• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सिनेमा

करण जौहर को आप पसंद करें या नापसंद, वो बॉलीवुड की एक संस्था तो हैं ही

    • अनुज शुक्ला
    • Updated: 26 मई, 2021 03:29 PM
  • 26 मई, 2021 03:29 PM
offline
जौहर के एक्टिंग का भी लेवल देखना हो तो पीरियड क्राइम थ्रिलर बॉम्बे वेलवेट देख लीजिए. खम्बाटा के किरदार को क्या खूब किया है उन्होंने. मुझे हिंदी सिनेमा के 10 सर्वकालिक खलनायकों की सूची बनाने का मौका मिले तो निश्चित रूप से बॉम्बे वेलवेट का खम्बाटा उसमें शामिल होगा.

करण जौहर बॉलीवुड का वो नाम है जिसे पसंद-नापसंद करने के बहुत से कारण और तर्क लोगों के पास हैं. लेकिन निजी. स्वाभाविक रूप से धर्मा प्रोडक्शन के इकलौते करण जौहर बहुत ही प्रभावशाली हैं. इस निर्माता-निर्देशक को यारबाज किस्म का इंसान माना जाता है. ना सिर्फ बॉलीवुड बल्कि भारतीय सिनेमा और उसके बाहर उनकी खूब सारी दोस्तियां हैं. उन्हें निभाते भी बखूबी हैं. जो लोग इस शख्स के नजदीक रह चुके हैं, खूबियों से भलीभांति परिचित हैं.

बॉलीवुड की युवा पीढी का शायद ही ऐसा कोई बड़ा नाम हो जो जौहर से अलग होगा. निंदक भी हैं, मगर इंडस्ट्री से गिने-चुने लोग (जैसे कंगना रनौत) ही उनके खिलाफ बोलते नजर आए हैं. इंडस्ट्री और उससे बाहर जो लोग जौहर की आलोचना करते हैं उसकी एकमात्र वजह कथित 'नेपोटिज्म' है. आरोप लगाए जाते हैं कि वो भाई भतीजावाद को बढ़ावा देते हैं. अपने बैनर में उन्हीं लोगों को बड़ा मौका देते हैं जो बड़े सेलिब्रिटीज के खानदान से आते हैं. यानी स्टार किड्स. इस बात से इनकार करने का कोई तर्क नहीं मिलता कि करण जौहर खुद में एक संस्था हैं. उन्होंने बड़े पैमाने पर ना सिर्फ नए लोगों को मौका दिया बल्कि लोगों के करियर को संवारकर उसे रास्ता भी दिखाया.

जहां तक उनके भाई-भतीजावाद या नेपोटिज्म का सवाल है इस पर दो साल पहले सीनियर जर्नलिस्ट नीलेश मिश्रा से एक लंबे इंटरव्यू में अनुराग कश्यप ने बहुत ही व्यावहारिक पक्ष रखा था. उन्होंने कहा था- "मैं पहले करण जौहर को एक प्र‍िवलेज इंसान (जिसे बचपन से ही सबकुछ मिला हो) और गलत आदमी समझता था. लेकिन उससे मिलने के बाद मेरा नजरिया बदल गया. हां वो प्र‍िवलेज इंसान है मगर वो भी तो वही करता है जो मैं करता हूँ. पहले मैं खुद को विक्टिम बनाकर रखता था. तब मुझे लगता था करण सबसे मिल रहा है लेकिन मुझसे क्यों नहीं मिल रहा है."

अनुराग ने कहा था- जब...

करण जौहर बॉलीवुड का वो नाम है जिसे पसंद-नापसंद करने के बहुत से कारण और तर्क लोगों के पास हैं. लेकिन निजी. स्वाभाविक रूप से धर्मा प्रोडक्शन के इकलौते करण जौहर बहुत ही प्रभावशाली हैं. इस निर्माता-निर्देशक को यारबाज किस्म का इंसान माना जाता है. ना सिर्फ बॉलीवुड बल्कि भारतीय सिनेमा और उसके बाहर उनकी खूब सारी दोस्तियां हैं. उन्हें निभाते भी बखूबी हैं. जो लोग इस शख्स के नजदीक रह चुके हैं, खूबियों से भलीभांति परिचित हैं.

बॉलीवुड की युवा पीढी का शायद ही ऐसा कोई बड़ा नाम हो जो जौहर से अलग होगा. निंदक भी हैं, मगर इंडस्ट्री से गिने-चुने लोग (जैसे कंगना रनौत) ही उनके खिलाफ बोलते नजर आए हैं. इंडस्ट्री और उससे बाहर जो लोग जौहर की आलोचना करते हैं उसकी एकमात्र वजह कथित 'नेपोटिज्म' है. आरोप लगाए जाते हैं कि वो भाई भतीजावाद को बढ़ावा देते हैं. अपने बैनर में उन्हीं लोगों को बड़ा मौका देते हैं जो बड़े सेलिब्रिटीज के खानदान से आते हैं. यानी स्टार किड्स. इस बात से इनकार करने का कोई तर्क नहीं मिलता कि करण जौहर खुद में एक संस्था हैं. उन्होंने बड़े पैमाने पर ना सिर्फ नए लोगों को मौका दिया बल्कि लोगों के करियर को संवारकर उसे रास्ता भी दिखाया.

जहां तक उनके भाई-भतीजावाद या नेपोटिज्म का सवाल है इस पर दो साल पहले सीनियर जर्नलिस्ट नीलेश मिश्रा से एक लंबे इंटरव्यू में अनुराग कश्यप ने बहुत ही व्यावहारिक पक्ष रखा था. उन्होंने कहा था- "मैं पहले करण जौहर को एक प्र‍िवलेज इंसान (जिसे बचपन से ही सबकुछ मिला हो) और गलत आदमी समझता था. लेकिन उससे मिलने के बाद मेरा नजरिया बदल गया. हां वो प्र‍िवलेज इंसान है मगर वो भी तो वही करता है जो मैं करता हूँ. पहले मैं खुद को विक्टिम बनाकर रखता था. तब मुझे लगता था करण सबसे मिल रहा है लेकिन मुझसे क्यों नहीं मिल रहा है."

अनुराग ने कहा था- जब मैं नेपोट‍िज्म की ड‍िबेट सुनता हूं तो सोचता हूं उसमें खामी नहीं है. क्योंकि मैंने भी हमेशा उसी के साथ काम किया है, ज‍िस पर पूरी तरह से भरोसा है. भले वो मेरी पैदाइश नहीं हैं. वो मेरे भाई-भतीजे नहीं हैं. लेकिन जो भरोसा है वो आखिर क्या है? वो भी तो एक नेपोट‍िज्म ही है. मैंने भी किसी बिल्कुल नए अनजान चेहरे को काम नहीं द‍िया है. खुद करण जौहर से भी कई बार ऐसे सवाल पूछे गए हैं जिसे उन्होंने खारिज किया है.

करण ने खुद एक वीडियो इंटरव्यू में कहा था- मैंने हमेशा प्रतिभाशाली आउटसाइडर्स को मौके दिए हैं. हमने 21 निर्देशकों का डेब्यू कराया उसमें से 16-17 युवा फिल्म मेकर्स बाहर से थे. मेरे प्रोडक्शन ने बहुत सारे बच्चों, निर्देशकों और फिल्म मेकर्स को लॉन्च किया है जो आउटसाइडर ही थे. मैं बेवकूफ नहीं हूं. मुझे भी अपनी कंपनी चलानी है. यह फैक्ट है कि जौहर ने आउटसाइडर और इनसाइडर दर्जनों चेहरों को मौका दिया और निखारा. जिस पर उन्होंने भरोसा किया और जो भरोसे पर खरा उतरा, उसका करियर बनाने में हमेशा मददगार रहे. शाहरुख, करीना और काजोल करण के ख़ास दोस्तों में हैं. इन तीनों के करियर की कुछ बेहतरीन फ़िल्में (डुप्लीकेट, कुछ कुछ होता है, कभी अलविदा ना कहना, कभी खुशी कभी गम आदि) धर्मा प्रोडक्शन की ही हैं. ज्यादातर का निर्देशन खुद करण ने किया.

जौहर को फ़िल्में हिट कराने का मंत्र पता है

फिल्म बिजनेस की समझ के मामले में करण जौहर का कोई जवाब नहीं है. उन्हें जैसे कहानी को हिट कराने का मंत्र पता है. उनके प्रोजेक्ट में कारोबारी नुकसान की आशंका ना के बराबर हो जाती है. चयन और ट्रीटमेंट के लिहाज से इस पक्ष का ख़ास ख्याल रखते हैं कि फ़िल्में ऐसे विषय पर हों जिसे ज्यादा से ज्यादा दर्शक वर्ग देखे. करण की फ़िल्में देखेंगे तो पता भी चलता है कि फैमिली ड्रामा और युवाओं को प्रभावित करने वाली प्रेम कहानियों पर उनका ज्यादा जोर होता है. धर्मा प्रोडक्शन की लगभग सभी फिल्मों में इसी मन्त्र पर काम होता रहा है. हालांकि पिछले सात आठ सालों में सिनेमा के ऑडियंस के मैच्योर होने के साथ जो ट्रेंड बदला उसके बाद जौहर के बैनर ने भी प्रायोगिक कहानियों को भी लेना शुरू किया. बहुत कम लोग इस बारे में जानते होंगे कि इरफान खान की द लंच बॉक्स, अक्षय खन्ना-सिद्धार्थ मल्होत्रा की इत्तेफाक और आलिया भट्ट की राजी को धर्मा ने ही प्रोड्यूस किया था.

ट्रेंड पर हमेशा नजर रखते हैं

दरअसल, करण जौहर ट्रेंड पर हमेशा नजर रखते हैं. उन्हें फिल्मों से जहां भी बिजनेस का मौका दिखता है पहुंच जाते हैं. अगर उहें रीजनल के साथ हिंदी सिनेमा का पुल कहें तो गलत नहीं होगा. जौहर बॉलीवुड के इकलौते ऐसे बड़े और सक्रिय फिल्म मेकर नजर आते हैं जो साउथ के मेकर्स और कलाकारों के साथ अच्छा बांड शेयर करते हैं. प्रभाष, विजय देवरकोंडा हों या महेश बाबू, जौहर सबके साथ रिश्ते रखते हैं. और ये रिश्ता महज पार्टियों भर के लिए नहीं है. खबरें आ चुकी हैं कि विजय और प्रभाष को लेकर जौहर फिल्म बनाना चाहते हैं. हिंदी में धर्मा प्रोडक्शन ने ही बाहुबली की दोनों फ़िल्में, द गाजी अटैक (दोनों तेलुगु), मराठी की बकेट लिस्ट और तमिल की रजनीकांत स्टारर 2.0 को प्रेजेंट किया था. वो साउथ की कुछ रीमेक पर भी काम कर चुके हैं.

जब मराठी में नागराज मंजुले की सैराट को लोगों ने हाथोहाथ लिया, धड़क के रूप में उसका रीमेक हिंदी में बनाया. जाह्नवी कपूर की डेब्यू फिल्म. श्रीदेवी ने जब जाह्नवी को लॉन्च करने की तैयारी की तो वो किसी और के पास ना जाकर सीधे करण के पास पहुंची थीं. इसकी वजह सिर्फ यही है कि उन्होंने कई नवोदित कलाकारों का करियर संवारा है जिसमें सिद्धार्थ मल्होत्रा, वरुण धवन, आलिया भट्ट, अनन्या पांडे, विक्की कौशल जैसे बहुतेरे कलाकार हैं. अभी नए प्रोजेक्ट से धैर्य करवा, सिद्धांत चतुर्वेदी को व्यापक स्तर पर ला रहे हैं.

सुपरस्टार की तरह आभामंडल

स्वाभाविक रूप से करण जौहर इतने सफल और शक्तिशाली हैं कि उनका आभामंडल किसी सुपरस्टार से कम नहीं हैं. उन्हें "शोमैन" भी कहा जा सकता है. बॉलीवुड में करण जौहर के करीब आने वालों की कमी नहीं. उनकी पार्टियों में उत्तर से दक्षिण तक का हर सितारा शामिल दिखता है. देश दुनिया में जहां भी जाते हैं अपना माहौल बना ही लेते हैं. उनका स्टाइल स्टेटमेंट और फैशनसेंस भी लोगों का ध्यान खींचता है. इस मामले में भला इंडस्ट्री का दूसरा निर्माता निर्देशक जौहर के आसपास कहां ठहरता है. जौहर इकलौते ही हैं.

बेबाक और अडिग

हालांकि पिछले कुछ वक्त से तमाम विवादों की वजह से करण जौहर की बेबाक राय आना बंद हो गई है. लेकिन करण ने जब भी बोला है बेबाक बोला है. हमेशा अडिग भी रहे.

सबसे अहम बात ये कि दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे में शाहरुख खान के साथ अभिनय कर चुका ये शख्स बहुत कमाल का एक्टर भी है. जौहर के एक्टिंग का लेवल देखना हो तो अनुराग कश्यप के निर्देशन में बनी रणबीर कपूर-अनुष्का शर्मा स्टारर पीरियड क्राइम थ्रिलर बॉम्बे वेलवेट देख लीजिए. पारसी मीडिया मुग़ल खम्बाटा के किरदार को क्या खूब किया है उन्होंने. मैं आजतक समझ नहीं पाया कि आखिर दर्शकों ने इस फिल्म को बुरी तरह नकार क्यों दिया था? अगर मुझे हिंदी सिनेमा के 10 सर्वकालिक खलनायकों की सूची बनाने का मौका मिले तो निश्चित रूप से बॉम्बे वेलवेट का खम्बाटा उसमें शामिल होगा.

कई खूबियों वाला बॉलीवुड का ये शख्स संस्था नहीं तो और क्या है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    सत्तर के दशक की जिंदगी का दस्‍तावेज़ है बासु चटर्जी की फिल्‍में
  • offline
    Angutho Review: राजस्थानी सिनेमा को अमीरस पिलाती 'अंगुठो'
  • offline
    Akshay Kumar के अच्छे दिन आ गए, ये तीन बातें तो शुभ संकेत ही हैं!
  • offline
    आजादी का ये सप्ताह भारतीय सिनेमा के इतिहास में दर्ज हो गया है!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲