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हैलोवीन मनाने से पहले उसके बारे में जान लें ये बातें...

    • आईचौक
    • Updated: 31 अक्टूबर, 2017 04:42 PM
  • 31 अक्टूबर, 2017 04:42 PM
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पश्चिम का ये ट्रेंड बड़े शहरों में तेजी से फैल रहा है. दिल्ली मुंबई जैसे शहरों में काफी तेजी से ये फैल रहा है. भूतों की तरह ड्रेस होकर जाओ और अलग-अलग तरह के खाने का लुत्फ उठाओ, लेकिन क्या आप जानते हैं कि हैलोवीन है क्या?

लो जी भारत के त्योहारों का महीना खत्म हो गया है और अब विदेशी त्योहार आ गए हैं. यहां हैलोवीन की बात हो रही है. एक तरफ तो देश में दिवाली और होली का ट्रेंड बदल रहा है दूसरी तरफ हैलोवीन जैसे त्योहार भारत में लोकप्रिय हो रहे हैं. फागुन की जगह वैलेंटाइन डे, बसंत पंचमी की जगह न्यू इयर तो पहले से फेमस हो चुका है और अब बारी है हैलोवीन की, खुद ही सोचिए हैलोवीन के दिन ही 2017 में तुलसी विवाह या देवउठनी ग्यारस भी है, लेकिन कितने लोगों को ये पता होगा? वैसे ये कहना बिलकुल सही नहीं है कि विदेशी त्योहारों और खास दिनों को बिलकुल भी नहीं मनाया जाना चाहिए, आखिर भारत देश है ही ऐसा जहां हर तरह का त्योहार मनाया जाता है.

पश्चिम का ये ट्रेंड बड़े शहरों में तेजी से फैल रहा है. दिल्ली मुंबई जैसे शहरों में काफी तेजी से ये फैल रहा है. इसके फेमस होने का कारण कॉस्ट्यूम भी है. भूतों की तरह ड्रेस होकर जाओ और अलग-अलग तरह के खाने का लुत्फ उठाओ, लेकिन क्या आप जानते हैं कि हैलोवीन है क्या?

1. इस मासूम त्योहार का शैतानी चेहरा...

जिस त्योहार में बच्चे भूतों की तरह सजकर जाते हैं और हर दरवाजे जाकर कैंडी मांगते हैं वों अमेरिका में आइरिश शरणार्थी लेकर आए थे. ये 19वीं सदी से बहुत ज्यादा प्रचलित हुआ. ये मान्यता है कि हैलोवीन में कोई नियम कायदा काम नहीं करता.

मास्क आदि पहनने से लोगों को कोई पहचान नहीं पाता और इसके बाद वो लोग कोई भी ट्रिक कर सकते हैं. इसपर ही ट्रिक-ऑर-ट्रीट का मुहावरा बना. इस त्योहार पर कई सारे जुर्म कर सकते थे. इसे कई टोटकों से जोड़कर भी देखा जाता है और आइरिश लोगों का न्यू इयर भी कहा जाता है.

2. मुर्दों का त्योहार...

ये असल में एक पेगन (pagan- एक तरह का धर्म) त्योहार की तरह मनाया जाता था. अक्टूबर के अंत में नए...

लो जी भारत के त्योहारों का महीना खत्म हो गया है और अब विदेशी त्योहार आ गए हैं. यहां हैलोवीन की बात हो रही है. एक तरफ तो देश में दिवाली और होली का ट्रेंड बदल रहा है दूसरी तरफ हैलोवीन जैसे त्योहार भारत में लोकप्रिय हो रहे हैं. फागुन की जगह वैलेंटाइन डे, बसंत पंचमी की जगह न्यू इयर तो पहले से फेमस हो चुका है और अब बारी है हैलोवीन की, खुद ही सोचिए हैलोवीन के दिन ही 2017 में तुलसी विवाह या देवउठनी ग्यारस भी है, लेकिन कितने लोगों को ये पता होगा? वैसे ये कहना बिलकुल सही नहीं है कि विदेशी त्योहारों और खास दिनों को बिलकुल भी नहीं मनाया जाना चाहिए, आखिर भारत देश है ही ऐसा जहां हर तरह का त्योहार मनाया जाता है.

पश्चिम का ये ट्रेंड बड़े शहरों में तेजी से फैल रहा है. दिल्ली मुंबई जैसे शहरों में काफी तेजी से ये फैल रहा है. इसके फेमस होने का कारण कॉस्ट्यूम भी है. भूतों की तरह ड्रेस होकर जाओ और अलग-अलग तरह के खाने का लुत्फ उठाओ, लेकिन क्या आप जानते हैं कि हैलोवीन है क्या?

1. इस मासूम त्योहार का शैतानी चेहरा...

जिस त्योहार में बच्चे भूतों की तरह सजकर जाते हैं और हर दरवाजे जाकर कैंडी मांगते हैं वों अमेरिका में आइरिश शरणार्थी लेकर आए थे. ये 19वीं सदी से बहुत ज्यादा प्रचलित हुआ. ये मान्यता है कि हैलोवीन में कोई नियम कायदा काम नहीं करता.

मास्क आदि पहनने से लोगों को कोई पहचान नहीं पाता और इसके बाद वो लोग कोई भी ट्रिक कर सकते हैं. इसपर ही ट्रिक-ऑर-ट्रीट का मुहावरा बना. इस त्योहार पर कई सारे जुर्म कर सकते थे. इसे कई टोटकों से जोड़कर भी देखा जाता है और आइरिश लोगों का न्यू इयर भी कहा जाता है.

2. मुर्दों का त्योहार...

ये असल में एक पेगन (pagan- एक तरह का धर्म) त्योहार की तरह मनाया जाता था. अक्टूबर के अंत में नए साल की शुरुआत मानी जाती थी और माना जाता था कि इस रात को उन लोगों की आत्माएं शरीर में वापस आ जाती हैं (कुछ समय के लिए) जो मर चुके हैं. इसी के साथ, ये भी माना जाता था कि इस दिन आत्माएं धरती पर खुली घूमती हैं.

3. चर्च ने बदली परिभाषा...

हैलोवीन की परिभाषा कैथोलिक चर्चों ने बदल दी. पेगन त्योहार की महत्वता खत्म करने के लिए 9वीं सदी में चर्च ने कहा कि इस दिन को सभी संतों के सम्मान में मनाया जाएगा. इसके बाद ही 31 अक्टूबर ईव और ऑल हैलोस (पवित्र करना) यानि हैलोवीन के तौर पर मनाया जाने लगा.

4. एक बार फिर बदला स्वरूप...

सन 998 में एक बार फिर हैलोवीन का प्रारूप बदला फ्रांस के एबच ऑफ क्लनी (ये एक ताकतवर महंत थे) ने हैलोवीन का रूप एक बार और बदला और जो मर चुके हैं उन्हें याद किया. इसके बाद से ही हैलोवीन पेगन और क्रिश्चियन दोनों तरह के धर्मों का चर्चित त्योहार बन गया.

5. मेक्सिको में कुछ और...

सोलवीं सदी में मेक्सिको में कैथोलिक धर्म को थोपा गया और कई कालोनियां बनाई गईं. वहां मौजूद लोगों को कैथोलिक धर्म के रीति रिवाज मानने को मजबूर किया गया. तब से मेक्सिको में 1 नवंबर द डे ऑफ डेड (मुर्दों के दिन) के रूप में मनाया जाने लगा.

6. ऑरेंज और ब्लैक ही क्यों...

इसके पीछे भी एक कारण है कि आखिर हैलोवीन के साथ ऑरेंज और ब्लैक रंग ही क्यों जुड़ा हुआ है. ऑरेंज यानि नारंगी रंग पतझड़ और खेती को दर्षाता है और काला रंग मौत को.

7. जानवरों की खाल...

एक मान्यता के अनुसार इस दिन जानवरों की खाल पहनी जाती थी. जो आदिवासी ऐसा करते थे उनका मानना होता था कि इससे वो मुर्दों से जुड़ पाएंगे.

8. सब्जियों का इस्तेमाल...

हैलोवीन पर पंपकिन यानि कद्दू पर अलग-अलग तरह की आकृतियां बनाई जाती हैं. सबसे पहले जैक-ओ-लैटर्न वाली टर्म तब आई थी जब एक जैक नाम के इंसान ने जलता हुआ कोयला शलजम में रख दिया था और उसे लालटेन की तरह इस्तेमाल किया था.

9. हैलोवीन और काली बिल्ली...

अगर हैलोवीन नजदीक है तो अमेरिका और वो सभी देश जहां हैलोवीन मनाया जाता है वहां के शेल्टर किसी को भी काली बिल्ली गोद नहीं देते हैं. क्योंकि ऐसी मान्यता है कि हैलोवीन पर काली बिल्ली की बली दी जाती है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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