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चाहे तीज हो या करवाचौथ, मेरे भूखे रहने से पति की उम्र का कोई संबंध नहीं

    • आईचौक
    • Updated: 25 जुलाई, 2017 08:12 PM
  • 25 जुलाई, 2017 08:12 PM
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एक तरफ जहां कुछ महिलाएं इन त्योहारों और इनसे जुड़ी परंपराओं के लिए किसी भी हद तक चली जाती हैं तो दूसरी तरफ मैंने इन आडंबरों को स्वीकार करने से बिल्कुल मना कर दिया.

हर छठे-चौमासे पति की उम्र के लिए व्रत रख कर ऊब चुकी एक अनाम विवाहिता की पाती-

हर भारतीय महिला पर अपने पति की लंबी जिंदगी का भार होता है. एक तरह से कहें कि वो अपने पति के जीवन की केयरटेकर यानी कि अपने पति के जीवन की रखवाली करने वाली हैं तो गलत नहीं होगा. इसका मतलब आपके रोजाना किए जाने वाले काम जैसे पति के लिए खाना बनाना, पति के कपड़े धोना और उसकी जरुरतों का ख्याल रखे जाने वाले कामों से बिल्कुल नहीं है. बल्कि अपने पति को दुनिया की सभी बुराइयों से बचाकर रखने की सारी ज़िम्मेदारी आपके कंधों पर होती है. और ये सब आप कैसे करती हैं? तो इस जिम्मेदारी को सही ढंग से निभाने के लिए आप तीज और करवा चौथ जैसे त्यौहारों पर खुद को भूखा मारती हैं और भगवान से अपने पति के लंबे जीवन की प्रार्थना करती हैं.

एक तरफ जहां कुछ महिलाएं इन त्योहारों और इनसे जुड़ी परंपराओं के लिए किसी भी हद तक चली जाती हैं तो दूसरी तरफ मैंने इन आडंबरों को स्वीकार करने से बिल्कुल मना कर दिया. अब मेरे इस कदम के कारण मुझे फेमिनिस्ट का लेबल देने से पहले मेरी बात सुन लें.

मेरे भूखे रहने से पति की उम्र लंबी होती है तो वो अमर होंगे

यह वास्तव में सेक्सिस्ट प्रथा है और हम इसे कैसे नहीं देख सकते हैं?

ये अपनेआप में ही भेदभाव और लिंगवाद से भरी हई परंपरा है. इस परंपरा का पालन करने के चक्कर में मैं अपने शरीर के खाने और पीने के अधिकार को अस्वीकार कर रही हूं. जबकि मेरे पति को इस अवसर के लिए तैयार किए गए सारे व्यंजनों का मजा लेने का अधिकार मिला होता है. आखिर इससे किस तरह का संदेश जाता है? क्या इसका मतलब ये है कि मेरे पति का जीवन मेरी अपनी जिंदगी की तुलना में अधिक मूल्यवान है? मुझे ऐसा न तो लगता है न ही मैं इसे मानती हूं.

यह...

हर छठे-चौमासे पति की उम्र के लिए व्रत रख कर ऊब चुकी एक अनाम विवाहिता की पाती-

हर भारतीय महिला पर अपने पति की लंबी जिंदगी का भार होता है. एक तरह से कहें कि वो अपने पति के जीवन की केयरटेकर यानी कि अपने पति के जीवन की रखवाली करने वाली हैं तो गलत नहीं होगा. इसका मतलब आपके रोजाना किए जाने वाले काम जैसे पति के लिए खाना बनाना, पति के कपड़े धोना और उसकी जरुरतों का ख्याल रखे जाने वाले कामों से बिल्कुल नहीं है. बल्कि अपने पति को दुनिया की सभी बुराइयों से बचाकर रखने की सारी ज़िम्मेदारी आपके कंधों पर होती है. और ये सब आप कैसे करती हैं? तो इस जिम्मेदारी को सही ढंग से निभाने के लिए आप तीज और करवा चौथ जैसे त्यौहारों पर खुद को भूखा मारती हैं और भगवान से अपने पति के लंबे जीवन की प्रार्थना करती हैं.

एक तरफ जहां कुछ महिलाएं इन त्योहारों और इनसे जुड़ी परंपराओं के लिए किसी भी हद तक चली जाती हैं तो दूसरी तरफ मैंने इन आडंबरों को स्वीकार करने से बिल्कुल मना कर दिया. अब मेरे इस कदम के कारण मुझे फेमिनिस्ट का लेबल देने से पहले मेरी बात सुन लें.

मेरे भूखे रहने से पति की उम्र लंबी होती है तो वो अमर होंगे

यह वास्तव में सेक्सिस्ट प्रथा है और हम इसे कैसे नहीं देख सकते हैं?

ये अपनेआप में ही भेदभाव और लिंगवाद से भरी हई परंपरा है. इस परंपरा का पालन करने के चक्कर में मैं अपने शरीर के खाने और पीने के अधिकार को अस्वीकार कर रही हूं. जबकि मेरे पति को इस अवसर के लिए तैयार किए गए सारे व्यंजनों का मजा लेने का अधिकार मिला होता है. आखिर इससे किस तरह का संदेश जाता है? क्या इसका मतलब ये है कि मेरे पति का जीवन मेरी अपनी जिंदगी की तुलना में अधिक मूल्यवान है? मुझे ऐसा न तो लगता है न ही मैं इसे मानती हूं.

यह लॉजिक और साइंस के तर्क को चुनौती देता है

हम मानते हैं कि भारत में हर प्रथा के पीछे एक पौराणिक कहानी होती है, लेकिन मैं उन कहानियों की सच्चाई साबित करने या फिर उनके दावों के पीछे का सच पता लगाने की कोई एक्सपर्ट नहीं हूं. हालांकि इतनी समझ तो हमें है कि जब पूरे दिन पानी की एक बूंद भी हम नहीं पीते तो असल में हम अपने आप को गंभीर रूप से डिहाइडरेट कर रहे होते हैं. और इस बात की तो चर्चा करना ही बेमानी है कि पूरे दिन अन्न के एक भी दाने से अपने पेट को दूर रखकर वास्तव में हम औरतें अपने गैस्ट्रिक जूस को तड़पा रही होती हैं.

और आखिर में- अगर मेरे भूखे रहने से पति को लंबी उम्र मिलती है तो उसे तो अमर होना चाहिए!

खाने के मामले में मैं बहुत लापरवाह हूं. कई बार तो ऐसा होता है कि मैं खाना खाना और पानी पीना तक भूल जाती हूं क्योंकि मेरे सामने डेडलाइन होती है और समय से काम खत्म करने का प्रेशर होता है. तो अगर इस लिहाज से देखें तो मैं खुद को औसत भारतीय महिलाओं से ज्यादा समय तक भूखा रखती हूं. और इसका मतलब तो आपको समझ आ ही गया होगा? मेरा पति अमर रहेगा. आखिर अगर भगवान पुरुषों को जीवनदान उनकी पत्नियों के भूखे रहने के बदले देता है तो ये तो तय है कि मेरा पति ही इस रेस में नंबर वन होगा.

वैसे मजाक से इतर बात करें तो मुझे लगता है कि व्यक्ति के जीवन और मृत्यु पर किसी का बस नहीं चलता. इसलिए विवादों से भरे ऐसे धार्मिक उत्सवों को प्रोत्साहित करना कोई अच्छी बात नहीं है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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