• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सिनेमा

The Big Bull: वो बातें जो सीधे कांग्रेस की राजनीतिक विरासत पर हमला करती हैं

    • अनुज शुक्ला
    • Updated: 15 अप्रिल, 2021 02:46 PM
  • 15 अप्रिल, 2021 02:46 PM
offline
द बिग बुल- बादशाहो, रेड और द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर आदि की तरह ही कांग्रेस की समूची विरासत को घेरती है और उसे राजनीति में करप्शन की जड़ साबित कर देती है.

फिल्मों के राजनीतिक इस्तेमाल का आरोप नया नहीं है. 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद एक तबके ने कुछ ज्यादा ही भरोसे से लगातार आशंका जताई है कि संघ-बीजेपी एजेंडा के लिए धड़ल्ले से बॉलीवुड का इस्तेमाल हो रहा है. मोदी सरकार की कई योजनाओं के प्रचार और पूर्ववर्ती गैर बीजेपी सरकारों और नेताओं को बदनाम करने वाले कथानक पर फ़िल्में बनाई जा रही हैं. अक्षय कुमार और अजय देवगन सरीखे अभिनेताओं की कुछ फिल्मों पर तो 'सिनेमाई लिबर्टी' के नाम पर ऐतिहासिक तथ्यों से अलग कहानी परोसने का आरोप लगा. कुछ विश्लेषकों ने तो यहां तक माना कि ऐसी फिल्मों से "मास लेबल" पर जो वैचारिकी बन रही है वो संघ और बीजेपी के फेवर में है.

अक्षय कुमार की होलिडे, बेबी, टॉयलेट: एक प्रेमकथा, केसरी, अजय देवगन की बादशाहो, रेड और तान्हाजी, अनुपम खेर की होटल मुंबई, द एक्सिडेंटल प्रेम मिनिस्टर, विकी कौशल की उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक, राकेश ओम प्रकाश मेहरा की मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर जैसी दर्जनों फ़िल्में हैं जिन्हें लेकर सिनेमा विश्लेषकों का एक धड़ा मानता है कि ये राष्ट्रवाद, हिंदुत्व एजेंडा, मोदी सरकार की उपलब्धियों का प्रचार और कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकारों को बदनाम करने की कोशिशे हैं. फिल्म क्रिएटिविटी के नाम पर दूसरी पार्टियों और नेताओं के बारे में उन धारणाओं को पुख्ता और प्रचारित किया जा रहा है जिससे किन्ही दलों और व्यक्तियों को नुकसान पहुंचता है. अगर फिल्मों की राजनीतिक पक्षधरता की कसौटी यही है तो अभिषेक बच्चन स्टारर द बिग बुल को भी इसी लिस्ट में रखा जा सकता है. द बिग बुल को सिनेमाघरों के बंद होने के बाद पिछले हफ्ते OTT पर रिलीज किया गया है.

रेड, बादशाहो की कड़ी में द बिग बुल

द बिग बुल, स्टॉक मार्केट के उस आम शख्स की कहानी है जिसने बैंकिंग और स्टॉक मार्केट की खामियों के सहारे बेशुमार दौलत बनाई. लेकिन एक दिन उसकी चोरी पकड़ी गई और उसके पीछे-पीछे पूरा सिंडिकेट नंगा हो गया. वैसे तो द बिग बुल की कहानी को काल्पनिक ही बताया जा रहा है, वावजूद कि फिल्म में...

फिल्मों के राजनीतिक इस्तेमाल का आरोप नया नहीं है. 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद एक तबके ने कुछ ज्यादा ही भरोसे से लगातार आशंका जताई है कि संघ-बीजेपी एजेंडा के लिए धड़ल्ले से बॉलीवुड का इस्तेमाल हो रहा है. मोदी सरकार की कई योजनाओं के प्रचार और पूर्ववर्ती गैर बीजेपी सरकारों और नेताओं को बदनाम करने वाले कथानक पर फ़िल्में बनाई जा रही हैं. अक्षय कुमार और अजय देवगन सरीखे अभिनेताओं की कुछ फिल्मों पर तो 'सिनेमाई लिबर्टी' के नाम पर ऐतिहासिक तथ्यों से अलग कहानी परोसने का आरोप लगा. कुछ विश्लेषकों ने तो यहां तक माना कि ऐसी फिल्मों से "मास लेबल" पर जो वैचारिकी बन रही है वो संघ और बीजेपी के फेवर में है.

अक्षय कुमार की होलिडे, बेबी, टॉयलेट: एक प्रेमकथा, केसरी, अजय देवगन की बादशाहो, रेड और तान्हाजी, अनुपम खेर की होटल मुंबई, द एक्सिडेंटल प्रेम मिनिस्टर, विकी कौशल की उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक, राकेश ओम प्रकाश मेहरा की मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर जैसी दर्जनों फ़िल्में हैं जिन्हें लेकर सिनेमा विश्लेषकों का एक धड़ा मानता है कि ये राष्ट्रवाद, हिंदुत्व एजेंडा, मोदी सरकार की उपलब्धियों का प्रचार और कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकारों को बदनाम करने की कोशिशे हैं. फिल्म क्रिएटिविटी के नाम पर दूसरी पार्टियों और नेताओं के बारे में उन धारणाओं को पुख्ता और प्रचारित किया जा रहा है जिससे किन्ही दलों और व्यक्तियों को नुकसान पहुंचता है. अगर फिल्मों की राजनीतिक पक्षधरता की कसौटी यही है तो अभिषेक बच्चन स्टारर द बिग बुल को भी इसी लिस्ट में रखा जा सकता है. द बिग बुल को सिनेमाघरों के बंद होने के बाद पिछले हफ्ते OTT पर रिलीज किया गया है.

रेड, बादशाहो की कड़ी में द बिग बुल

द बिग बुल, स्टॉक मार्केट के उस आम शख्स की कहानी है जिसने बैंकिंग और स्टॉक मार्केट की खामियों के सहारे बेशुमार दौलत बनाई. लेकिन एक दिन उसकी चोरी पकड़ी गई और उसके पीछे-पीछे पूरा सिंडिकेट नंगा हो गया. वैसे तो द बिग बुल की कहानी को काल्पनिक ही बताया जा रहा है, वावजूद कि फिल्म में दर्ज समय, घटनाएं और लेयर उसे सिर्फ स्टॉक ब्रोकर हर्षद मेहता की कहानी से जोड़ते हैं. और अगर ये हर्षद मेहता की कहानी है, तो ये कांग्रेस और उसकी विरासत पर तीखे सवाल कर रही है. ये फिल्म भी बादशाहो, रेड और द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर आदि की तरह ही कांग्रेस की समूची विरासत को घेरती है और उसे राजनीति में करप्शन की जड़ साबित कर देती है.

एक आर्थिक अपराधी के जीवन से प्रेरित द बिग बुल में मध्य वर्ग का प्रतिनिधित्व कर हेमंत शाह नायक बन जाता है. विलेन के रूप में वो सिस्टम नजर आता है जिस पर तब कांग्रेस का नियंत्रण था. हर्षद मेहता खेल में अकेला नहीं था. बैंकिंग सिस्टम, कारोबार जगत और राजनीति के दिग्गजों का बैकअप हमेशा उसके पीछे था. राजनीति से कौन लोग हर्षद मेहता का समर्थन कर रहे थे, यह विवाद कभी स्पष्ट नहीं हुआ, लेकिन इस बिना पर यह मानने का भी कोई तुक नहीं है कि सिस्टम कंट्रोल करने वाले उस वक्त के ताकतवर लोग उसके साथ नहीं थे. ये शीशे की तरह साफ़ है कि तब कांग्रेस की सरकार थी और पीवी नरसिम्ह राव प्रधानमंत्री थे.

हर्षद मेहता हीरो या तकालीन कांग्रेस सरकार विलेन ?

इलियाना डीक्रूज ने फिल्म में उस पत्रकार की भूमिका निभाई है जिसने हर्षद मेहता के करप्शन को उजागर किया था. वो हेमंत शाह (फिल्म में हर्षद मेहता से प्रेरित चरित्र) की आंखोदेखी कहानी नैरेट करती चलती हैं. एक जगह ऑडियंस ग्रुप उनसे सवाल करता है- आपकी नज़रों में हेमंत (हर्षद मेहता) ठीक था या गलत? वो कहती हैं- हेमंत ठीक था या गलत, ये मैं नहीं जानती. लेकिन जो चीज मैंने देखा वो ये कि आजादी के बाद सालों तक ठप पड़े आर्थिक विकास में हेमंत, क्रांति (आर्थिक) की तरह था.

एक जगह इलियाना का एडिटर भी उन्हें मुंबई में निर्माण कार्यों की वृद्धि के लिए हेमंत शाह को श्रेय देता दिख रहा था- मैंने मुंबई को सालों से देखा हैं लेकिन कभी इतनी संख्या में इमारतों के निर्माणाधीन टावर नहीं देखें. इस व्यक्ति (हर्षद मेहता) ने आम आदमी के सपनों को वजह दे दी है. हेमंत शाह (हर्षद मेहता) भी फिल्म में कई जगह ऐसा ही कहता दिखता है कि वो कारोबारी और नेताओं के बीच आम आदमी को भी पैसे बनाने की वजह और मौके दे रहा है. सही मायने में देश का विकास कर रहा है. द बिग बुल में स्थापित किया गया है कि तब की भ्रष्ट राजनीति और कारोबार जगत ने कैसे चीजों को एक सीमा तक नियंत्रित किया हुआ था. आम लोग मौका ही नहीं पा रहे थे. शहरी गरीबी, नेताओं बड़े कारोबारियों की लूट, और समूची बैंकिंग सिस्टम को उद्योगपतियों के हित की सुरक्षा करने वाले के तौर पर दिखाया गया है.

सीधे कांग्रेस पीएम पर हमला

निजी घटनाओं को देखें तो हर्षद मेहता ने बैंकों के कमजोर नियमों का जमकर फायदा उठाया. उसका खेल बैंकिंग लेन-देन में की गई बड़ी हेराफेरी के बाद उजागर हुआ था. उसके ऊपर कई दर्हन आपराधिक केस दर्ज हुए थे. पकड़े जाने के बाद उसने कुछ नेताओं के साथ तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्ह राव पर भी सीधे पैसे लेने का आरोप लगाया था. हालांकि आरोपों की जांच करने वाली सयुंक्त संसदीय समिति के सामने वो साबित ही नहीं कर पाया कि उसने राव के आवास तक एक करोड़ रुपये पहुंचाए. द बिग बुल में इन सभी घटनाओं का विवरण है.

तत्कालीन कांग्रेसी नेताओं की लाइफस्टाइल पर तीखा तंज

एक जगह बड़े कांग्रेस नेता के बेटे की राजा-महाराजाओं वाली लाइफस्टाइल दिखाई गई है जो हर्षद मेहता को ये भरोसा देता दिख रहा है कि कारोबारी फायदे के लिए सरकार और सिस्टम का किसी भी स्तर तक इस्तेमाल कर सकता है. द बिग बुल में सीबीआई भी है लेकिन सरकार के इशारे पर काम करती है. सीबीआई के जरिए हर्षद और उसके वकील को धमकी भी दिखाई गई है (प्रेस कांफ्रेंस वाले सीन में). द बिग बुल में पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार और उसके नेताओं के खिलाफ बहुत कुछ है. यही चीजें तत्कालीन सरकार और पार्टी को हर्षद मेहता से ज्यादा बड़ा विलेन साबित कर जाती हैं.

क्या मिस्ट्री है हर्षद मेहता की मौत

साल 2002 में जेल में हर्षद मेहता की मौत की वजह दिल का दौरा थी. उस वक्त उसकी उम्र 47 साल थी. मौत से पहले तक हर्षद मेहता के ऊपर कई दर्जन मामले लंबित थे और मात्र कुछ ही मामलों में उसे दोषी करार दिया गया था. मेहता के स्कैम में हाईप्रोफाइल लोग भी लपेटे में थे. हर्षद मेहता की मौत क्या वाकई दिल का दौरा पड़ने से हुई थी? द बिग बुल ने इस बारे में दर्शकों को राय बनाने की सुविधा छोड़ दी है. आखिर में कुछ विजुअल हैं जिसमें हर्षद पर थर्ड डिग्री टॉर्चर होता दिखता है. इससे पहले कुछ संवादों में भी हर्षद को चेताया गया था कि जिन हाईप्रोफाइल लोगों से लड़ने की कोशिश कर रहा है वो उसका बहुत बुरा हश्र करेंगे. अब अगर द बिग बुल को लेकर कोई व्यक्ति अपनी धारणा बनाए तो अतीत में कांग्रेस की राजनीति को लेकर वह क्या सोचेगा? नकारात्मक.

यही वजह है कि फिल्म पूरी तरह से कांग्रेस की राजनीतिक विरासत पर करारे चोट की तरह है. अच्छी बात सिर्फ यह है कि उस वक्त कांग्रेस के प्रधानमत्री पीवी नरसिम्ह राव थे जिनकी पॉलिटिकल लीगेसी पर पार्टी दावा करने से बचती है. खराब बात ये है कि कांग्रेस उसी राव सरकार के आर्थिक सुधारों का श्रेय लेती रहती है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    सत्तर के दशक की जिंदगी का दस्‍तावेज़ है बासु चटर्जी की फिल्‍में
  • offline
    Angutho Review: राजस्थानी सिनेमा को अमीरस पिलाती 'अंगुठो'
  • offline
    Akshay Kumar के अच्छे दिन आ गए, ये तीन बातें तो शुभ संकेत ही हैं!
  • offline
    आजादी का ये सप्ताह भारतीय सिनेमा के इतिहास में दर्ज हो गया है!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲