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PDP-BJP ब्रेकअप : दोनों दलों को एक ही डर था

    • संतोष चौबे
    • Updated: 19 जून, 2018 09:50 PM
  • 19 जून, 2018 09:50 PM
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अगर पीडीपी का वोटबैंक कश्मीर घाटी में है तो बीजेपी राज्य के हिन्दू बहुल इलाके की पार्टी है, गठबंधन के चलने पर दोनों पार्टियों को अपने वोटबैंक खोने का डर था.

बीजेपी और पीडीपी जब से गठबंधन में आए थे तब से ये बहुत ही अजीब सा लगने वाला फैसला लगा था, इसलिए नहीं कि दोनों दलों ने एक-दूसरे को गाली देकर वोट बटोरे थे और उनके सिद्धांत अलग थे, बल्कि इसलिए कि दोनों दलों के एक साथ रहने पर दोनों के वोटर उनसे अलग हो सकते थे. और तीन साल साथ रहने का यही हाल होता लग रहा है.

अगर पीडीपी का वोटबैंक कश्मीर घाटी में है तो बीजेपी राज्य के हिन्दू बहुल इलाके की पार्टी है, गठबंधन के चलने पर दोनों पार्टियों को अपने वोटबैंक खोने का डर था.

राज्य में अगला चुनाव तो 2021 में होना है लेकिन मुख्य मुद्दा अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव हैं जिसमें अपनी सीटें खोने का डर दोनों को होगा.

करीब 3 साल के साथ के बाद अलग हुए रास्ते

पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को जम्मू की 37 विधानसभा सीटों में 25 पर जीत मिली थी कुल 41% वोट शेयर के साथ जबकि पीडीपी को कश्मीर घाटी की 46 सीटों में 28 पर जीत हासिल हुई थी. बीजेपी को कश्मीर और लद्दाख में एक भी सीट नहीं मिली. इससे पता चलता है कि इन दोनों दलों का वोटबैंक कितना केंद्रित है.

पीडीपी जहां अफ्स्पा हटाने की बात करती थी, बीजेपी वहीं आर्टिकल 370 और 35A हटाकर पूरे राज्य को भारत की समान धारा में लाने की बात करती थी. पत्थर फेंकने वाले हों, बुरहान वानी की हत्या, अफ़ज़ल गुरु का फांसी लगना या कठुआ बलात्कार या रमजान में सीजफायर, दोनों दलों ने हमेशा एक दूसरे के खिलाफ बात की. पीडीपी जहां पाकिस्तान से बातचीत की हिमायत करती रही है वहीं बीजेपी ने पाकिस्तान से बातचीत करने से इंकार कर दिया.

39 महीने की सरकार में दोनों दलों ने एक-दूसरे को कई बार लपेटा. जब-जब ऐसा लगा कि गठबंधन टूट ही जायेगा तो दोनों दल कोई न कोई समझौता कर वापस आ जाते थे. लेकिन अब जब दोनों अलग हो गए हैं और पीडीपी की...

बीजेपी और पीडीपी जब से गठबंधन में आए थे तब से ये बहुत ही अजीब सा लगने वाला फैसला लगा था, इसलिए नहीं कि दोनों दलों ने एक-दूसरे को गाली देकर वोट बटोरे थे और उनके सिद्धांत अलग थे, बल्कि इसलिए कि दोनों दलों के एक साथ रहने पर दोनों के वोटर उनसे अलग हो सकते थे. और तीन साल साथ रहने का यही हाल होता लग रहा है.

अगर पीडीपी का वोटबैंक कश्मीर घाटी में है तो बीजेपी राज्य के हिन्दू बहुल इलाके की पार्टी है, गठबंधन के चलने पर दोनों पार्टियों को अपने वोटबैंक खोने का डर था.

राज्य में अगला चुनाव तो 2021 में होना है लेकिन मुख्य मुद्दा अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव हैं जिसमें अपनी सीटें खोने का डर दोनों को होगा.

करीब 3 साल के साथ के बाद अलग हुए रास्ते

पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को जम्मू की 37 विधानसभा सीटों में 25 पर जीत मिली थी कुल 41% वोट शेयर के साथ जबकि पीडीपी को कश्मीर घाटी की 46 सीटों में 28 पर जीत हासिल हुई थी. बीजेपी को कश्मीर और लद्दाख में एक भी सीट नहीं मिली. इससे पता चलता है कि इन दोनों दलों का वोटबैंक कितना केंद्रित है.

पीडीपी जहां अफ्स्पा हटाने की बात करती थी, बीजेपी वहीं आर्टिकल 370 और 35A हटाकर पूरे राज्य को भारत की समान धारा में लाने की बात करती थी. पत्थर फेंकने वाले हों, बुरहान वानी की हत्या, अफ़ज़ल गुरु का फांसी लगना या कठुआ बलात्कार या रमजान में सीजफायर, दोनों दलों ने हमेशा एक दूसरे के खिलाफ बात की. पीडीपी जहां पाकिस्तान से बातचीत की हिमायत करती रही है वहीं बीजेपी ने पाकिस्तान से बातचीत करने से इंकार कर दिया.

39 महीने की सरकार में दोनों दलों ने एक-दूसरे को कई बार लपेटा. जब-जब ऐसा लगा कि गठबंधन टूट ही जायेगा तो दोनों दल कोई न कोई समझौता कर वापस आ जाते थे. लेकिन अब जब दोनों अलग हो गए हैं और पीडीपी की मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ़्ती ने इस्तीफा दे दिया है तो दोनों ने अपनी राहों का संकेत दे दिया है.

बीजेपी ने कहा है कि हमारे लिए राज्य में गठबंधन चलाना नामुमकिन हो गया था क्योंकि पीडीपी ने हमारी कोई बात नहीं मानी और बड़े राष्ट्रीय हित और भारत की एकता और अखंडता में हमें ये फैसला लेना पड़ा, जबकि मेहबूबा ने कहा है कि पाकिस्तान से बातचीत के आलावा कोई और रास्ता नहीं हैं और राज्य में जबरदस्ती की कोई सरकार नहीं चल सकती है और हमने राज्य के हितों की रक्षा की है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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