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रामकृपाल बाबू एक बार जवानी में ठगाए थे, अब 'ठग्स ऑफ हिंदुस्तान' से...

    • सन्‍नी कुमार
    • Updated: 13 नवम्बर, 2018 03:16 PM
  • 11 नवम्बर, 2018 02:30 PM
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'पायरेट्स ऑफ कैरीबियन' बोल के 'ठग्स ऑफ हिंदोस्तान' दिखा दिया. कंपाउंडर मरहम पट्टी करे वही ठीक है लेकिन उससे ऑपरेशन करवाइयेगा त जान जाएगा ही. रसगुल्ला में एतना सेंट मार दिया कि ना खाया गया एक्को.

रामकृपाल बाबू का रिकॉर्ड रहा है कि आज तक ठगे नहीं गए. टोला में पंडितों का 10 घर है पर परणाम पाती के अलावा रामकृपाल बाबू ने आज तक दक्षिणा में कुछ दिया नहीं. दिमाग के बहुत तेज. नुकसान को कोस भर दूर से ही पहचान लेते हैं. ललका गमछा कंधे से लटकाए रामकृपाल बाबू कचहरी रोज जाते हैं और वकीलों के पैसे से चाय पीकर ही लौटते हैं. ऐसा दुर्लभ संयोग सिर्फ रामकृपाल बाबू को ही भेंटाया है वरना खून पी जाने वाले वकील किसको चाय पिलाते हैं. वो भी गांव के कचहरी में, जहां खुदरा असामी से ही काम चलाना पड़ता है. गांव भर में डंका है इनका. इलाके के सबसे बड़े सूदखोर 'भुजबल सिंह', जो बकरी उधार देकर शेर वसूलते थे, भी रामकृपाल बाबू से अठन्नी सूद न ले पाए. जैसे तैसे मूल मांग पाए. कहते हैं अंतिम बार रामकृपाल बाबू गिरधारी मुखिया से ठगाए थे जब सोनपुर मेला के नाच के नाम पर मुखिया जी ने रसूलपुर के हटिया का लौंडा नाच दिखा दिया था. पर तब रामकृपाल बाबू जवान थे. जवानी में भूल हो गई थी. उसके बाद तो वो तीन बेरोजगार बेटों की शादी में डॉक्टर वाला दहेज ले चुके हैं. अगल-बगल के दस बीस गांव के लोग आंख मूंदकर इस पर भरोसा करते थे कि रामकृपाल बाबू को कोई ठग नहीं सकता. पर एक दिन इतिहास पलट गया. रामकृपाल बाबू ठग लिए गए. इलाके भर में हाहाकार. कौन है! कौन है! से गांव गूंजने लगा.

जिस जमाने में बाबूसाहब लोग एक नंबर सीट पर बैठने के लिए कंडक्टर का मर्डर तक कर दे रहे थे, उस समय भी रामकृपाल बाबू दु रुपया कम देके पिछला सीट पर आसन जमा लेते थे, उस रामकृपाल बाबू को कोई ठग लिया. इलाके भर में कोई कान न धरे कि भाई ऐसा कैसे हो सकता है. धीरे-धीरे नाम आने लगा. कोई कहे अमीर खनवा ठगा है, कोई अमित्ता बचन के नाम ले, कोई यशराज त कोई सुरैय्या सुरैय्या कहे. इतने में रामकृपाल बाबू पुरनकी रस्ता धरे गमछा से पसीना पोछते हुए आते दिखे. सबके मन में एक ही कौतूहल कि कैसे हुआ ये सब. पीपर गाछ वाले चबूतरा पे सब जुट गए. एक ही जिज्ञासा. रामकृपाल बाबू हारे हुए योद्धा की तरह बताने लगे. सब ध्यान से सुन रहे हैं.

साला ठगा...

रामकृपाल बाबू का रिकॉर्ड रहा है कि आज तक ठगे नहीं गए. टोला में पंडितों का 10 घर है पर परणाम पाती के अलावा रामकृपाल बाबू ने आज तक दक्षिणा में कुछ दिया नहीं. दिमाग के बहुत तेज. नुकसान को कोस भर दूर से ही पहचान लेते हैं. ललका गमछा कंधे से लटकाए रामकृपाल बाबू कचहरी रोज जाते हैं और वकीलों के पैसे से चाय पीकर ही लौटते हैं. ऐसा दुर्लभ संयोग सिर्फ रामकृपाल बाबू को ही भेंटाया है वरना खून पी जाने वाले वकील किसको चाय पिलाते हैं. वो भी गांव के कचहरी में, जहां खुदरा असामी से ही काम चलाना पड़ता है. गांव भर में डंका है इनका. इलाके के सबसे बड़े सूदखोर 'भुजबल सिंह', जो बकरी उधार देकर शेर वसूलते थे, भी रामकृपाल बाबू से अठन्नी सूद न ले पाए. जैसे तैसे मूल मांग पाए. कहते हैं अंतिम बार रामकृपाल बाबू गिरधारी मुखिया से ठगाए थे जब सोनपुर मेला के नाच के नाम पर मुखिया जी ने रसूलपुर के हटिया का लौंडा नाच दिखा दिया था. पर तब रामकृपाल बाबू जवान थे. जवानी में भूल हो गई थी. उसके बाद तो वो तीन बेरोजगार बेटों की शादी में डॉक्टर वाला दहेज ले चुके हैं. अगल-बगल के दस बीस गांव के लोग आंख मूंदकर इस पर भरोसा करते थे कि रामकृपाल बाबू को कोई ठग नहीं सकता. पर एक दिन इतिहास पलट गया. रामकृपाल बाबू ठग लिए गए. इलाके भर में हाहाकार. कौन है! कौन है! से गांव गूंजने लगा.

जिस जमाने में बाबूसाहब लोग एक नंबर सीट पर बैठने के लिए कंडक्टर का मर्डर तक कर दे रहे थे, उस समय भी रामकृपाल बाबू दु रुपया कम देके पिछला सीट पर आसन जमा लेते थे, उस रामकृपाल बाबू को कोई ठग लिया. इलाके भर में कोई कान न धरे कि भाई ऐसा कैसे हो सकता है. धीरे-धीरे नाम आने लगा. कोई कहे अमीर खनवा ठगा है, कोई अमित्ता बचन के नाम ले, कोई यशराज त कोई सुरैय्या सुरैय्या कहे. इतने में रामकृपाल बाबू पुरनकी रस्ता धरे गमछा से पसीना पोछते हुए आते दिखे. सबके मन में एक ही कौतूहल कि कैसे हुआ ये सब. पीपर गाछ वाले चबूतरा पे सब जुट गए. एक ही जिज्ञासा. रामकृपाल बाबू हारे हुए योद्धा की तरह बताने लगे. सब ध्यान से सुन रहे हैं.

साला ठगा गए! इस एक वाक्य में ही रामकृपाल बाबू पूरे इतिहास के बदलने की कहानी कह रहे थे. सिनेमा ठग लिया. पोस्टरवा देख के अंदाज़ नहीं लग रहा था.

कोई कहे अमीर खनवा ठगा है, कोई अमित्ता बचन के नाम ले, कोई यशराज त कोई सुरैय्या सुरैय्या कहे.

भाई, एतना दिन से हल्ला हो रहा था कि ऐतिहासिक सिनेमा है तो सोचे कि देख लें. गिरधारी बताया कि बढ़िया एक्शनो दिखाया है. फेरो गिरधारिये फंसाया है. 'पायरेट्स ऑफ कैरीबियन' बोल के 'ठग्स ऑफ हिंदोस्तान' दिखा दिया. कंपाउंडर मरहम पट्टी करे वही ठीक है, लेकिन उससे ऑपरेशन करवाइयेगा त जान जाएगा ही. वही हुआ. जहां चीरा लगाना था वहां हाथ रख दिये और बाकी जगह कैंची चला दिए. बंबई वाला सब ठेका लिया है कि इतिहास वाला फिलिम को ऐसा बना देंगे कि इतिहास क्या वर्तमान भी उसका डूब जाए. है देखिये न! मोहनजोदड़ो, पद्मावत और अब ये ठग. वैसे, इसमें सिनेमा वाले का कोय दोष नै है, साला इतिहास का ही समय खराब चल रहा है. जिसको जैसा मन कर रहा है वैसा इतिहास बना रहा है.

जानते हैं परभास बाबू, जब आपको पैसा ढेर हो जाएगा न तब आप सही चीज पे ध्यान नै देके महंगा तरफ भागेंगे. आपको लगेगा न कि पैसा से सब खरीद लेंगे. अब देखिये न बर्धन बाबू अपने बेटा क बियाह में बड़का हलवाई किये और बाजार वाला बीडियो रेकार्डिंग बुक किये. क्या हुआ? रसगुल्ला में एतना सेंट मार दिया कि खाया गया एक्को गो? और रेकार्डिंग वाला केकरो पहचानबे न करे. पूरा बियाह में फूफा के एक्को सीने नै है और बाजा वाला सब कोना में बीड़ी फूंक रहा था तो 'हर फिक्र को धुएं में' वाला गाना से मिक्स करके दिखाया है. क्या करियेगा. यही सब चल रहा है आजकल.

ठग वाला सिनेमा में भी यही किया है. महराज 200 साल पहिले इ सब ड्रेस मिलता था जो सुरैय्या को पहना के नचवाए लोग. और नाचने के भंगिमा? और गाना के बोल? मने इ सब दर्शक को क्या बूझता है महराज. पैसा है तो समय बदल दीजिएगा. अंग्रेजवन सब में सौ बुराई था भाय, लेकिन इ राजा महराजा वाला शौक नै था कि रोज नाच देखना है. बड़का टेंट हाउस बुक करने से यही होगा. कार्यक्रम कम दिखेगा टेंटवा अधिक.

केतना पुरनका सब सिनेमा के जुगाड़ अपनाया है. नाच गाना होगा, गुंडा देख रहा होगा, उसी में हीरो हीरोईन भी घुस के नाचेगा. नाचते-नाचते ही गुंडा को धर लिया जाएगा. इ सब आज से देख रहे हैं हो. मिथुनवा त हर सिनेमा में यही करता था. लेकिन भाय मिथुनवा के सिनेमा में भारतीय गुंडा रहता था जो नाच देख के मगन हो जाता था. लेकिन इ अंग्रेज है. अंग्रेज. ऐसे नाच देखा के फंसा लेते उसको त दू सौ साल यहां रहता? और त और, साला लड्डू खिला के जेल भर को बेहोश कर दिया. हां, इ बात मानते हैं कि निर्देशक असली माल फूंक के सिनेमा बना रहा था, पर महाराज दर्शक के आंख थोड़ी लाल है. उसका भी तो कुछ सोचते. पूरा सिनेमा चिलम पीके बनाया है. धौ जाने दीजिये, दिमाग लगाना ही बेकार है इ सिनेमा में.

एक तो क्लाइव नाम से कन्फ्यूजन. तो जान लीजिए कि पलासी वाला रॉबर्ट क्लाइव नहीं था, काहे कि सिनेमा 1795 से शुरू होता है और राबर्ट वाला क्लाइव के पूड़ी 1774 में ही बंट गया था. बाकी रौनकपुर आप लोग खोजिये कहां था. एक और बात कि मास्टर साहब बैठे हैं इनसे पूछिये कि सिनेमा में पचास बार जो आजाद-आजाद चिल्ला रहा था उस समय आजादी का विचार आ गया था क्या! जाने दीजिये भारतीय लड़की क हाथ से अंग्रेज कमांडर मरवा के चिलमराजा ताली के जुगाड़ लगाए हैं. बजाइये ताली. बाकी केतना कहें. कूड़ा के केतना बखान करें. तंबू बांधने में खर्चा किया है, दू चार गो हंसने वाला बात भी घुसाया है, बीच बीच में देशभक्ति भी हिलोड़ेगा. इतना ही है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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