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अन्ना हजारे को केजरीवाल की 'शराब नीति' बीजेपी के आरोपों के बाद ही गलत क्यों लगी?

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 31 अगस्त, 2022 07:09 PM
  • 31 अगस्त, 2022 07:09 PM
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अन्ना हजारे (Anna Hazare) ने एक पत्र लिख कर अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की राजनीति पर सवाल खड़ा किया है. अगर वो दिल्ली सरकार की शराब नीति में भ्रष्टाचार के बीजेपी के आरोप (BJP Corruption Allegations) से पहले पूछे होते तो केजरीवाल को जवाब देते नहीं बनता.

अन्ना हजारे (Anna Hazare) के पत्र पर भी वैसा ही सवाल उठा है, जैसा गुलाम नबी आजाद की चिट्ठी की टाइमिंग पर उठाया जा रहा था. गांधीवादी समाजसेवी अन्ना हजारे ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पहली बार सार्वजनिक पत्र लिखा है, उनके राजनीति में आने के बाद.

कांग्रेस छोड़ते हुए जम्मू-कश्मीर से आने वाले गुलाम नबी आजाद ने भी सोनिया गांधी को एक लंबा पत्र लिखा था. गुलाम नबी आजाद के पत्र को लेकर जैसी सचिन पायलट की प्रतिक्रिया रही, अन्ना हजारे की चिट्ठी पर अरविंद केजरीवाल और AAP नेताओं रिएक्शन भी मिलता जुलता ही है.

ये अन्ना हजारे ही हैं जिनके पीछे पीछे आंदोलन के रास्ते चलते हुए अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) राजनीति में आये. ऐसे में अरविंद केजरीवाल के नाम अन्ना हजारे का शिकायती पत्र देश की राजनीति में खास मायने रखता है - क्योंकि भ्रष्टाचार के खिलाफ अरविंद केजरीवाल के आंदोलन का नेतृत्व करने वाले अन्ना हजारे ने टीम अन्ना के मुख्य सूत्रधार की राजनीति या कहें, राजनीतिक मंशा पर सवाल उठा दिया है.

अरविंद केजरीवाल ने भी अन्ना हजारे की चिट्ठी पर सवाल उठा दिया है. वैसे अरविंद केजरीवाल तो दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया के घर पर सीबीआई के छापे पर भी सवाल उठाते रहे हैं - और दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येंद्र जैन के खिलाफ चल रहे मनी लॉन्ड्रिंग केस को ही फर्जी करार दे चुके हैं.

निश्चित तौर पर अन्ना हजारे के पत्र पर अरविंद केजरीवाल का रिएक्शन राजनीतिक है - लेकिन क्या अन्ना हजारे का पत्र सवालों से परे है?

अगर केजरीवाल सरकार की शराब नीति गड़बड़ थी तो अन्ना पहले भी सवाल उठा सकते थे. दिल्ली की शराब नीति पर तो शुरू से ही सवाल उठते रहे - और कोई नहीं तो अरविंद केजरीवाल के राजनीतिक विरोधी, खास कर बीजेपी नेता तो उठाते ही रहे हैं.

अन्ना हजारे का कहना है कि...

अन्ना हजारे (Anna Hazare) के पत्र पर भी वैसा ही सवाल उठा है, जैसा गुलाम नबी आजाद की चिट्ठी की टाइमिंग पर उठाया जा रहा था. गांधीवादी समाजसेवी अन्ना हजारे ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पहली बार सार्वजनिक पत्र लिखा है, उनके राजनीति में आने के बाद.

कांग्रेस छोड़ते हुए जम्मू-कश्मीर से आने वाले गुलाम नबी आजाद ने भी सोनिया गांधी को एक लंबा पत्र लिखा था. गुलाम नबी आजाद के पत्र को लेकर जैसी सचिन पायलट की प्रतिक्रिया रही, अन्ना हजारे की चिट्ठी पर अरविंद केजरीवाल और AAP नेताओं रिएक्शन भी मिलता जुलता ही है.

ये अन्ना हजारे ही हैं जिनके पीछे पीछे आंदोलन के रास्ते चलते हुए अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) राजनीति में आये. ऐसे में अरविंद केजरीवाल के नाम अन्ना हजारे का शिकायती पत्र देश की राजनीति में खास मायने रखता है - क्योंकि भ्रष्टाचार के खिलाफ अरविंद केजरीवाल के आंदोलन का नेतृत्व करने वाले अन्ना हजारे ने टीम अन्ना के मुख्य सूत्रधार की राजनीति या कहें, राजनीतिक मंशा पर सवाल उठा दिया है.

अरविंद केजरीवाल ने भी अन्ना हजारे की चिट्ठी पर सवाल उठा दिया है. वैसे अरविंद केजरीवाल तो दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया के घर पर सीबीआई के छापे पर भी सवाल उठाते रहे हैं - और दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येंद्र जैन के खिलाफ चल रहे मनी लॉन्ड्रिंग केस को ही फर्जी करार दे चुके हैं.

निश्चित तौर पर अन्ना हजारे के पत्र पर अरविंद केजरीवाल का रिएक्शन राजनीतिक है - लेकिन क्या अन्ना हजारे का पत्र सवालों से परे है?

अगर केजरीवाल सरकार की शराब नीति गड़बड़ थी तो अन्ना पहले भी सवाल उठा सकते थे. दिल्ली की शराब नीति पर तो शुरू से ही सवाल उठते रहे - और कोई नहीं तो अरविंद केजरीवाल के राजनीतिक विरोधी, खास कर बीजेपी नेता तो उठाते ही रहे हैं.

अन्ना हजारे का कहना है कि शराब नीति को लेकर दिल्ली से मिल रही खबरों के चलते ही वो पत्र लिखने को मजबूर हुए हैं. जब लॉकडाउन के बाद दिल्ली में शराब की दुकाने खोली गयी थीं, मीडिया में सुर्खियां तब भी बनी थी. जाहिर है दिल्ली से शराब को लेकर खबरें तो अन्ना हजारे तक पहुंची ही होंगी.

लॉकडाउन हट गया था, लेकिन कोविड का प्रकोप बना हुआ था और तभी दिल्ली में शराब की दुकानें खोले जाने के लेकर सवाल उठ रहे थे - तब तो अन्ना हजारे ने कोई पत्र नहीं लिखा. अगर तब नहीं लिखा और अब लिख रहे हैं तो सवाल तो खड़े होंगे ही.

सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि अन्ना हजारे को अरविंद केजरीवाल की 'शराब नीति' बीजेपी नेताओं के भ्रष्टाचार के आरोपों (BJP Corruption Allegations) के बाद ही गलत क्यों लगी? अन्ना हजारे की चेतना तभी जागृत क्यों हुई जब मनीष सिसोदिया के घर पर सीबीआई की रेड पड़ी?

जब तक दिल्ली के शराब घोटाले की जांच रिपोर्ट नहीं आ जाती और असली गुनहागार सामने नहीं आ जाता. ये सारा बवाल तो राजनीतिक जोर आजमाइश का नतीजा ही लग रहा है - ताज्जुब इसलिए भी हो रहा है कि अन्ना हजारे इस राजनीतिक लड़ाई में क्यों पड़ रहे हैं?

हैरानी इसलिए भी हो रही है क्योंकि अन्ना हजारे सिर्फ अरविंद केजरीवाल पर सवाल नहीं उठा रहे हैं, वो इस राजनीति को भी किसी खास चश्मे से देख रहे हैं. जैसे बीजेपी नेता दिल्ली की शराब नीति पर सवाल उठा रहे हैं, अरविंद केजरीवाल सहित आम आदमी पार्टी के नेता भी तो गुजरात में शराब से हुई मौतों पर सवाल उठा रहे हैं.

क्या अरविंद केजरीवाल के साथ ही गुजरात की शराब नीति को लेकर अन्ना हजारे एक पत्र मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल को नहीं लिख सकते थे? अगर अन्ना हजारे ने ये किया होता तो क्या अरविंद केजरीवाल को जवाब देते बनता?

गुजरात से पहले बिहार से भी शराब से होने वाली मौतों की कई बार खबर आ चुकी है, लेकिन अन्ना हजारे ने कभी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को कोई पत्र नहीं लिखा! अन्ना हजारे ने न तो कभी बिहार की घटनाओं पर सवाल खड़े किये न ही गुजरात की शराब नीति को लेकर - जबकि दोनों जगह शराबबंदी है, लेकिन शराब नीति को लेकर सवाल वो सिर्फ अरविंद केजरीवाल से सवाल पूछ रहे हैं.

अन्ना हजारे के खत में क्या लिखा है?

दिल्ली सरकार की शराब नीति पर सवाल खड़ा करते हुए अन्ना हजारे ने पत्र लिख कर अरविंद केजरीवाल से कहा है, 'जिस प्रकार शराब का नशा होता है... उसी प्रकार सत्ता का भी नशा होता है... आप भी ऐसी सत्ता के नशे में डूब गए हो, ऐसा लग रहा है.'

बस यही वो लाइन है जो इल्जाम नहीं बल्कि अरविंद केजरीवाल से अन्ना हजारे के उलाहना जैसी लग रही है. इससे तो बस यही लगता है कि अन्ना हजारे ने अरविंद केजरीवाल के प्रति गुस्से का इजहार किया है, लेकिन दुश्मन की तरह नहीं. ऐसा गुस्सा तो अन्ना हजारे ने अरविंद केजरीवाल से तब भी दिखाया था जब एक दशक पहले वो आंदोलन खत्म होते होते राजनीति की बात करने लगे थे. तब अन्ना हजारे ने सिर्फ मना ही नहीं किया था बल्कि, आगे साथ चलने से पहले ही अपने कदम पीछे खींच लिये थे.

और अब अपने तरीके से उन बातों की याद दिला कर अरविंद केजरीवाल से अन्ना हजारे सवाल पूछ रहे हैं, लोग भी बाकी पाटिंर्यों की तरह पैसा से सत्ता और सत्ता से पैसा के दुष्चक्र में फंसे हुए दिखाई दे रहे हैं... एक बड़े आंदोलन से पैदा हुई राजनीतिक पार्टी को यह बात शोभा नहीं देती.

क्या अन्ना हजारे का भरोसा अरविंद केजरीवाल से उठ गया है?

तकलीफ होना लाजिमी है. तकलीफ तो अंदर से तभी से होगी जब अन्ना और केजरीवाल ने अपने रास्ते अलग कर लिये. अन्ना हजारे अब पुरानी बातें याद दिला कर अरविंद केजरीवाल से एक साथ कई सवाल पूछ रहे हैं. लिखते हैं, 'मैं ये पत्र इसलिए लिख रहा हूं कि हमने पहले रालेगण सिद्धि गांव में शराब को बंद किया... महाराष्ट्र में एक अच्छी शराब की नीति बने इसलिए आंदोलन किये... आंदोलन के कारण शराब बंदी का कानून बन गया, जिसमें किसी गांव और शहर में अगर 51 प्रतिशत महिलाएं शराबबंदी के पक्ष में वोट करती हैं तो वहीं शराबबंदी हो जाती है... दिल्ली सरकार की ओर से भी ऐसी ही नीति की उम्मीद थी, लेकिन आप ने ऐसा नहीं किया।

क्या अन्ना को अब केजरीवाल पर भरोसा नहीं रहा?

18 सितंबर, 2012 को हुई टीम अन्ना की एक बैठक की याद दिलाते हुए अन्ना हजारे अब अरविंद केजरीवाल से पूछ रहे हैं, आप भूल गये कि राजनीतिक दल बनाना हमारे आंदोलन का इरादा नहीं था.

आखिर ये सब अब याद दिलाने का क्या मतलब रह जाता है? अन्ना हजारे ने अरविंद केजरीवाल के आंदोलन का नेतृत्व जरूर किया था, लेकिन उनका इतना प्रभाव तो नहीं ही रहा जो उनको रोक सकें. अगर ऐसी स्थिति होती तो अरविंद केजरीवाल तभी उनकी बात मान लिये होते.

अन्ना हजारे ने लिखा है, दिल्ली आबकारी नीति को देख कर लगता है कि ऐतिहासिक आंदोलन को खत्म कर जो पार्टी बनी थी, वो उसी रास्ते पर चली गई है जिस पर अन्य दल चल रहे हैं... जो बेहद खेदजनक बात है.

अन्ना हजारे को ये बात नयी क्यों लगती है? जब ऐसी आशंका राजनीति को लेकर उनको पहले से ही रही तो अब ऐसे सवालों का क्या मतलब है?

अन्ना हजारे ने अरविंद केजरीवाल को बेहद करीब से देखा है. साथ छूट जाने के बाद भी वो अरविंद केजरीवाल की राजनीति पर ध्यान देते ही होंगे. ऐसा होना स्वाभाविक भी है. अरविंद केजरीवाल पर 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान भी आरोप लगे थे और पंजाब विधानसभा चुनाव के दौरान भी - और दोनों ही चुनावों में अरविंद केजरीवाल की इमेज ऐसे नेता के तौर पर पेश की गयी, जैसे वो आतंकवादियों से सहानुभूति रखता हो.

ये भी नहीं भूलना चाहिये कि चुनाव के वक्त दिल्ली की तरह ही पंजाब के लोगों ने भी अरविंद केजरीवाल पर लगे सारे आरोपों को पूरी तरह खारिज कर दिया - और सबूत है दोनों राज्यों में आम आदमी पार्टी को मिले वोट.

बेशक भगवंत मान पंजाब में आम आदमी पार्टी का चेहरा थे, लेकिन बड़ा चेहरा तो अरविंद केजरीवाल ही थे. बेशक भगवंत मान ने 2014 में आप के टिकट के बावजूद चुनाव अपने दम पर जीता था, और 2019 में भी - लेकिन पंजाब विधानसभा चुनाव में लोगों को अरविंद केजरीवाल के दिल्ली मॉडल पर भरोसा हुआ था.

अगर भरोसा न होता तो जिस तरीके से केजरीवाल के पुराने साथी कुमार विश्वास इल्जाम लगा रहे थे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ साथ कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी हमलावर रहे - ब्रांड केजरीवाल के बगैर भगवंत मान के लिए चुनावी वैतरणी पार करना बहुत मुश्किल था.

अन्ना हजारे ने इससे पहले न तो कुमार विश्वास के इल्जाम पर कभी कुछ कहा, न ही एक और पुराने साथी कपिल मिश्रा के दो करोड़ की रिश्वत लेने के आरोप पर - क्या दिल्ली की शराब नीति की खबरों के बाद अरविंद केजरीवाल से अन्ना हजारे का भरोसा उठ चुका है?

क्या अन्ना हजारे को कोई इस्तेमाल कर रहा है?

अरविंद केजरीवाल ने अपने बचाव में बीजेपी पर पलटवार किया है - और कहा है, बीजेपी जानबूझकर अन्ना हजारे को आगे कर रही है... और उनके कंधे पर रख कर बंदूक चला रही है.

अरविंद केजरीवाल के नजरिये से समझें तो अन्ना हजारे का इस्तेमाल किया जा रहा है - और अपने बचाव में अरविंद केजरीवाल ने अन्ना हजारे को भी कुमार विश्वास की लाइन में लाकर ही खड़ा कर दिया है.

अब अगर अन्ना हजारे का बीजेपी इस्तेमाल कर रही है, तो दस साल पहले अरविंद केजरीवाल ने क्या किया था? अगर अरविंद केजरीवाल का आरोप है कि बीजेपी अन्ना हजारे का इस्तेमाल कर रही है, तो ऐसे आरोप से वो भी कैसे बच सकते हैं कि 2011 के आंदोलन में अरविंद केजरीवाल ने अन्ना हजारे का इस्तेमाल नहीं किया था? ये सारी बातें काफी अजीब लगती हैं, लेकिन ऐसा भी यकीन नहीं हो रहा है कि ऐसी बातों को कोई यूं ही सिरे से खारिज कर दे?

अरविंद केजरीवाल का कहना है, शराब नीति पर आरोप चल नहीं पाये तो वे अन्ना हजारे को ले आए... इससे पहले किसी ने जब बीजेपी की नहीं सुनी तो वो कुमार विश्वास को लेकर आये जिन्होंने आम आदमी पार्टी को खालिस्तानी समर्थक बताया था.

अन्ना हजारे और कुमार विश्वास को एक ही पलड़े में रख कर अरविंद केजरीवाल ने दोनों पर एक ही तोहमत जड़ दी है, दोनों का ही बीजेपी इस्तेमाल कर रही है. कुमार विश्वास के आरोपों का तो पंजाब के लोग जवाब दे चुके हैं, ऐसे में अन्ना हजारे के सवालों का जवाब तो लगता है गुजरात के लोग ही अच्छी तरह दे पाएंगे. गुजरात में इसी साल के आखिर में विधानसभा के लिए चुनाव होने वाले हैं.

जजमेंट ऑफ एरर का लाभ अगर इस मामले में अन्ना हजारे को मिल सकता है, तो अरविंद केजरीवाल को भी तो संदेह का लाभ मिल ही सकता है. FIR देर से दर्ज कराने की सूरत में संदेह का लाभ मुल्जिम को मिल जाता है - सवाल इसीलिए उठता भी है, आखिर अन्ना हजारे ने अपनी 'एफआईआर' इतनी देर से क्यों दर्ज करायी?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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