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Nitish Kumar की लोकप्रियता में आई कमी चिंता कारण है भी, नहीं भी

    • आईचौक
    • Updated: 09 अगस्त, 2020 03:15 PM
  • 09 अगस्त, 2020 03:15 PM
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नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को अगर लगता है कि NDA का उम्मीदवार घोषित हो जाना चुनाव जीतने की गारंटी है, तो मुगालते में हो सकते हैं - संभव है नीतीश कुमार इस बार भी बिहार चुनाव (Bihar Election 2020) जीत जायें लेकिन सीटें कम आयीं तो बीजेपी (BJP) जीना मुहाल कर देगी.

नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को सबसे तगड़ी चुनौती योगी आदित्यनाथ से ही मिल रही है, खासकर, जब से कोरोना वायरस के चलते देश में लॉकडाउन का दौर चला है. प्रवासी मजदूरों के मामले में नीतीश कुमार सबसे ज्यादा योगी आदित्यनाथ से ही चिढ़े हुए नजर आये - क्योंकि प्रवासी मजदूरों और कोटा में फंसे छात्रों के बिहार लौटने के मामले में नीतीश कुमार टालमटोल कर रहे थे, जबकि योगी आदित्यनाथ ने यूपी के मजदूरों और छात्रों सभी के लिए बसें उतार दी थी. तब तो सुनने में ये भी आया कि बिहार के कई मजदूर और छात्र यूपी की बसों में सवार होकर बिहार की सीमा पर पहुंच गये और फिर घर वाले जाकर वापस ले गये.

इंडिया टुडे के सर्वे में बीजेपी के (BJP) योगी आदित्यनाथ को देश में सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री पाया गया है. योगी आदित्यनाथ के बाद भी नीतीश कुमार नहीं, बल्कि कोरोना काल में उनके लिए सबसे ज्यादा मुसीबत खड़ी करने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अच्छे प्रशासन के मामले में दूसरे स्थान पर आये हैं. तीसरा और चौथा स्थान भी क्रमशः आंध्र प्रदेश के नये नवेले मुख्यमंत्री वाईएस जगनमोहन रेड्डी और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने झटक डाले हैं.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को महाराष्ट्र के CM उद्धव ठाकरे के साथ इस लिस्ट में पांचवें स्थान से संतोष करना पड़ा है. नीतीश कुमार के लिए संतोष करने वाली बात बस ये है कि वो गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी, कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से बेहतर माने गये हैं.

नीतीश कुमार के लिए चिंता वाली एक बात जरूर है कि उनकी लोकप्रियता में कमी दर्ज की गयी है, जबकि वही पोजीशन शेयर करने वाले उद्धव ठाकरे धीरे धीरे ज्यादा लोकप्रिय होने लगे हैं. इंडिया टुडे और कर्वी इनसाइट्स के इस सर्वे में 67 फीसदी ग्रामीण और 33...

नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को सबसे तगड़ी चुनौती योगी आदित्यनाथ से ही मिल रही है, खासकर, जब से कोरोना वायरस के चलते देश में लॉकडाउन का दौर चला है. प्रवासी मजदूरों के मामले में नीतीश कुमार सबसे ज्यादा योगी आदित्यनाथ से ही चिढ़े हुए नजर आये - क्योंकि प्रवासी मजदूरों और कोटा में फंसे छात्रों के बिहार लौटने के मामले में नीतीश कुमार टालमटोल कर रहे थे, जबकि योगी आदित्यनाथ ने यूपी के मजदूरों और छात्रों सभी के लिए बसें उतार दी थी. तब तो सुनने में ये भी आया कि बिहार के कई मजदूर और छात्र यूपी की बसों में सवार होकर बिहार की सीमा पर पहुंच गये और फिर घर वाले जाकर वापस ले गये.

इंडिया टुडे के सर्वे में बीजेपी के (BJP) योगी आदित्यनाथ को देश में सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री पाया गया है. योगी आदित्यनाथ के बाद भी नीतीश कुमार नहीं, बल्कि कोरोना काल में उनके लिए सबसे ज्यादा मुसीबत खड़ी करने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अच्छे प्रशासन के मामले में दूसरे स्थान पर आये हैं. तीसरा और चौथा स्थान भी क्रमशः आंध्र प्रदेश के नये नवेले मुख्यमंत्री वाईएस जगनमोहन रेड्डी और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने झटक डाले हैं.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को महाराष्ट्र के CM उद्धव ठाकरे के साथ इस लिस्ट में पांचवें स्थान से संतोष करना पड़ा है. नीतीश कुमार के लिए संतोष करने वाली बात बस ये है कि वो गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी, कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से बेहतर माने गये हैं.

नीतीश कुमार के लिए चिंता वाली एक बात जरूर है कि उनकी लोकप्रियता में कमी दर्ज की गयी है, जबकि वही पोजीशन शेयर करने वाले उद्धव ठाकरे धीरे धीरे ज्यादा लोकप्रिय होने लगे हैं. इंडिया टुडे और कर्वी इनसाइट्स के इस सर्वे में 67 फीसदी ग्रामीण और 33 फीसदी शहरी लोगों को शामिल किया गया था.

सवाल ये है कि बिहार चुनाव (Bihar Election 2020) से ऐन पहले नीतीश कुमार की लोकप्रियता में आई कमी का चुनाव नतीजों पर भी कोई असर हो सकता है क्या?

नीतीश की लोकप्रियता घटने की वजह भी तो है

नीतीश कुमार का मामला देश के दूसरे मुख्यमंत्री से अलग इसलिए भी समझा जाएगा क्योंकि जल्द ही वो अगली पारी के लिए जनता की अदालत में आशीर्वाद मांगने जा रहे हैं - बेशक नीतीश कुमार के मुकाबले बिहार में फिलहाल मैदान साफ नजर आ रहा हो, लेकिन जनता जनार्दन के मूड का क्या भरोसा - दिलचस्प बात ये है कि सर्वे का नाम भी 'मूड ऑफ द नेशन' है. नीतीश कुमार भले ही अब सुशांत सिंह राजपूत केस में सीबीआई जांच कराने का क्रेडिट ले लें, लेकिन असल बात तो यही है कि इस मामले में भी वो आखिरी दौर में एक्टिव हुए हैं. सुशांत केस को लेकर ही क्यों, चाहे वो प्रवासी मजदूरों को बिहार बुलाने का मामला हो, कोटा के छात्रों को घर वापस लाने का मामला हो - और तो और कोरोना वायरस को लेकर कम टेस्टिंग और खस्ताहाल अस्पतालों में बदइंतजामी की बात हो, नीतीश कुमार ने बिहार के लोगों को निराश ही तो किया है. जब देखा कि लोगों में गुस्सा बढ़ रहा है और मामला राजनीतिक तौर पर भी बेकाबू होता जा रहा है तो नीतीश कुमार और उनकी टीम डैमेज कंट्रोल में जुटी. स्वास्थ्य विभाग में प्रत्यय अमृत को टास्क सौंपने के साथ ही नीतीश कुमार ने सुशांत केस में सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी.

सुशांत सिंह राजपूत केस पर सबसे पहले बिहार में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने शोर मचाना शुरू किया - और सीबीआई से जांच कराने की मांग करने लगे. ट्विटर से लेकर विधानसभा के पटल तक. जल्द ही दिल्ली में बैठे लोक जनशक्ति पार्टी नेता चिराग पासवान ने भी सुशांत केस की जांच की मुहिम शुरू कर दी. चिराग पासवान ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से संपर्क भी किया और ट्विटर पर अपडेट देने लगे - ये सब देखने के बाद नीतीश कुमार को लगा कि ये मामला तो हाथ से फिसल रहा है.

यही वजह रही कि सुशांत केस में जैसे ही परिवार वालों ने पटना में FIR दर्ज करायी, बिहार पुलिस की टीम मुंबई रवाना हो गयी. फिर पटना के एसपी सिटी विनय तिवारी को भी जांच में तेजी लाने के लिए भेजा गया, लेकिन राजनीतिक वजहों से आईपीएस अफसर को एयरपोर्ट से बीएमसी के लोगों ने ले जाकर क्वारंटीन में भेज दिया.

सुशांत की मौत को लेकर बिहार के युवाओं और राजपूतों में काफी गुस्सा है, ऐसे में अब नीतीश कुमार की कोशिश है कि वो मैसेज दें कि सरकार हर कदम पर परिवार के साथ है. एक तरफ तेजस्वी और चिराग पासवान जहां राजनीतिक फायदे में जुटे थे, सुशांत के परिवार लोग नीतीश कुमार की तरफ से आकर शोक संवेदना व्यक्त करने का इंतजार करते रहे. बहरहाल, अंत भला तो सब भला समझा जा सकता है, आखिरकार नीतीश कुमार की ही बदौलत सुशांत सिंह केस की सीबीआई जांच हो पा रही है. ये बात अलग है कि रिया चक्रवर्ती के खिलाफ ED की टीम भी एक्टिव हो चुकी है - सुशांत केस में महाराष्ट्र सरकार में मंत्री आदित्य ठाकरे को भी सफाई देनी पड़ी है - लेकिन ये सब तो बस ट्रेलर है, पिक्चर तो पूरी बाकी ही है.

हाल फिलहाल चिराग पासवान को नीतीश कुमार के खिलाफ काफी आक्रामक देखा गया है. कहते हैं कि चिराग पासवान और नीतीश कुमार में कोई बातचीत नहीं होती. केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने इसी का हवाला देते हुए बताया कि सुशांत सिंह के मामले में जरूरत पड़ी तो चिराग पासवान ने नीतीश कुमार को पत्र भी लिखा और फोन पर बात भी की. रामविलास पासवान के मुताबिक जिस दिन चिराग की नीतीश कुमार से बात हुई उसी दिन सीबीआई जांच के आदेश दिये गये.

हवाई सर्वे तौ ठीक है लेकिन मदद की जमीनी हकीकत तो चुनाव नतीजों में नजर आएगी ही!

बिहार के लोग एक बार फिर बाढ़ से परेशान हो चले हैं. सितंबर, 2019 में पटना शहर में पानी भर जाने से बाढ़ जैसी हालत हो गयी थी - और नीतीश कुमार मीडिया के सवालों पर भड़क उठते थे. ये उन दिनों की बात जब जब पप्पू यादव नाव पर सवार होकर लोगों को दूध और ब्रेड पहुंचाते रहे.

बिहार में इस वक्त सुपौल, किशनगंज, दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, शिवहर, मुजफ्फरपुर, गोपालगंज, पश्चिम चंपारण, पूर्वी चम्पारण, खगडिया, सारण, समस्तीपुर, सिवान, मधेपुरा और सहरसा जिले बुरी तरह बाढ़ से प्रभावित हैं. आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने इस मामले में भी नीतीश कुमार को घेरा है - और लोगों के लिए मदद और मुआवजे की मांग की है.

देश में लॉकडाउन लागू होने के बाद जब दिल्ली में प्रवासी मजदूर सड़क पर उतर आये तो नीतीश कुमार दुहाई देने लगे थे कि लॉकडाउन फेल हो जाएगा - जो जहां है वो वहीं रहे. मुख्यमंत्रियों की मीटिंग में भी नीतीश कुमार प्रवासी मजदूरों को बुलाये जाने के खिलाफ नजर आये और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ऐसा करने से बेहद नाराज भी. तब नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लोगों के अपने राज्यों में वापसी के लिए राष्ट्रीय स्तर पर गाइडलाइन बनाने की सलाह दी. इसके तत्काल बाद गाइडलाइन में ये छूट दिये जाने की घोषणा कर दी गयी और लोगों के बिहार लौटने का इंतजाम करना पड़ा.

एक तरफ कोरोना का प्रकोप बढ़ता जा रहा था और दूसरी तरफ अस्पतालों में बदइंतजामी से लोगों का बुरा हाल. फिर केंद्र सरकार को टीम भेजनी पड़ी और कोराना मरीजों को थोड़ी राहत मिली है - भला ऐसे में किसी मुख्यमंत्री की लोकप्रियता घटेगी नहीं तो बढ़ने वाली है.

आखिर लालू-राबड़ी के 15 साल के शासन को जंगलराज बता कर नीतीश कुमार कब तक चुनावों में लोगों से वोट मांगते रहेंगे?

लोकप्रियता का असर सीटों पर पड़ा तो मुश्किल होगा

बिहार चुनाव के हिसाब से नीतीश कुमार की व्यक्तिगत लोकप्रियता अहम फैक्टर जरूर है, लेकिन चुनाव नतीजे टीम वर्क पर निर्भर करेंगे. जिस तरह से केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बिहार के मुख्यमंत्री की लगातार मदद कर रहे हैं, वो भी टीम वर्क का ही हिस्सा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के एक साल पूरे होने पर अमित शाह ने कोरोना काल में ही सबसे पहले डिजिटल रैली बिहार में की और दावा किया कि नीतीश कुमार पूर्ण बहुमत के साथ चुनाव जीतेंगे. जब देखा कि कोरोना वायरस के चलते बिहार में स्थिति बेकाबू होती जा रही है तो मोर्चा संभालने के लिए केंद्रीय टीम भेज दी. ये भी देखा गया कि जब राहुल गांधी कांग्रेस की डिजिटल रैली कर रहे थे तो डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी ट्विटर पर पाकिस्तान के नक्शे को लेकर विपक्ष पर हमला बोल रहे थे - ये सब आखिर टीम वर्क नहीं तो क्या है!

चिराग पासवान अभी भले ही हमलावर हों, लेकिन विधानसभा सीटों के बंटवारे के बाद ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला है. इसमें भी कोई दो राय नहीं कि नीतीश कुमार अपने लिए कम सीटों पर कोई समझौता करने वाले हैं. ऐन वक्त पर वो ऐसा माहौल बना लेंगे कि बीजेपी को भी अपने पास नीतीश जैसा कोई नेता न होने का सबसे ज्यादा अफसोस होने लगेगा. नीतीश कुमार के लिए सबसे बड़ी चुनौती अपने हिस्से की सीटें जीतने को लेकर हो सकती है. अगर नीतीश कुमार अपनी वजहों से जनता की नाराजगी के शिकार होकर कम सीटें ही जीत पाये, फिर तो मुश्किलों का अंबार सामने होगा. जो अमित शाह अभी सबसे बड़े मददगार बने हुए हैं वो खुद ऐसी राजनीतिक चालें चलेंगे कि नीतीश कुमार का जीना मुहाल हो जाएगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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