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राज्यपाल एन एन वोहरा आने वाली चुनौतियों का सामना कैसे करेंगें ?

    • आलोक रंजन
    • Updated: 20 जून, 2018 04:14 PM
  • 20 जून, 2018 04:14 PM
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राज्य में राज्यपाल शासन लगते ही राज्यपाल एन एन वोहरा की भूमिका काफी बढ़ जाती है. आने वाले समय में उनके लिए चुनौतियां काफी हैं. ऐसे समय में राज्यपाल वोहरा की नीतियां क्या होती हैं ये देखने लायक होगा.

पीडीपी‌ और भाजपा की गठबंधन सरकार गिरने के एक दिन के अंदर ही जम्मू और कश्मीर में राज्यपाल शासन लगा दिया गया है. राष्ट्रपति ने 20 जून की सुबह इसे तत्काल प्रभाव से लागू करने की मंजूरी दे दी. राज्यपाल एन एन वोहरा ने 19 जून शाम को राज्य में राज्यपाल शासन लगाने के लिए राष्ट्रपति को रिपोर्ट भेजी थी. वोहरा के कार्यकाल में चौथी बार राज्य में राज्यपाल शासन लगा हैं. उनका कार्यकाल जून में खत्म होने वाला है, लेकिन अगर सूत्रों की मानें तो अमरनाथ यात्रा जो 28 जून से शुरू होने वाली है और जो तकरीबन 2 महीने, 26 अगस्त तक चलेगी तब तक वोहरा अपने पद में बने रहेंगे.

20 जून से जम्मू-कश्मीर की कमान राज्यपाल एन एन वोहरा के हाथों में

राज्य में राज्यपाल शासन लगते ही राज्यपाल एन एन वोहरा की भूमिका काफी बढ़ जाती है. आने वाले समय में उनके लिए चुनौतियां काफी हैं. जम्मू और कश्मीर में आतंकवाद और हिंसा की घटनाएं बढ़ी हैं. उग्रवाद अपने चरम पर है. पत्थर फैंकने की घटनाओं में भी काफी वृद्धि हुई है. घाटी के युवाओं का झुकाव भी उग्रवाद की तरफ बढ़ा है. ऐसे समय में राज्यपाल वोहरा की नीतियां क्या होती हैं ये देखने लायक होगा.

जम्मू और कश्मीर में राज्यपाल शासन लगते ही राज्य का सारा शासन प्रबंध अब उनके हाथों में आ गया है. देखना ये है कि वो शासन तंत्र किस तरह चलाते हैं. सारी जिम्मेदारी अब उनके ऊपर है. राज्य में अमन शांति कायम रखने की सारी कवायद अब उनके ऊपर है.

सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि बढ़ती हुए आतंकवादी घटनाओं से निपटने के लिए वोहरा क्या रुख अपनाते हैं. मुख्यमंत्री पद छोड़ने के बाद अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में मेहबूबा ने केंद्र को चेतावनी दी कि जम्मू-कश्मीर में सख्त नीति काम नहीं करेगी. अब देखना ये है कि आने वाले समय में वोहरा किस दृष्टिकोण से कार्य करते...

पीडीपी‌ और भाजपा की गठबंधन सरकार गिरने के एक दिन के अंदर ही जम्मू और कश्मीर में राज्यपाल शासन लगा दिया गया है. राष्ट्रपति ने 20 जून की सुबह इसे तत्काल प्रभाव से लागू करने की मंजूरी दे दी. राज्यपाल एन एन वोहरा ने 19 जून शाम को राज्य में राज्यपाल शासन लगाने के लिए राष्ट्रपति को रिपोर्ट भेजी थी. वोहरा के कार्यकाल में चौथी बार राज्य में राज्यपाल शासन लगा हैं. उनका कार्यकाल जून में खत्म होने वाला है, लेकिन अगर सूत्रों की मानें तो अमरनाथ यात्रा जो 28 जून से शुरू होने वाली है और जो तकरीबन 2 महीने, 26 अगस्त तक चलेगी तब तक वोहरा अपने पद में बने रहेंगे.

20 जून से जम्मू-कश्मीर की कमान राज्यपाल एन एन वोहरा के हाथों में

राज्य में राज्यपाल शासन लगते ही राज्यपाल एन एन वोहरा की भूमिका काफी बढ़ जाती है. आने वाले समय में उनके लिए चुनौतियां काफी हैं. जम्मू और कश्मीर में आतंकवाद और हिंसा की घटनाएं बढ़ी हैं. उग्रवाद अपने चरम पर है. पत्थर फैंकने की घटनाओं में भी काफी वृद्धि हुई है. घाटी के युवाओं का झुकाव भी उग्रवाद की तरफ बढ़ा है. ऐसे समय में राज्यपाल वोहरा की नीतियां क्या होती हैं ये देखने लायक होगा.

जम्मू और कश्मीर में राज्यपाल शासन लगते ही राज्य का सारा शासन प्रबंध अब उनके हाथों में आ गया है. देखना ये है कि वो शासन तंत्र किस तरह चलाते हैं. सारी जिम्मेदारी अब उनके ऊपर है. राज्य में अमन शांति कायम रखने की सारी कवायद अब उनके ऊपर है.

सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि बढ़ती हुए आतंकवादी घटनाओं से निपटने के लिए वोहरा क्या रुख अपनाते हैं. मुख्यमंत्री पद छोड़ने के बाद अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में मेहबूबा ने केंद्र को चेतावनी दी कि जम्मू-कश्मीर में सख्त नीति काम नहीं करेगी. अब देखना ये है कि आने वाले समय में वोहरा किस दृष्टिकोण से कार्य करते हैं.

उनके लिए चुनौती सिर्फ ये नहीं हैं कि राज्य में सुशासन हो, बल्कि राज्य में हो रही बेतहाशा हिंसा की घटनाओं और मौतों पर लगाम लगाना भी है. साथ ही साथ ये साबित करने की चुनौती भी रहेगी कि कश्मीर में समस्याओं का हल कठोर हाथों के बिना भी किया जा सकता है.

कश्मीर में अमरनाथ यात्रा 28 जून से शुरू होने वाली है. ये यात्रा हिन्दुओं के लिए काफी महत्व रखती है. मोदी सरकार अभी भी उस पोलिटिकल रिस्क से उबर नहीं पाई है जब रमजान के दौरान उसने सीजफायर लागू किया था और उस दौरान आतंकवादी घटनाओं में इजाफा हुआ था. सीजफायर के दौरान घाटी में 73 आतंकी हमले हुए थे और जो सीजफायर के पहले महीने की तुलना में करीब 53 ज्यादा थे. इन परिस्थितियों में शांतिपूर्ण तरीके से अमरनाथ यात्रा संपन्न हो ये उनकी प्रमुख प्राथमिकता होगी.

ऑपरेशन ऑलआउट, हुर्रियत समेत सभी अलगाववादियों से निपटने की चुनौती के साथ-साथ भटके हुए नौजवानों को सही रास्ते में लाना उनके लिए एक चैलेंज से कम नहीं होगा. वोहरा पिछले 10 सालों से राज्य के राज्यपाल हैं. वोहरा अपने कार्यकाल के दौरान ये साबित करने में सफल रहे हैं कि वो एक काबिल प्रशासक हैं. अब देखना ये है कि वो इन चुनौतियों का सामना किस तरह कर पाते हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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