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हमारी ज़िंदगी जैसी है तुम्हारी सुलु

    • सिद्धार्थ हुसैन
    • Updated: 17 नवम्बर, 2017 07:18 PM
  • 17 नवम्बर, 2017 07:18 PM
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फिल्म का सबसे मजबूत पॉइंट ये है कि इसके पात्र हमारे आस पड़ोस से जुड़े हैं, जिनको देखकर लगता है कि ऐसा बहुत कुछ हमारे आस पास भी आए दिन घटता है.

"तुम्हारी सुलु" देखने की एहम वजह है विद्या बालन :

1) विद्या उन चुनिंदा अभिनेत्रियों में से एक हैं जो अपने बल पर फिल्म हिट करा सकती हैं, डर्टी पिक्चर और कहानी इसका सबसे बडा उदाहरण है.

2) फिल्म के निर्माता अतुल कासबेकर जिनकी पिछली फिल्म बतौर निर्माता नीरजा सबको बहुत पसंद आयी थी.

3) रंगमंच का जानामाना नाम मानव कौल, जो विद्या के अपोसिट हैं. एक ऑफ बीट जोड़ी.

4) नर्देशक सुरेश त्रिवेणी की पहली फिल्म, डेब्यू करने वाले निर्देशक से उम्मीदें ज्यादा होती हैं.

फिल्म देखकर लगता है कि इसमें हमारे आस पास की घटनाओं को लिया गया है

"तुम्हारी सुलु" की सबसे बड़ी ख़ासियत ये है कि इसमें आम ज़िंदगी से जुड़ी आम बातों को बेहद ईमानदारी से दिखाया है. ये कहानी है सुलोचना यानि सुलु की, जो मध्यम वर्गीय हाउस वाइफ है और उसे खुद पर बहुत यक़ीन है. उसका मानना है कि वो कुछ भी कर सकती है. ऐसे में ज़िंदगी उसे एक एडल्ट शो की रेडियो जॉकी बना देती है. और उसके बाद सुलू के परिवार में उसके प्रति कैसे बदलाव आता है, कैसे उसकी गृहस्थी पर इसका असर पड़ता है, सुलु अपनों को मना पाती है या नहीं इसे फिल्म में बखूबी दिखाया गया है.

फिल्म में बासु भट्टाचार्य और रिषीकेश मुखर्जी जैसे निर्देशकों की झलक जरूर है लेकिन स्क्रीनप्ले और बेहतर हो सकता था. इंटरवल तक़रीबन दस मिनट पहले होता तो बेहतर रहता और सेकेंड हाफ, खासकर आखिरी के पंद्रह मिनट और कसे हो सकते थे. कहानी समाप्त करने के लिये इमोशनल और शॉकिंग एंड थोड़ा ओवर ड्रमाटिक लगता है. कुछ ख़ामियों के बावजूद फिल्म में ऐसे कई क्षण हैं जो चेहरे पर मुस्कान लाते हैं. रोज़मर्रा से जुड़ी बातें इस फिल्म को खास बनाती हैं. तुम्हारी सुलु आपको...

"तुम्हारी सुलु" देखने की एहम वजह है विद्या बालन :

1) विद्या उन चुनिंदा अभिनेत्रियों में से एक हैं जो अपने बल पर फिल्म हिट करा सकती हैं, डर्टी पिक्चर और कहानी इसका सबसे बडा उदाहरण है.

2) फिल्म के निर्माता अतुल कासबेकर जिनकी पिछली फिल्म बतौर निर्माता नीरजा सबको बहुत पसंद आयी थी.

3) रंगमंच का जानामाना नाम मानव कौल, जो विद्या के अपोसिट हैं. एक ऑफ बीट जोड़ी.

4) नर्देशक सुरेश त्रिवेणी की पहली फिल्म, डेब्यू करने वाले निर्देशक से उम्मीदें ज्यादा होती हैं.

फिल्म देखकर लगता है कि इसमें हमारे आस पास की घटनाओं को लिया गया है

"तुम्हारी सुलु" की सबसे बड़ी ख़ासियत ये है कि इसमें आम ज़िंदगी से जुड़ी आम बातों को बेहद ईमानदारी से दिखाया है. ये कहानी है सुलोचना यानि सुलु की, जो मध्यम वर्गीय हाउस वाइफ है और उसे खुद पर बहुत यक़ीन है. उसका मानना है कि वो कुछ भी कर सकती है. ऐसे में ज़िंदगी उसे एक एडल्ट शो की रेडियो जॉकी बना देती है. और उसके बाद सुलू के परिवार में उसके प्रति कैसे बदलाव आता है, कैसे उसकी गृहस्थी पर इसका असर पड़ता है, सुलु अपनों को मना पाती है या नहीं इसे फिल्म में बखूबी दिखाया गया है.

फिल्म में बासु भट्टाचार्य और रिषीकेश मुखर्जी जैसे निर्देशकों की झलक जरूर है लेकिन स्क्रीनप्ले और बेहतर हो सकता था. इंटरवल तक़रीबन दस मिनट पहले होता तो बेहतर रहता और सेकेंड हाफ, खासकर आखिरी के पंद्रह मिनट और कसे हो सकते थे. कहानी समाप्त करने के लिये इमोशनल और शॉकिंग एंड थोड़ा ओवर ड्रमाटिक लगता है. कुछ ख़ामियों के बावजूद फिल्म में ऐसे कई क्षण हैं जो चेहरे पर मुस्कान लाते हैं. रोज़मर्रा से जुड़ी बातें इस फिल्म को खास बनाती हैं. तुम्हारी सुलु आपको यक़ीन दिलाती है जो आप देख रहे हैं वो कहीं हो रहा है और यही बात फिल्म से जोड़ती है.

फिल्म में कुछ कमियां हैं मगर इसे देखा जा सकता है

अभिनय के डिपार्टमेंट में यक़ीनन ये फिल्म विद्या बालन की है. उन्होंने एक बार फिर साबित कर दिया है कि उनका नाम बेहतरीन अभिनेत्रियों की फ़ेहरिस्त में हमेशा रहेगा. एक सीन, जहाँ आखिर में वो अपने बच्चे से लिपट कर रोती हैं जिस तरह से उन्होंने किया है, लाजवाब है. पति के साथ हँसी मजाक और छेड़खानी के सीन में भी विद्या का कोई सानी नहीं है. "तुम्हारी सुलु" का सर्प्राइज एलिमेंट हैं मानव कौल जिन्होंने विद्या का बख़ूबी साथ निभाया है.

मानव कौल, रंगमंच की दुनिया का बड़ा नाम हैं. विद्या के अपोजिट मानव कहीं भी कम नहीं हैं. उन्होंने अपने किरदार को बहुत इमानदारी से जिया है. इरफ़ान खान और नवाजुद्दीन सिद्दीक़ी जैसे बेहतरीन एक्टर्स की लिस्ट में अब मानव कौल का नाम भी लिया जायेगा. सपोर्टिंग कास्ट में विजय मौर्या और नेहा धूपिया भी अपनी छाप छोड़ने में कामयाब होते हैं. ये फिल्म सिक्रप्ट से ज्यादा अच्छी एक्टिंग के लिये भी देखी जा सकती है.

निर्देशक सुरेश त्रिवेणी के काम में सादगी है, लेकिन उनकी लेखनी बेहतर हो सकती थी. म्यूजिक के डिपार्टमेंट में सिर्फ" तू मेरी रानी" गाना हिट है. सौरभ गोस्वामी की सिनेमेटोग्राफ़ी फिल्म के मूड को सही ढंग से दिखाती है लेकिन शिवकुमार पेनिकर की एडिंटिग और बेहतर हो सकती थी. तुम्हारी सुलु सही मायने में ज़िंदगी जैसी है, हंसाती भी है और रुलाती भी.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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