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वीर सावरकर पर कांग्रेस का धारा 370 वाला यू-टर्न!

    • आईचौक
    • Updated: 18 अक्टूबर, 2019 05:09 PM
  • 18 अक्टूबर, 2019 05:09 PM
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बीजेपी का आरोप है कि कांग्रेस के पास न नेता है, न नीति है और न ही नियति. ऐसा क्यों हो रहा है कि कांग्रेस नेतृत्व इसके प्रतिकार की जगह बीजेपी को ईंधन मुहैया कराने में जुट जाता है?

Veer Savarkar को लेकर भी कांग्रेस का फौरी विरोध और फिर लेट-लतीफ यू-टर्न बिलकुल वैसा ही है जैसा धारा 370 के मामले में देखने को मिला था. दोनों ही मामलों में कांग्रेस की हड़बड़ी और फिर सोच विचार के बाद भूल सुधार एक जैसा ही है, लिहाजा नुकसान भी उसी मात्रा में हो रहा है.

15 अक्टूबर को बीजेपी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए मुंबई में संकल्प पत्र जारी किया था और उसी में वीर सावरकर को भारत रत्न दिलाने की मांग शामिल थी. कांग्रेस ने बीजेपी की इस मांग का विरोध करने में जरा भी देर नहीं लगायी और कांग्रेस प्रवक्ता ने सावरकर के खिलाफ आरोपों की झड़ी लगा दी.

कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी की पहली प्रतिक्रिया तो यही रही कि अब इस देश को भगवान ही बचाये. सावरकर को लेकर मनीष तिवारी ने मुख्य तौर पर दो बातें कही. एक, महात्मा गांधी की हत्या के लिए वीर सावरकर को आपराधिक मुकदमे का सामना करना पड़ा था. दो, कपूर आयोग का हवाला देते हुए कहा कि एक लेख में यह दावा किया गया था कि आयोग ने सावरकर को जिम्मेदार माना था. मनीष तिवारी यहीं नहीं रुके, बल्कि सावरकर और गोडसे को एक ही तराजू पर तौलने की कोशिश भी किये.

अब कांग्रेस की ओर से एक बार फिर भूल सुधार अभियान शुरू हो चुका है - और बताया जाने लगा है कि मौजूदा नेतृत्व और नेहरू को भूल जाइए, बस इतना समझ लीजिए की इंदिरा गांधी भी सावरकर की कायल रही हैं.

क्या वाकई कांग्रेस नेता और नीति के संकट से जूझ रही है?

ऐसा क्यों लगने लगा है कि कांग्रेस बीजेपी के आरोपों को काटने की जगह उसके सबूत पेश करती जा रही है? काफी दिनों से बीजेपी आरोप लगाती है कि कांग्रेस के पास न तो कोई नेता है, न नीति है और न ही नियति है. कांग्रेस नेता हैं कि बीजेपी को इसके लिए ईंधन मुहैया कराने में कोई कसर बाकी नहीं रख रहे हैं.

23 मई को आम चुनाव के नतीजे आने के बाद राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष पद से लेकर सोनिया गांधी के अंतरिम अध्यक्ष बनने तक औपचारिक तौर पर कोई नेता नहीं था - CWC ने एक कोर कमेटी बनायी थी जो फैसले...

Veer Savarkar को लेकर भी कांग्रेस का फौरी विरोध और फिर लेट-लतीफ यू-टर्न बिलकुल वैसा ही है जैसा धारा 370 के मामले में देखने को मिला था. दोनों ही मामलों में कांग्रेस की हड़बड़ी और फिर सोच विचार के बाद भूल सुधार एक जैसा ही है, लिहाजा नुकसान भी उसी मात्रा में हो रहा है.

15 अक्टूबर को बीजेपी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए मुंबई में संकल्प पत्र जारी किया था और उसी में वीर सावरकर को भारत रत्न दिलाने की मांग शामिल थी. कांग्रेस ने बीजेपी की इस मांग का विरोध करने में जरा भी देर नहीं लगायी और कांग्रेस प्रवक्ता ने सावरकर के खिलाफ आरोपों की झड़ी लगा दी.

कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी की पहली प्रतिक्रिया तो यही रही कि अब इस देश को भगवान ही बचाये. सावरकर को लेकर मनीष तिवारी ने मुख्य तौर पर दो बातें कही. एक, महात्मा गांधी की हत्या के लिए वीर सावरकर को आपराधिक मुकदमे का सामना करना पड़ा था. दो, कपूर आयोग का हवाला देते हुए कहा कि एक लेख में यह दावा किया गया था कि आयोग ने सावरकर को जिम्मेदार माना था. मनीष तिवारी यहीं नहीं रुके, बल्कि सावरकर और गोडसे को एक ही तराजू पर तौलने की कोशिश भी किये.

अब कांग्रेस की ओर से एक बार फिर भूल सुधार अभियान शुरू हो चुका है - और बताया जाने लगा है कि मौजूदा नेतृत्व और नेहरू को भूल जाइए, बस इतना समझ लीजिए की इंदिरा गांधी भी सावरकर की कायल रही हैं.

क्या वाकई कांग्रेस नेता और नीति के संकट से जूझ रही है?

ऐसा क्यों लगने लगा है कि कांग्रेस बीजेपी के आरोपों को काटने की जगह उसके सबूत पेश करती जा रही है? काफी दिनों से बीजेपी आरोप लगाती है कि कांग्रेस के पास न तो कोई नेता है, न नीति है और न ही नियति है. कांग्रेस नेता हैं कि बीजेपी को इसके लिए ईंधन मुहैया कराने में कोई कसर बाकी नहीं रख रहे हैं.

23 मई को आम चुनाव के नतीजे आने के बाद राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष पद से लेकर सोनिया गांधी के अंतरिम अध्यक्ष बनने तक औपचारिक तौर पर कोई नेता नहीं था - CWC ने एक कोर कमेटी बनायी थी जो फैसले लेती थी. जो नेता कोर कमेटी में थे वे अब भी सलाहकार बने हुए हैं और हालत ये है कि चुनावी राज्यों के बगावती तेवर वाले नेता सोनिया और राहुल को ही टारगेट कर रहे हैं.

धारा 370 पर केंद्र सरकार का कदम भी कांग्रेस के उसी नेतृत्व-विहीन-काल का ही वाकया है - और देश के इतने महत्वपूर्ण मसले पर गुलाम नबी आजाद से लेकर अधीर रंजन चौधरी ने सड़क से संसद तक जो प्रदर्शन किया उससे कांग्रेस की फजीहत ही होती रही. जब कांग्रेस के भीतर ही धारा 370 पर पार्टी के रूख का विरोध होने लगा तो सफाई दी जाने लगी - कांग्रेस धारा 370 पर सरकार के फैसले के विरोध में नहीं बल्कि उसकी प्रक्रिया का विरोध कर रही है. मालूम नहीं कांग्रेस का ये एक कदम आगे और दो कदम पीछे वाला बयान कितनों को समझ में आया होगा - जो राजनीतिक नुकसान हुआ उसकी तो भरपाई होने से रही.

अब सफाई देने के लिए कांग्रेस ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को आगे किया है. सावरकर को लेकर मनमोहन सिंह जो कह रहे हैं उसमें और मनीष तिवारी के बयान में आकाश और पाताल जैसा फासला है. मनमोहन सिंह सावरकर पर कांग्रेस का पक्ष साफ करने के लिए इंदिरा गांधी की सरकार में डाक टिकट जारी किये जाने की दुहाई दे रहे हैं. सबसे दिलचस्प बात तो ये है कि जिस कांग्रेस नेता का नाम लेकर बीजेपी के अमित मालवीय कांग्रेस को घेर रहे हैं, मनमोहन सिंह उसी इंदिरा गांधी के सावरकर के प्रति भावनाओं का हवाला देकर पार्टी का बचाव कर रहे हैं.

ट्विटर पर अमित मालवीय ने विस्तार से लिखा है कि किस तरह इंदिरा गांधी ने सावरकर के योगदान को स्वीकार किया था. 1970 में डाक टिकट जारी किये जाने के साथ ही, अमित मालवीय लिखते हैं, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सावरकर ट्रस्ट में अपने निजी खाते से ₹11 हजार दान दिया था और 1983 में फिल्म डिवीजन को कहा था कि वो सावरकर के जीवन पर एक डॉक्युमेंट्री फिल्म बनाये.

महाराष्ट्र के बीड जिले के परली में बीजेपी उम्मीदवार पंकजा मुंडे के लिए वोट मांगने पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस की राजनीति को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की.

महाराष्ट्र चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस का फर्क समझा रहे हैं मोदी

प्रधानमंत्री मोदी ने धारा 370 पर कांग्रेस नेताओं के बयानों का जिक्र करते हुए कहा - ये तो हमारे विरोधियों की भाषा है.

1. अनुच्छेद 370 को हटाने के फैसले पर एक नेता ने कहा कि ये किसी की हत्या करने जैसा है.

2. एक नेता ने कहा कि ये भारत की राजनीति का काला दिन है

3. एक नेता ने कहा कि ये लोकतंत्र के खिलाफ है

4. एक बड़े नेता ने कहा कि भारत में लोकतंत्र खत्म हो गया है

5. एक नेता ने कहा कि इस फैसले से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा पैदा हो गया है.

कांग्रेस ने सावरकर का भी इसी अंदाज में विरोध किया है - और फिर धारा 370 वाली स्टाइल में ही पलटी भी मारी है. लगता है महाराष्ट्र में वोटिंग के ऐन पहले कांग्रेस ने बची खुची जमीन भी बीजेपी को दान कर देने पर तुली है.

कांग्रेस या तो नकल करती है या फिर अंधा विरोध

हाल ही की एक रैली में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा था कि कांग्रेस नेतृत्व को समझ में ही नहीं आ रहा है कि किस बात का विरोध करना है और किस मुद्दे का सपोर्ट. कहीं कांग्रेस को ये तो नहीं लगने लगा कि अमित शाह कांग्रेस के बारे में बिलकुल ठीक कह रहे हैं - क्योंकि कांग्रेस की राजनीतिक उलझन तो यही समझा रही है.

कांग्रेस के बीते कुछ चुनावी पैंतरों पर गौर करें तो मालूम होता है कि पार्टी या तो किसी मुद्दे का आंख मूंद कर विरोध करती है या फिर उसके साये में बीजेपी जैसा बनने की कोशिश करने लगती है. कांग्रेस की वास्तव में मुश्किल यही लग रही है कि वो तय नहीं कर पा रही है कि किस बात का विरोध करना है और किस मसले पर सरकार के समर्थन में खड़े रहना है. अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को चुनावी मुद्दा बनाने को लेकर कांग्रेस आरोप लगाती रही कि बीजेपी सांप्रदायिक पार्टी है - और जब लगा कि उसकी छवि 'मुस्लिम पार्टी' की बनती जा रही है तो कांग्रेस ने सॉफ्ट हिंदुत्व के जरिये वोटर को साधने की कोशिश की. राहुल गांधी कभी जनेउधारी तो कभी शिव भक्त बन कर मंदिर-मंदिर घूमने लगे.

देखने को तो ये भी मिला है कि कांग्रेस एक ही मुद्दे पर पहले सरकार का सपोर्ट करती है फिर सवाल भी खड़े करने लगती है - बालाकोट एयर स्ट्राइक इस बात का सबसे सटीक उदाहरण है. ऐसा भी होता है कि कांग्रेस एक ही मसले पर पहले विरोध करती है फिर सफाई के साथ समर्थन भी कर देती है - जम्मू और कश्मीर को लेकर धारा 370 और सावरकर के मामले में तो यही नजर आ रहा है.

सावरकर पर सफाई से पहले तो मनीष तिवारी के तेवर बिलकुल अलग थे. मनीष तिवारी ने तो सावरकर के साथ साथ नाथूराम गोडसे तक को बराबरी में ला खड़ा किया.

मनीष तिवारी ने कहा था, ‘भाजपा सरकार सावरकर को भारत रत्न क्यों देना चाहती है... गोडसे को क्यों नहीं? गांधी की हत्या में सावरकर पर जहां आरोपपत्र दायर हुआ और बाद में वह बरी हो गए वहीं गोडसे को दोषी ठहराया गया और फांसी पर लटकाया गया. महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर अगर आप उनकी याद को मिटाना चाहते हैं तो ये भी कर दीजिए.'

सावरकर पर अपने पुराने स्टैंड पर सफाई के लिए कांग्रेस को मनमोहन सिंह को आगे करना पड़ा है. कांग्रेस का मनमोहन सिंह के जरिये ये बयान दिलवाना भी एक मजबूरी है कि ये बात कहने के लिए उसके पास कोई और नेता भी नहीं है. अगर दूसरा कोई नेता मनीष तिवारी के बातों को काटता तो उसे निजी राय के तौर पर समझाना पड़ता. वैसे भी बाकी नेताओं का कद मनीष तिवारी के बराबर ही होता. मनमोहन सिंह तो मनीष तिवारी के मुकाबले कांग्रेस के बड़े नेता हैं.

महाराष्ट्र पहुंच कर कांग्रेस की ओर से मनमोहन सिंह ने सावरकर के साथ साथ धारा 370 पर भी सफाई दी है. हालांकि, धारा 370 के मामले में मनमोहन सिंह ने पुरानी बात ही दोहरायी है कांग्रेस ने '370 हटाने का नहीं' बल्कि 'हटाने के तरीके' का विरोध किया है.

डैमेज कंट्रोल के तहत सावरकर पर मनमोहन सिंह भी इंदिरा गांधी की भावना की याद दिलाते हैं, लेकिन सफाई में तकरीबन वही बात है - 'हम सावरकर के खिलाफ नहीं हैं. हम उस हिंदुत्व की विचारधारा के पक्ष में नहीं है, जिसकी सावरकर वकालत करते थे.'

सावरकर के मामले में मनमोहन सिंह के कंधे पर बंदूक रख कर चलाने की कांग्रेस की मजबूरी भी है. दरअसल, राहुल गांधी RSS के खिलाफ मानहानि के मुकदमे में ट्रायल का सामना कर रहे हैं - ऐसे में न तो राहुल गांधी अपनी बात ठीक से रख सकते हैं और न ही उनकी बातों में वो बात आएगी जो कम से कम मनमोहन सिंह के बयान में संभव है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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