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संस्कृति

खिचड़ी,पोंगल, बिहू या फिर लोहड़ी नाम हैं अनेक पर त्योहार है एक

    • उपासना झा
    • Updated: 14 जनवरी, 2018 01:54 PM
  • 14 जनवरी, 2018 01:54 PM
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उत्तरप्रदेश और बिहार में यह खिचड़ी पर्व के नाम से प्रसिद्ध है. लाई-तिल-चुड़ा-दही और कई सब्जियों के साथ नए अन्न की बनाई गई खिचड़ी का भोग लगता है. गोरखनाथ मंदिर में आज खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा है.

मकर-संक्रांति भारतीय लोकजीवन का पर्व है. पृथ्वी पर उपस्थित जीवन को सर्वाधिक प्रभावित सूर्य करते हैं. अतः यह पर्व उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का भी है. संक्रांति का अर्थ होता है गमन. धनु राशि से मकर राशि में सूर्य का जाना ही संक्रांति है. आज नदी-स्नान और दान की भी परम्परा है.

यह मान्यता है कि जब सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं, तब शुभ फल प्रदान करते हैं, अस्तु सभी शुभ कर्म अब किये जा सकते हैं. महाभारत में भीष्म के देहत्याग के लिए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा करना प्रसिद्ध है. गांवों में बड़े-बूढ़े मृत्यु उत्तरायण में हो, ऐसी आकांक्षा करते हैं.

यह पर्व देश के सभी प्रदेशों में मनाया जाता है. पर्व का मूल है नवान्न का भोग, पशुओं के प्रति कृतज्ञता और सूर्योपासना.

पंजाबी समुदाय एक दिन पहले ही अग्नि जलाकर, गीत गाकर, रेवड़ी, मूंगफलियां, गजक, मकई के लावे बांटकर खुशियां मनाते हैं. नव-वधुओं और नए जन्मे शिशुओं का विशेष स्वागत होता है.

असम में यह पर्व माघ-बिहू के नाम से मनाया जाता है और फसलों की कटाई से सम्बद्ध है. युवतियां पारंपरिक पोशाक पहनकर आंगन और द्वार पर फूल सजाती हैं. वहां भी अग्नि के चारों तरफ घूमकर नृत्य करने की परंपरा है. चावल के कई प्रकार के पीठे और नारियल के लड्डू बनाये जाते हैं. कहीं-कहीं बैलों की पारंपरिक लड़ाइयां भी आयोजित होती हैं.

फसल कटाई का उत्सव है मकर संक्रांति

तमिलनाडु में यह पोंगल कहा जाता है. मान्यता है कि भगवान शिव का वाहन नन्दी शापवश धरती पर आ गया था, जिसे मट्टू कहकर पूजा जाता है. पशुधन को नवान्न तथा गन्ना खिलाने के साथ उनके सींगों पर चित्रकारी भी भी परम्परा है. चार दिनों के इस पर्व में अग्नि जलाकर गीत-नृत्य करना, इंद्र की पूजा, सूर्योपासना तथा भाई-बहनों का त्योहार भी होता है. द्वार पर...

मकर-संक्रांति भारतीय लोकजीवन का पर्व है. पृथ्वी पर उपस्थित जीवन को सर्वाधिक प्रभावित सूर्य करते हैं. अतः यह पर्व उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का भी है. संक्रांति का अर्थ होता है गमन. धनु राशि से मकर राशि में सूर्य का जाना ही संक्रांति है. आज नदी-स्नान और दान की भी परम्परा है.

यह मान्यता है कि जब सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं, तब शुभ फल प्रदान करते हैं, अस्तु सभी शुभ कर्म अब किये जा सकते हैं. महाभारत में भीष्म के देहत्याग के लिए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा करना प्रसिद्ध है. गांवों में बड़े-बूढ़े मृत्यु उत्तरायण में हो, ऐसी आकांक्षा करते हैं.

यह पर्व देश के सभी प्रदेशों में मनाया जाता है. पर्व का मूल है नवान्न का भोग, पशुओं के प्रति कृतज्ञता और सूर्योपासना.

पंजाबी समुदाय एक दिन पहले ही अग्नि जलाकर, गीत गाकर, रेवड़ी, मूंगफलियां, गजक, मकई के लावे बांटकर खुशियां मनाते हैं. नव-वधुओं और नए जन्मे शिशुओं का विशेष स्वागत होता है.

असम में यह पर्व माघ-बिहू के नाम से मनाया जाता है और फसलों की कटाई से सम्बद्ध है. युवतियां पारंपरिक पोशाक पहनकर आंगन और द्वार पर फूल सजाती हैं. वहां भी अग्नि के चारों तरफ घूमकर नृत्य करने की परंपरा है. चावल के कई प्रकार के पीठे और नारियल के लड्डू बनाये जाते हैं. कहीं-कहीं बैलों की पारंपरिक लड़ाइयां भी आयोजित होती हैं.

फसल कटाई का उत्सव है मकर संक्रांति

तमिलनाडु में यह पोंगल कहा जाता है. मान्यता है कि भगवान शिव का वाहन नन्दी शापवश धरती पर आ गया था, जिसे मट्टू कहकर पूजा जाता है. पशुधन को नवान्न तथा गन्ना खिलाने के साथ उनके सींगों पर चित्रकारी भी भी परम्परा है. चार दिनों के इस पर्व में अग्नि जलाकर गीत-नृत्य करना, इंद्र की पूजा, सूर्योपासना तथा भाई-बहनों का त्योहार भी होता है. द्वार पर तोरण और आंगन में रंगोली बनाने की भी परम्परा है. बैलों की प्रसिद्ध लड़ाई भी आयोजित की जाती है.

उत्तरप्रदेश और बिहार में यह खिचड़ी पर्व के नाम से प्रसिद्ध है. लाई-तिल-चुड़ा-दही और कई सब्जियों के साथ नए अन्न की बनाई गई खिचड़ी का भोग लगता है. गोरखनाथ मंदिर में आज खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा है. नेपाल के राजा द्वारा पहली खिचड़ी चढ़ाई जाती है.

गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान में स्नान-दान के साथ बहुत बड़े पैमाने पर पतंगबाजी होती है.

बंगाल में मान्यता है कि आज ही भगीरथ के पीछे गंगा चलकर आयी थीं. गंगासागर में आज लाखों श्रद्धालु स्नान करते हैं.

देश के कई हिस्सों में माघ-स्नान या 'मास' की भी शुरुआत होगी. श्रद्धालु एक महीने तक नदी में स्नान-पूजन करते हैं. कहीं-कहीं लोग नदी किनारे ही रहते हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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