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Ayodhya Verdict: कैसे CJI की अगुवाई वाली बेंच ऐतिहासिक Ram Mandir फैसले पर पहुंची

    • प्रभाष कुमार दत्ता
    • Updated: 09 नवम्बर, 2019 07:05 PM
  • 09 नवम्बर, 2019 07:05 PM
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राम मंदिर बाबरी मस्जिद मामले में 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को दरकिनार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है और बरसों से चली आ रही बहस को विराम दिया है.

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने आज इलाहाबाद हाईकोर्ट  के 2010 के उस फैसले को किनारे रख दिया, जिसमें तीनों ही पक्षों के बीच बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि (Ram Mandir Babri Masjid Title Dispute) मामले में विवादित भूमि(Disputed Land) का बंटवारा किया गया था. सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों (Five Judges Bench Of Supreme Court) की संवैधानिक पीठ ने उस फैसले के 8 साल बाद सर्वसम्मति से एक ऐतिहासिक फैसला (Ayodhya Faisla) सुनाया है.

सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) के निर्णय को पढ़ते हुए, निम्नलिखित बिंदुओं ने उन कारणों की व्याख्या की जिनको आधार बनाकर न्यायाधीशों, मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एसए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति अब्दुल नज़ीर ने बरसों से चले आ रहे इस मामले को विराम देते हुए रामलला को मालिकाना हक दिया और सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में ही अलग जमीन देकर मामला निपटाने का प्रयास किया.

अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए बरसों से चली आ रही बहस पर लगाम लगा दी है

समाधान के रूप में राम लल्ला को विवादित 2.77 एकड़ जमीन का असली मालिक बनाने और सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद के निर्माण के लिए 5 एकड़ जमीन के आवंटन को 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के मुआवजे के रूप में भी देखा जा रहा है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "शुद्ध परिणाम, क्योंकि यह प्रमाणिक रिकॉर्ड से निकलता है, इस प्रकार है:

1- विवादित स्थल एक समग्र है. 1856-7 में स्थापित रेलिंग ने न तो भूमि के उप-विभाजन और न ही शीर्षक का किसी बारे में कोई निर्धारण किया.

2- सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने एक उपयोगकर्ता द्वारा समर्पण के अपने मामले को स्थापित नहीं किया...

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने आज इलाहाबाद हाईकोर्ट  के 2010 के उस फैसले को किनारे रख दिया, जिसमें तीनों ही पक्षों के बीच बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि (Ram Mandir Babri Masjid Title Dispute) मामले में विवादित भूमि(Disputed Land) का बंटवारा किया गया था. सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों (Five Judges Bench Of Supreme Court) की संवैधानिक पीठ ने उस फैसले के 8 साल बाद सर्वसम्मति से एक ऐतिहासिक फैसला (Ayodhya Faisla) सुनाया है.

सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) के निर्णय को पढ़ते हुए, निम्नलिखित बिंदुओं ने उन कारणों की व्याख्या की जिनको आधार बनाकर न्यायाधीशों, मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एसए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति अब्दुल नज़ीर ने बरसों से चले आ रहे इस मामले को विराम देते हुए रामलला को मालिकाना हक दिया और सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में ही अलग जमीन देकर मामला निपटाने का प्रयास किया.

अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए बरसों से चली आ रही बहस पर लगाम लगा दी है

समाधान के रूप में राम लल्ला को विवादित 2.77 एकड़ जमीन का असली मालिक बनाने और सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद के निर्माण के लिए 5 एकड़ जमीन के आवंटन को 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के मुआवजे के रूप में भी देखा जा रहा है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "शुद्ध परिणाम, क्योंकि यह प्रमाणिक रिकॉर्ड से निकलता है, इस प्रकार है:

1- विवादित स्थल एक समग्र है. 1856-7 में स्थापित रेलिंग ने न तो भूमि के उप-विभाजन और न ही शीर्षक का किसी बारे में कोई निर्धारण किया.

2- सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने एक उपयोगकर्ता द्वारा समर्पण के अपने मामले को स्थापित नहीं किया है.

3 -प्रतिकूल कब्जे की वैकल्पिक याचिका सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड द्वारा स्थापित नहीं की गई है क्योंकि यह प्रतिकूल कब्जे की आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल रही है.

4 - हिंदू बाहरी आंगन में विशेष कब्जे में रहे हैं जहां उन्होंने पूजा जारी रखी है.

5- आंतरिक प्रांगण हिंदुओं और मुसलमानों के परस्पर विरोधी दावों के साथ एक विवादास्पद स्थल रहा है.

6- 6 दिसंबर 1992 तक मस्जिद की संरचना का अस्तित्व किसी भी प्रतिवाद को स्वीकार नहीं करता है. यह प्रस्ताव कि मस्जिद इस्लामी सिद्धांतों के साथ नहीं थी, खारिज हो गई. सबूत बताते हैं कि मुसलमानों द्वारा मस्जिद का परित्याग नहीं किया गया था. दिसंबर 1949 तक मस्जिद में शुक्रवार को नमाज देखी गई जिसे अंतिम बार 16 दिसंबर 1949 को देखा गया.

7- 1934 में मस्जिद को नुकसान पहुंचाना, 1949 में मुसलमानों का पलायन और 6 दिसंबर 1992 को मस्जिद के अंतिम विध्वंस ने देश के कानून का गंभीर रूप से उल्लंघन किया.

8- न्याय, इक्विटी और अच्छी अंतरात्मा के सिद्धांतों के अनुरूप, सूट 4 और 5 दोनों को कम करना होगा और राहत को इस तरीके से ढाला जाएगा जो न्याय, बंधुत्व, मानवीय गरिमा और धार्मिक विश्वास की समानता के संवैधानिक मूल्यों को संरक्षित करता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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