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Thalaivi movie की 7 सबसे अच्छी और खराब चीजें, जो कंगना की फिल्म देखने या ना देखने का बहाना बनेंगी

    • अनुज शुक्ला
    • Updated: 04 सितम्बर, 2021 02:56 PM
  • 04 सितम्बर, 2021 02:56 PM
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थलाइवी मूवी में कंगना रनौत जयललिता की भूमिका में नजर आएंगी. तमिलनाडु की राजनीति पर फिल्म इंडस्ट्री का काफी दबदबा रहा है. एमजीआर, जयललिता और एम करूणानिधि पहले फिल्म इंडस्ट्री से ही थे. क्या कंगना इस रिश्ते की पेंचीदगी को निभा पाएंगी?

1) थलाइवी मूवी देखने की सबसे बड़ी वजह छह बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रही जे जयललिता ही है. ये उनके जीवन पर बनी बायोग्राफिकल फिल्म है. जयललिता की भूमिका में कंगना रनौत दिखेंगी. निधन से पहले तक जयललिता- सोनिया गांधी, मायावती और ममता बनर्जी के साथ देश की सबसे ताकतवर महिला नेताओं में थीं. हालांकि जयललिता फ़िल्मी बैकग्राउंड से राजनीति में आई थीं. बायोग्राफिकल फिल्म होने की वजह से थलाइवी में उनके जीवन के बारे में महत्वपूर्ण चीजों की जानकारी मिल सकती है. खासकर उनकी निजी जिंदगी के बारे में. एमजीआर से रिश्ते, ब्राह्मण फैमिली से होने के बावजूद ब्राह्मण विरोधी द्रविण राजनीति में वे क्यों आई, तमिल सियासत में किस तरह से वहां की फिल्म इंडस्ट्री का प्रभाव है और उनके जीवन में शशिकला की अहमियत क्यों थी? ये कुछ ऐसे दिलचस्प सवाल हैं जिन्हें फिल्म में एड्रेस किया जा सकता है. क्योंकि उनकी कहानी में इन चीजों की खासी अहमियत है.

2) थलाइवी गैर तमिल समुदाय के लिए तमिलनाडु की सियासत समझने का एक बढ़िया जरिया बन सकता है. चूंकि फिल्म उनकी बायोग्राफी ही है तो इस बात की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि इसमें जयललिता विरोधी नेताओं के नजरिए का समावेश बिल्कुल नहीं हो. फिर भी मोटे तौर पर तमिलनाडु की दिलचस्प राजनीति खासकर वहां की दो शीर्ष ताकतवर क्षेत्रीय दलों- द्रविण मुनेत्र कड़गम और अन्ना द्रविण मुनेत्र कड़गम के बीच का आपसी तालमेल, विवाद और द्रविण राजनीति के बारे में बहुत कुछ जानने को मिले. वैसे भी आम हिंदी पट्टी में तमिल राजनीति पहेली की तरह ही है. जयललिता अन्ना द्रविण मुनेत्र कड़गम की नेता थीं. इस वक्त तमिलनाडु में द्रविण मुनेत्र कड़गम की सरकार है और करूणानिधि के बेटे एमके स्टालिन मुख्यमंत्री हैं.

कंगना रनौत जयललिता की भूमिका में. फोटो- कंगना के ट्विटर से साभार....

1) थलाइवी मूवी देखने की सबसे बड़ी वजह छह बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रही जे जयललिता ही है. ये उनके जीवन पर बनी बायोग्राफिकल फिल्म है. जयललिता की भूमिका में कंगना रनौत दिखेंगी. निधन से पहले तक जयललिता- सोनिया गांधी, मायावती और ममता बनर्जी के साथ देश की सबसे ताकतवर महिला नेताओं में थीं. हालांकि जयललिता फ़िल्मी बैकग्राउंड से राजनीति में आई थीं. बायोग्राफिकल फिल्म होने की वजह से थलाइवी में उनके जीवन के बारे में महत्वपूर्ण चीजों की जानकारी मिल सकती है. खासकर उनकी निजी जिंदगी के बारे में. एमजीआर से रिश्ते, ब्राह्मण फैमिली से होने के बावजूद ब्राह्मण विरोधी द्रविण राजनीति में वे क्यों आई, तमिल सियासत में किस तरह से वहां की फिल्म इंडस्ट्री का प्रभाव है और उनके जीवन में शशिकला की अहमियत क्यों थी? ये कुछ ऐसे दिलचस्प सवाल हैं जिन्हें फिल्म में एड्रेस किया जा सकता है. क्योंकि उनकी कहानी में इन चीजों की खासी अहमियत है.

2) थलाइवी गैर तमिल समुदाय के लिए तमिलनाडु की सियासत समझने का एक बढ़िया जरिया बन सकता है. चूंकि फिल्म उनकी बायोग्राफी ही है तो इस बात की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि इसमें जयललिता विरोधी नेताओं के नजरिए का समावेश बिल्कुल नहीं हो. फिर भी मोटे तौर पर तमिलनाडु की दिलचस्प राजनीति खासकर वहां की दो शीर्ष ताकतवर क्षेत्रीय दलों- द्रविण मुनेत्र कड़गम और अन्ना द्रविण मुनेत्र कड़गम के बीच का आपसी तालमेल, विवाद और द्रविण राजनीति के बारे में बहुत कुछ जानने को मिले. वैसे भी आम हिंदी पट्टी में तमिल राजनीति पहेली की तरह ही है. जयललिता अन्ना द्रविण मुनेत्र कड़गम की नेता थीं. इस वक्त तमिलनाडु में द्रविण मुनेत्र कड़गम की सरकार है और करूणानिधि के बेटे एमके स्टालिन मुख्यमंत्री हैं.

कंगना रनौत जयललिता की भूमिका में. फोटो- कंगना के ट्विटर से साभार.

3) दर्शक थलाइवी में एक अच्छी और मनोरंजक कहानी की उम्मीद कर सकते हैं. इसकी पहली वजह तो जयललिता का दिलचस्प जीवन ही है मगर विजय के निर्देशन में बनी कहानी का दूसरा अहम और मजबूत पक्ष यह भी है कि इसे दिग्गज केवी विजयेंद्र प्रसाद ने लिखा है. विजयेंद्र सलमान खान की बजरंगी भाईजान और बाहुबली जैसी फ़िल्में लिखकर देशभर में मशहूर हो चुके हैं. थलाइवी के तमिल वर्जन को विजयेंद्र के साथ मदन कर्की ने जबकि हिंदी वर्जन को रजत कपूर ने लिखा है. यह इस बात का भी इशारा है कि नवाजुद्दीन सिद्दीकी के अभिनय से सजी बाल ठाकरे की बायोपिक की तरह ही थलाइवी में भी दक्षिण भारतीय और हिंदी वर्जन के कंटेंट में अलग-अलग होंगे. ऐसा दर्शकों की क्षेत्रीय रुचि और प्रचलित धारणाओं की वजह से किया गया हो सकता है. भाषाओं के लिहाज से सिर्फ कंटेंट भर में फेरबदल नहीं है बल्कि अहम स्टारकास्ट को छोड़कर कुछ किरदार भी दूसरी भाषाओं में अलग-अलग ही नजर आएंगे.

4) 90 के दर्शक में रोजा, बॉम्बे के जरिए हिंदी दर्शकों के बीच खासी लोकप्रियता हासिल करने वाले अरविंद स्वामी को किसी हिंदी फिल्म में देखा जाएगा. रोजा और बॉम्बे दक्षिण भारत के साथ ही हिंदी में भी कामयाब फिल्मों में शुमार की जाती हैं. लंबे वक्त बाद 'विशुद्ध' हिंदी फिल्म में देखना दर्शकों के लिए अनूठा अनुभव होगा. वैसे अरविंद स्वामी के काम को हिंदी का उनका प्रशंसक दर्शक वर्ग डब फिल्मों के जरिए देखता रहा है. थलाइवी में अरविंद स्वामी एमजी रामचंद्रन के किरदार में हैं. वे एमजीआर के रूप में मशहूर थे. तमिल फिल्मों के सुपरस्टार थे. उन्होंने ही अन्ना द्रविण मुनेत्र कड़गम की स्थापना की थी. एमजीआर ही को-स्टार रही अभिनेत्री जयललिता को फिल्मों से राजनीति में लेकर आए थे.

5) थलाइवी को ना देखने की सबसे बड़ी वजह तो यही हो सकती है कि इसमें तमिल राजनीति के संवेदनशील पहलुओं को ठीक से एड्रेस ही ना किया जाए. श्रीलंका में तमिलों का संघर्ष, ब्राह्मण विरोधी आंदोलन और भाषा विवाद हमेशा से तमिल राजनीति में अहम भूमिका निभाते रहे हैं. मुख्य किरदार में कंगना हैं और पिछले कुछ महीनों में उनकी पॉलिटिकल लाइन साफ़ दिखती है. हो सकता है फिल्म में इन पहलुओं को नजरअंदाज कर दिया जाए या इनके मूल स्वरूप में निर्माताओं की वैचारिकता के आधार पर फेरबदल कर दिया गया हो. फिल्म के अलग-अलग हिंदी और दक्षिण भारतीय वर्जन इसकी ओर इशारा भी करते हैं.

6) तमिलनाडु की राजनीति पर फिल्म इंडस्ट्री का काफी दबदबा रहा है. एमजीआर और जयललिता की तरह उनके प्रतिद्वंद्वी एम करूणानिधि भी फिल्म इंडस्ट्री से ही थे. वे इंडस्ट्री के मशहूर लेखक थे द्रविण आंदोलन और भाषा विवाद में उनकी राजनीति शीर्ष तक पहुंची और मुख्यमंत्री बने. जयललिता और करुणानिधि की राजनीतिक प्रतिस्पर्धा जो बहुत निजी और संवेदनशील भी थी, ताउम्र रही. चूंकि थलाइवी जयललिता की कहानी है. इस वजह से फिल्म में करूणानिधि का चित्रण विलेन के तौर पर दिख सकता है. यह तमिलनाडु की राजनीति में विवाद का विषय भी हो सकता है. राज्य की सत्ता में इस वक्त करूणानिधि के बेटे ही कायम हैं. साथ ही इसका कंटेंट उन दर्शकों को निराश कर सकता है जिनकी हमदर्दी करूणानिधि और उनकी राजनीति के साथ रही है.

7) जयललिता पर भ्रष्टाचार, पद, सरकारी संपत्ति के दुरुपयोग, भाई-भतीजावाद और राजनीतिक बदले की भावना से काम करने के आरोप लगे हैं. जयललिता के सत्ता में रहने के दौरान उनकी दोस्त शशिकला की जबरदस्त हनक थी, इस वजह से उन्हें तमाम मामलों में विवादों का सामना करना पड़ा. जयललिता को जेल भी जाना जाना पड़ा था. स्वाभाविक है कि थलाइवी में उनकी छवि को बचाने की कोशिशें हों. और विवादित पहलुओं को जयललिता के नजरिए से दिखाया जाए. थलाइवी में वस्तुनिष्ठता की उम्मीद पाले दर्शकों को निराशा हाथ लग सकती है. थलाइवी 10 सितंबर को सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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