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Hyderabad Police Encounter पर सवाल उठाने की वजह खुद एनकाउंटर स्पेशलिस्ट सज्जनार ने ही दी है !

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 07 दिसम्बर, 2019 02:29 PM
  • 07 दिसम्बर, 2019 02:29 PM
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पुलिस कमिश्नर वी. सी. सज्जनार (VC Sajjanar) पहले भी इसी तरह एनकाउंटर (Hyderabad Police Encounter) कर के हीरो बन चुके हैं. मीडिया में ये कयास पहले से ही लगने लगे थे कि लोगों का गुस्सा शांत करने के लिए इस बार भी वह 2008 के एनकाउंटर (2008 Encounter) जैसा कोई कदम उठा सकते हैं.

हैदराबाद पुलिस द्वारा दिशा के रेपिस्ट हत्यारों (Disha Rape Case) के एनकाउंटर (Hyderabad Police Encounter) के बाद से उस पर तमाम तरह के सवाल उठ रहे हैं. देश दो हिस्सों में बंटा हुआ दिख रहा है. एक तबका वो है, जो इस एनकाउंटर से खुश है और जश्न मना रहा है. दूसरा तबका वो है, जो इस एनकाउंटर से चिंतित है कि अगर इंसाफ इसी तरह होने लगा तो सिर्फ गोलियां ही चलेंगी, अदालतों का कोई मतलब नहीं रह जाएगा. लेकिन सवाल ये है कि पुलिस एनकाउंटर पर सवाल उठ क्यों रहा है? क्या पुलिस अपनी आत्मरक्षा में गोली नहीं चला सकती? दरअसल, सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि एनकाउंटर अनायास ही घट जाने वाली घटना है, ना कि प्लानिंग के तहत. हैदराबाद के आरोपियों के साथ ऐसा हो सकता है, इसके कयास काफी पहले ही लगने लगे थे. मामले को देख रहे पुलिस कमिश्नर वी. सी. सज्जनार (VC Sajjanar) पहले भी इसी तरह एनकाउंटर कर के मामले का निपटारा करने वाले हीरो बनाए गए थे. मीडिया में ये कयास पहले से ही लगने लगे थे कि इस बार भी वह 2008 के एनकाउंटर (2008 Encounter) जैसा कोई कदम उठा सकते हैं, जिससे लोगों के गुस्से को शांत किया जा सके.

पुलिस कमिश्नर वी. सी. सज्जनार पहले भी इसी तरह एनकाउंटर कर के हीरो बन चुके हैं.

गिरफ्तारी के विकल्पों पर हो रहा था विचार !

डेक्कन क्रोनिकल में 30 नवंबर को छपी खबर के अनुसार दिशा रेप केस के चारों आरोपियों की गिरफ्तारी से पहले ही इस बात पर चर्चा हो रही थी कि गिरफ्तारी के विकल्प क्या हो सकते हैं. खैर, पुलिस अधिकारियों और उनके भी ऊपर बैठे अधिकारियों ने आखिरकार ये फैसला लिया कि...

हैदराबाद पुलिस द्वारा दिशा के रेपिस्ट हत्यारों (Disha Rape Case) के एनकाउंटर (Hyderabad Police Encounter) के बाद से उस पर तमाम तरह के सवाल उठ रहे हैं. देश दो हिस्सों में बंटा हुआ दिख रहा है. एक तबका वो है, जो इस एनकाउंटर से खुश है और जश्न मना रहा है. दूसरा तबका वो है, जो इस एनकाउंटर से चिंतित है कि अगर इंसाफ इसी तरह होने लगा तो सिर्फ गोलियां ही चलेंगी, अदालतों का कोई मतलब नहीं रह जाएगा. लेकिन सवाल ये है कि पुलिस एनकाउंटर पर सवाल उठ क्यों रहा है? क्या पुलिस अपनी आत्मरक्षा में गोली नहीं चला सकती? दरअसल, सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि एनकाउंटर अनायास ही घट जाने वाली घटना है, ना कि प्लानिंग के तहत. हैदराबाद के आरोपियों के साथ ऐसा हो सकता है, इसके कयास काफी पहले ही लगने लगे थे. मामले को देख रहे पुलिस कमिश्नर वी. सी. सज्जनार (VC Sajjanar) पहले भी इसी तरह एनकाउंटर कर के मामले का निपटारा करने वाले हीरो बनाए गए थे. मीडिया में ये कयास पहले से ही लगने लगे थे कि इस बार भी वह 2008 के एनकाउंटर (2008 Encounter) जैसा कोई कदम उठा सकते हैं, जिससे लोगों के गुस्से को शांत किया जा सके.

पुलिस कमिश्नर वी. सी. सज्जनार पहले भी इसी तरह एनकाउंटर कर के हीरो बन चुके हैं.

गिरफ्तारी के विकल्पों पर हो रहा था विचार !

डेक्कन क्रोनिकल में 30 नवंबर को छपी खबर के अनुसार दिशा रेप केस के चारों आरोपियों की गिरफ्तारी से पहले ही इस बात पर चर्चा हो रही थी कि गिरफ्तारी के विकल्प क्या हो सकते हैं. खैर, पुलिस अधिकारियों और उनके भी ऊपर बैठे अधिकारियों ने आखिरकार ये फैसला लिया कि इन चारों को गिरफ्तार किया जाए. चर्चा में ये भी तय किया गया कि गिरफ्तारी के बाद नतीजे जितनी जल्दी सामने आएंगे, उतना ही अच्छा होगा. ये भी बात हुई कि अगर कुछ गिरफ्तार से भी बड़ा किया जाए तो इससे लोगों का गुस्सा शांत किया जा सकता है.

तो क्या पहले से प्लान था एनकाउंटर?

अब अगर डेक्कन क्रोनिकल की खबर की मानें तो पुलिस की मंशा ही यही थी कि सिर्फ गिरफ्तारी ना की जाए, क्योंकि उससे लोगों का गुस्सा शांत नहीं होगा. कुछ ऐसा करना था जिससे जनता में ये संदेश जा सके कि हैदराबाद की पुलिस सिर्फ हाथ पर हाथ धरे बैठी नहीं रहती है, बल्कि अपराधियों के खिलाफ सख्त एक्शन लेती है. अब उस चर्चा को एक इशारा ही समझ लीजिए. चर्चा के हफ्ते भर में अंदर ही पुलिस ने अपने प्लान को धरातल पर उतार दिया. यूं लग रहा है कि प्लानिंग के अनुसार कुछ ऐसा कर दिया, जिससे अब लोगों का गुस्सा शांत हो गया है.

गुस्सा तो शांत हुआ ही, पुलिस हीरो बन गई !

अगर डेक्कन क्रोनिकल की खबर से मिली जानकारी के संदर्भ में देखें तो दिशा के रेपिस्ट हत्यारों के एनकाउंटर से न सिर्फ लोगों का गुस्सा शांत हुआ, बल्कि पुलिस हीरो भी बन गई. वही पुलिस, जिस पर कुछ दिन पहले तक दिशा के परिवारवालों ने ये आरोप लगाया था कि जब वह पुलिस के पास शिकायत करने गए थे तो पुलिस ने कहा था कि दिशा किसी लड़के के साथ भाग गई होगी. तब यही पुलिस बहानेबाजी कर रही थी और अब यही पुलिस हीरो बन गई है.

सवाल उठाने की एक वजह खुद एनकाउंटर स्पेशलिस्ट सज्जनार भी हैं !

जिस पुलिस कमिश्नर वीसी सज्जनार ने हैदराबाद रेप केस के चारों आरोपियों का एनकाउंटर किया है, वह 2008 में भी एक ऐसा ही एनकाउंटर कर चुके हैं. दोनों में अगर एक छोटी सी तुलना की जाए तो पता चलेगा कि दोनों ही एनकाउंटर लगभग एक जैसे ही हुए हैं. हां एक बड़ा अंतर ये जरूर है कि तब गिरफ्तारी वाले दिन ही कुछ घंटों में एनकाउंटर कर दिया था, इस बार गिरफ्तार करने के कुछ दिनों बाद ये सब हुआ.

2008 में दो इनजीनियरिंग की छात्राओं पर एसिड फेंका गया था. ये घटना वारंगल जिले की है, जहां के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक वीसी सज्जनार थे. 13 दिसंबर 2008 की रात इस मामले को तीन दोषियों को गिरफ्तार किया गया और महज चंद घंटों बाद ही उनका एनकाउंटर हो गया. महज 48 घंटों के अंदर ही गिरफ्तारी कर ली गई थी और एनकाउंटर के बाद लोगों का गुस्सा जैसे शांत सा हो गया. पुलिस ने बताया कि आरोपियों को घटनास्थल पर ले गए थे, ताकि सबूत जुटाए जा सकें. उसी दौरान आरोपियों ने देसी कट्टों और एसिड से पुलिस पर भी हमला कर दिया, जिसे आरोपियों ने घटनास्थल पर ही छुपाया हुआ था. तब वीसी सज्जनार की पुलिस टीम ने आत्मरक्षा में तीनों का एनकाउंटर कर दिया. तब सज्जनार हीरो बन गए थे, लोगों ने उन्हें फूलों के गुलदस्ते भेंट किए, हाथ मिलाए और यहां तक कि उन्हें कंधों पर उठाकर घुमाया.

अब करीब 11 साल बाद फिर से कुछ वैसा ही हुआ है. दिशा के रेपिस्ट और हत्यारों को पुलिस ने घटना होने के 48 घंटों में ही गिरफ्तार कर लिया. इन सबको भी घटनास्थल पर ले जाया गया, जहां पर इन्होंने दो पुलिसवालों की बंदूक छीन कर हमला कर दिया और डंडे और पत्थरों से हमला करते हुए भागने लगे. पुलिस को आत्मरक्षा में गोली चलानी पड़ी और चारो आरोपी एनकाउंटर में मारे गए. इस बार भी सज्जनार हीरो बन गए. उनकी जय जयकार हो रही है, लोग फूलों की बारिश कर रहे हैं, मिठाई खिला रहे हैं, कंधों पर उठाकर घूम रहे हैं. दोनों एनकाउंटर की समानताएं और गिरफ्तारी से पहले ही विकल्पों पर होने वाली चर्चा इशारा कर रही है कि दाल में कुछ काला है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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