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खाप पंचायतों सुन लो, एक जाति में शादी है कई जेनेटिक बीमारियों का आधार

    • आईचौक
    • Updated: 22 जुलाई, 2017 05:09 PM
  • 22 जुलाई, 2017 05:09 PM
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अपनी जाति के बाहर शादी करने के फायदे खुद साइंस बता रहा है. भारत और दक्षिण एशिया के कुछ जाति के लोगों में कई तरह के वंशानुगत बीमारियां आम बात हैं.

देश में शायद ही कोई होगा जो ऑनर किलिंग के बारे में नहीं जानता होगा. ऑनर किलिंग का मतलब है अपने झूठे नाम, सम्मान और इज्जत के दिखावे को बनाए रखने के लिए प्रेमी जोड़ों की हत्या कर देना. ऐसे जोड़े जिन्होंने अपनी जात-बिरादरी से अलग शादी कर ली. अब अगर ये गुनाह हुआ है तो इसकी सजा हमारा समाज उनकी हत्या के रूप में मुकर्रर करता है.

लेकिन अपनी जाति के बाहर शादी करने के फायदे खुद साइंस बता रहा है. भारत और दक्षिण एशिया के कुछ जाति के लोगों में कई तरह के वंशानुगत बीमारियां आम बात हैं. भारत के कुछ वैज्ञानिकों को शक है कि इसका कारण पीढ़ियों से एनडोगैमस शादियां हैं. अब आप सोच रहे होंगे कि ये एंडोगैमस शादी क्या बला है! तो एंडोगैमस शादी का अर्थ है कि जाति, गोत्र, भाषा या संस्कृति के आधार पर एक ही तरह लोगों के बीच शादी करने वाले लोग. ये शादी करीबी रिश्तेदारों या एक ही परिवार के लोगों के बीच होने वाली शादी से अलग है. ये प्रथा दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में प्रचलित है.

ये मिथक टूटने का समय है

जेनेटिक्स यानी आनुवंशिकी में, कुछ पूर्वजों द्वारा कई वंशों को जन्म देने की घटना को "संस्थापक घटना या फाउंडर इवेंट" के रूप में जाना जाता है. दक्षिण एशिया में मानवविज्ञान के विभिन्न उप-जनजातियों की स्टडी से पता चला है कि उनमें से कई बहुत ही मजबूत "फाउंडर इवेंट" का परिणाम हैं. इस तरह के हर ग्रुप के डीएनए का एक बड़ा हिस्सा लगभग 100 पीढ़ियों में एक आम संस्थापक से ही उत्पन्न होती है.

ऐसे ग्रुपों में जेनेटिक वैरियेशन बहुत कम होते हैं क्योंकि ये लोग एक ही दायरे में बंद होकर रह जाते हैं. जैसे की- एक ही जाति में शादी इसका महत्वपूर्ण कारण है. ऐसी जनसंख्या अनुवांशिक बीमारियों के जल्दी शिकार होते हैं.

हैदराबाद सेंटर फॉर सेलयूलर एंड मॉलेक्यूलर बायोलॉजी के...

देश में शायद ही कोई होगा जो ऑनर किलिंग के बारे में नहीं जानता होगा. ऑनर किलिंग का मतलब है अपने झूठे नाम, सम्मान और इज्जत के दिखावे को बनाए रखने के लिए प्रेमी जोड़ों की हत्या कर देना. ऐसे जोड़े जिन्होंने अपनी जात-बिरादरी से अलग शादी कर ली. अब अगर ये गुनाह हुआ है तो इसकी सजा हमारा समाज उनकी हत्या के रूप में मुकर्रर करता है.

लेकिन अपनी जाति के बाहर शादी करने के फायदे खुद साइंस बता रहा है. भारत और दक्षिण एशिया के कुछ जाति के लोगों में कई तरह के वंशानुगत बीमारियां आम बात हैं. भारत के कुछ वैज्ञानिकों को शक है कि इसका कारण पीढ़ियों से एनडोगैमस शादियां हैं. अब आप सोच रहे होंगे कि ये एंडोगैमस शादी क्या बला है! तो एंडोगैमस शादी का अर्थ है कि जाति, गोत्र, भाषा या संस्कृति के आधार पर एक ही तरह लोगों के बीच शादी करने वाले लोग. ये शादी करीबी रिश्तेदारों या एक ही परिवार के लोगों के बीच होने वाली शादी से अलग है. ये प्रथा दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में प्रचलित है.

ये मिथक टूटने का समय है

जेनेटिक्स यानी आनुवंशिकी में, कुछ पूर्वजों द्वारा कई वंशों को जन्म देने की घटना को "संस्थापक घटना या फाउंडर इवेंट" के रूप में जाना जाता है. दक्षिण एशिया में मानवविज्ञान के विभिन्न उप-जनजातियों की स्टडी से पता चला है कि उनमें से कई बहुत ही मजबूत "फाउंडर इवेंट" का परिणाम हैं. इस तरह के हर ग्रुप के डीएनए का एक बड़ा हिस्सा लगभग 100 पीढ़ियों में एक आम संस्थापक से ही उत्पन्न होती है.

ऐसे ग्रुपों में जेनेटिक वैरियेशन बहुत कम होते हैं क्योंकि ये लोग एक ही दायरे में बंद होकर रह जाते हैं. जैसे की- एक ही जाति में शादी इसका महत्वपूर्ण कारण है. ऐसी जनसंख्या अनुवांशिक बीमारियों के जल्दी शिकार होते हैं.

हैदराबाद सेंटर फॉर सेलयूलर एंड मॉलेक्यूलर बायोलॉजी के वैज्ञानिकों द्वारा ये स्टडी की गई है. वैज्ञानिकों ने भारत, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश के 275 समूहों के 2,800 लोगों पर ये स्टडी की थी. स्टडी में उन्होंने पाया कि- 263 दक्षिण एशियाई ग्रुपों में से 81 के बहुत ही मजबूत फाउंडर इवेंट हैं. इसमें 14 ऐसे ग्रुप भी शामिल हैं जिनकी जनसंख्या दस लाख से ऊपर की है.

इन बड़े जनसंख्या ग्रुपों में जम्मू कश्मीर के गुज्जर, उत्तरप्रदेश के बनिया और कुम्हार, आंध्रप्रदेश के पटापु कपु, वड्डे, क्षत्रिय अक्निकुला, नागालैंड के नागा, तिलंगाना के तेली और वैश्य, तमिलनाडु के कल्लार और अरुणथाथियर और पुडुचेरी के यादव. वैज्ञानिकों ने 30 लाख से ज्यादा की जनसंख्या वाले वैश्य लोगों का उदाहरण देते हुए इस समस्या को बताया. अन्य ग्रुप के मुकाबले वैश्यों में बुटिरिलकोलिनेसटेरेज नाम के मेटाबोलिक डिस्ऑर्डर से ग्रसित लोगों की संख्या 100 गुना ज्यादा थी. ऐसे लोग ऑपरेशन के पहले दिए जाने वाले एनेस्थिसिया के प्रति बहुत ही ज्यादा संवेदनशील होते हैं.

इन वैज्ञानिकों को अगला टारगेट लोगों में रिसेसिव यानी दबी हुई बीमारियों के बारे में पता लगाना है. इस रिसर्च का आम जनता के स्वास्थ्य सेवाओं पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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