• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सिनेमा

क्यों आमिर खान की लाल सिंह चड्ढा टॉम हैंक्स की फारेस्ट गंप जैसा कमाल नहीं दोहरा सकती?

    • अनुज शुक्ला
    • Updated: 04 जून, 2022 07:25 PM
  • 31 मई, 2022 02:36 PM
offline
आमिर खान ने किस तरह से भारतीय संदर्भ में लाल सिंह चड्ढा की कहानी को लिया है. आइए जानते हैं कि अमेरिका की फारेस्ट गंप का भारतीय रूपांतरण करने में समस्याएं क्या हैं.

आमिर खान और करीना कपूर खान स्टारर 'लाल सिंह चड्ढा' का ट्रेलर आ चुका है. इसे खूब देखा जा रहा है. लोग तारीफ़ भी कर रहे हैं. खासकर फिल्म की कहानी और मुख्य किरदार के लिहाज से आमिर का जो लुक सामने आया है- वह कमाल का है. इसे देखकर समझा जा सकता है कि उन्होंने अपने किरदार और फिल्म को असरदार बनाने के लिए कितनी मेहनत और तैयारियां की होंगी. लाल सिंह चड्ढा, टॉम हैंक्स की फारेस्ट गंप का आधिकारिक रीमेक है. जिन लोगों ने फारेस्ट गंप पहले देख ली है- लाल सिंह चड्ढा के ट्रेलर से जान गए होंगे कि दोनों कहानी में भूगोल, राजनीति, युद्ध, और समाज के अलावा बाकी सब कुछ एक जैसे ही हैं.

फारेस्ट गंप को जरूरी भारतीय संदर्भ में बदल दिया गया है. बदलाव रीमेक या अडाप्शन की स्थानीय जरूरत भी बन जाती है. अब फिल्म कैसी बनी होगी यह तो अगस्त में रिलीज के बाद ही पता चलेगा. लेकिन कहानी तो वही ही है- ट्रेलर इतना पुख्ता करने के लिए पर्याप्त है. लेकिन बड़ा सवाल तो यह है कि क्या दो अलग-अलग राजनीतिक, सामजिक, आर्थिक व्यवस्था और भूगोल में बनी फ़िल्में अपने असर में भी एक ही जमीन पर होंगी? और क्या लाल सिंह चड्ढा देखने पर दर्शकों को वही फील आएगा जो अमेरिकी संदर्भ में फारेस्ट गंप देखते हुए मिल रहा था?

लाल सिंह चड्ढा.

मुझे लगता है कि यह शायद असंभव है. पहली बात तो यही है कि रीमेक या अडाप्शन से पुराने जादू को दोहराना लगभग असम्भव है. फिल्म आप बेहतर बना लेते हैं तो यह आपकी मेहनत और कामयाबी है. फारेस्ट गंप को दोहराना आमिर ही नहीं किसी के लिए भी दुरूह कार्य है. फारेस्ट गंप के कहानी की जमीन साधारण नहीं है. वह कहानी अमेरिका के जिस माहौल से पनपी है जिन बदलाव से गुजरती है- दुनिया में दूसरे भूगोल में उस न्जैसा अनुभव नजर नहीं आता. भारत जैसे देश में उसकी कल्पना करना- ईमानदारी...

आमिर खान और करीना कपूर खान स्टारर 'लाल सिंह चड्ढा' का ट्रेलर आ चुका है. इसे खूब देखा जा रहा है. लोग तारीफ़ भी कर रहे हैं. खासकर फिल्म की कहानी और मुख्य किरदार के लिहाज से आमिर का जो लुक सामने आया है- वह कमाल का है. इसे देखकर समझा जा सकता है कि उन्होंने अपने किरदार और फिल्म को असरदार बनाने के लिए कितनी मेहनत और तैयारियां की होंगी. लाल सिंह चड्ढा, टॉम हैंक्स की फारेस्ट गंप का आधिकारिक रीमेक है. जिन लोगों ने फारेस्ट गंप पहले देख ली है- लाल सिंह चड्ढा के ट्रेलर से जान गए होंगे कि दोनों कहानी में भूगोल, राजनीति, युद्ध, और समाज के अलावा बाकी सब कुछ एक जैसे ही हैं.

फारेस्ट गंप को जरूरी भारतीय संदर्भ में बदल दिया गया है. बदलाव रीमेक या अडाप्शन की स्थानीय जरूरत भी बन जाती है. अब फिल्म कैसी बनी होगी यह तो अगस्त में रिलीज के बाद ही पता चलेगा. लेकिन कहानी तो वही ही है- ट्रेलर इतना पुख्ता करने के लिए पर्याप्त है. लेकिन बड़ा सवाल तो यह है कि क्या दो अलग-अलग राजनीतिक, सामजिक, आर्थिक व्यवस्था और भूगोल में बनी फ़िल्में अपने असर में भी एक ही जमीन पर होंगी? और क्या लाल सिंह चड्ढा देखने पर दर्शकों को वही फील आएगा जो अमेरिकी संदर्भ में फारेस्ट गंप देखते हुए मिल रहा था?

लाल सिंह चड्ढा.

मुझे लगता है कि यह शायद असंभव है. पहली बात तो यही है कि रीमेक या अडाप्शन से पुराने जादू को दोहराना लगभग असम्भव है. फिल्म आप बेहतर बना लेते हैं तो यह आपकी मेहनत और कामयाबी है. फारेस्ट गंप को दोहराना आमिर ही नहीं किसी के लिए भी दुरूह कार्य है. फारेस्ट गंप के कहानी की जमीन साधारण नहीं है. वह कहानी अमेरिका के जिस माहौल से पनपी है जिन बदलाव से गुजरती है- दुनिया में दूसरे भूगोल में उस न्जैसा अनुभव नजर नहीं आता. भारत जैसे देश में उसकी कल्पना करना- ईमानदारी से जबरदस्ती कनेक्शन बनाना भर है. खैर.

अलग समाज और भूगोल की कहानी को क्या आमिर भारतीय बना सकते हैं?

फारेस्ट गंप एक लकवाग्रस्त बच्चे की कहानी है. जो बहुत मासूम और भोला भाला और दिल का अच्छा है. चलने में असमर्थ है बावजूद वह अपने जीवन में हर उस लक्ष्य को हासल करता है जो उसके लिए एक तरह से असंभव है. चल नहीं पाने वाला बच्चा बड़ा होकर रेसर बनता है. पढ़ाई के बाद फौजी बनता है और वियतनाम में अमेरिका के सबसे मुश्किल युद्ध अभियान का हिस्सा बनता है. वह युद्ध जिसमें अमेरिका को शर्मनाक हार मिली थी और उसके सैनिकों पर पड़े उस युद्ध के मनोवैज्ञानिक असर के निशान आज भी तमाम शोधों में खोजे जाते हैं. वियतनाम युद्ध की स्मृति अमेरिका में किस तरह है- उसकी तुलना में भारत का निजी उदाहरण है ही नहीं. हो सकता है कि वह अनुभव विश्वयुद्ध में लड़ने गए गुलाम भारतीय सैनिकों का रहा हो. मगर दुर्भाग्य से लाल सिंह चड्ढा का के बैकड्राप में विश्वयुद्ध तो नहीं दिखता. आजादी के बाद का भारत है.

दूसरी बात- फारेस्ट गंप 1994 में आई थी. वियतनाम की तरह ही 1991 के खाड़ी युद्ध में भी ईराक के हाथों अमेरिका को जीत तो मिली थी लेकिन वह एक तरह से बहुत प्रभावशाली नहीं थी. उस युद्ध की जरूरत को लेकर हमेशा सीनियर बुश से सवाल होते रहे हैं. अमेरिकी समाज और राजनीति पर खाड़ी युद्ध का असर भी लगभग वियतनाम जैसा ही रहा. जैसे वियतनाम में कोई नतीजा नहीं मिलने के बाद अमेरिकी समाज ने अपनी सरकार पर भड़ास निकाली- वैसा ही कुछ खाड़ी युद्ध के बाद भी हुआ था. फारेस्ट गंप असल में अपनी बुनावट में एक युद्ध विरोधी मानवीय पहलुओं पर बनी फिल्म है. एक सैनिक के मानवीय नजरिए को दिखाती है. एक चीज और ध्यान देने लायक है. वियतनाम और खाड़ी युद्ध से पहले अमेरिका ने दुनिया में कई निर्णायक युद्ध जीते. जापान पर जीत तो सबसे विध्वंसक है जिसमें परमाणु बम तक का प्रयोग हुआ. इन युद्दों के असर से अमेरिका में बेशुमार आर्थिक प्रगति हुई.

भारत में फारेस्ट गंप की कहानी जैसे उदाहरण नहीं हैं 

भारत में वियतनाम और खाड़ी युद्ध जैसी निराशा नहीं है. बावजूद की भारत, चीन के हाथों एक युद्ध हार चुका है. लेकिन तत्कालीन राजनीतिक आर्थिक स्थितियों की वजह से उस हार से भारतीय समाज में निराशा के भाव की जगह संसाधनों और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी में उपजा प्रतिशोध का भाव है. फारेस्ट गंप में प्रतिशोध का वैसा भाव है ही नहीं. हो सकता है कि पाकिस्तान से हुई लड़ाइयों को आमिर ने लाल सिंह में इस्तेमाल किया हो. युद्धों के अलावा फारेस्ट गंप में अमेरिका में होने वाली जिन अन्य बड़ी घटनाओं का संदर्भ आता है वह भी भारतीय समाज की तुलना में एक अलग ही दुनिया के बनने बिगड़ने के प्रसंग हैं. ऐसी तमाम चीजें हैं.

फारेस्ट गंप क्लासिक में शुमार है. और क्लासिक दोबारा नहीं बनते. यहां तक कि भारतीय फिल्मों को भी रीमेक में ठीक से नहीं बनाया जा सका है. उदाहरण के लिए देवदास के कई एडिशन बने पर दिलीप कुमार की फिल्म का बेंचमार्क कायम है. ऐसे कई और रीमेक के उदाहरण हैं. हाल में आई भूल भुलैया 2 को लोग बेहतर और जमाने के मुताबिक़ अपडेट पा रहे. फिल्म देखी भी जा रही, लेकिन अक्षय कुमार विद्या बालन की भूल भुलैया का बेंचमार्क कायम बताया जा रहा है. देखना होगा कि आमिर ने फारेस्ट गंप की कहानी को लाल सिंह चड्ढा में किस तरह भारतीय बनाया है.

फारेस्ट गंप ओटीटी पर उपलब्ध है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    सत्तर के दशक की जिंदगी का दस्‍तावेज़ है बासु चटर्जी की फिल्‍में
  • offline
    Angutho Review: राजस्थानी सिनेमा को अमीरस पिलाती 'अंगुठो'
  • offline
    Akshay Kumar के अच्छे दिन आ गए, ये तीन बातें तो शुभ संकेत ही हैं!
  • offline
    आजादी का ये सप्ताह भारतीय सिनेमा के इतिहास में दर्ज हो गया है!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲