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RBI monetary policy: क्या फर्क पड़ेगा आपकी जिंदगी में

    • श्रुति दीक्षित
    • Updated: 05 अक्टूबर, 2018 05:05 PM
  • 05 अक्टूबर, 2018 05:05 PM
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RBI की Monetary policy की बैठक 5 अक्टूबर 2018 को हो गई और इस बैठक में रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया गया. फिर भी आम आदमी को कुछ जगहों पर फर्क पड़ सकता है और इससे जुड़े वो 10 सवाल जिनका जवाब जानना हर लोन लेने वाले के लिए जरूरी है!

RBI की monetary policy की बैठक 5 अक्टूबर को हुई और जैसा एक्सपर्ट सोच रहे थे उसके बिलकुल विपरीत आरबीआई ने रेपो रेट नहीं बढ़ाया. पहले ये सोचा जा रहा था कि आरबीआई की तरफ से कम से कम 25 बेसिस प्वाइंट बदलाव किया जाएगा और हुआ बिलकुल उसके विपरीत. आरबीआई ने अपना रेपो रेट वैसा ही रखा है और कोई बदलाव नहीं हुआ, लेकिन फिर भी आम आदमी पर इससे असर पड़ सकता है. चलिए जानते हैं इससे जुड़े 10 सवालों के जवाब.

1. क्या होता है रेपो रेट?

रेपो रेट असल में वो रेट होता है जिसमें अन्य बैंकों को आरबीआई पैसा देता है. बेसिस्ट प्वाइंट (BPS) में कम या ज्यादा होता है और इसे निर्धारित भी आरबीआई ही करता है. अगर रेपो रेट बढ़ रहा है मतलब लोन महंगे हो जाएंगे और अगर रेपो रेट कम हो रहा है तो उसका मतलब होगा कि बैंक के लोन सस्ते हो जाएंगे. 100 बीपीएस का बदलाव अगर होता है तो एक पर्सेंट बनता है यानी अगर 25 बीपीएस का बदलाव हुआ है तो इंट्रेस्ट रेट में 0.25% का बदलाव होगा.

आरबीआई ने अपने रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया है

2. क्या अंतर आया रेपो रेट में?

पिछले दो बार से मिलाकर आरबीआई ने 50 बीपीएस रेट को बढ़ाया था और रेपो रेट 6.50 पर आकर रुक गया था. अब 5 अक्टूबर 2018 की मॉनिटरी पॉलिसी की बैठक में आरबीआई की मॉनिटरी पॉलिसी में कोई बदलाव नहीं हुआ है इसका मतलब ये है कि रेपो रेट 6.5% ही रहेगा. फिलहाल रिवर्स रेपो रेट (वो रेट जिसमें अन्य बैंक आरबीआई को पैसा देते हैं.) वो 6.25% है.

मार्जिनल कॉस्ट लेंडिंग रेट फॉर्मूला (MCLR) के तहत इंट्रेस्ट रेट तय किया जाता है. ये मिनिमम इंट्रेस्ट रेट होता है (बैंकों का) इससे कम किसी भी हालत में लोन नहीं दिया जा सकता है. इसे इंटरनल बेंचमार्क या बैंक का रेफ्रेंस रेट कहा जा सकता है.

3. फिर भी क्यों महंगे हो सकते...

RBI की monetary policy की बैठक 5 अक्टूबर को हुई और जैसा एक्सपर्ट सोच रहे थे उसके बिलकुल विपरीत आरबीआई ने रेपो रेट नहीं बढ़ाया. पहले ये सोचा जा रहा था कि आरबीआई की तरफ से कम से कम 25 बेसिस प्वाइंट बदलाव किया जाएगा और हुआ बिलकुल उसके विपरीत. आरबीआई ने अपना रेपो रेट वैसा ही रखा है और कोई बदलाव नहीं हुआ, लेकिन फिर भी आम आदमी पर इससे असर पड़ सकता है. चलिए जानते हैं इससे जुड़े 10 सवालों के जवाब.

1. क्या होता है रेपो रेट?

रेपो रेट असल में वो रेट होता है जिसमें अन्य बैंकों को आरबीआई पैसा देता है. बेसिस्ट प्वाइंट (BPS) में कम या ज्यादा होता है और इसे निर्धारित भी आरबीआई ही करता है. अगर रेपो रेट बढ़ रहा है मतलब लोन महंगे हो जाएंगे और अगर रेपो रेट कम हो रहा है तो उसका मतलब होगा कि बैंक के लोन सस्ते हो जाएंगे. 100 बीपीएस का बदलाव अगर होता है तो एक पर्सेंट बनता है यानी अगर 25 बीपीएस का बदलाव हुआ है तो इंट्रेस्ट रेट में 0.25% का बदलाव होगा.

आरबीआई ने अपने रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया है

2. क्या अंतर आया रेपो रेट में?

पिछले दो बार से मिलाकर आरबीआई ने 50 बीपीएस रेट को बढ़ाया था और रेपो रेट 6.50 पर आकर रुक गया था. अब 5 अक्टूबर 2018 की मॉनिटरी पॉलिसी की बैठक में आरबीआई की मॉनिटरी पॉलिसी में कोई बदलाव नहीं हुआ है इसका मतलब ये है कि रेपो रेट 6.5% ही रहेगा. फिलहाल रिवर्स रेपो रेट (वो रेट जिसमें अन्य बैंक आरबीआई को पैसा देते हैं.) वो 6.25% है.

मार्जिनल कॉस्ट लेंडिंग रेट फॉर्मूला (MCLR) के तहत इंट्रेस्ट रेट तय किया जाता है. ये मिनिमम इंट्रेस्ट रेट होता है (बैंकों का) इससे कम किसी भी हालत में लोन नहीं दिया जा सकता है. इसे इंटरनल बेंचमार्क या बैंक का रेफ्रेंस रेट कहा जा सकता है.

3. फिर भी क्यों महंगे हो सकते हैं लोन?

लोन आम इंसान के लिए महंगे होने का मतलब होता है ज्यादा इंट्रेस्ट लगना या फिर अलग-अलग रेट पर लोन देना बैंक के ऊपर निर्भर करता है. कुछ दिन पहले ही HDFC जिसे देश की सबसे बड़ी हाउसिंग कंपनी कहा जाता है उसने 10 बेसिस प्वाइंट अपना रेट बढ़ा दिया था. इसके पहले अगस्त में भी HDFC की तरफ से 20 बेसिस प्वाइंट रेट बढ़ाया गया था. सिर्फ HDFC ही नहीं बल्कि देश के कई अन्य बैंकों ने अपने रेट बढ़ा दिए हैं. एसबीआई ने भी अपने रेट में 5 MCLR की बढ़त की थी. आम तौर पर MCLR साल में एक बार बदली जाती है और इस वर्ष एसबीआई अभी तक चार बार बदलाव कर चुका है. 2018 की शुरुआत में ही रेट 7.92% से बढ़कर 8.50% हो गया था और तब से लेकर अब तक 55 बीपीएस बदलाव हो चुका है.

अगर 5 अक्टूबर 2018 वाली मॉनिटरी पॉलिसी की बात करें तो आरबीआई ने पॉलिसी स्टांस को 'calibrated tightening' कर दिया है यानी सधे तौर पर इसमें बदलाव किया जा सकता है.

(Stance: सरकार की आधारभूत स्थिती जिसमें फिस्कल पॉलिसी लागू की जाती है. सरकार टैक्स और रेवेन्यू के हिसाब से खर्च करेगी, उससे कम करेगी या उससे ज्यादा करेगी)

एक्सपर्ट्स का मानना है कि जो भी फैसले आरबीआई ने इस मॉनिटरी पॉलिसी में लिए हैं वो सभी रुपए के गिरते स्तर को देखकर किए गए हैं. इसीलिए कैलिब्रेट टाइटनिंग अपनाई गई है क्योंकि आरबीआई को भी पता है कि कहीं न कहीं इंट्रेस्ट रेट का बढ़ना रुपए को मजबूत करेगा.

4. कैसे ग्राहकों को अलग-अलग रेट पर लोन मिलता है?

भले ही बैंक एक स्पेसिफिक इंट्रेस्ट रेट तय करता है, लेकिन ऐसा जरूरी नहीं कि हर लेनदार को उसी रेट पर लोन मिले. बैंक आपका सिबिल स्कोर देख सकते हैं और उस हिसाब से जो इंट्रेस्ट रेट स्कोर को मैच करता हो वो तय कर सकते हैं. अगर किसी का सिबिल स्कोर 750 या उससे ऊपर है तो उसे तय रेट पर लोन मिलेगा. अगर 850 से ऊपर है तो इंट्रेस्ट रेट में बार्गेन करना आसान होगा और इंट्रेस्ट रेट पर कुछ BPS की कमी मिल सकती है.

अगर आपका क्रेडिट स्कोर 750 से कम है तो आप बैंक की दया पर सीमित हैं और बार्गेन पावर तो बिलकुल बची ही नहीं है. क्रेडिट स्कोर अगर कम होता है तो इसे बैंक आपकी लेनदारी से जोड़ते हैं और ये माना जाता है कि लोन उसी इंट्रेस्ट रेट पर दिया जाना चाहिए जो बैंक ने तय किया है. साथ ही, अगर क्रेडिट स्कोर बहुत बुरा है तो बैंक आपका लोन रिजेक्ट भी कर सकता है.

5. अगर आप नए होम लोन यूजर हैं तो?

अगर आप नए होम लोन यूजर हैं तो यकीनन आपने बहुत सही समय पर लोन ले लिया है क्योंकि अब लगातार बैंक अपना इंट्रेस्ट रेट बढ़ा रहे हैं और भले ही मॉनिटरी पॉलिसी में कोई बदलाव नहीं हुआ है फिर भी इंट्रेस्ट रेट और ईएमआई महंगी हो सकती हैं.

6. अगर लेना है लोन तो?

अगर लोन लेना चाहते हैं तो ज्यादा इंतजार करना शायद सही नहीं होगा. कारण ये है कि रुपया गिर रहा है और बैंक कभी भी अपना इंट्रेस्ट रेट बढ़ा सकते हैं.

अगर होम लोन लेना है तो कुछ अच्छी योजनाओं का इस्तेमाल कर सकते हैं. जैसे प्रधानमंत्री आवास योजना. इस योजना का फायदा अलग-अलग लोगों को अलग मिलेगा. ये लोगों की आय के आधार पर है. प्रधानमंत्री आवास योजना की 31 मार्च 2019 तक ही है और तभी तक सब्सीडि मिल सकती है इसलिए थोड़ा जल्दी करना यहां भी ठीक होगा.

भले ही रेपो रेट नहीं बदला हो, लेकिन लोन महंगे हो सकते हैं

7. जिन लोगों का फ्लोटिंग इंट्रेस्ट रेट है या MCLR से लिंक है उनपर क्या असर होगा?

जिन लोगों का फ्लोटिंग यानी हमेशा बदलने वाला इंट्रेस्ट रेट है उन्हें या फिर जिनका इंट्रेस्ट रेट MCLR से जुड़ा हुआ है उन लोगों का इंट्रेस्ट रेट अगली रीसेट डेट तक वही रहेगा जो अभी है और रीसेट डेट के बाद मौजूदा पॉलिसी के हिसाब से बदल जाएगा. यानी उसके बाद रेट बढ़ जाएगा.

8. अगर बेस रेट से लोन लिंक्ड है तो?

अगर बेस रेट या बेंचमार्क प्राइम लेंडिंग रेट (BPLR) से लोन लिंक है तो उसे MCLR से लिंक कर लीजिए. बेस रेट का मतलब न्यूनतम रेट जिससे बैंक लोन दे सकते हैं. ये पुरानी तकनीक हो गई और 2010 के बाद से इसे फॉलो नहीं किया जा रहा है और अब MCLR ही फॉलो होता है.

9. अगर शेयर मार्केट में इन्वेस्ट करना चाहते हैं तो?

वैसे तो रेपो रेट की बात जैसे ही सामने आई वैसे ही मार्केट गिर गया. सेंसेक्स 607 प्वाइंट गिर गया और 34,562.52 पर बंद हुआ और निफ्टी 203 प्वाइंट गिर गया और 10,396.40 पर बंद हुआ.

अगर इसे देखा जाए तो रुपए के गिरने के साथ-साथ मार्केट पर इसका बुरा असर पड़ सकता है. अगर आप मार्केट में इन्वेस्ट करना चाहते हैं तो थोड़ा स्टेबल शेयर्स पर ध्यान दें. इसके लिए किसी एक्सपर्ट से पहले पूछें और रिसर्च के बाद ही पैसा लगाएं.

10. जीडीपी और महंगाई का क्या?

आरबीआई ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि महंगाई दर 3.8% से 4.5% रहने की उम्मीदें हैं वित्ती वर्ष की दूसरी छमाही में. इसके अलावा, 2018-19 की जीडीपी भी अनुमानित 7.4% रहेगी यानी जीडीपी में कोई अंतर नहीं आएगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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