• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

क्या केजरीवाल के लिए भी जांच एजेंसियां वैसी ही चुनौती हैं, जैसे बाकी विपक्षी नेताओं के सामने?

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 22 अगस्त, 2022 02:03 PM
  • 22 अगस्त, 2022 02:00 PM
offline
ऐसा पहली बार हो रहा है कि बीजेपी नेता सीधे सीधे अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) पर भ्रष्टाचार का इल्जाम लगा रहे हैं - और एजेंसियों (CBI-ED) से मनीष सिसोदिया (Manish Sisodia) के साथ साथ उनको भी जांच के दायरे में लाये जाने की मांग हो रही है.

ये अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ही हैं जो 2014 के आम चुनाव से काफी पहले भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग छेड़े हुए थे. 2010 से 2011 के रामलीला आंदोलन तक अरविंद केजरीवाल भ्रष्टाचार के खिलाफ योद्धा बन कर उभरे थे - आगे चेहरा तो अन्ना हजारे का रहा लेकिन ये सबको पता था कि आंदोलन के मुख्य आर्किटेक्ट अरविंद केजरीवाल ही रहे.

2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में ये साबित भी हो गया जब 15 साल से मुख्यमंत्री रहीं कांग्रेस नेता शीला दीक्षित को उनके इलाके में जाकर अरविंद केजरीवाल ने शिकस्त दे डाली थी. तब केंद्र में भी कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए की सरकार थी और भ्रष्टाचार के कई आरोपों की वजह से लगातार घिरी रही. नतीजा ये हुआ कि साल भर बाद ही 2014 के आम चुनाव में कांग्रेस केंद्र की सत्ता से बाहर हो गयी.

एक तो कांग्रेस सरकार पहले से ही निशाने पर रही, दूसरे बीजेपी के तब के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी 'अच्छे दिन...' के वादे और 'काले धन के 15 लाख...' वाले जुमले के साथ आकर लोगों के मन में नयी उम्मीद जगा दी - और लोग दिल के साथ साथ मोदी को वोट भी दे बैठे. पांच साल बाद फिर से सिर आंखों पर बिठाया. मोदी अब भी लोगों के आंखों के तारे बने हुए हैं और बाकी सारे प्रतिद्वद्वियों से मीलों आगे हैं.

और ये अरविंद केजरीवाल ही रहे जो मोदी-शाह के विजय रथ की राह में बिहार की हार से पहले दिल्ली चुनाव में अपशकुन बन गये. 2014 के आम चुनाव के बाद बीजेपी ने दिल्ली से पहले के सारे चुनाव जीते थे, लेकिन दिल्ली और उसके बाद बिहार में भी बुरी तरह हार का मुंह देखना पड़ा - और 2020 में भी सारे मोदी-शाह के सारे ही साम-दाम-दंड-भेद बुरी तरह फेल साबित हुए.

जांच पड़ताल तो किसी न किसी बहाने अरविंद केजरीवाल के दफ्तर और मनीष सिसोदिया (Manish Sisodia) के यहां पहले भी हो चुकी है,...

ये अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ही हैं जो 2014 के आम चुनाव से काफी पहले भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग छेड़े हुए थे. 2010 से 2011 के रामलीला आंदोलन तक अरविंद केजरीवाल भ्रष्टाचार के खिलाफ योद्धा बन कर उभरे थे - आगे चेहरा तो अन्ना हजारे का रहा लेकिन ये सबको पता था कि आंदोलन के मुख्य आर्किटेक्ट अरविंद केजरीवाल ही रहे.

2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में ये साबित भी हो गया जब 15 साल से मुख्यमंत्री रहीं कांग्रेस नेता शीला दीक्षित को उनके इलाके में जाकर अरविंद केजरीवाल ने शिकस्त दे डाली थी. तब केंद्र में भी कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए की सरकार थी और भ्रष्टाचार के कई आरोपों की वजह से लगातार घिरी रही. नतीजा ये हुआ कि साल भर बाद ही 2014 के आम चुनाव में कांग्रेस केंद्र की सत्ता से बाहर हो गयी.

एक तो कांग्रेस सरकार पहले से ही निशाने पर रही, दूसरे बीजेपी के तब के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी 'अच्छे दिन...' के वादे और 'काले धन के 15 लाख...' वाले जुमले के साथ आकर लोगों के मन में नयी उम्मीद जगा दी - और लोग दिल के साथ साथ मोदी को वोट भी दे बैठे. पांच साल बाद फिर से सिर आंखों पर बिठाया. मोदी अब भी लोगों के आंखों के तारे बने हुए हैं और बाकी सारे प्रतिद्वद्वियों से मीलों आगे हैं.

और ये अरविंद केजरीवाल ही रहे जो मोदी-शाह के विजय रथ की राह में बिहार की हार से पहले दिल्ली चुनाव में अपशकुन बन गये. 2014 के आम चुनाव के बाद बीजेपी ने दिल्ली से पहले के सारे चुनाव जीते थे, लेकिन दिल्ली और उसके बाद बिहार में भी बुरी तरह हार का मुंह देखना पड़ा - और 2020 में भी सारे मोदी-शाह के सारे ही साम-दाम-दंड-भेद बुरी तरह फेल साबित हुए.

जांच पड़ताल तो किसी न किसी बहाने अरविंद केजरीवाल के दफ्तर और मनीष सिसोदिया (Manish Sisodia) के यहां पहले भी हो चुकी है, लेकिन उसके बाद तो अरविंद केजरीवाल यहां तक कहने लगे थे कि मोदी सरकार से उन्हें देश के सबसे ईमानदार मुख्यमंत्री होने का सर्टिफिकेट मिल चुका है - क्योंकि किसी भी जांच पड़ताल और छापेमारी के बाद भी कुछ निकल कर सामने नहीं आया था.

लेकिन अभी से पहले कभी बीजेपी नेताओं ने अरविंद केजरीवाल पर इस कदर सीधे सीधे भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगाया था. आतंकवादियों का मददगार साबित करने पर तो काफी जोर दिखा, दिल्ली में भी और पंजाब चुनाव में भी, लेकिन ऐसे घेरेबंदी पहली बार देखने को मिल रही है.

कहने को तो बीजेपी नेता कपिल मिश्रा बहुत पहले ही अरविंद केजरीवाल पर दो करोड़ रुपये की रिश्वत लेने का आरोप लगा चुके हैं, लेकिन कहीं से कोई खास प्रतिक्रिया न होने से वो अकेले ही पड़ गये थे - दावा तो यहां तक किया था कि वो जांच एजेंसियों को सबूत भी देंगे, लेकिन आगे क्या हुआ किसी को मालूम तो नहीं ही चला. अगर कुछ दम होता तो यूं ही खामोशी तो छायी नहीं रहती.

राहुल गांधी और सोनिया गांधी तो पहले से ही सॉफ्ट टारगेट रहे. विपक्षी खेमे के कई नेता जांच एजेंसियों (CBI-ED) के एक्शन से परेशान हैं, लेकिन ऐसा पहली बार हो रहा है जब अरविंद केजरीवाल भी घिरे हुए लगते हैं - जांच-पड़ताल होगी सही गलत का फैसला भी अदालत से ही होगा, लेकिन तात्कालिक मुश्किलें तो परेशान कर ही रही हैं.

ये ठीक है कि अरविंद केजरीवाल ने सीबीआई रेड के बाद बीजेपी नेताओं के हमले को काउंटर करने के लिए मुद्दे को 2024 के आम चुनाव से जोड़ कर पेश करने की कोशिश की है - और दावा किया जाने लगा है कि 2024 की लड़ाई मोदी बनाम केजरीवाल होने जा रही है. लेकिन ये भी तो है कि जिन विधानसभा चुनावों की तैयारी में अरविंद केजरीवाल जोर शोर से जुटे हुए थे, उन पर सीधा असर तो होने ही वाला है.

अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर जानकारी दी है कि 22 अगस्त को वो मनीष सिसोदिया के साथ दो दिन के दौरे पर गुजरात जा रहे हैं - तो क्या अभी जो कुछ भी हो रहा है वो गुजरात विधानसभा चुनाव को लेकर हो रहा है?

क्या केजरीवाल की छवि कठघरे में खड़ी है?

मनीष सिसोदिया के यहां तो सिर्फ सीबीआई की रेड पड़ी है, जब से दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी है अरविंद केजरीवाल के कई सारे साथी अलग अलग वजहों से जेल जा चुके हैं. केजरीवाल सरकार के कानून मंत्री तो अपनी कानून की ही फर्जी डिग्री के लिए जेल गये थे.

क्या अरविंद केजरीवाल को गुजरात चुनाव में उतरने की कीमत चुकानी पड़ रही है?

ताजा मामला दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन की मनी लॉन्ड्रिंग केस में गिरफ्तारी रही - और उनके बचाव में अरविंद केजरीवाल ने पहले तो ये कहना शुरू किया कि प्रवर्तन निदेशालय के केस में ही कोई दम नहीं है, बाद में कहने लगे कि ये लोग मनीष सिसोदिया को भी गिरफ्तार करना चाहते हैं. अब तो नौबत ये आ चुकी है कि मनीष सिसोदिया खुद कहने लगे हैं कि कभी भी उनको गिरफ्तार किया जा सकता है.

देखा जाये तो अरविंद केजरीवाल के लिए ये भी कोई बड़ी चीज नहीं है. अगर अरविंद केजरीवाल के लिए को चिंता वाली कोई बात है तो उनके ऊपर भ्रष्टाचार के मास्टरमाइंड होने का इल्जाम है - और ऐसे इल्जाम बीजेपी के वही दो नेता लगा रहे हैं जो दिल्ली चुनाव के दौरान अरविंद केजरीवाल को आतंकवादियों की मददगार साबित करने पर तुले हुए थे.

ये दो बीजेपी नेता हैं - केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और दिल्ली से बीजेपी सांसद प्रवेश वर्मा. आपको याद होगा दिल्ली चुनावों के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बार बार अरविंद केजरीवाल को प्रवेश वर्मा से आमने सामने की बहस के लिए ललकार रहे थे. हालांकि, चुनावों में हार के बाद अमित शाह ने ये भी माना कि ऐसे बीजेपी नेताओं के बयानों को उनके राजनीतिक विरोधियों ने मुद्दा बना दिया.

असल में अनुराग ठाकुर और प्रवेश वर्मा के दावों के काउंटर में अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के लोगों के सामने आकर घोषणा कर दी थी कि अगर वे उनको आतंकवादी मानते हैं तो मतदान के दिन बीजेपी को अपना वोट दे दें. अरविंद केजरीवाल की ये चाल काम कर गयी और बड़े आराम से सत्ता में वापसी हो गयी.

दिल्ली की लीकर पॉलिसी पर सवाल खड़ा करते हुए अनुराग ठाकुर शराब घोटाले में अरविंद केजरीवाल को किंगपिन बता रहे हैं, जबकि प्रवेश वर्मा का इल्जाम है कि मनीष सिसोदिया ने तो भ्रष्टाचार किया ही है, लेकिन असली मास्टरमाइंड अरविंद केजरीवाल ही हैं. ये बीजेपी नेता अब सीबीआई से मनीष सिसोदिया के साथ ही अरविंद केजरीवाल को भी जांच के दायरे में लाये जाने की मांग कर रहे हैं.

अभी तक अरविंद केजरीवाल को भी नीतीश कुमार और ममता बनर्जी जैसे नेताओं कि श्रेणी में गिना जाता रहा जिनकी बेदाग छवि है - लेकिन मनीष सिसोदिया के फंसने के बाद जिस तरीके से बीजेपी नेता हमलावर हैं, केजरीवाल के फंसने की आशंका भी जतायी जाने लगी है.

जांच एजेंसियों की विश्वसनीयता पर भी सवाल

बीजेपी नेता और सरकार की तरफ से अक्सर सफाई भी पेश की जाती रही है कि कानून अपना काम कर रहा है - और जांच एजेंसियां भी अपने स्तर पर जांच पड़ताल कर रही हैं. हैरानी तो तब होती है जब जांच एजेंसियों की जगह मीडिया को बुलाकर उसी मुद्दे पर बीजेपी के नेता प्रेस कांफ्रेंस करने लगते हैं.

प्रवर्तन निदेशालय की पूछताछ के दौरान राहुल गांधी ने भी सवाल उठाया था कि जांच से जुड़ी जानकारी बाहर कैसे जा रही है? कांग्रेस की तरफ से गृह मंत्री अमित शाह, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और कानून मंत्री किरण रिजिजू को नोटिस देकर पूछा गया है कि आखिर कैसे उन्हें पूछताछ की सारी जानकारी मिल रही है?

अगर वाकई सीबीआई जैसी जांच एजेंसी 'पिंजरे का तोता' वाली तोहमत से मुक्त हो चुकी है, तो कभी केंद्र और कई राज्यों में सत्ताधारी बीजेपी के किसी नेता की जांच पड़ताल या छापेमारी करते नजर क्यों नहीं आती?

भला ऐसा कैसे हो सकता है कि देश के किसी भी कोने में बीजेपी का हर नेता ईमानदार ही हो - कुदरत के खांचे में अपवाद मिल जाते हैं, लेकिन सीबीआई को बीजेपी में ऐसा कोई नेता क्यों नहीं मिल पाता?

चलो ये भी मान लेते हैं कि संघ की पृष्ठभूमि से आने वाले बीजेपी नेता ईमानदार हो सकते हैं, लेकिन वे जो बाहर से बीजेपी में दाखिला लिये हैं?

क्या बीजेपी में दूसरे दलों के भी इमानदार नेताओं को ही एंट्री मिलती है? कहा तो ये जाता है कि बीजेपी वो गंगा बन गयी है जिसका दामन थामते ही भ्रष्टाचार और दूसरे सारे आपराधिक पाप तत्काल प्रभाव से धुल जाते हैं. हाल ही में एक कार्टून में बीजेपी ज्वाइन करने वाले एक नेता को सीने पर लगे कमल के फूल की तरफ इशारा करते हुए कहा गया था कि ये ऐसा ताबीज है जिसे पहन लेने पर ईडी और सीबीआई जैसे सारे भूत प्रेत आस पास नहीं फटकते.

जांच एजेंसियों की ईमानदारी पर बट्टा तो तब भी लगता है जब नोटिस भेजने और पूछताछ के मामले में वे शुभेंदु अधिकारी और टीएमसी नेताओं के साथ अलग अलग पेश आती हैं - आखिर इस बात के लिए क्या दलील हो सकती है कि भ्रष्टाचार के एक ही केस में टीएमसी नेताओं को नोटिस मिले, पूछताछ और जेल तक भेज दिया जाये, लेकिन शुभेंदु अधिकारी के आस पास कोई फटकने की हिम्मत नहीं जुटा पाता - क्या सिर्फ इसलिए क्योंकि वो बीजेपी के नेता हैं जिसकी केंद्र में सरकार है?

अगर ऐसा ही सिलसिला चलता रहा तो लोग इंसाफ पाने के लिए सीबीआई जांच की मांग से भी परहेज करने लगेंगे - और सीबीआई की साख पर वो सबसे बड़ा बट्टा होगा. ऐसे भी कई मामले देखने को मिले हैं जब जांच एजेंसियों के अफसर किसी भी तरह के दबाव की परवाह न करते हुए जांच जारी रखते हैं, हालांकि, ये सब ज्यादा तब होता है जब जांच सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट की निगरानी में चल रही होती है. डेरा सच्चा सौदा वाले राम रहीम और बीजेपी विधायक रहे कुलदीप सिंह सेंगर को उन्नाव गैंगरेप में मिली सजायें ऐसी ही मिसाल हैं.

जांच एजेंसियों की ही तरह बीजेपी नेतृत्व की साख पर भी असर हो सकता है और लेने के देने पड़ सकते हैं, अगर लोगों को लगने लगा कि विपक्षी दलों के नेताओं को जानबूझ कर केंद्रीय जांच एजेंसिया निशाना बना रही हैं. कल्पना कीजिये क्या स्थिति होगी? अभी तो लोगों को लग रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी टीम चोरों को खोज खोज कर जेल भेज रहे हैं - लेकिन तब क्या होगा जब सारे आरोपी अदालत से एक एक कर बाइज्जत बरी होने लगे? जनता अगर किसी को सिर आंखों पर बिठाती है, तो नजरों से गिराते भी देर नहीं लगती.

इन्हें भी पढ़ें :

सिसोदिया के घर सीबीआई छापे से साफ है कि केजरीवाल तीसरी ताकत बन चुके हैं

मनीष सिसोदिया पर CBI छापे ने आप और केजरीवाल को चौतरफा उलझा दिया

2024 के लिए केजरीवाल ने दिखाया 2014 के मोदी वाला तेवर, निशाने पर तो कांग्रेस है


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲