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प्रियंका गांधी जानती हैं, पत्रकार के जूते की बड़ी अहमियत है!

    • नवेद शिकोह
    • Updated: 05 अप्रिल, 2019 07:51 PM
  • 05 अप्रिल, 2019 07:51 PM
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वायनाड में आयोजित रैली के दौरान घायल पत्रकार का जूता उठाकर शायद प्रियंका गांधी ने ये सन्देश देने की कोशिश की है कि यदि उनकी सरकार बनी तो उनके यही प्रयास रहेंगे कि पत्रकारों को उनकी खोई हुई ताकत मिल जाए.

पत्रकार के जूते की बड़ी एहमियत है. तल्ख कलम का प्रतीक भी है ये, तल्ख कलम ने देश की आजादी की लड़ाई भी लड़ी, इमरजेंसी लगाने वाली सत्ता को भी सीधा किया. भारत के लोकतंत्र को बचाया.  राम रहीम जैसे तमाम ढोंगियों को अंदर करवाया. एनएचआरएम घोटाले की पोल खोल कर बसपा सुप्रीमो को सत्ता से बाहर किया. कोठारी कांड में बच्चों के कत्ल की सनसनी दिखाकर यूपी की मुलायम सरकार को दुबारा सत्ता में आने नहीं दिया.

वायनाड में पत्रकार का जूता उठाकर प्रियंका गांधी ने एक नए वाद को जन्म दे दिया है

फिर अखिलेश सरकार के मंत्री रहे गायत्री प्रजापति के करतूत की खबरों ने अखिलेश यादव का घंमड चूर कर दिया. निर्भया बलात्कार कांड को मीडिया ने जन-जन तक पंहुचा कर बलात्कारी दरिंदों को मौत की सजा दिलवायी. यूपीए सरकार में ही भ्रष्टाचार के खिलाफ देश भर में जो जंग शुरू हुई उसका क्रेडिट भी भारतीय पत्रकारिता को जाता है. क्योंकि मीडिया की जबरदस्त कवरेज ने ही भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना आंदोलन को एतिहासिक बनाया और देश में क्रांति पैदा की.

दबाव कहिये, मजबूरी कहिये या पूरी तरह से औद्योगिक घरानों के चुंगल में मीडिया का आ जाना कहिए. बिक जाने की मजबूरी में पत्रकारों का कलम ठंडा हो गया. मौजूदा अव्यवस्थाओं पर तल्ख कैसे होता? जब जूता हाथ में लेने के बजाय सत्ता के जूते चाटने की मजबूरी आन पड़ी है. आजादी की लड़ाई और इमरजेन्सी में भी कलम इतना कमजोर और मजबूर नहीं हुआ था.

घायल पत्रकार का जूता प्रियंका गांधी ने साथ में लेकर एक बड़ा फलसफा बयान कर दिया. गोया कि हमें मौका दिलवा दो, हम तुम्हारी खोयी हुए ताकत को वापस दिलवाने में सहयोग करेंगे.

पत्रकार का जूता हाथ में लेना तल्ख पत्रकारिता का सम्मान और समर्थन है. तानाशाह सत्ता को यही सीधा रखता है. ये विपक्ष की...

पत्रकार के जूते की बड़ी एहमियत है. तल्ख कलम का प्रतीक भी है ये, तल्ख कलम ने देश की आजादी की लड़ाई भी लड़ी, इमरजेंसी लगाने वाली सत्ता को भी सीधा किया. भारत के लोकतंत्र को बचाया.  राम रहीम जैसे तमाम ढोंगियों को अंदर करवाया. एनएचआरएम घोटाले की पोल खोल कर बसपा सुप्रीमो को सत्ता से बाहर किया. कोठारी कांड में बच्चों के कत्ल की सनसनी दिखाकर यूपी की मुलायम सरकार को दुबारा सत्ता में आने नहीं दिया.

वायनाड में पत्रकार का जूता उठाकर प्रियंका गांधी ने एक नए वाद को जन्म दे दिया है

फिर अखिलेश सरकार के मंत्री रहे गायत्री प्रजापति के करतूत की खबरों ने अखिलेश यादव का घंमड चूर कर दिया. निर्भया बलात्कार कांड को मीडिया ने जन-जन तक पंहुचा कर बलात्कारी दरिंदों को मौत की सजा दिलवायी. यूपीए सरकार में ही भ्रष्टाचार के खिलाफ देश भर में जो जंग शुरू हुई उसका क्रेडिट भी भारतीय पत्रकारिता को जाता है. क्योंकि मीडिया की जबरदस्त कवरेज ने ही भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना आंदोलन को एतिहासिक बनाया और देश में क्रांति पैदा की.

दबाव कहिये, मजबूरी कहिये या पूरी तरह से औद्योगिक घरानों के चुंगल में मीडिया का आ जाना कहिए. बिक जाने की मजबूरी में पत्रकारों का कलम ठंडा हो गया. मौजूदा अव्यवस्थाओं पर तल्ख कैसे होता? जब जूता हाथ में लेने के बजाय सत्ता के जूते चाटने की मजबूरी आन पड़ी है. आजादी की लड़ाई और इमरजेन्सी में भी कलम इतना कमजोर और मजबूर नहीं हुआ था.

घायल पत्रकार का जूता प्रियंका गांधी ने साथ में लेकर एक बड़ा फलसफा बयान कर दिया. गोया कि हमें मौका दिलवा दो, हम तुम्हारी खोयी हुए ताकत को वापस दिलवाने में सहयोग करेंगे.

पत्रकार का जूता हाथ में लेना तल्ख पत्रकारिता का सम्मान और समर्थन है. तानाशाह सत्ता को यही सीधा रखता है. ये विपक्ष की भूमिका भी निभाता है. इसलिए ही शायद विपक्षी दल ने सत्ता की सबसे बड़ी विपक्षी ताकत के साथ गठबंधन का इशारा किया है. प्रियंका ने पत्रकार के जूते को मान-सम्मान देकर बहुत बड़े अप्रत्यक्ष संकेत दिए हैं.

समझने वाले समझ गये, जो ना समझा वो अनाड़ी है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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