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द केरल स्टोरी: कितनी हकीकत, कितना फ़साना

    • prakash kumar jain
    • Updated: 02 मई, 2023 07:31 PM
  • 02 मई, 2023 07:31 PM
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'आपकी' से उनका तात्पर्य क्या है, समझ आता है क्योंकि यदि उनका अभिप्राय फ़िल्मकार से होता तो टिप्पणी बनती ही नहीं थी. और उन्होंने 'हमारी' का संयोजन कर जो कहा, वह समझने के लिए भी किसी रॉकेट साइंस की जरुरत नहीं है. यही तो तुष्टिकरण की राजनीति है.

स्टोरी न आपकी है और न ही हमारी है, बल्कि फ़िल्मकार की है. जिसने रचनात्मक स्वतंत्रता लेते हुए एक कटु सच्चाई पर आधारित सिनेमा बनाया है. तथ्यात्मक आंकड़ों पर विवाद हो सकता है और उस लिहाज से एक धड़ा फ़िल्म को प्रोपेगैंडा भी कह सकता है लेकिन कथित प्रोपोगेंडा में कुछ तो जमीनी सच्चाई है जिस पर अभी तक खुलकर बात नहीं हुई थी. यदि बात हो गई होती तो शायद मेकर सनसनीखेज क्वालीफाई करती अतिरिक्त स्वतंत्रता भी नहीं ले पाते. घटनाएं यदि, किसी भी जायज नाजायज वजह से, दबी रह जाएं तो कालांतर में जब, किसी सही या गलत कारणवश, उजागर होती हैं या की जाती है, विवादों का होना लाजिमी है और वजह हमेशा अतिरंजित स्टोरी ही बताई जाती है. ऐसा ही 'द कश्मीर फाइल्स' के लिए हुआ था, खूब विरोध हुआ, सवाल खड़े किये गए, और शायद इसी वजह से फिल्म ने संचयी प्रभाव के तहत बेशुमार दौलत कमा ली. पॉइंट यही है कि पहले टीजर और अब ट्रेलर ने ही इतना हाइप क्रिएट कर दिया है कि द केरल स्टोरी' भी खूब देखी जायेगी. और वही होगा, एक धड़ा खूब आलोचना करेगा, बैन तक की मांग करेगा, खूब आलोचना करेगा; वहीं दूसरा धड़ा फिल्म को सर आंखों पर लेगा. चूंकि दूसरे धड़े के अच्छे दिन चल रहे हैं, हावी है, फिल्म खूब कमाई कर ले जायेगी!

विपुल अमृतलाल शाह की फिल्म द केरल स्टोरी लगातार सुर्खियां बटोर रही है

परंतु फिल्म को बैन किये जाने की मांग करना सर्वथा अनुचित है और वह भी सिर्फ ट्रेलर देखकर। सेलेक्टिव फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन/स्पीच की बात कैसे स्वीकार्य होगी ? पता नहीं कांग्रेस के इंटेलेक्चुअल कैटेगरी के नेता शशि थरूर क्यों इतने तत्पर हो गए कि ट्रेलर पर ही टिप्पणी कर बैठे, "हो सकता है कि यह 'आपकी' केरला स्टोरी हो. यह 'हमारी' केरला स्टोरी नहीं है." निःसंदेह 'आपकी' से उनका तात्पर्य क्या है, समझ आता है क्योंकि यदि उनका...

स्टोरी न आपकी है और न ही हमारी है, बल्कि फ़िल्मकार की है. जिसने रचनात्मक स्वतंत्रता लेते हुए एक कटु सच्चाई पर आधारित सिनेमा बनाया है. तथ्यात्मक आंकड़ों पर विवाद हो सकता है और उस लिहाज से एक धड़ा फ़िल्म को प्रोपेगैंडा भी कह सकता है लेकिन कथित प्रोपोगेंडा में कुछ तो जमीनी सच्चाई है जिस पर अभी तक खुलकर बात नहीं हुई थी. यदि बात हो गई होती तो शायद मेकर सनसनीखेज क्वालीफाई करती अतिरिक्त स्वतंत्रता भी नहीं ले पाते. घटनाएं यदि, किसी भी जायज नाजायज वजह से, दबी रह जाएं तो कालांतर में जब, किसी सही या गलत कारणवश, उजागर होती हैं या की जाती है, विवादों का होना लाजिमी है और वजह हमेशा अतिरंजित स्टोरी ही बताई जाती है. ऐसा ही 'द कश्मीर फाइल्स' के लिए हुआ था, खूब विरोध हुआ, सवाल खड़े किये गए, और शायद इसी वजह से फिल्म ने संचयी प्रभाव के तहत बेशुमार दौलत कमा ली. पॉइंट यही है कि पहले टीजर और अब ट्रेलर ने ही इतना हाइप क्रिएट कर दिया है कि द केरल स्टोरी' भी खूब देखी जायेगी. और वही होगा, एक धड़ा खूब आलोचना करेगा, बैन तक की मांग करेगा, खूब आलोचना करेगा; वहीं दूसरा धड़ा फिल्म को सर आंखों पर लेगा. चूंकि दूसरे धड़े के अच्छे दिन चल रहे हैं, हावी है, फिल्म खूब कमाई कर ले जायेगी!

विपुल अमृतलाल शाह की फिल्म द केरल स्टोरी लगातार सुर्खियां बटोर रही है

परंतु फिल्म को बैन किये जाने की मांग करना सर्वथा अनुचित है और वह भी सिर्फ ट्रेलर देखकर। सेलेक्टिव फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन/स्पीच की बात कैसे स्वीकार्य होगी ? पता नहीं कांग्रेस के इंटेलेक्चुअल कैटेगरी के नेता शशि थरूर क्यों इतने तत्पर हो गए कि ट्रेलर पर ही टिप्पणी कर बैठे, "हो सकता है कि यह 'आपकी' केरला स्टोरी हो. यह 'हमारी' केरला स्टोरी नहीं है." निःसंदेह 'आपकी' से उनका तात्पर्य क्या है, समझ आता है क्योंकि यदि उनका अभिप्राय फ़िल्मकार से होता तो टिप्पणी बनती ही नहीं थी.

और फिर उन्होंने 'हमारी' का संयोजन कर जो कहा, वह समझने के लिए भी किसी रॉकेटसाइंस की जरुरत नहीं हैं. यही तो तुष्टिकरण की राजनीति है. जब पिछले साल नवंबर में फिल्म का टीजर आया था, केरल में इसे लेकर सियासी विवाद पनप गया था, कई नेताओं ने, सी.पी.एम. के भी और कांग्रेस के भी, इस पर बैन लगाने की पुरजोर मांग की थी. तब डीजीपी ने तिरुवनंतपुरम के पुलिस आयुक्त को 'द केरल स्टोरी' के टीजर पर FIR दर्ज करने का निर्देश भी दे दिया था.

परंतु एफआईआर का तब दर्ज नहीं किया जाना ही इस बात का घोतक था कि बेवजह तिल का ताड़ बनाया जा रहा था. और अब जब ट्रेलर रिलीज़ किया गया है और फिल्म 5 मई को थियेटरों में लगनी है, केरल के मुख्यमंत्री विजयन से लेकर तमाम कांग्रेसी नेता भी निर्माताओं की आलोचना कर रहे हैं, उन्हें प्रोपगैंडिस्ट बता रहे हैं, संघ का एजेंडा चलाने वाले बता रहे हैं, सांप्रदायिक सौहार्द के बिगड़ने का अंदेशा भी जता दे रहे है. और 'द केरला स्टोरी' को राज्य में स्क्रीन नहीं किये जाने की मांग कर रहे हैं.

दूसरी तरफ ट्रेलर महज चार दिन पहले रिलीज़ हुआ और इसे देखने वालों की संख्या तक़रीबन डेढ़ करोड़ तक पहुँच गई है. निःसंदेह लापता महिलाओं/लड़कियों की संख्या अतिरंजित है लेकिन एक मानवीय त्रासदी हुई है और शायद आज भी कही न कहीं अंजाम पा रही है. तथ्य जब तब सामने आते रहे हैं कि केरल और मैंगलोर की अनेको हिंदू और ईसाई समुदायों की लड़कियों को लव जिहाद के तहत इस्लाम में परिवर्तित किया गया है और उनमें से अधिकांश सीरिया, अफगानिस्तान और अन्य आईएसआईएस और हक्कानी प्रभावशाली क्षेत्रों में हैं.

फिल्म इन महिलाओं की इस साजिश और दर्द के पीछे की सच्चाई को दिखाने का दावा करती है. पूर्व में एक बार नहीं दो बार केरल के उच्च न्यायालय ने सरकार से 'लव जिहाद' रोकने के लिए कठोर कानून बनाने के लिए कहा था. उत्तरी केरल की चार लापता महिलाओं के उनके आईएसआईएस आतंकवादी पतियों के मारे जाने के बाद अफगानिस्तान के जेल में होने की सच्चाई पब्लिक डोमेन में लंबे अरसे से है ; पूर्व मुख्यमंत्री चांडी ने भी स्वीकारा था कि तक़रीबन तीन चार सालों में ढाई तीन हजार हिंदू और क्रिस्चियन महिलाओं का धर्म परिवर्तन करा कर निकाह कराया गया था.

एक अन्य पूर्व मुख्यमंत्री ने भी राज्य में लोगों के बढ़ते मुस्लिम धर्मांतरण पर चिंता व्यक्त की थी. कुल मिलाकर इन्हीं सब तथ्यों को आधार बनाकर स्टोरी है जिसे मेकर्स अपने सालों के रिसर्च वर्क का फल बता रहे हैं. बात ट्रेलर की करें तो सनशाइन पिक्चर्स के यूट्यूब हैंडल पर अपलोड किए गए दो मिनट 44 सेकंड के ट्रेलर में दिखाया गया है कि कैसे केरल की कुछ हिंदू लड़कियां आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट के जाल में फंस जाती हैं, जिसके बाद कथित तौर पर लव ज़िहाद के जरिये मुस्लिम लड़के उनसे शादी करते हैं और वे इस्लाम में कन्वर्ट हो जाती हैं.

फिर नर्स बनने के लिए उन्हें विदेश भेज दिया जाता है, जहां वो ISIS के चंगुल में जा फंसती हैं. फिल्म में इस चीज को वैश्चिक एजेंडा के तौर पर दिखाया गया है. खैर, कमर्शियल एंगल से बात करें तो विवादों ने फिल्म की पब्लिसिटी कर ही दी है. बैन होगी नहीं क्योंकि अक्सर हाई मोरल ग्राउंड लेने वाले (सीपीएम और कांग्रेस) असमंजस में जो है, या कहें धर्मसंकट है उनका और इसलिए बैन की मांग भी दबी दबी सी ही है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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