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यदि इन सब सवालों का जवाब 'हां' है तो इस हां का नाम दिलीप कुमार है

    • मणिदीप शर्मा
    • Updated: 11 दिसम्बर, 2017 07:42 PM
  • 11 दिसम्बर, 2017 07:42 PM
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'अक़्ल तमाशा देखती रही और इश्क़ अपनी हदों से आगे बढ़ गया'. इन्हीं हदों को फ़िल्म दर फ़िल्म तोड़ते रहने का नाम है दिलीप कुमार...

11 दिसम्बर 1922 को पाकिस्तान के पेशावर में जन्में यूसुफ खान ने हिंदुस्तान के सिने पर्दे पर वो अटूट पगडंडी रच दी है, जिस पर चलकर ही सभी अभिनेताओं को गुजरना पड़ता है. देविका रानी ने यूसुफ खान की प्रतिभा को भांपकर बॉम्बे टॉकीज की फिल्म 'ज्वार भाटा' में उन्हें सबसे पहले काम दिया था. जहांगीर और वासुदेव नाम पर सहमति न बनने के चलते यूसुफ खान का नाम दिलीप कुमार रखा गया. जिसका दीप फिल्मी दुनिया के तमाम चेहरों पर अपनी अदाकारी की रौशनी बिखेर रहा है.

दिलीप कुमार की अदाकारी का वकार इतना बाबुलन्द है कि वह अपने दर्शकों के विचार, सोच, बोध, स्नायु और क्रिया सब पर छा जाते हैं. 'शक्ति', 'मुग़ले आज़म', 'अंदाज़', 'देवदास', 'मधुमति', 'गंगा जमुना', 'जुगनू', 'नदिया के पार', 'मेला', 'शहीद' जैसी फिल्मों में अभिनेता दिलीप कुमार ने अपनी अदाकारी से इंसानी जिंदगी के हालात, स्वभाव, ज़मीर, आदत, रवैया, मिज़ाज, मुहब्बत-नफ़रत, चेतना को वो विस्तार दिया है, जिससे लगता है कि सेल्युलाइड नहीं है. ये अदाकार ज़िंदगी को शब्द दर शब्द अपने चेहरे से जाहिर करता है.

अदाकारी की मिसाल हैं दिलीप कुमार

फ़िल्म मुग़ले आज़म में कमाल अमरोही और एहसान रिजवी के लिखे हुए संवाद याद कीजिए. किस हक़ के साथ, मगरूर आवाज़ में, हिंदुस्तान के आलम पनाह को शहजादा सलीम चुनौती देता है... 'एक अज़ीम-ओ-शान शहंशाह के सामने कोई कर भी क्या सकता है. मगर आज जिल्ले इलाही को अपने जुल्म और मेरे ज़ब्त की हद मुकर्रर करनी होगी,' तो इसी फिल्म में मानो दिल को होठों पर रखकर वो अनारकली से कहता है- 'अक़्ल तमाशा देखती रही और इश्क़ अपनी हदों से आगे बढ़ गया'. इन्हीं हदों को फ़िल्म दर फ़िल्म तोड़ते रहने का नाम है दिलीप कुमार...

वो दिलीप कुमार जो फ़िल्म शक्ति में अमिताभ बच्चन का उसूलवादी पिता बनता है और एक बाप-एक पुलिस ऑफिसर की दोहरी...

11 दिसम्बर 1922 को पाकिस्तान के पेशावर में जन्में यूसुफ खान ने हिंदुस्तान के सिने पर्दे पर वो अटूट पगडंडी रच दी है, जिस पर चलकर ही सभी अभिनेताओं को गुजरना पड़ता है. देविका रानी ने यूसुफ खान की प्रतिभा को भांपकर बॉम्बे टॉकीज की फिल्म 'ज्वार भाटा' में उन्हें सबसे पहले काम दिया था. जहांगीर और वासुदेव नाम पर सहमति न बनने के चलते यूसुफ खान का नाम दिलीप कुमार रखा गया. जिसका दीप फिल्मी दुनिया के तमाम चेहरों पर अपनी अदाकारी की रौशनी बिखेर रहा है.

दिलीप कुमार की अदाकारी का वकार इतना बाबुलन्द है कि वह अपने दर्शकों के विचार, सोच, बोध, स्नायु और क्रिया सब पर छा जाते हैं. 'शक्ति', 'मुग़ले आज़म', 'अंदाज़', 'देवदास', 'मधुमति', 'गंगा जमुना', 'जुगनू', 'नदिया के पार', 'मेला', 'शहीद' जैसी फिल्मों में अभिनेता दिलीप कुमार ने अपनी अदाकारी से इंसानी जिंदगी के हालात, स्वभाव, ज़मीर, आदत, रवैया, मिज़ाज, मुहब्बत-नफ़रत, चेतना को वो विस्तार दिया है, जिससे लगता है कि सेल्युलाइड नहीं है. ये अदाकार ज़िंदगी को शब्द दर शब्द अपने चेहरे से जाहिर करता है.

अदाकारी की मिसाल हैं दिलीप कुमार

फ़िल्म मुग़ले आज़म में कमाल अमरोही और एहसान रिजवी के लिखे हुए संवाद याद कीजिए. किस हक़ के साथ, मगरूर आवाज़ में, हिंदुस्तान के आलम पनाह को शहजादा सलीम चुनौती देता है... 'एक अज़ीम-ओ-शान शहंशाह के सामने कोई कर भी क्या सकता है. मगर आज जिल्ले इलाही को अपने जुल्म और मेरे ज़ब्त की हद मुकर्रर करनी होगी,' तो इसी फिल्म में मानो दिल को होठों पर रखकर वो अनारकली से कहता है- 'अक़्ल तमाशा देखती रही और इश्क़ अपनी हदों से आगे बढ़ गया'. इन्हीं हदों को फ़िल्म दर फ़िल्म तोड़ते रहने का नाम है दिलीप कुमार...

वो दिलीप कुमार जो फ़िल्म शक्ति में अमिताभ बच्चन का उसूलवादी पिता बनता है और एक बाप-एक पुलिस ऑफिसर की दोहरी मजबूरी को चेहरे की एक्टिंग से शाहकारी के साथ बयां करता है. मुहब्ब्त की जलन, सीने में सरगोशी, आंखों में खामोशी लिए ये ही दिलीप कुमार हमें फ़िल्म 'देवदास' में नज़र आता है. अपनी अदाकारी से हाथ में पकड़ी हुई नकली शराब को भी असली होने का वहम पैदा करता है.

तालसापुर का रहने वाला ये देवदास मानकपुर स्टेशन तक जिस अदाकारी को फिल्मी पर्दे पर निभा गया है वो एक्टिंग की तपस्या है.

माना जाए तो दुःख, दरिद्रता, भूख, घुटन, उसूल, पछतावा, आंसू, नफ़रत, मोहब्बत के जिन जज़्बातों के साथ इंसान जीता है, उन हालातों की मनोस्थिति को दिलीप साहब ने अपने चेहरे से बखूबी बयां किया है. इसलिये भले ही एक्टिंग के कितने भी मोती-हीरे आयें, इस कोहिनूर के काम की चमक सिनेमा में हमेशा रौशनी बिखेरती रहेगी.

आख़िर में जन्मदिन की ढेरों मुबारकबाद दिलीप साहब.. आप जियें हजारों साल.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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