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केजरीवाल का लक्ष्य चुनाव जीतना नहीं, गुजरात में मोदी को चैलेंज करना है

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 03 सितम्बर, 2022 04:54 PM
  • 03 सितम्बर, 2022 04:51 PM
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अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की सक्रियता से लग रहा है जैसे वो पंजाब की तरह गुजरात (Gujarat Election) में भी सरकार बनाने की तैयारी में हैं, लेकिन ऐसा नहीं है - वो तो सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को सीधे सीधे चैलेंज करने के मौके ढूंढ रहे हैं.

मनीष सिसोदिया के घर पर हुई सीबीआई रेड से बीजेपी और आम आदमी पार्टी के नफे नुकसान का आकलन किया जाये तो ज्यादा फायदे में अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ही लगते हैं. बाद में हो सकता है बीजेपी का पलड़ा भारी नजर आये, लेकिन अभी तो अरविंद केजरीवाल ही बीस पड़ रहे हैं.

19 अगस्त, 2022 को हुई सीबीआई की छापेमारी से लेकर अब तक अरविंद केजरीवाल ने ऐसा एक भी मौका गंवाया नहीं है जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को घेरने की जरा सी भी गुंजाइश हो. एक तरफ सीबीआई की छापेमारी चल रही थी और दूसरी तरफ अरविंद केजरीवाल और उनके साथी लोगों को ये समझाते रहे कि 2024 के आम चुनाव में मुकाबला बीजेपी बनाम आम आदमी पार्टी होगा.

हंसी ठहाकों के बीच मजाक में ही सही, अब अरविंद केजरीवाल को ये कहते भी सुना गया है कि अगर मनीष सिसोदिया गिरफ्तार हो जाते हैं तो गुजरात में आम आदमी पार्टी की सरकार बन जाएगी - और फिर वो गुजरात दौरे पर निकल जाते हैं. मुफ्त की चीजें गिनाते गिनाते कई चीजों की गारंटी भी दे डालते हैं.

देखा जाये तो मुफ्त की चीजों को राष्ट्रीय मुद्दा बनाने की अरविंद केजरीवाल की तरफ से जो भी कोशिश हो रही है, मौका तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही दे डाला है. ये प्रधानमंत्री मोदी ही हैं जिन्होंने रेवड़ी कल्चर की राजनीति के बहाने अरविंद केजरीवाल को कठघरे में खड़ा किया था - और मौके पर ही वो भविष्य के चुनावों के वादों का हलफनामा पेश करने लगे.

बीजेपी के एक आंतरिक सर्वे के बाद खबर आयी है कि आने वाले कई चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही पार्टी का चेहरा होंगे, न कि बीजेपी के सत्ता में होने के बावजूद राज्यों के मुख्यमंत्री. ऐसे ही एक सर्वे में पता चला है कि गुजरात चुनाव (Gujarat Election) में बीजेपी को तो कोई मुश्किल नहीं होने वाली, लेकिन कांग्रेस को...

मनीष सिसोदिया के घर पर हुई सीबीआई रेड से बीजेपी और आम आदमी पार्टी के नफे नुकसान का आकलन किया जाये तो ज्यादा फायदे में अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ही लगते हैं. बाद में हो सकता है बीजेपी का पलड़ा भारी नजर आये, लेकिन अभी तो अरविंद केजरीवाल ही बीस पड़ रहे हैं.

19 अगस्त, 2022 को हुई सीबीआई की छापेमारी से लेकर अब तक अरविंद केजरीवाल ने ऐसा एक भी मौका गंवाया नहीं है जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को घेरने की जरा सी भी गुंजाइश हो. एक तरफ सीबीआई की छापेमारी चल रही थी और दूसरी तरफ अरविंद केजरीवाल और उनके साथी लोगों को ये समझाते रहे कि 2024 के आम चुनाव में मुकाबला बीजेपी बनाम आम आदमी पार्टी होगा.

हंसी ठहाकों के बीच मजाक में ही सही, अब अरविंद केजरीवाल को ये कहते भी सुना गया है कि अगर मनीष सिसोदिया गिरफ्तार हो जाते हैं तो गुजरात में आम आदमी पार्टी की सरकार बन जाएगी - और फिर वो गुजरात दौरे पर निकल जाते हैं. मुफ्त की चीजें गिनाते गिनाते कई चीजों की गारंटी भी दे डालते हैं.

देखा जाये तो मुफ्त की चीजों को राष्ट्रीय मुद्दा बनाने की अरविंद केजरीवाल की तरफ से जो भी कोशिश हो रही है, मौका तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही दे डाला है. ये प्रधानमंत्री मोदी ही हैं जिन्होंने रेवड़ी कल्चर की राजनीति के बहाने अरविंद केजरीवाल को कठघरे में खड़ा किया था - और मौके पर ही वो भविष्य के चुनावों के वादों का हलफनामा पेश करने लगे.

बीजेपी के एक आंतरिक सर्वे के बाद खबर आयी है कि आने वाले कई चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही पार्टी का चेहरा होंगे, न कि बीजेपी के सत्ता में होने के बावजूद राज्यों के मुख्यमंत्री. ऐसे ही एक सर्वे में पता चला है कि गुजरात चुनाव (Gujarat Election) में बीजेपी को तो कोई मुश्किल नहीं होने वाली, लेकिन कांग्रेस को अरविंद केजरीवाल की पार्टी काफी डैमेज कर सकती है - और उसका असर सिर्फ गुजरात तक ही सीमित नहीं रहने वाला है.

अरविंद केजरीवाल के लिए ये सब रणनीति निर्देशक तत्व साबित हो रहे हैं - और वो उसी हिसाब से विधानसभा चुनावों की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन सबसे ज्यादा फोकस गुजरात पर ही रहने वाला है. जैसे इस साल हुए पांच राज्यों के चुनाव में पहला फोकस पंजाब पर ही रहा. गोवा सहित यूपी और उत्तराखंड तो बस माहौल बनाने के लिए इस्तेमाल किये जा रहे थे.

अरविंद केजरीवाल जानते हैं कि गुजरात में नतीजे इकाई में भी आते हैं तो आगे के चुनावों के लिए दहाई संख्या जैसे असरदार होंगे - और यही वजह है कि अरविंद केजरीवाल का ज्यादा जोर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गुजरात के मैदान में आमने सामने चैलेंज करने का है, न कि सरकार बनाने की कोई उम्मीद होगी.

कांग्रेस का डर है केजरीवाल की खुशी का राज

ट्विटर, सोशल मीडिया और वर्चुअल प्रेस कांग्रेस स्कोप तो अब 24x7 हो गया है, फिर भी अरविंद केजरीवाल बीजेपी को घेरने के लिए नये नये इवेंट तैयार कर ले रहे हैं. सीबीआई रेड के बाद मनीष सिसोदिया ने दावा किया कि बीजेपी की तरफ से उनको मुख्यमंत्री बना देने का ऑफर मिला है. फिर क्या था, एक एक करके कई विधायक दावा करने लगे कि उनको पाला बदलने के लिए ₹ 20 करोड़ और रेफरल स्कीम में शामिल होने पर ₹ 25 करोड़ ऑफर किया गया है.

बीजेपी को तो नहीं, लेकिन गुजरात में केजरीवाल ने कांग्रेस को जरूर जरा दिया है.

जब ये बात प्रचारित हो गयी तो अरविंद केजरीवाल ने विधायकों की मीटिंग बुलायी. मीटिंग के दौरान ही खबर आने लगी कि 40 विधायकों से संपर्क नहीं हो पा रहा है. आप की तरफ से दावा किया गया कि बीजेपी उन विधायकों को खरीदने की कोशिश कर रही है. मीटिंग के बाद अरविंद केजरीवाल विधायकों के साथ राजघाट पहुंच गये और गांधी प्रतिमा के पास से बीजेपी को खूब खरी खोटी सुनायी.

और आखिर में ये साबित करने के लिए कि बीजेपी उनके विधायकों को नहीं खरीद पायी, अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव पेश किया - कोई शक शुबहा भी नहीं था और वो जीत भी गये. सदन के पटल से ही अरविंद केजरीवाल ने तरह तरह से बीजेपी पर हमला बोला और वहां भी मनीष सिसोदिया के यहां सीबीआई की छापेमारी के फायदे गिनाने लगे.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बताया कि सीबीआई ने जब से मनीष सिसोदिया के घर छापेमारी की है, गुजरात में आम आदमी पार्टी का वोट शेयर चार फीसदी बढ़ गया है. कहने लगे, 'मुझे लगता है जिस दिन मनीष सिसोदिया को गिरफ्तार किया जाएगा, उस दिन हमारा 6 प्रतिशत वोट और बढ़ जाएगा.'

और फिर मजाकिया लहजे में यहां तक कह डाला कि 'अगर मनीष सिसोदिया दो बार गिरफ्तार हो गये तो गुजरात में हमारी सरकार बन जाएगी!'

बीजेपी से ज्यादा केजरीवाल से डरी है कांग्रेस: मनीष सिसोदिया के घर सीबीआई रेड को लेकर बीजेपी का खुश होना तो बनता था, लेकिन जिस तरीके से कांग्रेस नेताओं ने अरविंद केजरीवाल को घेरा और आम आदमी पार्टी के दफ्तर के बाहर प्रदर्शन किया - अरविंद केजरीवाल को खुश होने के लिए ये काफी था.

ETG और टाइम्स नाउ नवभारत के एक सर्वे के मुताबिक, अरविंद केजरीवाल के गुजरात दौरों से अभी बीजेपी की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है, लेकिन ये अभी की स्थिति है. फिर तो ये भी हो सकता है कि आगे समीकरण बदल भी जायें.

सर्वे के मुताबिक, आज की तारीख में चुनाव होने की सूरत में बीजेपी को 115 से 125 सीटें तक मिल जाने की संभावना है. मतलब, बीजेपी बड़े आराम से पूर्ण बहुमत हासिल करने जा रही है. लेकिन कांग्रेस बहुमत से बहुत दूर नजर आ रही है क्योंकि अरविंद केजरीवाल की पार्टी से भी उसे ही टक्कर मिल रही है. सच तो ये है कि अरविंद केजरीवाल गुजरात में भी कांग्रेस की ही सीटों पर कब्जा जमाने की कोशिश में हैं.

कांग्रेस को, सर्वे के मुताबिक, 39-44 सीटें और आम आदमी पार्टी को 13-18 सीटें मिलने का अनुमान लगाया जा रहा है - ये तो यही बता रहा है कि कांग्रेस को गुजरात में इस बार बीजेपी से ज्यादा अरविंद केजरीवाल से डर लग रहा है.

देखा जाये तो ये सर्वे कांग्रेस को डरा रहा है जबकि अरविंद केजरीवाल की खुशी के राज भी बता रहा है. असल में कांग्रेस को गुजरात में हार का डर नहीं है. कांग्रेस में राहुल गांधी को छोड़ कर गुजरात का कोई भी नेता सरकार बना पाने के बारे भी नहीं सोच रहा होगा. राहुल गांधी ऐसा इसलिए सोच रहे होंगे क्योंकि कांग्रेस के चिंतन शिविर में मंत्र ही यही दिया था, बस सोच लो... चुनाव जीत रहे हो... और बीजेपी को हरा दोगे.

कांग्रेस को असल में ये डर सता रहा है कि कहीं गुजरात का असर आने वाले चुनावों के नतीजों पर न पड़ने लगे. कांग्रेस की चिंता गुजरात और हिमाचल प्रदेश नहीं, बल्कि 2023 के तीन राज्यों के चुनावों लेकर है, जिनमें से दो राज्यों में कांग्रेस की ही सरकारें हैं - राजस्थान और छत्तीसगढ़. बीजेपी के ऑपरेशन लोटस और ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के चलते कांग्रेस को कोरोना काल में लॉकडाउन से पहले ही सत्ता गंवानी पड़ी थी, लेकिन सोनिया गांधी ने फिर से कमलनाथ को मध्य प्रदेश में खोया हुआ सम्मान हासिल करने का टास्क दे रखा है. दिल्ली की राजनीति में दिग्विजय सिंह आ चुके हैं और तब तक तो कमलनाथ के लिए दिल्ली दूर ही हो चुकी है.

गुजरात में केजरीवाल और मोदी होंगे आमने सामने

अव्वल तो गुजरात में बीजेपी की सरकार है और अरविंद केजरीवाल के निशाने पर मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल होने चाहिये, लेकिन केजरीवाल भी तो राहुल गांधी की ही तरह मोदी पर ही लेवल मेनटेन करते हैं - हालात कुछ ऐसे बन पड़े हैं कि बीजेपी की चुनावी रणनीति का फायदा अरविंद केजरीवाल भी उठा सकते हैं.

बीजेपी ने, दरअसल, एक आंतरिक सर्वे के बाद 2023 तक होने वाले सभी विधानसभा चुनाव सामूहिक नेतृत्व में लड़ने का फैसला किया है. कहने का मतलब ये है कि सत्ता में होने के बाद भी बीजेपी किसी भी राज्य में अपने मुख्यमंत्री को चेहरा नहीं बनाएगी - बल्कि वोट प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर मांगे जाएंगे. यूपी को लेकर ऐसी कोई बात तो नहीं थी, लेकिन देखा तो यही गया कि अमित शाह, योगी आदित्यनाथ के लिए भी प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर ही वोट मांग रहे थे.

बीजेपी संसदीय बोर्ड के पुनर्गठन के बाद जो फीडबैक मिले हैं उसके आधार पर आलाकमान के स्तर पर सहमति बनी है कि जिन राज्यों में पार्टी सत्ता में है, सत्ता विरोधी लहर फेस करना ही पड़ेगा - और उसका काउंटर मुख्यमंत्रियों को पीछे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आगे करके ही किया जा सकता है. ऐसे लोगों को प्रधानमंत्री मोदी डबल इंजिन की सरकार के फायदे समझाएंगे और बाकी पूरी टीम हां में हां मिलाएगी.

ये तो केजरीवाल की ही किस्मत लगती है कि प्रधानमंत्री मोदी को जगह जगह घेरने के लिए उनको मौका आगे भी मिलता रहेगा - और जैसे मनीष सिसोदिया के घर पड़ी रेड का वो भरपूर फायदा उठाये, आने वाला कोई भी मौका शायद ही छोड़ें.

गुजरात नहीं, देश में सरकार नहीं बनानी है

2022 के आखिर में गुजरात के साथ ही हिमाचल प्रदेश में भी विधानसभा चुनाव होंगे. वैसे ही 2023 के आखिर में पांच राज्यों में चुनाव होंगे जिनमें बीजेपी का जोर तो तेलंगाना पर भी है, लेकिन अरविंद केजरीवाल की अभी तक कोई दिलचस्पी नहीं दिखी है. हां, राहुल गांधी तेलंगाना को लेकर सक्रिय जरूर हैं.

गुजरात के बाद 2023 के शुरू में चुनाव तो नॉर्थ ईस्ट में भी कई राज्यों में होंगे, लेकिन अरविंद केजरीवाल की दिलचस्पी अभी तक सिर्फ कर्नाटक में देखी गयी है. गुजरात और हिमाचल प्रदेश के साथ ही वो कर्नाटक में भी चुनावी तैयारी कर रहे हैं.

गुजरात के नतीजों का पहला फायदा अरविंद केजरीवाल कर्नाटक में ही उठाने की कोशिश करेंगे. तब कर्नाटक जाकर समझाएंगे कि देखो कैसे गुजरात में घुस कर बीजेपी को चैलेंज किया है - और प्रधानमंत्री मोदी के मोर्चे पर आगे होने के बाद भी आम आदपी पार्टी पर लोगों का भरोसा बढ़ने लगा है.

ऐसे ही चुनाव दर चुनाव कैंपेन कर अरविंद केजरीवाल राष्ट्रीय राजनीति में जगह बनाने की कोशिश में जुटे हैं - ताकि 2024 के आम चुनाव में सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दो दो हाथ कर सकें.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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