए इतिहास में जाना जरूरी है. तमिल राजनीति का आधार द्रविड़ और उनका आंदोलन है. इतिहासकारों के अनुसार, इस आंदोलन ने तमिलनाडु को कई स्तरों में प्रभावित किया. ये एक ऐसा आंदोलन रहा जिसमें द्रविड़ समुदाय मुख्यतः ब्राह्मणों के खिलाफ खुलकर सामने आया और प्रमुखता से उनका तथा उनकी नीतियों का विरोध किया.

द्रविड़ आंदोलन का इतिहास अपने आप में विविधता लिए हुए है

यहां गौर करने वाली बात ये भी है कि इस गैर-ब्राह्मणवादी आंदोलन ने न केवल विस्तृत और विषम हिन्दू जातियों को एक सामूहिक मंच प्रदान किया बल्कि मुस्लिमों और ईसाइयों को भी इसने यह सामूहिक अथवा साझा मंच प्रदान किया. इस पूरे आंदोलन की सबसे खास बात ये रही कि इससे जहां एक तरफ  तमिल समाज के अलग-अलग तबके एक हुए, वहीं इसने ब्राह्मणों को भी एक साथ आने के लिए एक मंच प्रदान किया.

बात अगर द्रविड़ों के विरोध की हो तो उन्होंने ब्राह्मणों का विरोध ही इसलिए किया क्योंकि जहां एक तरफ ब्राहमण सामंतवाद के पक्षधर थे तो वहीं वो मंदिर, भगवान और मूर्तियों की मदद से आम लोगों को  डराने का काम कर रहे थे. तब द्रविड़ आंदोलन की अगुवाही कर रहे नेताओं ने इस बात को बड़ी ही प्रमुखता से बल दिया था कि‘ईश्वर को नष्ट करना चाहिए, धर्म को नष्ट करना चाहिए, कांग्रेस को नष्ट करना चाहिए, गांधी को नष्ट करना चाहिए, ब्राह्मण को नष्ट करना चाहिए.

दिनाकरण ने द्रविड़ों का मूल सिद्धांत ही मार दिया

ज्ञात हो कि द्रविड़ राजनीति की शुरुआत ही भगवान के विरोध से हुई थी. अब ऐसे में, जिस तरह दिनाकरण ने पार्टी बनाई फिर उसके झंडे में जयललिता को जगह दी साफ बताता है कि दिनाकरण जयललिता को न सिर्फ अपना प्रेरणास्रोत मानते हैं बल्कि उन्हें भगवान् की तरफ पूजते भी हैं. अतः हमारे लिए ये कहना बिल्कुल भी गलत नहीं है कि अपने इस कृत्य से दिनाकरण ने द्रविड़ों का मूल सिद्धांत ही मार दिया है.

दिनाकरण ने जो किया उसे चापलूसी से ज्यादा कुछ नहीं कहा जाएगा

चापलूसी की पराकाष्ठा

दिनाकरण ने जो किया वो ये बताने के लिए काफी है कि वो जयललिता का नाम इस्तेमाल कर अपना राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध करना चाहते हैं और इसके लिए उन्होंने जिस तरह जयललिता केझंडे बनवाए उसे चापलूसी की पराकाष्ठा कहा जाएगा.

अंत में हम ये कहकर अपनी बात खत्म करेंगे कि दिनाकरण का भविष्य कितना सुखद होगा ये आने वाला वक़्त बताएगा मगर हां जिस तरह वो अपने साथ जयललिता को जोड़ रहे हैं उससे एक बात बिल्कुल साफ है कि भविष्य में इसकी एक भारी कीमत एआईएडीएमके को चुकानी होगी. अब ये कीमत कितनी होगा इसका भी फैसला समय करेगा.

ये भी पढ़ें -

अचानक सार्वजनिक किए गए जयललिता के वीडियो की ये है क्रूर सच्‍चाई

नाम से सुपरस्टार हटाकर रजनी ने कौन सा कद्दू में तीर मार लिया

तो क्या अब पलानीसामी सरकार तीन महीने में वास्तव में गिर जाएगी


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲