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Priyanka Gandhi को आखिर सरकारी आवास मिला ही क्यों था?

    • मशाहिद अब्बास
    • Updated: 02 जुलाई, 2020 06:38 PM
  • 02 जुलाई, 2020 06:38 PM
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वक्त कैसा भी हो राजनीतिक उठापटक अपने चरम पर रहती ही है. प्रियंका गांधी के बंगले (Priyanka Gandhi Bungalow) का मुद्दा उठा है तो इसका गुणा-गणित भी जरूरी है कि आखिर पूरा मामला है क्या और आगे क्या होने वाला है.

भारत अभी संकटकाल से गुज़र रहा है. एक तरफ वैश्विक महामारी कोरोना वायरस (Coronavirus ) का संकट है तो दूसरी ओर पड़ोसी देशों से सीमा पर तनाव जारी है. तीसरा संकट देश की अर्थव्यवस्था का है जो कोरोना वायरस की वजह से और डगमगा गई है. लेकिन इतनी तनातनी के बावजूद सियासत अपने रंग में डूबी हुयी है. देश की दो प्रमुख पार्टियां भाजपा (BJP) और कांग्रेस (Congress) के बीच में रस्साकसी लगातार जारी है. ताजा मुद्दा जो हावी है वह है प्रियंका गांधी के सरकारी आवास का मुद्दा (Priyanka Gandhi Bungalow controversy). दरअसल केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय की ओर से कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा को दिल्ली के लोधी स्टेट स्थित सरकारी आवास को छोड़ने का नोटिस थमा दिया गया है. नोटिस के अनुसार कहा गया है कि प्रियंका गांधी को 1 महीने के भीतर ही इस बंगले को खाली कर देना है और इस दौरान उनका जितना भी किराया बाकी है उसे भी भरना है. अब कांग्रेस पार्टी भाजपा पर राजनीतिक भेदभाव का आरोप लगा रही है तो भाजपा कानून का हवाला दे रही है. राजनीतिक उठापटक के बीच यह समझना भी ज़रूरी है कि आखिर पूरा मामला क्या है. प्रियंका गांधी को सरकारी बंगला दिया क्यों गया था और अब इसे खाली क्यों कराया जा रहा है?

केंद्र की मोदी सरकार द्वारा प्रियंका गांधी का बंगला खाली कराए जाने से कांग्रेस को बड़ा आघात मिला है

दरअसल प्रियंका गांधी को यह सरकारी आवास 21 फरवरी सन् 1997 में मिला था. क्योंकि उनके पास SPG सुरक्षा थी इसलिए उनको यह बंगला दिया गया था. नियम के मुताबिक SPG सुरक्षा प्राप्त किसी भी शख्स के लिए सरकारी बंगले का प्रावधान है लेकिन Z प्लस सुरक्षा वालों को यह सुविधा उपलब्ध नहीं होती है. अब चूंकि पिछले वर्ष प्रियंका गांधी से SPG सुरक्षा सरकार ने वापिस ले ली है तो कानूनन प्रियंका गांधी को...

भारत अभी संकटकाल से गुज़र रहा है. एक तरफ वैश्विक महामारी कोरोना वायरस (Coronavirus ) का संकट है तो दूसरी ओर पड़ोसी देशों से सीमा पर तनाव जारी है. तीसरा संकट देश की अर्थव्यवस्था का है जो कोरोना वायरस की वजह से और डगमगा गई है. लेकिन इतनी तनातनी के बावजूद सियासत अपने रंग में डूबी हुयी है. देश की दो प्रमुख पार्टियां भाजपा (BJP) और कांग्रेस (Congress) के बीच में रस्साकसी लगातार जारी है. ताजा मुद्दा जो हावी है वह है प्रियंका गांधी के सरकारी आवास का मुद्दा (Priyanka Gandhi Bungalow controversy). दरअसल केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय की ओर से कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा को दिल्ली के लोधी स्टेट स्थित सरकारी आवास को छोड़ने का नोटिस थमा दिया गया है. नोटिस के अनुसार कहा गया है कि प्रियंका गांधी को 1 महीने के भीतर ही इस बंगले को खाली कर देना है और इस दौरान उनका जितना भी किराया बाकी है उसे भी भरना है. अब कांग्रेस पार्टी भाजपा पर राजनीतिक भेदभाव का आरोप लगा रही है तो भाजपा कानून का हवाला दे रही है. राजनीतिक उठापटक के बीच यह समझना भी ज़रूरी है कि आखिर पूरा मामला क्या है. प्रियंका गांधी को सरकारी बंगला दिया क्यों गया था और अब इसे खाली क्यों कराया जा रहा है?

केंद्र की मोदी सरकार द्वारा प्रियंका गांधी का बंगला खाली कराए जाने से कांग्रेस को बड़ा आघात मिला है

दरअसल प्रियंका गांधी को यह सरकारी आवास 21 फरवरी सन् 1997 में मिला था. क्योंकि उनके पास SPG सुरक्षा थी इसलिए उनको यह बंगला दिया गया था. नियम के मुताबिक SPG सुरक्षा प्राप्त किसी भी शख्स के लिए सरकारी बंगले का प्रावधान है लेकिन Z प्लस सुरक्षा वालों को यह सुविधा उपलब्ध नहीं होती है. अब चूंकि पिछले वर्ष प्रियंका गांधी से SPG सुरक्षा सरकार ने वापिस ले ली है तो कानूनन प्रियंका गांधी को सरकारी आवास नहीं मिल सकता है उन्हें यह आवास खाली ही करना होगा जिसके लिए उन्हें नोटिस पकड़ा दिया गया है.

अब मामला कांग्रेस महासचिव से जुड़ा था तो इसका राजनीतिकरण तो होना ही था. कांग्रेस समर्थकों और नेताओं ने इसे भाजपा की करतूत बताया और कहा कि प्रियंका गांधी सरकार की खासतौर पर उत्तर प्रदेश की सरकार की घेराबंदी करती हैं इसलिए भाजपा ने उनपर राजनीति से प्रेरित कार्यवाही की है. वहीं भाजपा भी इस घमासान में जमकर सियासी वार कर रही है. कानून का हवाला देकर भाजपा कांग्रेस को कठघरे में खड़ा कर रही है. भाजपा और कांग्रेस के इस तनातनी के बीच अन्य दल पूरी तरह से चुप्पी साधे हुए हैं. जो हैरान कर रही है.

कांग्रेस और भाजपा के बीच जारी इस सियासी जंग के बीच खबर आ रही है कि प्रियंका गांधी यह सरकारी आवास जल्द खाली कर देंगी और उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में शिफ्ट हो जाएंगी. उत्तर प्रदेश की सियासत में खास दिलचस्पी रखने वाली प्रियंका गांधी का लखनऊ में रहना बहुत हद तक साफ कर रहा है कि कांग्रेस की पूरी नजर आगामी 2022 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों पर है.

प्रियंका गांधी लगातार योगी सरकार को घेरती ही रहती हैं जिससे उत्तर प्रदेश में पस्त पड़े कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को भी आस जगी है. कांग्रेस पार्टी जो अपना वजूद उत्तर प्रदेश में ढ़ूँढ़ने का कार्य कर रही था वह अब प्रियंका गांधी के नेतृव्य में नए जोश के साथ सड़कों पर उतर रही है. प्रियंका गांधी के लखनऊ आने से भाजपा तो हरकत में आएगी ही साथ ही सपा और बसपा की नींदें भी उड़ जाएंगी.

प्रियंका गांधी ने कोरोना संकट के समय जो 1000 बसों को भेजा और योगी सरकार ने उनके नहले पर दहला मारते हुए उनकी मंशा पर जिस तरह सवाल उठाए उससे कहीं न कहीं कांग्रेस का विपक्षी चेहरा जरूर नज़र आया है. उत्तर प्रदेश की राजनीति में विपक्ष का प्रमुख चेहरा सपा और बसपा ही है जिसमें कांग्रेस ने नए ऊर्जा के साथ इंट्री मार ली है, जगजाहिर है कि कांग्रेस इस जोश को बनाए रखेगी और इसका पूरा असर उत्तर प्रदेश की राजनीति को नए समीकरण बनाने पर मजबूर कर देगी.

सरकारी बंगला जाने का फायदा या नुकसान किसे होगा यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन यह तो तय है कि राजनीति के क्षेत्र में बदले की भावना हमेशा से रही है. अगर एक सियासी दल दूसरे के प्रति शिष्टाचार रखता है तो वह दल भी वही भावना रखेगा वरना "जैसी करनी वैसी भरनी' की कहावत राजनीति के गलियारे में बिल्कुल सटीक बैठती है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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