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भारतीय मुसलमान इस्लाम की प्रेरणा इमदाद इमाम से लें, कठमुल्लों से नहीं

    • मशाहिद अब्बास
    • Updated: 07 नवम्बर, 2020 03:08 PM
  • 07 नवम्बर, 2020 03:08 PM
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भारत में मुसलमान कट्टरता की ओर तेज़ी से बढ़ता नज़र आ रहा है और यह कट्टरता सबसे ज़्यादा चोट भी उन्हें ही पहुंचाने वाली है इसलिए भारतीय मुसलमानों (Indian Muslims) को कठमुल्लाओं की नकाबपोश मंसूबों को पहचानना होगा, उनके खिलाफ खड़ा होना होगा.

कहते हैं कि धर्म कोई भी बुरा नहीं होता. बस उस धर्म के मानने वाले ही कुछ गलत कार्य करते हैं. जिसकी वजह से उनका धर्म ही कठघरे में खड़ा हो जाता है. आज भारत में या विश्व भर में मुसलमानों को दूसरे नज़रिये से देखा जा रहा है. मुसलमान के साथ आतंकवाद का नाम जोड़ा जा रहा है. जिस इस्लाम धर्म में हिंसा नाम की जगह न हो, वह इस्लाम धर्म आज बेगुनाहों के खून बहाने का ज़िम्मेदार समझा जा रहा है. मुसलमानों में कट्टरता लगातार हावी होती जा रही है और आम मुसलमान उसके खिलाफ होने के बजाय उसके साथ खड़ा दिखाई दे रहा है. जो मुसलमानों को ही नुकसान पहुंचाने का कार्य कर रही है. फ्रांस में एक शिक्षक के सिर को जुदा करने वाले मुसलमान ने इस्लाम के सिद्धान्तों के विरुद्ध कार्य किया था लेकिन भारतीय मुसलमान उसको गलत कहने के बजाय उसे सही ठहराने में अड़े रहे. खुद मुनव्वर राणा (Munawwar Rana) जैसी शख्सियत ने उसे सही करार दिया जो उनकी मानसिकता को दिखा रहा है.

मुसलमान हर गलत चीज का समर्थन कर रहे हैं जिससे स्थिति काफी गंभीर हुई है

आज भारत का मुसलमान फैसला ही नहीं कर पा रहा है कि वह हिंसा के खिलाफ है या साथ है. मथुरा में स्थित मंदिर में नमाज़ पढ़कर माहौल को खराब करने वाले फैसल को अधिकतर भारतीय मुसलमानों ने समर्थन दिया. जबकि वह कार्य किसी भी सूरत में सही नहीं था. मुसलमानों को सबसे पहली लड़ाई तो अपने ही धर्म में कठमुल्लाओं के खिलाफ लड़नी है. उन कठमुल्लों के खिलाफ, जो आतंक के साथ हैं, जो खून बहाए जाने को सही मानते हैं.

कट्टरता किसी भी धर्म में हो वह अपने ही धर्म को नुकसान पहुंचाती है. भारत के मुसलमान बहुत शांतिप्रिय माने जाते रहे हैं लेकिन पिछले 15-20 सालों से भारतीय मुसलमान कट्टर बनता जा रहा है और यह एक बड़ी साजिश के तहत हो रहा है. भारतीय...

कहते हैं कि धर्म कोई भी बुरा नहीं होता. बस उस धर्म के मानने वाले ही कुछ गलत कार्य करते हैं. जिसकी वजह से उनका धर्म ही कठघरे में खड़ा हो जाता है. आज भारत में या विश्व भर में मुसलमानों को दूसरे नज़रिये से देखा जा रहा है. मुसलमान के साथ आतंकवाद का नाम जोड़ा जा रहा है. जिस इस्लाम धर्म में हिंसा नाम की जगह न हो, वह इस्लाम धर्म आज बेगुनाहों के खून बहाने का ज़िम्मेदार समझा जा रहा है. मुसलमानों में कट्टरता लगातार हावी होती जा रही है और आम मुसलमान उसके खिलाफ होने के बजाय उसके साथ खड़ा दिखाई दे रहा है. जो मुसलमानों को ही नुकसान पहुंचाने का कार्य कर रही है. फ्रांस में एक शिक्षक के सिर को जुदा करने वाले मुसलमान ने इस्लाम के सिद्धान्तों के विरुद्ध कार्य किया था लेकिन भारतीय मुसलमान उसको गलत कहने के बजाय उसे सही ठहराने में अड़े रहे. खुद मुनव्वर राणा (Munawwar Rana) जैसी शख्सियत ने उसे सही करार दिया जो उनकी मानसिकता को दिखा रहा है.

मुसलमान हर गलत चीज का समर्थन कर रहे हैं जिससे स्थिति काफी गंभीर हुई है

आज भारत का मुसलमान फैसला ही नहीं कर पा रहा है कि वह हिंसा के खिलाफ है या साथ है. मथुरा में स्थित मंदिर में नमाज़ पढ़कर माहौल को खराब करने वाले फैसल को अधिकतर भारतीय मुसलमानों ने समर्थन दिया. जबकि वह कार्य किसी भी सूरत में सही नहीं था. मुसलमानों को सबसे पहली लड़ाई तो अपने ही धर्म में कठमुल्लाओं के खिलाफ लड़नी है. उन कठमुल्लों के खिलाफ, जो आतंक के साथ हैं, जो खून बहाए जाने को सही मानते हैं.

कट्टरता किसी भी धर्म में हो वह अपने ही धर्म को नुकसान पहुंचाती है. भारत के मुसलमान बहुत शांतिप्रिय माने जाते रहे हैं लेकिन पिछले 15-20 सालों से भारतीय मुसलमान कट्टर बनता जा रहा है और यह एक बड़ी साजिश के तहत हो रहा है. भारतीय मुसलमानों के बीच वह गिरोह अपनी जगह बना चुका है जो इस्लाम के नाम पर ही इस्लाम धर्म को बदनाम कर रहा है.

भारतीय मुसलमानों की सबसे बड़़ी चूक यहीं पर हो रही है वह अपने ही धर्म में घुसे नकाबपोश कठमुल्लों को नहीं पहचान पा रहा है और धर्म के नाम पर उनके ही साथ खड़े दिखाई दे रहे है. जबकि इस्लाम धर्म के कानून और सिद्धान्तों की बात की जाए तो इस्लाम धर्म में कट्टरता की कोई जगह नहीं है इस्लाम रहम करने का पैगाम देता है.

जिस पैगंबर मोहम्मद के नाम पर आज मुसलमान आगबबूला होकर हिंसा पर उतारू है उसी पैगंबर मोहम्मद ने अपने दुश्मनों से भी रहमदिली की थी. वह हिंसा से दूर रहने की सलाह देते थे और इंसानियत की बातें किया करते थे. किसी को दुख पहुंचाना, मार देना, काट डालना ये मोहम्मद साहब की शब्दकोश मेंं था ही नहीं. जिस मोहम्मद साहब से मुसलमानों ने इस्लाम धर्म अपनाया है वह ही मोहम्मद साहब के बताए गए रास्ते पर नहीं चल पा रहे हैं. जिसकी वजह से वह लगातार इस्लामिकफोबिया के शिकार हो रहे हैं.

हालांकि ऐसे बहुत मुसलमान हैं जो अपने किए गए कार्य से हर किसी का दिल भी जीत लेते हैं जिनके अंदर पैगंबर मोहम्मद साहब के दिखाए गए मार्ग की झलक दिखाई देती है, जिनके अंदर इंसानियत पायी जाती है. एक ऐसा ही उदाहरण बने हैं लखनऊ के गोलागंज के रहने वाले इमदाद इमाम. वह पेशे से तो एक दुकानदार और ग्राफिक डिज़ाईनर हैं लेकिन उनके कार्य ने आज उनको एक नई पहचान दे डाली है.

कोरोना वायरस महामारी आने से पहले तक इमदाद इमाम को शायद सैकड़ों लोग ही जानते और पहचानते रहे हों लेकिन कोरोना वायरस जब लखनऊ में कहर बरपा रहा था तब इमदाद इमाम को लोग फरिश्ता नाम से पुकार रहे थे. आज इमदाद को पूरा लखनऊ जानता है वजह भी बेहद खास है, लखनऊ में कोरोना ने जब लोगों को निगलना शुरू किया तो मरने वाले मरीज़ के परिजन तक शव का अंतिम संस्कार कराने से परहेज कर रहे थे. बेटा अपने बाप का अंतिम संस्कार करने से डर रहा था तो भाई भाई का.

इमदाद इमाम ने जब देखा कि लाश लावारिस है, कोई अंतिम संस्कार करने नहीं आ रहा है तो इमदाद ने अपने साथी जावेद, मेंहदी रज़ा और एहसान समेत 15-20 युवाओं की एक टीम बना डाली और शहर भर में ऐलान करा दिया कि वह कोरोना से मरने वालों का अंतिम संस्कार करने को तैयार है, बस उन्हें सूचित कर दिया जाए.

शहर भर में लोग इमदाद की मदद लेने लगे और इमदाद अबतक करीब 50 की संख्या में लाशों का अंतिम संस्कार कर चुके हैं इनमें मुसलमानों के कई धड़ों के साथ-साथ हिंदू धर्म का अंतिम संस्कार भी शामिल है. इमदाद ने अपनी जान पर खेल कर जो कार्य किया है वह एक मिसाल है. ऐसे समय में जब पड़ोसी, रिश्तेदार और समाज कोई काम न आया तो इमदाद उनकी मदद को आगे खड़े नज़र आए.

उनके लिए यह काम आसान तो न था लेकिन उन्होंने कहा कि अंतिम संस्कार हर इंसान की आखिरी रस्म और कर्मकांड है. इसे अंजाम देना ज़रूरी था भले ही इसके चलते उनकी जान क्यों न चली जाए. उन्होंने ईद, बकरीद और मोहर्रम के मौके पर भी अपना यह कार्य नहीं रोका और इस काम को ही अव्वल बताते रहे.

इमदाद ऩे एक सच्चे भारतीय मुसलमान होने का फर्ज़ निभाया है. भारतीय मुसलमानों को ऐसे लोगों से ही सीख लेने की ज़रूरत है और कट्टरता के खिलाफ सख्ती से खड़े होने की ज़रूरत है. सोचिए इमदाद इमाम भी अगर कट्टरपंथी विचारधारा के अनुसार कार्य करते तो क्या वह कभी ऐसी मिसाल बन पाते? क्या वह अगले समुदाय अगले धर्म के लोगों का सहारा बन पाते? कभी नहीं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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