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मुझे मेरे शरीर से प्यार है और इसलिए पीरियड्स के समय मैं रोजा नहीं रखती

    • आईचौक
    • Updated: 22 मई, 2018 05:40 PM
  • 29 मई, 2017 08:24 PM
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आज से ठीक बीस साल पहले रमजान का महीना था. लेकिन मुझे कहा गया कि अपनी चचेरी बहनों के साथ रोजा नहीं रख सकती. कारण? क्योंकि मेरे पीरियड्स चल रहे थे- मेरा दिल टूट गया था.

पीरियड्स यानी माहवारी, ये ऐसी प्राकृतिक प्रक्रिया है जिससे हर लड़की को गुजरना होता है. वैसे तो पीरियड्स जीवन चक्र के लिए एक सबसे जरूरी प्रक्रिया है. जीवन के लिए ये ठीक वैसे ही जरूरी है जैसे ऑक्सीजन. लेकिन फिर भी पीरियड्स के समय महिलाओं के साथ भेदभाव हमारी संस्कृति का हिस्सा बन चुके हैं. पीरियड्स के दौरान महिलाओं का मंदिरों, मस्जिदों में इंट्री बैन, पीरियड्स के समय आचार छूना मना और भी हजार तरीके के कई तरह के रोक-टोक लगाए जाते हैं सो अलग. यही नहीं इन पांच दिनों में तो लड़कियों के साथ अछूत की तरह व्यवहार किया जाता है. खैर इसमें भी कोई संदेह नहीं की महिलाओं और पीरियड्स दोनों को एक सामान्य और प्राकृतिक प्रक्रिया की तरह अपनाने में हमारे समाज को सदियां लग जाएंगी.

पीरियड्स में रोजा नहीं रखना ही समझदारी है

आज से ठीक बीस साल पहले रमजान का महीना था. लेकिन मुझे कहा गया कि अपनी चचेरी बहनों के साथ रोजा नहीं रख सकती. कारण? क्योंकि मेरे पीरियड्स चल रहे थे- मेरा दिल टूट गया था, मैं बहुत दुखी हो गई थी. उस समय मेरे लिए रमज़ान का मतलब मेरी दुनिया, मेरी जिंदगी हुआ करता था. तब रोज सुबह-सुबह घर के सभी लोगों के साथ जागना और तरह-तरह के व्यंजनों पर टूट पड़ना. असल में रमजान के पूरे महीने की शामें मुझे ज्यादा अच्छी लगती थीं. क्योंकि इफ्तार के समय सारे घर के लोग एक साथ बैठकर स्वादिष्ट खाना तो खाते ही थे साथ ही दुनिया जहान की ढेर सारी बातें भी करते थे.

इसलिए ही उस वक्त मुझे ये बात बहुत बुरी लग रही थी कि सिर्फ खून बहने की वजह से मुझे इसमें भाग लेने नहीं दिया गया था. आखिर मैं सिर्फ 12 साल की थी. हालांकि बड़े होने पर मुझे समझ आया कि पीरियड्स के समय रोजा ना रखना मेरे लिए ही एक वरदान की तरह था. हां, मुझे इस बात की बिल्कुल परवाह नहीं कि मेरे ऐसा कहने पर आप मुझे...

पीरियड्स यानी माहवारी, ये ऐसी प्राकृतिक प्रक्रिया है जिससे हर लड़की को गुजरना होता है. वैसे तो पीरियड्स जीवन चक्र के लिए एक सबसे जरूरी प्रक्रिया है. जीवन के लिए ये ठीक वैसे ही जरूरी है जैसे ऑक्सीजन. लेकिन फिर भी पीरियड्स के समय महिलाओं के साथ भेदभाव हमारी संस्कृति का हिस्सा बन चुके हैं. पीरियड्स के दौरान महिलाओं का मंदिरों, मस्जिदों में इंट्री बैन, पीरियड्स के समय आचार छूना मना और भी हजार तरीके के कई तरह के रोक-टोक लगाए जाते हैं सो अलग. यही नहीं इन पांच दिनों में तो लड़कियों के साथ अछूत की तरह व्यवहार किया जाता है. खैर इसमें भी कोई संदेह नहीं की महिलाओं और पीरियड्स दोनों को एक सामान्य और प्राकृतिक प्रक्रिया की तरह अपनाने में हमारे समाज को सदियां लग जाएंगी.

पीरियड्स में रोजा नहीं रखना ही समझदारी है

आज से ठीक बीस साल पहले रमजान का महीना था. लेकिन मुझे कहा गया कि अपनी चचेरी बहनों के साथ रोजा नहीं रख सकती. कारण? क्योंकि मेरे पीरियड्स चल रहे थे- मेरा दिल टूट गया था, मैं बहुत दुखी हो गई थी. उस समय मेरे लिए रमज़ान का मतलब मेरी दुनिया, मेरी जिंदगी हुआ करता था. तब रोज सुबह-सुबह घर के सभी लोगों के साथ जागना और तरह-तरह के व्यंजनों पर टूट पड़ना. असल में रमजान के पूरे महीने की शामें मुझे ज्यादा अच्छी लगती थीं. क्योंकि इफ्तार के समय सारे घर के लोग एक साथ बैठकर स्वादिष्ट खाना तो खाते ही थे साथ ही दुनिया जहान की ढेर सारी बातें भी करते थे.

इसलिए ही उस वक्त मुझे ये बात बहुत बुरी लग रही थी कि सिर्फ खून बहने की वजह से मुझे इसमें भाग लेने नहीं दिया गया था. आखिर मैं सिर्फ 12 साल की थी. हालांकि बड़े होने पर मुझे समझ आया कि पीरियड्स के समय रोजा ना रखना मेरे लिए ही एक वरदान की तरह था. हां, मुझे इस बात की बिल्कुल परवाह नहीं कि मेरे ऐसा कहने पर आप मुझे ईशनिंदा का दोषी मानकर बुरा-भला कहेंगे. इस पीरियड्स के ही कारण खुद को भूखा रखने से मुझे मुक्ति मिलती है. मेरे लिए ये किसी आशिर्वाद से कम नहीं था.

इसके पीछे ये कारण कतई नहीं कि मैं त्यौहारों से ऊब चुकी हूं या फिर मैं बोर हो गई हूं. बल्कि जब खुद मेरा शरीर पहले से ही दर्द से जूझ रहा है और इतना खून निकल रहा है तो फिर अपने पेट को खाली रखना कहीं से भी सही फैसला नहीं है. अगर ईमानदारी से बताऊं तो इस मामले मैं धार्मिक कट्टरपंथियों के साथ पूरी तरह सहमत हूं. पीरियड्स के दौरान महिलाओं को किसी भी हालत में उपवास नहीं करना चाहिए, मौका चाहे कोई भी हो.

लेकिन, इससे पहले कि आप सब मेरे पीछे बंदुक लेकर पड़ जाएं एक मिनट ठहरिए और मेरी बात पर गौर कीजिए. ये सही है कि हम सभी अपने धर्म और परंपराओं से प्यार करते हैं. साथ ही अपने जीवन को सामान्य रूप से जीना चाहते हैं. ये कोई बड़ी बात नहीं है ना ही किसी को इसमें कोई परेशानी होनी चाहिए लेकिन फिर भी एक बार आप अपने शरीर से पूछें कि क्या शरीर पर ये अन्याय सही है. जवाब खुद-ब-खुद मिल जाएगा.

पीरियड्स के दौरान काम पर जाना और खुद को भूखे-प्यासे रखना भक्ति नहीं बल्कि अत्याचार है. हालांकि पीरियड्स के दौरान मेरे उपवास नहीं करने से ये साबित नहीं होता कि मैं नास्तिक, अपवित्र, गंदी या फिर अछूत हूं. पीरियड्स तो हर महीने अपने समय से आने वाली एक नॉर्मल बायोलॉजिकल प्रक्रिया है. इससे कोई महिला अछूत तो नहीं हो जाती.

तो इसका सीधा सा अर्थ ये है कि पीरियड्स के दौरान अगर मैं रोजा नहीं रख रहीं हूं मतलब मुझे मेरे शरीर से प्यार है. और मैं अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखती हूं. अपने शरीर के साथ किसी भी तरह का अत्याचार मुझे स्वीकार नहीं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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