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वायनाड का दुर्लभ मेंढक 'फ्रैंकी' भी चुनावी चर्चा में शामिल हुआ

    • आईचौक
    • Updated: 01 अप्रिल, 2019 11:31 PM
  • 01 अप्रिल, 2019 11:31 PM
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लोकसभा चुनाव में अब तक अंजान सी रही केरल की वायनाड सीट और यहां के लोग राहुल गांधी की उम्‍मीदवारी की वजह से अचानक सबकी चर्चा का विषय बन गए हैं, वैसा ही कुछ हाल यहां पाए जाने वाले दुर्लभ प्रजाति के मेंढक का है.

राहुल गांधी की लोकसभा में उम्‍मीदवारी से पहले तक केरल के वायनाड से देश की अधिकतर आबादी लगभग अंजान थी. उसी तरह जैसे चार साल पहले तक दुर्लभ प्रजाति के मेंढक मिस्टिसेलस फ्रैंकी के बारे में दुनिया अंजान थी. वायनाड और फ्रेंकी की दुनिया यूं तो लाखों वर्षों से आबाद है, लेकिन कहते हैं न कि जिसकी किस्‍मत पलटती है तो उसे दुनिया देखती है. 2015 में फ्रेंकी मेंढक के अच्छे दिन आए. यही अप्रैल- मई का महीना रहा होगा. दोस्तों के साथ गलबहियां करते हुए फ्रेंकी को पहली बार वायनाड की सड़कों पर देखा गया था. इसकी पहचान करने वाले दिल्ली के कुछ वैज्ञानिक थे. फ्रैंकी है तो एक संकरे मुंह वाला मेढ़क. लेकिन जब बात शोर करने की होती है तो चार दिनों के लिए यह अपनी टर्र टर्र से पूरे वायनाड के लोगों के सिर में दर्द कर देता है.

यूं तो यह मेंढक उन्हीं लोगों के बीच का था. मगर क्योंकि उसे कोई जानता नहीं था. न ही किसी ने उसे पहले कभी नोटिस किया था इसलिए पूरे वायनाड में वो लोगों के बीच कौतूहल का कारण बन गया. जनता जानना चाह रही थी कि आखिर उसका और वायनाड का ये रिश्ता क्या कहलाता है? लोग इस अजनबी मेहमान के बारे में एक दूसरे से बातें कर रहे थे. उन्हें समझना था कि वो कौन सी वजहें थीं जिसकी चलते इसे वायनाड का रुख करना पड़ा. इसे देखकर लोगों के जहन में तमाम सवाल थे. लोग इसके बारे में हर वो बात जानना चाहते थे जो अब तक राज थी.

वायनाड में संकरे मुंह वाला मिस्टिसेलस फ्रैंकी लोगों के बीच चर्चा का केंद्र बना है

मिस्टिसेलस फ्रैंकी मेंढक पर वैज्ञानिक शोध कर रहे हैं और मोटी-मोटी रिपोर्ट पेश कर रहे हैं. कह सकते हैं कि मिस्टिसेलस फ्रैंकी अपने आप में एक बड़ी मिस्ट्री हैं. इसके बारे में सबसे दिलचस्प बात ये है कि ये साल में केवल 4 दिन मेटिंग के लिए वायनाड आता है. यहां की...

राहुल गांधी की लोकसभा में उम्‍मीदवारी से पहले तक केरल के वायनाड से देश की अधिकतर आबादी लगभग अंजान थी. उसी तरह जैसे चार साल पहले तक दुर्लभ प्रजाति के मेंढक मिस्टिसेलस फ्रैंकी के बारे में दुनिया अंजान थी. वायनाड और फ्रेंकी की दुनिया यूं तो लाखों वर्षों से आबाद है, लेकिन कहते हैं न कि जिसकी किस्‍मत पलटती है तो उसे दुनिया देखती है. 2015 में फ्रेंकी मेंढक के अच्छे दिन आए. यही अप्रैल- मई का महीना रहा होगा. दोस्तों के साथ गलबहियां करते हुए फ्रेंकी को पहली बार वायनाड की सड़कों पर देखा गया था. इसकी पहचान करने वाले दिल्ली के कुछ वैज्ञानिक थे. फ्रैंकी है तो एक संकरे मुंह वाला मेढ़क. लेकिन जब बात शोर करने की होती है तो चार दिनों के लिए यह अपनी टर्र टर्र से पूरे वायनाड के लोगों के सिर में दर्द कर देता है.

यूं तो यह मेंढक उन्हीं लोगों के बीच का था. मगर क्योंकि उसे कोई जानता नहीं था. न ही किसी ने उसे पहले कभी नोटिस किया था इसलिए पूरे वायनाड में वो लोगों के बीच कौतूहल का कारण बन गया. जनता जानना चाह रही थी कि आखिर उसका और वायनाड का ये रिश्ता क्या कहलाता है? लोग इस अजनबी मेहमान के बारे में एक दूसरे से बातें कर रहे थे. उन्हें समझना था कि वो कौन सी वजहें थीं जिसकी चलते इसे वायनाड का रुख करना पड़ा. इसे देखकर लोगों के जहन में तमाम सवाल थे. लोग इसके बारे में हर वो बात जानना चाहते थे जो अब तक राज थी.

वायनाड में संकरे मुंह वाला मिस्टिसेलस फ्रैंकी लोगों के बीच चर्चा का केंद्र बना है

मिस्टिसेलस फ्रैंकी मेंढक पर वैज्ञानिक शोध कर रहे हैं और मोटी-मोटी रिपोर्ट पेश कर रहे हैं. कह सकते हैं कि मिस्टिसेलस फ्रैंकी अपने आप में एक बड़ी मिस्ट्री हैं. इसके बारे में सबसे दिलचस्प बात ये है कि ये साल में केवल 4 दिन मेटिंग के लिए वायनाड आता है. यहां की सुन्दरता का आनंद लेता है. अपना स्वार्थ सिद्ध करता है और फिर एक लम्बे समय तक के लिए गायब हो जाता है.

कई तथ्य है जो इस मेंढक, फ्रैंकी को जनता और पर्यावरण प्रेमियों के सामने खास बनाते हैं. ये न केवल एक नई प्रजाति है, बल्कि पूरी तरह से नई जीनस से संबंधित है, लम्बाई के लिहाज से करीब 3 सेंटीमीटर का फ्रैंकी ऐसे तमाम रहस्य लिए हुए है जिसमें पर्यावरण प्रेमियों के अलावा आम लोगों के बीच एक नए वाद का श्री गणेश कर दिया है.

बताया जा रहा है कि ये मेढक साल में सिर्फ चार दिन के लिए वायनाड आते हैं

मिस्टिसेलस फ्रैंकी के विषय में दिल्ली विद्यालय की शोधकर्ता सोनाली गर्ग ने कुछ अजीब ओ गरीब तर्क पेश किये हैं. यदि इन तर्कों पर गौर किया जाए तो मिलता है कि इसकी शारीरिक रचना और डीएनए किसी 'ज्ञात प्रजाति' से मेल नहीं खाते. 2013 में वायनाड में पाए गए ये टैडपोल 2015 में 200 की संख्या में पूर्व वयस्क बन चुके थे जो एक समूह के तौर पर मानव बस्तियों से कुछ मीटर की दूरी पर रह रहे थे.

शोधकर्ताओं के अनुसार ये मेढक इलाके के लिए नए तो बिल्कुल नहीं हैं और करीब 40 लाख सालों से धरती पर रह रहे हैं. बात अगर इनके करीबी रिश्तेदारों की हो तो वो वायनाड से 2000 किलोमीटर दूर दक्षिण एशिया में बर्मा, मलेशिया और वियतनाम तक फैले हैं. इन मेढकों का इस तरह वायनाड आना जाना साफ बता रहा है कि किसी जमाने में वायनाड और दक्षिण एशिया बहुत कायदे से एक दूसरे से जुड़े थे.

बहरहाल, अब चूंकि इनके बारे में जानकारी सामने आ गई है तो देखना दिलचस्प रहेगा कि वायनाड की जनता इन्हें किस तरह अपनाती है. और हां, जब वायनाड की जनता की बात आई है तो उम्‍मीद कीजिए कि उनका महत्‍व राहुल गांधी की उम्‍मीदवारी और इस चुनाव के बाद भी कायम रहेगा. राहुल गांधी यदि इस सीट से चुनाव जीत जाते हैं तो बड़ी संख्‍या में यहां रहने वाले आदिवासियों के लिए कल्‍याण के लिए काम करेंगे. उनके सुख-दुख के साथी बनेंगे. वरना चार दिन दिखाई देने के बाद तो फ्रैंकी भी लापता हो जाता है. और पीछे रह जाती है खबरें.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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