उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े विपक्षी नेता अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) घर मे बैठकर राजनीति करते हैं. ऐसा आरोप अब उनकी खूबी बनकर चमक सकता है. वो पर्दे के पीछे से होमवर्क और सियासी डेस्क वर्क कर रहे हैं. बताया जा रहा है कि बसपा (BSP) में बगावत के बाद सत्तारूढ़ भाजपा (BJP) के कुछ असंतुष्ट विधायक सपा अध्यक्ष के संपर्क मे हैं. और सही मुहूर्त की प्रतीक्षा कर रहे हैं. मौजूदा दौर में लोग कहते रहे हैं कि विपक्ष मरा हुआ है. विपक्षी दल सड़क पर कम उतरते हैं और घर मे बैठकर ट्विटर के जरिए राजनीति करते हैं. सपा पर निष्क्रियता के ऐसे सबसे अधिक आरोप लगे. आरोपों की परवाह किये बिना सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव जमीनी संघर्ष करके योगी सरकार (Yogi Government) के खिलाफ सड़क पर उतरने के बजाय सियासी होमवर्क और डेस्क वर्क करते रहे. लोग सोंचते रहे कि सपा नेता हाथ पर हाथ रख कर बैठे हैं. अखिलेश ने अपने पिता की विरासत के दो सियासी रास्तों में पहला फिलहाल छोड़ कर दूसरे रास्ते को ज्यादा वरीयता दी. पर्दे के पीछे से तोड़फोड़ को राजनीति पर उन्होंने पहले अमल किया, ओर सफलता भी पा ली.
इसे मौजूदा वक्त की ज़रुरत समझ कर वो बसपा को कतरने में कामयाब हुए. अब इसी दिशा में भाजपा के असंतुष्ट विधायकों/नेताओं पर निगाहें गढ़ाए बैठे हैं. क्योंकि शिकार के लिए घात लगाये बैठने के लिए खामोशी इख्तियार की जाती है. वजह ये थी और लोग सोच रहे थे कि खामोशी से हाथ पर हाथ रखकर बैठना किसी विपक्षी नेता का नाकारापन है. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बसपा में तोड़फोड़ करके यूपी की सियासत की धुंधली तस्वीर दिखा दी है.
यूपी विधानसभा चुनाव में डेढ़ साल से भी कम समय बचा है. यहां की जटिल राजनीति में कोई दल अकेले लड़ने की स्थिति मे नजर नहीं आ...
उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े विपक्षी नेता अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) घर मे बैठकर राजनीति करते हैं. ऐसा आरोप अब उनकी खूबी बनकर चमक सकता है. वो पर्दे के पीछे से होमवर्क और सियासी डेस्क वर्क कर रहे हैं. बताया जा रहा है कि बसपा (BSP) में बगावत के बाद सत्तारूढ़ भाजपा (BJP) के कुछ असंतुष्ट विधायक सपा अध्यक्ष के संपर्क मे हैं. और सही मुहूर्त की प्रतीक्षा कर रहे हैं. मौजूदा दौर में लोग कहते रहे हैं कि विपक्ष मरा हुआ है. विपक्षी दल सड़क पर कम उतरते हैं और घर मे बैठकर ट्विटर के जरिए राजनीति करते हैं. सपा पर निष्क्रियता के ऐसे सबसे अधिक आरोप लगे. आरोपों की परवाह किये बिना सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव जमीनी संघर्ष करके योगी सरकार (Yogi Government) के खिलाफ सड़क पर उतरने के बजाय सियासी होमवर्क और डेस्क वर्क करते रहे. लोग सोंचते रहे कि सपा नेता हाथ पर हाथ रख कर बैठे हैं. अखिलेश ने अपने पिता की विरासत के दो सियासी रास्तों में पहला फिलहाल छोड़ कर दूसरे रास्ते को ज्यादा वरीयता दी. पर्दे के पीछे से तोड़फोड़ को राजनीति पर उन्होंने पहले अमल किया, ओर सफलता भी पा ली.
इसे मौजूदा वक्त की ज़रुरत समझ कर वो बसपा को कतरने में कामयाब हुए. अब इसी दिशा में भाजपा के असंतुष्ट विधायकों/नेताओं पर निगाहें गढ़ाए बैठे हैं. क्योंकि शिकार के लिए घात लगाये बैठने के लिए खामोशी इख्तियार की जाती है. वजह ये थी और लोग सोच रहे थे कि खामोशी से हाथ पर हाथ रखकर बैठना किसी विपक्षी नेता का नाकारापन है. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बसपा में तोड़फोड़ करके यूपी की सियासत की धुंधली तस्वीर दिखा दी है.
यूपी विधानसभा चुनाव में डेढ़ साल से भी कम समय बचा है. यहां की जटिल राजनीति में कोई दल अकेले लड़ने की स्थिति मे नजर नहीं आ रहा है. भाजपा के खिलाफ गंठबंधन तैयार होने के संकेत मिल रहे हैं। गठबंधन किसी शक्तिशाली पार्टी के खिलाफ ही तैयार होता है. लेकिन भाजपा शायद आगामी विधानसभा चुनाव के लिए खुद को शक्तिशाली नहीं मान रही है. भाजपा का बसपा के साथ अप्रत्यक्ष रिश्ता साफ झलकने लगा है.
राज्यसभा चुनाव में बसपा के लिए एक सीट छोड़कर भाजपा ने संकेत दिये हैं कि यूपी के विधानसभा चुनाव में दोनों दलों के बीच कोई ना कोई सामंजस्य ज़रूर होगा. जैसे सपा-कांग्रेस एक दूसरे के सहारे के मोहताज दिख रहे हैं वैसे ही लग रहा है कि चुनावी मैदान में भाजपा को बसपा की और बसपा को भाजपा की मदद की जरुरत पड़ेगी. यूपी में राज्यसभा चुनाव के बाद यहां के उप चुनाव से पहले बहुत कुछ सियासी तस्वीरें साफ होती दिखेंगी.
सियासी दुकानें सजने लगी हैं. यहां के सभी छोटे-बड़े विपक्षी दल कुछ ना कुछ कर रहे हैं. महसूस होने लगा कि बसपा बतौर विपक्ष कुछ ना करके अपनी राजनीतिक रणनीति के तहत भाजपा के बीच सकारात्मक सामंजस्य बना रही है. कांगेस यहां अपनी खोयी हुई ज़मीन तलाश रही है. और सपा इसे स्पेस दे रही है. क्योंकि लग रहा है कि भाजपा जैसे शक्तिशाली सत्तारूढ़ दल से लड़ने के लिए सपा और कांग्रेस मिलकर एक दूसरे की ताकत बनेंगे.
यहां आप का भले ही वजूद ना हो पर यूपीप्रभारी/सांसद संजय सिंह ने सरकार विरोधी फिज़ां पैदा करने में अपनी कोशिशें जारी रखी हैं. लोकदल के जयंत चौधरी ने भी जमीनी संघर्ष शुरू कर दिया है. विपक्षी की तमाम चालों में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने राज्यसभा चुनाव के गुणा-भाग के खेल के बहाने पर्दे के पीछे से तोड़फोड़ कर एक नई सियासी हलचल पैदा कर दी है.
लम्बें समय तक रिहर्सल चलती है. जब पूरी तैयारी हो जाती है तो फुल मेकप/कॉस्ट्यूम, लाइट और साउंड के साथ रंगमंच का पर्दा खुलता है. यूपी में राज्यसभा चुनाव को लेकर बसपा विधायक एकदम से बाग़ी नहीं हो गया. तैयारी पहले से हो रही थी. लव मैरिज से पहले चोरी-चोरी चुपके-चुपके मिलना-जुलना, डेट पर जाना... ये सब लम्बा चलता है. इसी तरह अपनी पार्टी के असंतुष्ट विधायक/नेता दूसरी पार्टी के शीर्ष नेताओं से पहले चोरी छिपे मिलते हैं. संपर्क मे रह कर निगोशिएट करते हैं. शर्तें तय होती हैं और फिर कोई खूबसूरत सा बहाना ढूंढ कर पर्दा उठा दिया जाता है.
अब अंदर खेमे से ख़बर है कि बसपा के इन बाग़ियों के साथ सत्तारूढ़ भाजपा के असंतष्ट विधायक भी सपा से संपर्क साधे हुए हैं. अब इन्हें किसी बहाने का इंतेजार है. अपनी पार्टी से नाखुश भाजपा विधायकों का जिक्र तो अखिलेश यादव खुद कई बार कर भी चुके हैं.
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