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सावरकर के माफीनामे पर राजनाथ ने RSS-BJP की मुहर लगा ही दी!

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 14 अक्टूबर, 2021 02:48 PM
  • 14 अक्टूबर, 2021 02:48 PM
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मोहन भागवत (RSS Chief Mohan Bhagwat) की मौजूदगी में राजनाथ सिंह (Rajnath Singh on Savarkar) के बयान से साफ है कि संघ-बीजेपी ने मान लिया है कि सावरकर ने अंग्रेजों से माफी मांगी थी - लेकिन ये राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के लिए बड़ा अलर्ट है.

राहुल गांधी (Rahul Gandhi) खुश तो बहुत होंगे - ये खुशी बख्शी गयी है कांग्रेस की कट्टर राजनीतिक विरोधी बीजेपी के नेता और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की तरफ से. RSS प्रमुख मोहन भागवत की मौजूदगी में विनायक दामोदर सावरकर पर एक कार्यक्रम में राजनाथ सिंह के बयान पर खूब चर्चा हो रही है - क्योंकि संघ और बीजेपी की तरफ से सावरकर पर पहली बार नया स्टैंड लिया गया है और लगे हाथ महात्मा गांधी को भी लपेट लिया गया है.

दिसंबर, 2019 में दिल्ली के रामलीला मैदान में कांग्रेस की तरफ से 'भारत बचाओ रैली' आयोजित की गयी थी. ऐसी रैलियां संकटमोचक के तौर पर होती हैं और अगर भारत नहीं तो नाम लोकतंत्र बचाओ रख लिया जाता है - और मकसद एक ही होता है गांधी परिवार को जैसे भी संभव हो संकट से उबारना. ये सिलसिला 2014 के बाद से ही जोर पकड़ा है क्योंकि पहले ऐसी जरूरत कभी कभार ही हुआ करती रही.

रैली को सोनिया गांधी ने भी संबोधित किया और प्रियंका गांधी वाड्रा सहित कुछ कांग्रेस नेताओं ने भी, लेकिन अपने एक ही बयान से राहुल गांधी ने पूरी महफिल ही लूट डाली - और असर ऐसा कि महाराष्ट्र में गठबंधन पार्टनर शिवसेना की तरफ से भी नसीहत दी जाने लगी. कुछ ऐसे कि शिवसेना विनायक दामोदर सावरकर भी नेहरू की तरह ही सम्मान करती है.

राहुल गांधी ने कहा था, "संसद में भाजपा के लोगों ने कहा कि मैं भाषण के लिए माफी मांगू... मेरा नाम राहुल सावरकर नहीं, राहुल गांधी है... माफी नहीं मांगूंगा - मर जाऊंगा लेकिन माफी नहीं मांगूंगा."

रैली से ठीक राहुल गांधी के माफी मांगने को लेकर बीजेपी के नेताओं ने संसद में काफी हंगामा किया था. कांग्रेस ने अपनी तरफ से बचाव की कोशिश की, लेकिन सत्ता पक्ष भारी पड़ा था. मामला भी कुछ ऐसा ही था. असल में राहुल...

राहुल गांधी (Rahul Gandhi) खुश तो बहुत होंगे - ये खुशी बख्शी गयी है कांग्रेस की कट्टर राजनीतिक विरोधी बीजेपी के नेता और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की तरफ से. RSS प्रमुख मोहन भागवत की मौजूदगी में विनायक दामोदर सावरकर पर एक कार्यक्रम में राजनाथ सिंह के बयान पर खूब चर्चा हो रही है - क्योंकि संघ और बीजेपी की तरफ से सावरकर पर पहली बार नया स्टैंड लिया गया है और लगे हाथ महात्मा गांधी को भी लपेट लिया गया है.

दिसंबर, 2019 में दिल्ली के रामलीला मैदान में कांग्रेस की तरफ से 'भारत बचाओ रैली' आयोजित की गयी थी. ऐसी रैलियां संकटमोचक के तौर पर होती हैं और अगर भारत नहीं तो नाम लोकतंत्र बचाओ रख लिया जाता है - और मकसद एक ही होता है गांधी परिवार को जैसे भी संभव हो संकट से उबारना. ये सिलसिला 2014 के बाद से ही जोर पकड़ा है क्योंकि पहले ऐसी जरूरत कभी कभार ही हुआ करती रही.

रैली को सोनिया गांधी ने भी संबोधित किया और प्रियंका गांधी वाड्रा सहित कुछ कांग्रेस नेताओं ने भी, लेकिन अपने एक ही बयान से राहुल गांधी ने पूरी महफिल ही लूट डाली - और असर ऐसा कि महाराष्ट्र में गठबंधन पार्टनर शिवसेना की तरफ से भी नसीहत दी जाने लगी. कुछ ऐसे कि शिवसेना विनायक दामोदर सावरकर भी नेहरू की तरह ही सम्मान करती है.

राहुल गांधी ने कहा था, "संसद में भाजपा के लोगों ने कहा कि मैं भाषण के लिए माफी मांगू... मेरा नाम राहुल सावरकर नहीं, राहुल गांधी है... माफी नहीं मांगूंगा - मर जाऊंगा लेकिन माफी नहीं मांगूंगा."

रैली से ठीक राहुल गांधी के माफी मांगने को लेकर बीजेपी के नेताओं ने संसद में काफी हंगामा किया था. कांग्रेस ने अपनी तरफ से बचाव की कोशिश की, लेकिन सत्ता पक्ष भारी पड़ा था. मामला भी कुछ ऐसा ही था. असल में राहुल गांधी ने झारखंड की एक चुनावी रैली में मेड इन इंडिया की तर्ज पर रेप इन इंडिया बोल दिया था क्योंकि वो बलात्कार की कुछ घटनाओं को लेकर केंद्र की मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा करना चाहते थे.

असल बात तो ये है कि सावरकर सावरकर भी परस्पर विरोधी राजनीतिक विचारधाराओं के बीच अपने आलोचकों के निशाने पर रहे हैं, जबकि संघ और बीजेपी में उनको बहुत सम्मान देते हैं, जबकि वो भी उनसे जुड़े भी नहीं रहे.

अंडमान की जेल में काला पानी की कुख्यात सजा काटने वाले सावरकर के माफीनामे को लेकर उनके आलोचक कायर करार देते हैं, दूसरी तरफ हिंदूवादी राजनीति करने वाली बीजेपी और शिवसेना जैसी पार्टियां सावरकर को हीरो की तरह पूजती हैं.

महात्मा गांधी की हत्या को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तो शुरू से ही अपने राजनीतिक विरोधियों के निशाने पर रहा है, लेकिन 2018 में बीजेपी नेता अमित शाह के एक बयान के बाद तस्वीर थोड़ी अलग नजर आने लगी थी - और अब जिस तरीके से सावरकर के मामले में राजनाथ सिंह (Rajnath Singh on Savarkar) ने महात्मा गांधी को घसीट लिया है, पूरी तस्वीर पूरी तरह साफ हो चुकी है.

तस्वीर पर से पर्दा तो 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक कदम से ही हट गया था, लेकिन स्थिति ज्यादा स्पष्ट अब जाकर हुई है. नीलांजन मुखोपाध्याय और निरंजन तकले के हवाले से बीबीसी ने बड़े ही दिलचस्प तरीके से बताया है कि कैसे प्रधानमंत्री मोदी जब पहली बार संसद में सावरकर को श्रद्धांजलि देने पहुंचे तो गांधी अपनेआप पीछे छूट गये. दरअसल, संसद भवन में सावरकर और गांधी की तस्वीरें आमने सामने लगी थीं, ऐसे में कोई एक तस्वीर के सामने खड़ा होता तो दूसरी तस्वीर स्वयं पीछे छूट जाती. ये वाकया 28 मई, 2014 का है - नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बदल की शपथ लेने के ठीक दो दिन बाद सावरकर की 131वीं जयंती का मौका.

वाकये के चार साल बाद बीजेपी नेता अमित शाह ने महात्मा गांधी को कांग्रेस की बर्बादी के प्रसंग में चतुर बनिया कह कर संबोधित किया था - और अब राजनाथ सिंह कह रहे हैं कि ये महात्मा गांधी ही थे जिन्होंने सावरकर को अंग्रेजों से माफी मांगने की सलाह दी थी.

मुद्दे की बात ये नहीं है कि महात्मा गांधी ने सलाह दी या नहीं दी या किन परिस्थितियों में दी, सबसे बड़ी बात ये है कि संघ प्रमुख मोहन भागवत (RSS Chief Mohan Bhagwat) की मौदूजगी में बीजेपी के सबसे सीनियर नेताओं में से एक राजनाथ सिंह ने मान लिया है कि विनायक दामोदर सावरकर ने अंग्रेजों से माफी मांगी थी.

क्या गांधी के मुकाबले सावरकर को उसी जगह संघ और बीजेपी खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं?

हो सकता है ये भी कांग्रेस मुक्त भारत मुहिम को अंजाम तक न पहुंचाने की कोई खास रणनीति हो क्योंकि बीजेपी पर सांप्रदायिक राजनीति करने का आरोप लगाने वाली कांग्रेस काउंटर करने के लिए गांधी को ही सामने लाने की कोशिश करती है. राहुल गांधी ने भी सावरकर की माफी का जिक्र करके ऐसा ही किया था.

ऐसे भी समझ सकते हैं कि जब राहुल गांधी ने चौकीदार चोर है का नारा लगाना शुरू किया तो प्रधानमंत्री मोदी ने नाम के पहले आम चुनाव में चौकीदार जोड़ लिया था - मैं हूं चौकीदार. राजनाथ सिंह वैसे ही समझा रहे हैं - हां, सावरकर ने माफी मांगी थी, लेकिन महात्मा गांधी के कहने पर!

सावरकर की माफी पर संघ-बीजेपी का नया स्टैंड

मौका एक किताब के विमोचन का था. किताब विनायक दामोदर सावरकर पर थी - मोहन भागवत और राजनाथ सिंह की मौजूदगी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी का प्रतिनिधित्व कर रही थी - और लब्बोलुआब ये निकल कर आया कि विनायक दामोदर सावरकर ने अंग्रेजों से माफी मांगी थी.

संघ प्रमुख मोहन भागवत का कहना रहा, 'सावरकर जी का हिंदुत्व, विवेकानंद का हिंदुत्व... ऐसा बोलने का फैशन हो गया... हिंदुत्व एक ही है, वो पहले से है और आखिर तक वही रहेगा.'

हाल के दिनों में मोहन भागवत हिंदू-मुस्लिम के एक ही पूर्वज बताने से लेकर हिंदुत्व और हिंदुस्तान से जोड़ कर कोई राजनीतिक स्केच गढ़ने की कोशिश कर रहे हैं, हालांकि, इसे चुनाव के चलते मौसमी राजनीति के तौर पर ही लिया जा रहा है - लेकिन मामला थोड़ा गंभीर हो जाता है जब सावरकर की भी चर्चा होने लगे.

हिंदुत्व के साथ सावरकर को समायोजित करते हुए मोहन भागवत ने कहा, 'स्वतंत्रता के बाद से ही वीर सावरकर को बदनाम करने की मुहिम चली... अब इसके बाद स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती और योगी अरविंद को बदनाम करने का नंबर लगेगा - क्योंकि सावरकर तीनों के विचारों से प्रभावित थे.'

अब ये समझना भी बहुत मुश्किल नहीं लगता कि मोहन भागवत राजनीतिक विरोधियों का नाम लेकर नंबर की बात करते हुए सावरकर की ही तरह स्वामी विवेकानंद, दयानंद सरस्वती और योगी अरविंद को भी उसी कैटेगरी में पेश किये जाने का संकेत दे रहे हैं.

राजनाथ सिंह ने जो थ्योरी पेश की है, वो कुछ ऐसे है, 'सावरकर के विरूद्ध झूठ फैलाया गया... कहा गया कि वो अंग्रेजों के सामने बार-बार माफीनामा दिये, लेकिन सच्चाई ये है कि क्षमा याचिका उन्होंने स्वयं को माफ किये जाने के लिए नहीं दी थी, महात्मा गांधी ने उनसे कहा था कि दया याचिका दायर कीजिये - महात्मा गांधी के कहने पर वो याचिका दिये थे.' सावरकर महात्मा गांधी की हत्या की साजिश रचने के आरोप में भी गिरफ्तार किये गये थे, लेकिन बाद में बरी भी हो गये थे.

स्वतंत्रता आंदोलन में गांधी के बराबर ही सावरकर के योगदानों का खाका पेश करते हुए राजनाथ सिंह कहते हैं, 'देश को स्वतंत्र कराने की उनकी इच्छाशक्ति कितनी मजबूत थी, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अंग्रेजों ने उनको दो बार आजीवन कारावास की सजा सुनाई - कुछ विशेष विचारधारा से प्रभावित लोग ऐसे राष्ट्रवादी पर सवालिया निशान लगाने का प्रयास करते हैं.'

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए राजनाथ सिंह बोले, 'कुछ लोग उन पर नाजीवादी, फासीवादी होने के आरोप लगाते हैं - लेकिन सच्चाई ये है कि ऐसा आरोप लगाने वाले लोग लेनिनवादी, मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित थे और अब भी हैं.'

पत्रकारिता के बाद दलित एक्टिविस्ट बन चुके दिलीप मंडल ने अपने सोशल मीडिया टाइमलाइन पर ऐलान किया है कि आगे से वो 'माफीवीर सावरकर' लिखा करेंगे और किसी ने विवाद पैदा करने की कोशिश की तो बतौर गवाह वो बीजेपी नेता राजनाथ सिंह को बुला लेंगे.

विज्ञान और आधुनिक राजनीतिक इतिहास के एक्सपर्ट सैयद इरफान हबीब ने ट्विटर पर लिखा है कि कम से कम ये स्वीकार कर लिया गया है कि सावरकर ने माफीनामा लिखा था. कहते हैं, 'जब मंत्री दावा करते हैं तो किसी दस्तावेजी सबूत की जरूरत नहीं होती है.'

लेकिन AIMIM असदुद्दीन ओवैसी ने ट्विटर पर महात्मा गांधी का एक पत्र शेयर किया है और राजनाथ सिंह को टैग करते हुए बताया है कि पत्र में कहीं भी अंग्रेजों से माफी मांगने का जिक्र नहीं है. ओवैसी लिखते हैं, 'ये लोग इतिहास को तोड़कर पेश कर रहे हैं. एक दिन ये लोग महात्मा गांधी को हटाकर सावरकर को राष्ट्रपिता का दर्जा दे देंगे.'

'सावरकर युग आ चुका है'

सावरकर के साथ अपने नाम के हिस्से वाले गांधी की तुलना कर राहुल गांधी ने जो तस्वीर पेश की थी, राजनाथ सिंह ने उसके ऊपर महात्मा गांधी के हिस्से वाला नाम टांग दिया है - ये गांधीवाद को सावरकरवाद से रिप्लेस करने की रणनीति का हिस्सा भी हो सकता है.

मोहन भागवत ने कार्यक्रम में ये ऐलान भी कर दिया कि सावरकर युग आ चुका है. बोले, 'नयी किताब में बताया गया है कि सावरकर कितनी दूरदृष्टि वाली हस्ती रहे. मोहन भागवत का दावा है कि सावरकर ने अपने जमाने में ही चीन और पाकिस्तान के साथ भारत की जंग के बारे में भी भविष्यवाणी कर दी थी - और भारत के सामने राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी मौजूदा मुश्किलों की भी. भागवत के मुताबिक, सावरकर ने तभी इस्लामिक कट्टरवाद की भविष्यवाणी भी कर दी थी जो पूरी दुनिया के लिए चैलेंज बन गया है.

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी एनडीए की पहली सरकार के दौरान 2000 में सावरकर को भारत रत्न देने का फैसला किया गया था, लेकिन बताते हैं कि तत्कालीन राष्ट्रप्ति केआर नारायणन ने सरकार की सिफारिश को ठुकरा दिया था. 2019 के आम चुनाव के बाद हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में भी बीजेपी ने सत्ता में आने पर सावरकर को भारत रत्न देने का वादा किया था - ये बात अलग है कि भारत रत्न देने के फैसले का बीजेपी के महाराष्ट्र में सरकार बनाने से भी कोई लेना देना नहीं था क्योंकि राज्य सरकार तो सिर्फ सिफारिश ही कर सकती है, आखिरी फैसला तो केंद्र सरकार को ही लेना होता है. फैसले की वैसी ही घड़ी फिर से आ चुके है क्या? राजनाथ सिंह ने मोहन भागवत के साथ मिलकर सावरकर को भारत रत्न देने की अपने तरीके से सिफारिश - और कांग्रेस की तरह गांधी मुक्त भारत की कोई परिकल्पना तो पेश नहीं की है?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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