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Yeh Kaali Kaali Ankhein Review: संक्रांति पर Netflix ने परोस दी बेस्वाद खिचड़ी...

    • सरिता निर्झरा
    • Updated: 19 जनवरी, 2022 06:56 PM
  • 19 जनवरी, 2022 06:52 PM
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किसी भी समय और शहर का मिजाज़ - कहानी में एक किरदार का रोल अदा करते हैं. कसी हुई कहानी और एडिटिंग ये सब न होने पर बेहतरीन कलाकार भी एक सीरीज़ में वो चमक नहीं डाल सकते जिसकी दरकार होती है. राजनीति और प्यार में ऑब्सेशन से प्रेरित कहानी - बेस्वाद खिचड़ी सी है जिसमे यहां वहां मसाला तो है लेकिन नमक नहीं.

फॉर शी हैड आइज़ एंड चूज़ मी- विलियम शेक्सपियर ओथेलो

पहला सीन - दूर दूर तक पहाड़ियां  और एक टूटे फूटे से घर में - ताहिर भसीन. लम्बी दाढ़ी बिखरे बाल. आंखों में डर और बेचैनी. 'तीन चीज़ें इंसान को बर्बाद कर सकती है - पैसा पॉवर और औरत.'

वाह ! कसम से पहले सीन से लगा की कमाल होगा. बिलकुल फटा पोस्टर निकला हीरो जैसे लेकिन....साल की पहली सीरीज़ देखी - ये काली काली आंखें - तू रु रु तू रु रु. ऑफ ट्रैक नहीं हुए ये नाम है और म्यूजिक हम जोड़ लिए. संक्रांति के दिन रिलीज़ हुई नेटफ़्लिक्स पर ये सीरीज़. भारतीय त्योहार पर हिंदुस्तानी वेबसीरीज और अमरीकन प्लेटफार्म शायद इसलिए पापड़ अचार सलाद होने पर भी, खिचड़ी में ही नमक मसाला का अनुपात बिगड़ गया.

क बेवजह की कहानी को दर्शाती है नेटफ्लिक्स की वेब सीरीज ये काली काली आंखें

सुना है इनके डायरेक्टर सिद्धार्थ सेनगुप्ता जो की कुछ नामी सीरियल के पीछे का चेहरा है और वरुण बडोला. उफ़्फ़ 90 का वो दौर और देश में निकला होगा चांद वाले वरुण, ने मिलकर इस कहानी को पर्दे पर लाने से पहले 20 साल सोचा. बीस साल! क्यों? क्योंकि बकौल उनके हिंदुस्तानी टेलीविज़न इसके लिए तैयार नहीं था.

ये बात हज़म नहीं हुई क्योंकि न तो कहानी कोई कसा हुआ ड्रामा है न ही कोई कमाल थ्रिलर कि कलेजा मुंह को आ जाये. तो हाज़रीन ,कहानी उत्तर प्रदेश में सेट है. क्योंकि दबंगई और बाहुबलियों को दिखाने लिए इससे बेहतर कोई सेटिंग नहीं मिलती. ओमकारा जिला है या कस्बा या कुछ और नहीं पता पर वहां अखिराज अवस्थी का राज है. अखिराज यानि सौरभ शुक्ल है रुथलेस, करप्ट मर्डरर किस्म के नेता. इन शार्ट आम हिंदुस्तानी नेता जिसके पास बहुत पैसा है. एक गोद लिया बेटा और एक बेटी है. पत्नी नहीं है. फोटो में भी...

फॉर शी हैड आइज़ एंड चूज़ मी- विलियम शेक्सपियर ओथेलो

पहला सीन - दूर दूर तक पहाड़ियां  और एक टूटे फूटे से घर में - ताहिर भसीन. लम्बी दाढ़ी बिखरे बाल. आंखों में डर और बेचैनी. 'तीन चीज़ें इंसान को बर्बाद कर सकती है - पैसा पॉवर और औरत.'

वाह ! कसम से पहले सीन से लगा की कमाल होगा. बिलकुल फटा पोस्टर निकला हीरो जैसे लेकिन....साल की पहली सीरीज़ देखी - ये काली काली आंखें - तू रु रु तू रु रु. ऑफ ट्रैक नहीं हुए ये नाम है और म्यूजिक हम जोड़ लिए. संक्रांति के दिन रिलीज़ हुई नेटफ़्लिक्स पर ये सीरीज़. भारतीय त्योहार पर हिंदुस्तानी वेबसीरीज और अमरीकन प्लेटफार्म शायद इसलिए पापड़ अचार सलाद होने पर भी, खिचड़ी में ही नमक मसाला का अनुपात बिगड़ गया.

क बेवजह की कहानी को दर्शाती है नेटफ्लिक्स की वेब सीरीज ये काली काली आंखें

सुना है इनके डायरेक्टर सिद्धार्थ सेनगुप्ता जो की कुछ नामी सीरियल के पीछे का चेहरा है और वरुण बडोला. उफ़्फ़ 90 का वो दौर और देश में निकला होगा चांद वाले वरुण, ने मिलकर इस कहानी को पर्दे पर लाने से पहले 20 साल सोचा. बीस साल! क्यों? क्योंकि बकौल उनके हिंदुस्तानी टेलीविज़न इसके लिए तैयार नहीं था.

ये बात हज़म नहीं हुई क्योंकि न तो कहानी कोई कसा हुआ ड्रामा है न ही कोई कमाल थ्रिलर कि कलेजा मुंह को आ जाये. तो हाज़रीन ,कहानी उत्तर प्रदेश में सेट है. क्योंकि दबंगई और बाहुबलियों को दिखाने लिए इससे बेहतर कोई सेटिंग नहीं मिलती. ओमकारा जिला है या कस्बा या कुछ और नहीं पता पर वहां अखिराज अवस्थी का राज है. अखिराज यानि सौरभ शुक्ल है रुथलेस, करप्ट मर्डरर किस्म के नेता. इन शार्ट आम हिंदुस्तानी नेता जिसके पास बहुत पैसा है. एक गोद लिया बेटा और एक बेटी है. पत्नी नहीं है. फोटो में भी नहीं.

जिक्र भी नहीं ? हां नहीं है तो? डिस्ट्रक्ट मत करिये. बहुतों की नहीं होती. हां उनके नौकर चाकर शूटर गुंडों के साथ एक मुनीम भी है ब्रजेश कालरा. आई टेल यू आई लव बोथ दीस एक्टर्स! मुनीम जी का बेटा विक्रांत (ताहिर भसीन ) और अखिराज की बेटी पूर्वा (आंचल सिंह ) एक ही स्कूल में पढ़ते हैं और मालिक की बेटी मुनीम की बेटे से पूछती है, 'विल यू बी माय फ्रेंड'. पर बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद. बेटा उसे अपना बैड लक मानते हुए दोस्ती से मना कर देता है और कुछ दिनों में,'बेबी जी 'शहर चली जाती है. पढ़ने या शायद ज़ुम्बा सीखने .क्योंकि सालों बाद वो वापस आती है और तीन मंज़िल का डांस एंड ज़ुम्बा स्कूल खोलती है.

इन सबके बीच याद रखियेगा की विक्रांत भी बड़ा हो गया है और दस लाख आम लड़कों जैसे इंजीनिरिंग पढ़ने गया है. कहां ? नॉट इम्पोर्टेन्ट. आम इसलिए की उसका काम खास नहीं खास तो वो खुद है. विक्रांत इंजीनिरिंग के पहले साल में एक लड़की से मोहब्बत कर बैठते हैं. और उनके साथ छोटा घर विथ छोटा गार्डन विद छोटी गाड़ी विद छोटू कुत्ता न डॉगी सा सपना लिए वापस आते है अपने ओमकारा. उनका इरादा पक्का है,नौकरी घर और अपनी मोहब्बत साक्षी अग्रवाल यानि श्वेता त्रिपाठी से शादी. लेकिन वो तो किसी और का बसपन का प्यार हैं!

या या सेम बेबी जी! अपने बसपन के प्यार के दस साल कुछ महीने कुछ दिन गिनते हुए पूर्वा आ चुकी है ओमकारा. हम ऊंघते हुए गिनती नहीं कर पाते इसलिए याद नहीं. वो पिता से कह कर विक्रांत की टाटा स्टील की नौकरी छुड़वा कर अपने ज़ुम्बा क्लास में अकाउंटेंट रखती है.

यार, वैसे टाटा से नौकरी छुड़वा देना मतलब कोई बड़े ही नेता है अखिराज जी. इस पर और एनालिसिस करने की ज़रूरत है. लेकिन थोड़ा रुक कर. हां तो अब खिचड़ी के साथी नज़र आएंगे. चटक चटाखेदार एंट्री बेबीजी की- इन द स्विमिंग पूल. हालांकि ज़रूरत नहीं लगी, थोपा हुआ सा लगा और सिज़लिंग की उम्मीद तो औंधे मुंह गिरी है. हालाँकि बेबी जी यानि पूर्वा यानि की आंचल सिंह की एक्टिंग बुरी नहीं है.

अब यहीं से प्यार तूने क्या किया और मिर्ज़ापुर की चटनी का सा स्वाद आने लगा. येन केन प्रकारेण विक्रांत से ब्याह करना पूर्वा की ज़िद है. ट्रॉफी हस्बंड यू सी तो वो उनके घरवालों पर प्रेशर बनाने के साथ ही आर्म ट्विस्टिंग का कोई तरीका नहीं छोड़ती.

अपने विक्रांत बाबू साक्षी से कहते रहे हैं की अंत में- हैप्पिली एवर आफ्टर होगा. साक्षी भी बेहद इम्प्रैक्टिकल जिसे यह नहीं दिख रहा की गोली बम कट्टा पैसा पावर के आगे उनका छोटा कुत्ता कहां टिकेगा. मतलब घर नौकरी मोहब्बत कुछ नहीं भाई. पूर्वा अखिराज जी की बिटिया हैं! ये बात उनको उनके बसपन का दोस्त 'गोल्डन', जो अब पोर्न फिल्म निर्माता या सेलेर या कुछ तो ऐसा बन चुका है अक्सर समझाता है.

लेकिन जानते तो हैं कि प्यार अंधा होता है और यहां तो बौड़ियाया हुआ है - प्यार और प्रेमी दोनों! फिर आगे बिलकुल से भागती हुए-साक्षी पर हमला, उसका शहर से भागना ,कत्ल होना फिर ज़िंदा होना और इन सबमे विक्रांत का जबरन ब्याह हलीमून और सीधे साधे इंजीनियर का मर्डरर टाइप्स रुथलेस बनने की कहानी.

न वरुण बाबू - विक्रांत सिंह चौहान गुड्डू पंडित या बबलू पंडित न बन पाए और न ही साक्षी में गजगामिनी वाला स्पार्क नज़र आया. दोनों की कमेस्ट्री में नमक कम था. इस नमक की कमी को ऑब्सेस्ड प्रेमिका और पत्नी पूर्वा के कुछ बोल्ड सीन के ज़रिये पूरा करने की कोशिश की गई है लेकिन वो सही से मिल नहीं पाया.

प्यार में ऑब्सेशन की कई कहानियां फिल्मो में बनी है. हीरो ही नहीं हेरोइन का जूनून भी हम देख चुके हैं. टेलीविज़न पर बरसों से अलग अलग समय पर ऐसी कहानियां देखी गई हैं लेकिन यहां जूनून वाली माशूका के किरदार में वो धार नहीं थी. झाल मुड़ी के जैसे राजनैतिक बिसात में एस एस पी का कत्ल, बेटी का जुनूनी प्यार, हीरो का 'हैपिली एवर आफ्टर' के पीछे की सारी तिकड़म सब कुछ अलग अलग सा लगा. कभी कभी तो बचकाना भी.

बीच बीच में ह्यूमर की कोशिश,में कॉन्डोम के फ्लेवर का ज़िक्र भी कुछ नाकाम सा रहा. बेहतरीन किरदारों और ओपनिंग सीन ने कुछ कमाल होगा की उम्मीद जगाई लेकिन पुरे आठ एपिसोड हम उस कमाल के इंतज़ार में ही देखते गए और अंत को किसी पल्प फिक्शन की तरह छोड़ा गया.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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